‘हमें नेपाल में फिर से राजा का शासन चाहिए। इसके लिए मरने और मारने के लिए भी तैयार हैं। 2005 में लोकतंत्र के लिए आंदोलन चला था, तब मैं भी उसका हिस्सा था। अब राजशाही के लिए आंदोलन कर रहा हूं। मैंने राजशाही और लोकतंत्र दोनों देख लिए। मुझे लगता है कि नेप
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नेपाल में राजशाही वापस लाने के लिए राजधानी काठमांडू में आंदोलन चल रहा है। प्रोटेस्ट में शामिल होने के लिए गोविंद पांडे पश्चिमी नेपाल से आए हैं। बीते 8 अप्रैल को काठमांडू में प्रोटेस्ट हुआ था। गोविंद उसी में शामिल होने आए थे। वे आंदोलन को लीड कर रहे विवादित नेता दुर्गा प्रसाई की कोर टीम का हिस्सा हैं।
दैनिक भास्कर आंदोलन से जुड़े सभी पहलुओं की कवरेज के लिए काठमांडू पहुंचा है। लोगों और पॉलिटिकल लीडर्स से बात करके पता चला कि लोग राजशाही पर बंटे हुए हैं। हालांकि चाहते हैं कि देश फिर से हिंदू राष्ट्र बने। पहली स्टोरी में पढ़िए ये आंदोलन क्यों शुरू हुआ, इसके पीछे कौन है, आम लोग क्या कह रहे हैं और अभी नेपाल में क्या चल रहा है।

दुर्गा प्रसाई: एक हथियार तस्कर कैसे बना आंदोलन का लीडर 54 साल के दुर्गा प्रसाई राजशाही के समर्थन में चल रहे आंदोलन को लीड कर रहे हैं। झापा जिले में हॉस्पिटल चलाने वाले दुर्गा प्रसाई तीनों बड़ी पार्टियों नेपाल कांग्रेस, माओवादी पार्टी और नेशनल कम्युनिस्ट पार्टी में रह चुके हैं।
उनका अतीत नेपाल में 1996 से 2006 तक चले गृहयुद्ध से भी जुड़ा है। गृहयुद्ध में करीब 17 हजार लोग मारे गए थे। बताया जाता है कि तब दुर्गा प्रसाई दूध की गाड़ियों में माओवादी लड़ाकों के लिए हथियारों की तस्करी करते थे। वहीं अब करीब 19 साल बाद राजशाही की बहाली के लिए चल रहे आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बनकर उभरे हैं।

28 मार्च को काठमांडू में हुए प्रोटेस्ट को दुर्गा प्रसाई ही लीड कर रहे थे। नेपाल पुलिस ने प्रदर्शन के लिए एक एरिया तय कर दिया था। आरोप है कि दुर्गा प्रसाई ने बैरिकेडिंग तोड़ दी और पार्लियामेंट हाउस और सेक्रेटेरिएट बिल्डिंग ‘सिंह दरबार’ की तरफ बढ़ने लगे। भीड़ उनके पीछे-पीछे चल दी।
पुलिस ने भीड़ को संभालने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़े और पैलेट गन चलाई। इसके बाद हिंसा भड़क गई, जिसमें दो लोग मारे गए।

प्रदर्शन के बाद दुर्गा प्रसाई गायब हो गए। उनके भारत भागने की खबरें चल रही हैं। उनकी कार भारत के बॉर्डर से करीब 20 किमी पहले मिली है। पुलिस और सिक्योरिटी फोर्स उन्हें ढूंढ रही हैं। दुर्गा प्रसाई की गैरमौजूदगी में उनकी टीम के लोग आंदोलन संभाल रहे हैं।
दुर्गा प्रसाई की कोर टीम में शामिल गोविंद पांडे कहते हैं, ‘हम आंदोलन नहीं करना चाहते थे, लेकिन ये हमारी जरूरत बन गया है। नेपाल की एकता पर संकट गहराता जा रहा है। हम सारी पार्टियों को आजमाकर देख चुके हैं।’

जहां हिंसा भड़की, वहां एक किमी तक हर बिल्डिंग को नुकसान आंदोलन का असर जानने हम काठमांडू के तिनकुने एरिया पहुंचे। यहां 28 मार्च को प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़की थी। सड़क से गुजरते हुए करीब एक किमी तक हर बिल्डिंग के कांच टूटे हुए हैं। आगजनी के निशान बाकी हैं।
उस दिन प्रोटेस्ट में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी यानी RPP नेता खुस्बू ओली भी मौजूद थीं। वे बताती हैं, ‘ रैली में हजारों युवा आए थे। हम राष्ट्रगान बजा रहे थे, तभी पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे। फिर रैली में आए लोगों की पिटाई शुरू कर दी। हमने भागते हुए देखा था कि सिविल ड्रेस में कुछ लोग बिल्डिंग के ऊपर से फायरिंग कर रहे थे। सरकार हमें डराने के लिए ये सब कर रही है।’

भीड़ पर काबू करने के लिए नेपाल की सिक्योरिटी फोर्स ने फायरिंग की थी। इस दौरान करीब 58 राउंड फायरिंग की गई।
‘हमारी मांग है कि नेपाल में संवैधानिक राजतंत्र की बहाली हो। अभी देश में राष्ट्रपति का पद है, वो ऐसा नहीं है कि निष्पक्ष रहकर काम करे। देश की स्थिरता के लिए राजतंत्र जरूरी है। हिंदू राष्ट्र हमारी पहचान है, उसकी बहाली हो। इस देश को सेक्युलर नहीं रहना, हमें फिर से हिंदू राष्ट्र ही चाहिए। लोग लोकतंत्र की वजह से नहीं, इसकी खामियों से नाराज हैं।’

प्रोटेस्ट कवर करने वाले जर्नलिस्ट बोले- संसद पर कब्जे के नारे लगे काठमांडू के जर्नलिस्ट खगेंद्र भंडारी प्रोटेस्ट कवर करने के लिए पहुंचे थे। उनके सामने ही हिंसा शुरू हुई। खगेंद्र कहते हैं, ‘प्रोटेस्ट में 4-5 हजार लोग थे। मुझे लगता कि पुलिस को जैसी मुस्तैदी दिखानी चाहिए थी, वैसी नहीं दिखाई गई। सरकार ने ढिलाई बरती। इसी का नतीजा था कि प्रदर्शन हिंसक हो गया।’
‘भीड़ नारा लगा रही थी – एयरपोर्ट, संसद भवन और सिंह दरबार पर कब्जा करो। नेपाल पुलिस ने भीड़ को कंट्रोल करने के लिए फायरिंग की। इसके बाद भीड़ ने दुकानों में तोड़फोड़, आगजनी और लूटपाट की। जर्नलिस्ट को भी निशाना बनाया गया।’

17 साल में 14 सरकारें बदलीं, सत्ता के लिए पार्टियां हर समझौता कर रहीं नेपाल में 2008 में लोकतंत्र की शुरुआत हुई थी। बीते 17 साल में 14 बार सरकार बदल चुकी है। नेपाल में तीन सबसे बड़ी पार्टियां हैं। नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML) और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी)। यही तीन पार्टियां नेपाल में सरकार बनाती हैं।
मौजूदा प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML) के लीडर हैं। उनकी पार्टी का नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन है। दोनों पार्टियां एक दूसरे की विरोधी रही हैं। भारत के लिहाज से देखें तो ये BJP और कांग्रेस के साथ आने जैसा है। यही वजह है कि नेपाल के लोग मानते हैं कि सत्ता के लिए पार्टियां किसी के भी साथ सरकार बना लेती हैं।
राजशाही के समर्थन में हो रहे प्रदर्शन इन तीनों पार्टियों के खिलाफ हैं। सांसदों के लिहाज से 5वें नंबर की पार्टी RPP राजतंत्र की बहाली के लिए खुलकर सामने आ गई है। RPP के 13 सांसद हैं और 2022 में हुए चुनाव में उसे करीब 5% वोट मिले थे। पार्टी को नेपाल के पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह खुलकर तो समर्थन नहीं करते, लेकिन माना जाता है कि RPP को उन्हीं का सपोर्ट है।

‘ज्यादातर नेता करप्ट, इतने राजाओं से पहले जैसा एक राजा अच्छा’ 32 साल के रमेश मगाडे काठमांडू में रहते हैं। होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की है, लेकिन टैक्सी चलाते हैं। कहते हैं कि नेपाल में नौकरियों की इतनी कमी है कि पढ़े-लिखे लोग परेशान हैं।
हमने उनसे पूछा कि राजशाही की बहाली पर क्या सोचते हैं? रमेश जवाब देते हैं-

नेपाल के ज्यादातर नेता करप्ट हैं। लोग माओवादी, UML और कांग्रेस तीनों पार्टियों को मौका दे चुके हैं। ये आपस में मिलकर बारी-बारी से सरकार बना चुके हैं।
‘मैं बचपन के दिन याद करता हूं। मेरे परिवार का गुजारा कम पैसे में भी हो जाता था। अब हम सब कमाते हैं, तो भी ठीक से गुजारा नहीं हो पाता। महंगाई बढ़ रही है, नौकरियां नहीं हैं, इसलिए लोग बाहर जा रहे हैं। अब हमें एक पार्टी या दूसरी पार्टी नहीं चाहिए। हमारा इस सिस्टम में यकीन नहीं रहा। हम अब नया सिस्टम बनाना चाहते हैं।’

नेपाल के सचिवालय यानी सिंह दरबार के बाहर हमें रोशन कुमार मरीक मिले। बिहार से सटे मधेस प्रदेश के रहने वाले हैं। रोशन कुमार ने दिल्ली एम्स से मेडिकल की पढ़ाई की और अभी काठमांडू में हेल्थ विभाग में कॉन्ट्रैक्ट पर नौकरी कर रहे हैं।
रोशन कहते हैं, ‘देश चलाने वाले नेता और पार्टियां काबिल नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि नेपाल में सिर्फ राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं, अलग-अलग कम्युनिटी के लोग भी सड़कों पर हैं। सरकारी कर्मचारी, टीचर प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकारी कर्मचारी भी मौजूदा सरकार से नाराज हैं।’

‘नेपाल हिंदू राष्ट्र हो जाए, राजशाही नहीं चाहिए’ ITC कंपनी से रिटायर हुए 60 साल के हरिशरण पौडेल काठमांडू में रहते हैं। पूरी नौकरी के दौरान वे भारत में रहे हैं। हरिशरण कहते हैं, ‘मैं चाहता हूं कि नेपाल हिंदू राष्ट्र हो जाए। हालांकि सारे लोग राजतंत्र नहीं चाहते हैं। नेपाल में पॉलिटिकल लीडरशिप फेल रही है, इसलिए लोग हड़बड़ाहट में राजतंत्र की वापसी की मांग कर रहे हैं।’
‘नेपाल की सबसे बड़ी समस्याएं रोटी, कपड़ा, मकान, हेल्थ और एजुकेशन है। मैंने राजशाही भी देखी है। तब हम आज की तरह खुलकर बात नहीं कर सकते थे। भारत में कोई भी प्रधानमंत्री के खिलाफ नारे लगा सकता है। अगर नेपाल में राजशाही आ जाए तो मैं ज्ञानेंद्र मुर्दाबाद नहीं बोल सकता।’

काठमांडू में लोगों से बात करने पर ये साफ हो गया कि लोग मौजूदा सरकार और पॉलिटिकल सिस्टम से नाराज हैं। हालांकि सभी लोग राजशाही की वापसी की मांग कर रहे हैं, ये कहना भी सही नहीं है। पॉलिटिकल पार्टियों पर भी लोगों के ख्याल अलग हैं। आम लोगों के बाद हमने पॉलिटिकल लीडर्स से राजशाही की वापसी पर बात की।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML) ‘राजशाही का सपोर्ट करने वाले आतंकी’ बिष्णु रिजाल नेपाल में सरकार चला रही नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML) के सेंट्रल कमेटी मेंबर हैं। प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने 28 मार्च को हुए प्रोटेस्ट को आतंकियों का प्रदर्शन कहा है। इस पर बिष्णु रिजाल कहते हैं, ‘प्रदर्शनकारी पब्लिक प्रॉपर्टी तोड़ रहे हैं। घरों पर पत्थर मार रहे हैं, आगजनी-लूटपाट कर रहे हैं। ये प्रदर्शन करने का तरीका नहीं है, ये आतंकी हरकत है।’
‘अगर आप मौजूदा सरकार से खुश नहीं हैं तो बेशक प्रदर्शन करो। लोगों तक जाओ, आंदोलन चलाओ, चुनाव लड़ो और जीतकर आओ। इसके बाद आप अपने कानून बनाओ, संविधान में बदलाव करो।’

नेपाली कांग्रेस राजतंत्र का समर्थन नहीं, आगे क्या होगा पता नहीं केपी शर्मा ओली की सरकार नेपाली कांग्रेस के समर्थन से चल रही है। फिलहाल नेपाली संसद में सबसे ज्यादा 88 सीटें नेपाली कांग्रेस के पास हैं। नेपाली कांग्रेस के नेता और 4 बार के सांसद अभिषेक प्रताप शाह कहते हैं कि लोग मौजूदा सरकार से नाराज हैं। नौकरियां और मौके न होने से पलायन हो रहा है। यही गुस्सा सड़कों पर दिख रहा है।’
‘अभी हमारी पार्टी लोकतंत्र और मौजूदा सिस्टम के समर्थन में है। आने वाले वक्त में क्या होगा, कह नहीं सकते।’

राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी नेपाल को एक करने के लिए राजा का शासन जरूरी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के महासचिव शरद राज कहते हैं, ‘हम हमेशा से राजशाही की बहाली और नेपाल को हिंदू राष्ट्र घोषित करने की मांग कर रहे हैं। ये सिर्फ हमारी मांग नहीं है, कई पार्टियां यही मांग कर सड़कों पर आ रही हैं।’
‘नेपाल अस्थिर देश बन चुका है, करप्शन चरम पर है, बेरोजगारी बढ़ रही है। राजतंत्र के लिए जैसे प्रदर्शन हो रहे हैं, कोई एक पार्टी ये नहीं कर सकती। जनता खुद आंदोलन करना चाहती है। चंद लोगों ने नेपाल के पूरे सिस्टम पर कब्जा कर लिया है। लोग इस सिस्टम को बदलना चाहते हैं।’

एक्सपर्ट बोले- लोगों को पुराने दिन याद, इसलिए राजशाही मांग रहे नेपाल में राजशाही के समर्थन में हो रहे प्रोटेस्ट से कई सारे सवाल उठ रहे हैं। हमने इन पर त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस पढ़ाने वाले संजीव हुमागेन से बात की।
सवाल: नेपाल में हो रहे प्रदर्शनों के पीछे क्या वजह है? जवाब: इसे हमें दो नजरियों से देखना चाहिए। पहला- राजतंत्र के समर्थन की मांग, दूसरा- डेमोक्रेटिक सिस्टम से निराशा। ये दोनों मिलकर प्रदर्शन की वजह बन गए हैं। संसद में कुछ पार्टियां खुले तौर पर संवैधानिक राजतंत्र का सपोर्ट करती हैं।
बड़ी पार्टियों जैसे नेपाली कांग्रेस, नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (UML), नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) के कई नेता राजशाही और हिंदू राष्ट्र की बात करते रहते हैं।
सवाल: क्या लोग वाकई राजा का शासन चाहते हैं? जवाब: लोग नाराज हैं और इसी वजह से वे अतीत के अच्छे दिनों को याद कर उन्हें वापस लाने की मांग कर रहे हैं। नेपाल ने कई दौर देखे हैं, जैसे- राजा का पूर्ण शासन, संवैधानिक राजतंत्र, माओवादी हिंसा और मौजूदा सिस्टम। अब मुझे लगता है कि नेपाल के लोग नई व्यवस्था लाने के बारे में सोच रहे हैं।
इतिहास में नेपाल के सारे आंदोलन पार्टियों ने किए हैं। इस बार ये पॉलिटिकल से ज्यादा सोशल मूवमेंट बन गया है। भले RPP कह रही है कि वो ये प्रदर्शन कर रही है, लेकिन वो इस आंदोलन का एक हिस्सा भर हैं।

सवाल: इन प्रदर्शनों में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह का क्या रोल है? जवाब: वे अभी हवा का रुख भांप रहे हैं कि लोगों का गुस्सा किधर जा रहा है। अभी राजा न तो खुलकर कुछ बोल रहे हैं और न बोलने की स्थिति में हैं। वे ये भी नहीं कह रहे कि मेरा इन प्रदर्शनों से कोई लेना-देना नहीं है और मैं सत्ता में नहीं आना चाहता। उनकी चुप्पी बताती है कि वे कुछ सोच रहे हैं। आगे प्रदर्शन तेज होता है, तो वे अपने पत्ते खोल सकते हैं।
सवाल: क्या नेपाल में राजशाही वापस आ सकती है? जवाब: नेपाल में राजतंत्र की वापसी के लिए संविधान में कोई जिक्र नहीं है। अभी तो आंदोलन की शुरुआत हुई है, आगे ये कितनी रफ्तार पकड़ता है, इसे लोगों का कितना सपोर्ट मिलता है, उससे इसका भविष्य तय होगा। अगर बड़ी पार्टियां राजशाही के समर्थन में आती हैं तो पहले संसद में प्रस्ताव लाया जा सकता है, लेकिन अभी नहीं बताया जा सकता कि इसकी क्या प्रक्रिया होगी।