31 अगस्त 1995, वक्त शाम 5 बजकर 5 मिनट। पंजाब सिविल सचिवालय की बिल्डिंग से पगड़ी बांधे 6 फीट के सरदार जी NSG कमांडो के साथ पार्किंग की तरफ बढ़ रहे थे। उन्हें देखते ही गाड़ियों का काफिला पार्किंग में आकर रुका। सरदार दी एक सफेद रंग की एंबेसडर में बैठ गए
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मेन गेट पर गाड़ी में बैठे बलवंत ने दिलावर की पीठ थपथपाई और बोला- ‘सफेद एंबेसडर में सरदार जी बैठे हैं। जा दिलावर, कौम के लिए शहादत देने का वक्त आ गया है।’
पुलिस की वर्दी पहने दिलावर तेजी से एंबेसडर की ओर दौड़ा। वह सरदार जी से चंद कदम ही दूर था कि उसकी कमर में बंधी बेल्ट में ब्लास्ट हो गया। धमाका इतना जोरदार था कि सरदार जी की कार की छत उड़कर 30 फीट ऊंची बिल्डिंग से जा टकराई। धुएं का गुबार छा गया। आस-पास की दर्जनों गाड़ियां धू-धू करके जल गईं। हर तरफ कटी-फटी लाशें पड़ी थीं। कहीं कटा हुआ हाथ, तो कहीं अधजले सिर-पैर और हाथ की उंगलियां।
पंजाब सरकार के मंत्री और सरदार जी के साले शमशेर सिंह ढिल्लों और सरदार जी का पोता गुरकीरत सिंह कोटली भी वहां पहुंचे। एंबेसडर के पास जाकर देखा, गाड़ी की पीछे वाली सीट पर एक अधजली लाश पड़ी है। चेहरा झुलसकर काला पड़ चुका है। एक अधजला कटा हुआ हाथ गाड़ी से लटक रहा था। हाथ में एक खास ‘कड़ा’ था, जो पंजाब में एक ही आदमी पहनता था।
ये सरदार जी कोई और नहीं, बल्कि पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह थे। मौके पर पुलिस पहुंची तो पता चला सीएम समेत 17 लोगों के चीथड़े उड़ गए हैं।
कुछ घंटे बाद पाकिस्तान से वधावा सिंह और मेहल सिंह के नाम से दो फैक्स मैसेज आए। फौरन केस सीबीआई को ट्रांसफर कर दिया गया। पुलिस के मुताबिक ब्लास्ट की प्लानिंग पाकिस्तान में रची गई थी।
1994 की बात है। वधावा और मेहल को पता चला कि पंजाब के तीन जिलों में पुलिस ने फेक एनकाउंटर के बाद करीब 1800 लाशों को दफना दिया है। उनलोगों इनका बदला लेने की ठान ली। भारत से जगतार सिंह हवारा को बुलाया और मानव बम से सीएम बेअंत सिंह को उड़ाने का प्लान बनाना शुरू किया।
हवारा अपने साथी के साथ ट्रक लेकर अमृतसर पहुंचा और बॉर्डर पार पाकिस्तान से 14 किलो RDX और बम बनाने का सामान लेकर मोहाली पहुंचा। फिर हवारा अपने साथी बलवंत, दिलावर के साथ मिलकर बम बनाना शुरू किया।
टॉस करके हवारा ने फिक्स किया कि दिलावर सिंह मानव-बम बनेगा। अगर दिलावर फेल हुआ तो बलवंत सिंह बनेगा। इसके बाद ही पंजाब के सिविल सचिवालय में धमाका हुआ था।
दैनिक भास्कर की सीरीज ‘मृत्युदंड’ में सीएम मर्डर केस के पार्ट-1 और पार्ट-2 की कहानी तो आप जान ही चुके हैं। आज पार्ट-3 में आगे की कहानी…
31 अगस्त 1995 को हुए जोरदार धमाके में सीएम बेअंत सिंह के चीथड़े उड़ गए थे। पुलिस को मौके पर दो पैर मिले। फोरेंसिक रिपोर्ट में पता चला कि ‘ब्लास्ट के बाद जो दोनों कटे हुए पैर मिले वो एक ही व्यक्ति के हैं। इन्हीं दोनों पैर के घुटने के ऊपर RDX जैसा कुछ बांधा गया था, जिससे सिर से लेकर घुटने तक का हिस्सा ब्लास्ट हो गया।’
सीबीआई ने पुलिस के साथ मिलकर जांच शुरू की। धमाके के अगले दिन यानी 1 सिंतबर 1995, पंजाब सिविल सचिवालय के पास सीबीआई को एंबेसडर DBA-9598 से जली हुई एक चिट्ठी मिली। पंजाबी में लिखा था- ‘मेरे साथी इस उम्मीद में मरे हैं कि मैं उनके दुखों को साझा करूंगा, अगर मैं चुप रहूंगा तो उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी और वे मुझे परेशान करेंगे।’
पुलिस ने गाड़ी नंबर के साथ कार की फोटो अखबार में छपवा दी। रजिस्ट्रेशन नंबर से पता चला कि यह गाड़ी दिल्ली की रेवा दत्ता ने बसंत सिंह को बेची थी।
अगले दिन अखबार देखकर चंडीगढ़ सेक्टर-7 में रहने वाला एक पेंटर थाने पहुंचा। थानेदार से बोला- ‘साहब, 27 अगस्त को दो-तीन आदमी मेरे यहां यह गाड़ी पेंट कराने के लिए आए थे। 30 अगस्त को दिलावर और बलवंत गाड़ी लेकर गए थे।’
तीन दिन बाद पुलिस को पटियाला बस स्टैंड के पास एक लावारिस स्कूटर मिला। तहकीकात में पता चला कि स्कूटर बलवंत सिंह के नाम है। इसी स्कूटर के डिग्गी में एक बेल्ट-बम था, जिसे ब्लास्ट के बाद लखविंदर और बलवंत लेकर भागे थे।

पुलिस को पटियाला बस स्टैंड के पास एक लावारिस स्कूटर मिला। स्केच :संदीप पाल
सीबीआई तुरंत स्कूटर के रजिस्टर्ड एड्रेस पर पहुंच गई और बलवंत के घर की तलाशी शुरू कर दी। कई किताबें खंगालने के बाद पुलिस को उग्रवादी संगठन बब्बर खालसा का एक लेटर पैड मिला। इस पर पंजाब सिविल सचिवालय के साथ कमांडो का स्केच बना था।
तभी उन्हें याद आया कि ठीक ऐसे ही लेटर पैड पर सीएम बेअंत सिंह की हत्या की जिम्मेदारी ली गई थी। ये लेटर पैड UNI न्यूज एजेंसी के दिल्ली दफ्तर में फैक्स से भेजा गया था। जिसमें पाकिस्तान के वधावा और मेहल सिंह की फोटो भी थी।
अब सीबीआई ने केस की कड़ी से कड़ी जोड़नी शुरू की। 5 सितंबर 1995 को लखविंदर चंडीगढ़ से गिरफ्तार हुआ। उसकी जेब से एक फटी हुई पर्ची मिली। इस पर हाथ से लिखा था- ‘I want death only, first CM Punjab you know, then PM’ यानी- मैं सिर्फ मौत चाहता हूं, पहले सीएम की उसके बाद पीएम की।’ लखविंदर के बैंक अकाउंट खंगाले गए तो 3.75 लाख रुपए मिले।
सीबीआई सख्ती दिखाती उससे पहले ही लखविंदर गुनाह कबूल कर लिया।
सीबीआई ने पहला सवाल पूछा- ‘ब्लास्ट के लिए RDX कहां से आया?’
लखविंदर बिना घबराए बोला- ‘पाकिस्तान से’
‘कैसे?’
जवाब मिला- ’10 अगस्त को पटियाला का ट्रक ड्राइवर शमशेर हमारे साथी जगतार सिंह हवारा के साथ अमृतसर गया था। जैसे ही रात हुई वो दोनों बॉर्डर के पास पहुंचे, उस पार से दो लोगों ने 13 किलो 700 ग्राम RDX और बम बनाने का सामान बोरियों में भरकर दे दिया।’
उधर, 13 दिसंबर को सीबीआई ने दिल्ली से जगतार सिंह तारा को भी गिरफ्तार कर लिया। तारा ने ही जगतार सिंह हवारा को एंबेसडर कार दिलवाई थी। 17 सितंबर को मोहाली से नवजोत सिंह को गिरफ्तार कर लिया गया। नवजोत सिंह की कोठी पर जगतार सिंह हवारा, बलवंत सिंह और दिलावर सिंह ने बाकियों के साथ मिलकर बेल्ट-बम, रिमोट बनाया था।
पुलिस को नवजोत के घर से RDX, बम बनाने का सामान, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और रिमोट मिले। साथ ही एक डायरी भी मिली। इसमें लिखा था- ‘अब सतलुज यमुना लिंक नहर में पानी नहीं, बेअंत सिंह, केपीएस और उनके भ्रष्ट साथियों का खून बहेगा। भजन लाल का भी खून बहेगा। भारत के लोगों, भारत सरकार यानी चोरों और कालाबाजारियों की सरकार को इस बात पर खुश नहीं होना चाहिए कि उनकी कठपुतली सरकार यानी बेअंत सिंह के जरिए पंजाब में शांति आ गई है। ये हत्यारे डीजीपी गिल के साथ मिलकर फर्जी मुठभेड़ों में सिख युवकों की हत्या कर रहे हैं। सिख संघर्ष को बदनाम करने और जत्थेदारों को खत्म करने के लिए पुलिस ने फेक एनकाउंटर चलाया था, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा।’
डायरी में जिस सतलुज यमुना लिंक नहर का जिक्र था वो पंजाब हरियाणा के बीच बहती है।
आखिरकार 27 जनवरी 1996 को लुधियाना से बलवंत और हरियाणा से जगतार सिंह हवारा गिरफ्तार हो गए। पूछताछ में बलवंत सिंह और हवारा ने भी अपने गुनाह कबूल कर लिए।
पुलिस ने बलवंत से पूछा- ‘मानव बम बनने वाला कौन था?’ मूंछ पर ताव देते हुए बलवंत बोला, ‘अपना साथी दिलावर, जिसका दिल भी बड़ा था। सिख कौम के लिए शहीद हो गया।’
‘बेअंत सिंह को क्यों टारगेट किया?’, पुलिस ने फिर से पूछा।
हवारा ने ठसक से बिना किसी मलाल के बोलना शुरू किया- ‘पंजाब के डीजीपी केपीएस गिल और मुख्यमंत्री बेअंत सिंह, दोनों सिख कौम के दुश्मन बन गए थे। पंजाब के हर गांव से चुन-चुनकर युवाओं को फेक एनकाउंटर में मारा जा रहा था। अमृतसर के तीन गांवों में ही हजारों युवाओं को मार दिया गया। दोनों में से किसी एक को मरना ही था।’

पूछताछ के दौरान जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह ने गुनाह कबूल कर लिया। स्केच: संदीप पाल
पुरानी फाइलें खोलने पर पता चला कि दिलावर, बलवंत और लखविंदर पंजाब पुलिस में कॉन्स्टेबल रह चुके थे। लखविंदर 7 जून 1993 तक पंजाब पुलिस में था। इस दौरान वह सचिवालय में भी तैनात था। उसे बेअंत सिंह की पूरी सुरक्षा के बारे में पता था। वहां के सुरक्षाकर्मी भी इन लोगों को जानते थे। बलवंत और दिलावर पुलिस की नौकरी के दौरान ही दोस्त बने थे।
बलवंत ने अक्टूबर 1987 तक पंजाब पुलिस में नौकरी की थी। फिर पटियाला के जर्नलिस्ट भूषण सिरहिंद का गार्ड बन गया। जबकि दिलावर ने बतौर स्पेशल पुलिस ऑफिसर 9 जून 1993 से 18 सितंबर 1994 तक नौकरी की। उसने बब्बर खालसा संगठन से जुड़ने और पाकिस्तान में रह रहे वधावा सिंह और मेहल सिंह के कॉन्टैक्ट में आने के बाद नौकरी छोड़ दी। जगतार सिंह तारा और परमजीत सिंह के खिलाफ पहले से 1991 में अटेम्प्ट टू मर्डर के केस चल रहे थे, लेकिन दोनों ही बेल पर बाहर थे।
जांच में ये भी पता चला कि लखविंदर ने बेल्ट के लिए टेलर से कहा था- ‘मां का ऑपरेशन हुआ है, उनकी सिंकाई के लिए ऐसी बेल्ट बना दो जिसमें गर्म पानी की बॉटल फंसाई जा सके।’ इसी बेल्ट में ब्लास्ट के लिए RDX बांधा गया था।
सीबीआई ने कुल 8 आरोपियों- बलवंत, लखविंदर, गुरमीत, जगतार सिंह तारा, नवजोत, नसीब, शमशेर, जगतार सिंह हवारा के खिलाफ सीबीआई स्पेशल कोर्ट में चार्जशीट फाइल कर दी।
मुख्य आरोपी बलवंत और हवारा को बनाया गया। दोनों हमले के मास्टरमाइंड थे। चंडीगढ़ स्पेशल सीबीआई कोर्ट में करीब 11 साल मामला चला। बचाव पक्ष में बलवंत और बाकियों ने खुद की पैरवी करने से इनकार कर दिया।
सीबीआई की ओर से एडवोकेट ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा- ‘दिलावर, बलवंत और लखविंदर खुद पंजाब पुलिस के कॉन्स्टेबल रह चुके थे। उन्होंने पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं के साथ मिलकर इस पूरे कांड का प्लान बनाया। ये लोग कीर्तन जत्था के नाम पर देश का माहौल बिगाड़ने में जुटे हुए थे। ये साजिश करीब 8 महीने पहले रची गई, सचिवालय जैसी सबसे सुरक्षित जगह पर बम ब्लास्ट करके मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के साथ 16 और बेगुनाहों को ब्लास्ट में उड़ा दिया गया।
दिलावर ने मानव बम बनकर इस ब्लास्ट को अंजाम दिया। ब्लास्ट में कटे हुए उसके दोनों पैर के सैंपल उसके माता-पिता के डीएनए से मैच कर गए। इन आठों ने अपने इकबालिया बयान में कबूल किया है कि दिलावर मानव बम बना था। जिस स्कूटर से बलवंत सचिवालय गया था, उसकी डिग्गी में भी एक बेल्ट-बम मिला है।
माय लॉर्ड, जिस तरह से इस पूरे षड्यंत्र को रचा गया, वह ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ है। इन्हें फांसी की सजा मिलनी चाहिए। पंजाब के इतिहास के लिए 31 अगस्त 1995 का दिन काला दिन के तौर पर दर्ज हुआ है।’

सीबीआई की ओर से एडवोकेट ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा- इन हत्यारों के लिए मौत से कम कोई भी सजा मंजूर नहीं। स्केच: संदीप पाल
बलवंत और बाकियों की तरफ से पैरवी करते हुए एडवोकेट अमर सिंह चहल ने कोर्ट में कहा- ‘दिलावर, जिसने इस घटना को अंजाम दिया, उसकी तो ब्लास्ट में ही मौत हो गई। बाकियों के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं है। जिस आधार पर उन्हें सजा दी जाए।’
सीबीआई की दलील सुनने, 247 गवाहों के बयान दर्ज होने के बाद सीबीआई स्पेशल कोर्ट के एडिशनल जज रवि कुमार सौंधी ने 27 जुलाई 2007 को 1022 पन्नों के जजमेंट में अपना फैसला सुनाया। फैसला सुनाने की जगह चंडीगढ़ की बुड़ैल जेल यानी मॉडल जेल थी। सभी आरोपी इसी जेल में बंद थे।
एडिशनल जज रवि कुमार सौंधी ने 6 आरोपियों को दोषी करार देते हुए कहा- ‘वाकई में 31 अगस्त 1995 पंजाब के इतिहास में दूसरा काला दिन रहा। सीएम बेअंत सिंह समेत 16 बेगुनाहों को बम-धमाके में उड़ा दिया गया। सीबीआई ने जो सबूत पेश किए हैं, उसमें स्पष्ट है कि दिलावर ही मानव बम बना था। टीम को इन्वेस्टिगेशन के दौरान दिलावर के घर से भगत सिंह की एक फोटो और उसके पिछले हिस्से में बेल्ट-बम का एक स्केच मिला था। जांच में ये बात भी सामने आई कि पाकिस्तान से करीब 14 किलो RDX बारूद लाया गया था। पूरी प्लानिंग पाकिस्तान से की जा रही थी। यह मामला रेयरेस्ट ऑफ रेयर है।
पूरी बहस के बाद अब हम इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि इस ब्लास्ट के मास्टरमाइंड बलवंत और जगतार सिंह हवारा हैं। इन्हीं दोनों ने पूरी घटना को अंजाम तक पहुंचाया। इसलिए दोनों को मृत्युदंड सुनाया जाता है।’
कोर्ट ने आगे कहा- ‘नसीब सिंह के घर पर पाकिस्तान से लाया गया बारूद और RDX रखा गया था। घटना के वक्त आरोपी की उम्र 63 साल थी। इसलिए नसीब को 10 साल की सजा सुनाई जाती है। गुरमीत, लखविंदर और शमशेर सिंह को उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है। बाकी आरोपियों के खिलाफ मुकदमा जारी रहेगा।’
बलवंत और जगतार सिंह हवारा की फांसी की सजा को कन्फर्म करने के लिए चंडीगढ़ स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट भेज दिया।
2010 की 29 मार्च को स्पेशल सीबीआई कोर्ट के एडिशनल जज रवि सौंधी ने बेअंत सिंह मामले में एक आरोपी परमजीत सिंह के खिलाफ उम्रकैद की सजा सुनाई।
फिर सभी के खिलाफ मामला 12 अक्टूबर 2010 को हाईकोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने अपने फैसले में बलवंत की फांसी की सजा को बरकरार रखा, जबकि जगतार सिंह हवारा की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया। उसके बाद 2012 में चंडीगढ़ सेशन कोर्ट ने बलवंत के खिलाफ डेथ वारंट जारी कर दिया।
इसके बाद पूरे पंजाब में आंदोलन होने लगा। सिख समुदाय का एक तबका सड़क पर उतर आया। इसके बाद देश के राष्ट्रपति के पास याचिका दायर की गई। तब से मामला पेंडिंग है। फिर 2023 में बलवंत सिंह की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए मामले में केंद्र सरकार को फैसला लेने का आदेश दिया।
फिर 2025 की जनवरी में सुप्रीम कोर्ट में बलवंत की तरफ से पैरवी की गई। सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि फांसी की सजा पाए जेल में बंद कैदी के अधिकार का हनन हो रहा है। केंद्र को इस पर फैसला लेना चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को बलवंत सिंह को लेकर फैसला लेने का आदेश दिया, लेकिन अभी तक मामला पेंडिंग है।
जगतार सिंह हवारा 2004 में जेल की सुरंग खोदकर भागा था। उसे 2005 में दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। उसके बाद से वह दिल्ली की तिहाड़ जेल में ही बंद है।
सीनियर जर्नलिस्ट जगतार सिंह और हरकवलजीत सिंह का मानना है कि- ‘बलवंत सिंह केंद्र सरकार के लिए गले की हड्डी बना हुआ है। न वह इसे निगल रहे हैं और न उगल रहे हैं। बलवंत को फांसी देने से पंजाब में माहौल खराब हो सकता है। 2012 में डेथ वारंट जारी करने के बाद ही सरकार को समझ आ गया था कि स्थिति कंट्रोल से बाहर हो सकती है।
बेअंत सिंह देश के बाकी हिस्सों के लिए हीरो होंगे, लेकिन पंजाब का एक वर्ग उन्हें विलेन मानता है। बेअंत सिंह की मौत के तुरंत बाद उनकी पत्नी को लुधियाना से टिकट दिया गया था, लेकिन वह हार गईं।
यदि बलवंत को जेल से रिहा किया जाता है या फांसी की सजा को उम्रकैद में बदला जाता है, इससे देश के बाकी हिस्सों में मैसेज जाएगा कि एक पूर्व मुख्यमंत्री के हत्यारों के साथ सरकार ने नरमी बरती है।’
बेअंत सिंह के पोते गुरकीरथ सिंह कोटली का कहना है कि ‘मेरे परिवार ने इस मामले में कभी पैरवी भी नहीं की। सरकार और कोर्ट का जो फैसला होगा, उसे ही मानेंगे। हमारी कोई मांग नहीं है कि बलवंत को फांसी की सजा ही हो।’
‘मृत्युदंड’ सीरीज में अगले हफ्ते पढ़िए एक और सच्ची कहानी…
(नोट- यह सच्ची कहानी CBI चार्जशीट, कोर्ट जजमेंट, पूर्व CM बेअंत सिंह के पोते और पंजाब के पूर्व मंत्री गुरकीरत सिंह कोटली, सीनियर एडवोकेट अरुण सिंह चहल, जर्नलिस्ट जगतार सिंह और हरकवलजीत सिंह से बातचीत पर आधारित है। सीनियर रिपोर्टर नीरज झा ने क्रिएटिव लिबर्टी का इस्तेमाल करते हुए इसे कहानी के रूप में लिखा है।)
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सीएम मर्डर केस की पहली और दूसरी कड़ी पढ़िए
1. बटन दबाते ही बेल्ट में धमाका, 17 लोगों के चीथड़े:कटे हाथ से पता चला मुख्यमंत्री मारे गए; सीएम मर्डर केस, पार्ट-1

तारीख- 31 अगस्त 1995, वक्त सुबह के 6 बजे और जगह चंडीगढ़। दिलावर सिंह, चमकौर सिंह और बलवंत नाम के तीन सरदार सोकर उठे। दिलावर बोला- ‘चमकौर, तुम फौरन चंडीगढ़ छोड़कर चले जाओ। हम लोग बड़ा काम करने जा रहे हैं।’ चमकौर सकपका गया। बोला, ‘कौन-सा बड़ा काम पाजी। ऐसे क्यों बोल रहे हो?’ पढ़िए पूरी कहानी…
2. टॉस जीतकर बोला, मैं बनूंगा मानव-बम:1800 लोगों को मरवा चुका है CM, उसे मारा नहीं तो हम भी मरेंगे; CM मर्डर केस, पार्ट-2

पाकिस्तान का लाहौर शहर। साल 1994 और नवंबर का महीना। रात के 8 बज रहे थे। एक कमरे में नारंगी पगड़ी बांधे वधावा सिंह और मेहल सिंह नाम के दो आदमी आपस में बात कर रहे थे- ‘यह सिख कौम का नंबर एक दुश्मन बनता जा रहा है। एक साल के भीतर इस प्लान को मुकाम तक पहुंचाना होगा। नहीं तो, हम भी नहीं बचेंगे। पढ़िए पूरी कहानी…