मोहम्मद शहाबुद्दीन, मोहम्मद मारूफ और रिजवान, तीनों ऐसे केस में जेल गए, जो उन्होंने किया ही नहीं था। केस भी मर्डर का था। ये साल 2020 की बात है। CAA-NRC के विरोध में हुए प्रोटेस्ट के दौरान दिल्ली में दंगे भड़क गए थे। 25 फरवरी, 2020 को नॉर्थ ईस्ट दिल्ली
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पुलिस ने बब्बू के मर्डर के आरोप में मोहम्मद शहाबुद्दीन, मोहम्मद मारूफ और रिजवान समेत 19 लोगों को आरोपी बनाया। इनमें से 11 मुस्लिम थे। 18 मार्च, 2025 को दिल्ली के कड़कड़डूमा कोर्ट ने सभी को डिस्चार्ज कर दिया। यानी पुलिस की चार्जशीट फाइल होने के बाद भी कोर्ट को इन लोगों के खिलाफ केस चलाने के लिए सबूत नहीं मिले। फैसला सुनाते वक्त जज पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि ये लोग तो विक्टिम की मदद करने आए थे।
मर्डर केस में पकडे़ गए आरोपी खजूरी खास के रहने वाले हैं। 6 महीने से लेकर साढ़े तीन साल तक जेल में रहे। टॉर्चर झेला। कोर्ट के चक्कर लगाए। अब 5 साल बाद आम जिंदगी में लौट रहे हैं। दैनिक भास्कर ने मोहम्मद शहाबुद्दीन, मोहम्मद मारूफ और रिजवान से बात की। उनसे पूछा कि मर्डर केस में अरेस्ट किए जाने से बेकसूर साबित होने तक बीते 5 साल में क्या-क्या हुआ।
पहली आपबीती मोहम्मद शहाबुद्दीन की
‘मर्डर वाले दिन फरीदाबाद में थे, पुलिस ने आरोपी बना दिया’ फरवरी, 2020 में CAA के खिलाफ दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में प्रदर्शन हुए थे। नॉर्थ-ईस्ट दिल्ली के खजूरी खास में प्रदर्शन के बाद दंगा शुरू हो गया।। 25 फरवरी, 2020 को पुलिस ने शहाबुद्दीन समेत 11 लोगों को आरोपी बनाया। इस केस में एक पुलिसवाले के हाथ में चोट आई थी। आरोप है कि बाद में इनके नाम ऑटो ड्राइवर के मर्डर केस में जोड़ दिए गए। शहाबुद्दीन इस केस में करीब साढ़े तीन साल जेल में रहे।
शहाबुद्दीन मां और छोटे भाई के साथ खजूरी खास में एक छोटे कमरे में रहते हैं। शादी-पार्टियों में केटरिंग सर्विस का काम करते हैं। जेल में बीते वक्त के बारे में बताते हैं, ‘पुलिसवाले हिरासत में बुरी तरह पीटते थे। पैरों के तलवे सूज जाते थे।’
ये सब कहां से शुरू हुआ था? शहाबुद्दीन थोड़ा ठहरते हैं, फिर बताना शुरू करते हैं, ‘ दिल्ली में दंगे रुक गए थे। सब ठीक था। 10 मार्च को मैं काम से लौट रहा था। खजूरी चौक पर आया तो पुलिसवालों ने पकड़ लिया। नाम पूछा तो मैंने बता दिया मोहम्मद शहाबुद्दीन। नाम सुनते ही उन्होंने मुझे पकड़ लिया।’
‘मैंने पूछा कि मुझे कहां ले जा रहे हो, तो बोले कि पूछताछ करके छोड़ देंगे। वे मुझे थाने ले गए। पहले तो पीटा, फिर हथकड़ी लगाई और दंगे का केस लगाकर मेडिकल के लिए ले गए।’

बब्बू का मर्डर हुआ, तब आप उस जगह पर थे? शहाबुद्दीन कहते हैं-

नहीं, मैं तो उस दिन दिल्ली में ही नहीं था। फरीदाबाद गया था। न मेरा कोई वीडियो है, न सबूत।
शहाबुद्दीन की मां तबस्सुम के लिए तो बीते 5 साल नर्क जैसे बीते हैं। वे कहती हैं, ‘मुझे अगले दिन पता चला कि बेटे को पुलिस ने पकड़ लिया है। शहाबुद्दीन के अब्बू नहीं हैं। यही अकेला कमाने वाला था। ये जेल चला गया तो जिंदगी बड़ी मुश्किल हो गई। भीख तक मांगनी पड़ी।’
तबस्सुम बताती हैं, ‘मैं बेटे से मिलने जेल में गई, तो पुलिसवालों ने कहा कि जाओ यहां से। मैंने भी कह दिया कि बिल्कुल नहीं जाऊंगी। मैं तो बच्चों को लेकर आ जाऊंगी, उन्हें भी आपको खिलाना पड़ेगा।’

दूसरी आपबीती मोहम्मद मारूफ की
भाई के साथ डॉक्टर के पास जा रहे थे, पुलिस दोनों को ले गई
पेशे से ड्राइवर मोहम्मद मारूफ कहते हैं कि मुझे इस केस में फंसा दिया। वे करीब 10 महीने जेल में रहे। मारूफ बताते हैं, ‘8 मार्च, 2020 को मैं ताऊ के बेटे जुबैर को इंजेक्शन लगवाने ले जा रहा था।’
‘हम खजूरी चौक पर ऑटो का इंतजार कर रहे थे। तभी दो पुलिसवाले आए और पीछे से जुबैर का पैंट पकड़ लिया। नाम पूछा और उसे ले जाने लगे। मैंने पूछा कि क्यों लेकर जा रहे हो, तो उन्होंने मुझे भी पकड़ लिया। हमें थाने ले गए। हमारा फोन छीनकर स्विच ऑफ कर दिया। अगले दिन मेडिकल करवाकर हमें जेल भेज दिया।’

मारूफ बताते हैं-

मर्डर वाले केस में बेल मिलने के बाद दूसरे केस के बारे में पता चला। फिर सभी केस में जमानत करवाई। इन मामलों में कभी गिरफ्तारी नहीं हुई।
तीसरी आपबीती रिजवान की
‘मेरे खिलाफ कोई सबूत नहीं, पुलिस ने 7 केस लगा दिए’ 35 साल के रिजवान खजूरी में ही कपड़े का काम करते हैं। गिरफ्तारी के बाद करीब तीन महीने जेल में रहे। रिजवान बताते हैं, ‘25 फरवरी की घटना में मेरा नाम आ गया, जबकि उस दिन मैं वहां था ही नहीं। मुझे पकड़ा गया, तब सिर्फ एक केस दिखाया गया। एक से डेढ़ साल बाद 7 और केस में मेरा नाम जोड़ दिया।’
रिजवान आगे कहते हैं, ‘अगर मैं वहां होता या कोई सबूत होता तो समझ आता। अगर ऐसा होता तो मुझे जमानत क्यों दी जाती। पुलिस ने जो भी किया हो, मुझे कोर्ट पर भरोसा है। हमने कुछ किया ही नहीं तो डरना क्यों है। उम्मीद है कि एक केस में बरी किया गया है तो बाकियों में भी ऐसा होगा।’
चौथी आपबीती इमरान की
‘काम पर गया था, पुलिस ने पकड़ लिया’ केस के एक और आरोपी इमरान 28 मार्च को ही जेल से बाहर आए हैं। उनकी अम्मी सबीला कहती हैं कि इमरान को गिरफ्तार किया गया, तब वो नाबालिग था। 8 मार्च 2020 को पुलिस ने इमरान को कस्टडी में लिया था।
सबीला बताती हैं कि उन्हें बेटे की गिरफ्तारी के बारे में कुछ दिन बाद पता चला। 25 फरवरी की घटना पर वे कहती हैं, ‘इमरान तो उस दिन काम करने गया था। इससे पहले उसके खिलाफ कोई केस नहीं था। गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने केस लगा दिए।’

कोर्ट ने 8 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए, सभी हिंदू बब्बू की हत्या मामले में कोर्ट ने 8 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए हैं। ये सभी हिंदू कम्युनिटी से हैं। इनके नाम कुलदीप सिंह, हरजीत सिंह, संदीप, राहुल, भारत भूषण, सचिन गुप्ता, सचिन रस्तोगी और धर्मेंद्र हैं। कोर्ट ने कहा कि इन आरोपियों को अच्छी तरह पता होगा कि किसी के सिर पर डंडे से हमला करने और बेरहमी से पीटने से उसकी मौत हो सकती है। इसलिए ये गैर-इरादतन हत्या के लिए जिम्मेदार हैं।
वीडियो से मिले सबूतों और गवाहों के बाद कोर्ट ने आरोपियों के खिलाफ ट्रायल की अनुमति दे दी। एक आरोपी सचिन रस्तोगी के मोबाइल फोन से पुलिस को वॉट्सएप चैट मिले हैं। इसमें वो कह रहा है कि बब्बू की पिटाई वाली फोटो में वो दिख रहा है।
हालांकि, पुलिस ने चार्जशीट में मुस्लिम पक्ष के लोगों को भी आरोपी बनाया था। उन पर IPC की धारा-149 लगाई गई। इस धारा के मुताबिक, अगर भीड़ में शामिल किसी शख्स ने अपराध किया है, तो भीड़ में शामिल सभी लोग दोषी माने जाएंगे।
कोर्ट ने आरोप तय करते हुए कहा कि गवाहों के बयानों और घटना के वीडियो बताते हैं कि मुस्लिम समुदाय की भीड़ की पीड़ित बब्बू पर हमले में कोई भूमिका नहीं थी, बल्कि वे लोग पीड़ित को बचाने गए थे।
जज बोले- जिन्हें आरोपी बनाया, वे मदद करने आए थे कड़कड़डूमा कोर्ट के एडिशनल सेशंस जज पुलस्त्य प्रमाचला ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘वीडियो से पता चलता है कि जब उस लड़के (बब्बू) पर हमला करने वाले लोग उसे घायल हालत में छोड़कर चले गए, तो दूसरी तरफ की भीड़ के लोग उसके पास आए। उन्होंने उसे उठाया। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता है कि पीड़ित बब्बू पर हमला करना मुस्लिम समुदाय की भीड़ का मकसद था।’
कोर्ट ने आरोपी रिजवान, इसरार, तैयब, इकबाल, जुबैर, मारूफ, शमीम, आदिल, शहाबुद्दीन, फरमान और इमरान को डिस्चार्ज कर दिया।

वकील बोले- बिना सबूत आरोपी बनाया मुस्लिम समुदाय के आरोपियों का केस लड़ रहे सीनियर वकील अब्दुल गफ्फार बताते हैं कि उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं थे। इसके बावजूद दिल्ली पुलिस ने सबके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की। लोगों को इसलिए गिरफ्तार किया गया, ताकि मामले का एंगल बदला जा सके।
गफ्फार आगे कहते हैं, ‘दंगों के केस में पहले IPC की धारा-149 लगाई जाती थी। इसके मुताबिक, अगर भीड़ का ऑब्जेक्ट एक ही है, तो भीड़ में शामिल सारे लोग जिम्मेदार होंगे।’

गफ्फार कहते हैं, ‘हमारी दलील ये थी कि भीड़ में एक हिंदू पक्ष और दूसरा मुस्लिम पक्ष था। मुस्लिम पक्ष का मकसद हो सकता है कि हिंदू पक्ष को नुकसान पहुंचाए या हिंदू पक्ष मुस्लिम समुदाय के साथ ऐसा करें। ये मुमकिन नहीं है कि दोनों भीड़ का ऑब्जेक्ट एक ही हो। फिर इस अपराध के लिए आरोपी भी एक नहीं हो सकते। कोर्ट ने इस दलील को सही माना।’
अब्दुल गफ्फार दिल्ली दंगों से जुड़े करीब 100 मामले देख रहे हैं। वे बताते हैं कि 40 मामलों में फैसला आ चुका है। सिर्फ एक मामले में लोग दोषी पाए गए हैं। 39 केस में आरोपी बरी हो गए।
बब्बू के मर्डर की जांच क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर विकास राणा ने की थी। वे अभी सराय रोहिल्ला थाने के SHO हैं। हमने उनसे कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं हो पाई। हमने दिल्ली पुलिस को ई-मेल के जरिए इस केस से जुड़े सवाल भेजे हैं। जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट करेंगे।

दिल्ली पुलिस पर पहले भी उठे सवाल दिल्ली दंगों से जुड़े दूसरे मामलों में भी पुलिस की जांच पर सवाल उठ चुके हैं। जनवरी, 2025 में शिवविहार एरिया से जुड़े एक केस में जज पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा था कि जांच अधिकारी ने मैनिपुलेटेड वीडियो के आधार पर एक व्यक्ति को आरोपी बना दिया और सही से केस की जांच तक नहीं की। इसी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 6 मामलों को एक साथ क्लब करने पर पुलिस को फटकार लगाई थी।
22 अगस्त, 2025 को दंगों से जुड़े मामले में एक मुस्लिम शख्स को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा था कि पुलिस ने उसके खिलाफ मनगढ़ंत बयान तैयार किए थे। ये मामला दिल्ली के दयालपुर इलाके में हिंसा से जुड़ा था। जज पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि पुलिस ने सही तरीके से जांच किए बिना आरोपी जावेद के खिलाफ मैकेनिकल तरीके से चार्जशीट फाइल की थी।
इसी तरह दिल्ली दंगों से जुड़े मामले देख रहे जज विनोद यादव ने भी एक मामले में सही से जांच नहीं करने पर पुलिस के खिलाफ 25 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया था।
2 सितंबर 2021 को उन्होंने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था, ‘मैं ये बात कहने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं कि इतिहास पीछे मुड़कर दिल्ली के सांप्रदायिक दंगों को देखेगा, तो जांच एजेंसी की नाकामी दिखेगी कि उसने सही तरीके से जांच नहीं की।’
उन्होंने ये भी कहा कि जिस तरीके से मामले की जांच की गई, उससे साफ पता चलता है दिल्ली पुलिस ने कोर्ट की आंखों में धूल झोंकने की कोशिश की है।
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