रिपोर्ट/विवेक शुक्ला

रामनगर बाराबंकी।कथा आचार्य सत्यम जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के विश्राम दिवस पर कहा कि जिस प्रकार देवता स्वर्ग में पूजनीय हैं, उसी प्रकार माता-पिता इस पृथ्वी पर साक्षात देवता स्वरूप हैं। उनके चरणों में ही तीर्थों का वास है, और उनकी सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है।उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जो संतान अपने माता-पिता की सेवा करती है, उसका जीवन स्वतः ही सफल हो जाता है।आचार्य जी ने समाज से अपील की कि माता-पिता को वृद्धाश्रम नहीं, अपने हृदय में स्थान दें। उनके त्याग और स्नेह का ऋण कोई चुका नहीं सकता, पर उनकी सेवा कर हम उनके प्रति अपनी श्रद्धा अवश्य प्रकट कर सकते हैं। जब सुदामा चरित्र का प्रवचन के साथ मंचन हुआ तो श्रोता भाव विभोर हो उठे। आचार्य ने बताया कि सच्ची मित्रता वही है जहाँ प्रेम और भक्ति का आदान-प्रदान हो स्वार्थ का नहीं।आचार्य जी ने राजा परीक्षित के मोह प्रसंग को सुनाते हुए कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा बंधन उसका मोह है। जब तक मनुष्य संसार के आकर्षण में बंधा रहेगा, तब तक सच्चा विश्राम संभव नहीं।उन्होंने समझाया कि भागवत कथा का उद्देश्य इसी मोह से मुक्ति दिलाना और ईश्वर के चरणों में स्थायी शांति पाना है। आने वाले सभी लोगों का आभार जताया।इस अवसर पर पूर्व चेयर मैंन बद्री विशाल त्रिपाठी, अरुण कुमार रावत,अवधेश शुक्ला,बिनय मिश्रा,कृष्ण दत्त,राम सजीवन,इंद्र मणि, शेखर ह्यारण प्रमुख,आशीष सिंह पूर्व प्रमुख आदि मौजूद रहे।






























