रिपोर्ट/विवेक शुक्ला
रामनगर बाराबंकी।सात दिनों तक अनवरत रूप से वर्षा करते-करते इंद्र का मान चकनाचूर हुआ और उसने परास्त होकर भगवान श्रीकृष्ण से अपने इस कृत्य के लिए क्षमा मांगी पुनः गोवर्धन पूजा शुरू हुई।यह बात रामनगर कस्बे के धमेडी़ मोहल्ले स्थित लक्ष्मी नारायण शुक्ला के आवास पर चल रही श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिन वैष्णवाचार्य स्वामी श्री अप्रमेय प्रपन्नाचार्य जी महराज ने गोवर्धन पूजा प्रसंग के दौरान कही उन्होंने कहा कि एक दिन श्री कृष्ण ने देखा कि सभी ब्रजवासी तरह-तरह के पकवान बना रहे हैं, पूजा का मंडप सजाया जा रहा है और सभी लोग प्रातः काल से ही पूजन की सामाग्री एकत्रित करने में लगे हुए हैं। श्री कृष्ण ने अपनी माता योशदा से पूछा, ”मईया, ये आज सभी लोग किसके पूजन की तैयारी कर रहे हैं? यशोधा मईया ने जवाब दिया ” सभी ब्रजवासी इंद्र देव के पूजन की तैयारी कर रहे हैं”। तब कन्हा ने कहा कि सभी लोग इंद्रदेव की पूजा क्यों कर रहे हैं। इस पर माता यशोदा उन्हें बताते हुए कहती हैं, इंद्रदेव वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार अच्छी होती है और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब कान्हा ने कहा कि वर्षा करना तो इंद्रदेव का कर्तव्य है। यदि पूजा करनी है तो हमें गोवर्धन पर्वत की करनी चाहिए, क्योंकि हमारी सभी गइया तो वहीं चरती हैं और हमें फल-फूल, सब्जियां आदि भी गोवर्धन पर्वत से ही प्राप्त होती हैं। कृष्ण की यह बात सुनकर सभी ब्रजवासी इंद्रदेव की बजाए गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे।ब्रजवासियों का ऐसा करना देवराज इन्द्र को अपमान जैसा प्रतीत हुआ उन्होंने क्रोध और अहंकार में आकर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी, जिससे चारों ओर त्राहिमाम हो गया सभी अपने परिवार और पशुओं को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। तब ब्रजवासी बोले कि ये सब कृष्णा की बात मानने को कारण हुआ है, अब हमें इंद्रदेव का कोप सहना पड़ेगा।
इसके बाद भगवान श्री कृष्ण ने इंद्रदेव का अहंकार दूर करने और सभी ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी हाथ की सबसे छोटी अंगुली पर उठा लिया और बरसात से बचने के लिये सभी बृजवासियों ने गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण ली इसके बाद इंद्रदेव को अपनी भूल का अहसास हुआ और उन्होंने श्री कृष्ण से क्षमा याचना की। इसी दिन से ब्रज में गोवर्धन पूजन की परंपरा प्रारंभ हुई। तत्पश्चात कथा व्यास ने माखन चोरी यमलार्जुन उद्धार कालिया मान मर्दन गोपी चीर हरण की कथा का श्रोताओं को रसपान कराया। अंत में छप्पन भोग का ठाकुर जी को भोग लगाकर प्रसाद का वितरण किया गया। इस अवसर पर आयोजक लक्ष्मी नारायण शुक्ला स्वामी श्री शिवानंद महराज अनिल अवस्थी मधुबन मिश्रा आशीष पांडे बृजेश शुक्ला दुर्गेश शुक्ला गोपाल जी महराज उमेश पांडे शुभम जायसवाल लवकेश शुक्ला शिवम शुक्ला आदि मौजूद रहे।
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