सर्वेश अस्थाना के शानदार संचालन में मणिका दुबे, कृति चौबे और योगेंद्र मधुप की रचनाओं ने जीता दर्शकों का दिल
ब्यूरो रिपोर्ट/ के के शुक्ला/चंद्रोदय अवस्थी बाराबंकी। देवा मेला के सांस्कृतिक मंच पर रविवार की रात कविताओं, भावनाओं और ठहाकों से सजी अविस्मरणीय संध्या का आयोजन हुआ। विराट कवि सम्मेलन का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन के साथ पूर्व सांसद उपेंद्र रावत, भाजपा जिलाध्यक्ष अरविंद मौर्या, रामकुमारी मौर्या और मेला समिति के सदस्य संजय बली, तालिब नजीब, फव्वाद किदवई, संदीप सिन्हा, महबूब किदवई, फैज महमूद व सानिध्य बली ने संयुक्त रूप से किया।
कार्यक्रम का संचालन प्रसिद्ध हास्य कवि सर्वेश अस्थाना ने अपनी चुटीली शैली में किया, जिन्होंने पूरे समारोह में ऊर्जा और हँसी का माहौल बनाए रखा।
कवयित्री मणिका दुबे ने माँ सरस्वती की वंदना “सब मिल आज करें माँ का वंदन” से कार्यक्रम की शुरुआत कर वातावरण को भक्तिमय बना दिया। उनके गीत “शहर के शोर में वीरानियाँ हैं, यहाँ तुम हो मगर तन्हाईयाँ हैं” ने श्रोताओं को भावनाओं के सागर में डुबो दिया।
प्रसिद्ध कवि योगेंद्र मधुप ने अपने व्यंग्य और हास्य मिश्रित अंदाज़ से खूब तालियाँ बटोरीं —
“आगाज भी देखा है अंजाम भी देखा है, तहे दिल में रहकर सरे आम देखा है”
और उनकी लाइन “प्यार के दो बोल कोई देता है अगर, ऐसा लगता है मधुप पेंशन बहाली हो गई” पर सभागार देर तक गूंजता रहा।
प्रेम रस की कवयित्री कृति चौबे ने अपनी भावनाओं को शब्दों में ढालते हुए कहा —
“रूप को चाँद कहते हो तो ढल जाएगा, रंग मौसम बहारा बदल जाएगा, मन का सोना दिया है संभालो पिया, देह की नेह में प्रेम जल जाएगा।”
उनकी संवेदनशील अभिव्यक्ति “क्या लगेगी अंधेरों की मुझको नजर, रोशनी ने उतारी बालाएँ मेरी” पर दर्शकों की आँखें नम हो गईं।
रात्रि गहराती गई, लेकिन कवियों का उत्साह चरम पर रहा। मंच पर नीलोत्पल, शम्भू शिखर, गजेंद्र प्रियांशु, अंबरीष अंबर जैसे नामचीन कवियों ने देर रात तक अपनी कविताओं से समां बाँधे रखा।
देवा मेला का यह कवि सम्मेलन न सिर्फ़ मनोरंजन का मंच बना, बल्कि साहित्य, संवेदना और सकारात्मक सोच का जीवंत संगम साबित हुआ।
ऑडिटोरियम दर्शकों की भीड़ से खचाखच भरा रहा और तालियों की गड़गड़ाहट देर रात तक गूंजती रही।