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Fake News Exposed; Amit Shah Rahul Gandhi Narendra Modi Rajnath Singh | Misleading Information | ‘विदेशी बहू’ सोनिया की स्विमसूट फोटो, शाह का फर्जी वीडियो: राहुल को ‘पप्पू’ बनाने का प्लान, करोड़ों का बिजनेस; कैसे चल रही फेक न्यूज इंडस्ट्री


अमित शाह, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और राजनाथ सिंह। अगर हम आपसे ये कहें कि ये सभी विक्टिम हैं, इनके खिलाफ एक जैसा ही क्राइम हुआ है। ये क्राइम खुलेआम हो रहा है, नुकसान भी खुलेआम हो रहा है, लेकिन इसे रोकने की जगह सभी पॉलिट

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अमित शाह का ‘रिजर्वेशन खत्म कर देंगे’ बयान, सोनिया गांधी की ‘स्विमसूट फोटो’ और अखिलेश का ‘टोटीचोर’, सब इसी इंडस्ट्री का प्रोडक्ट है।

ये कई हजार करोड़ की इंडस्ट्री है और किसी को भी निशाना बनाने के काम आती है। सबसे बड़ी बात इसका प्रोडक्ट है ‘झूठ’, यहां झूठ बनाया और बेचा जाता है। फेक न्यूज, मॉर्फ्ड फोटो, डीपफेक ऑडियो, डीपफेक वीडियोज और मिस-इन्फॉर्मेशन की ये इंडस्ट्री पॉलिटिकल पीआर और इमेज बिल्डिंग कंसल्टेंसी के नाम पर फल-फूल रही है।

सबसे खतरनाक ये है कि जिन खबरों, फोटोज और वीडियोज को देखकर आप ये तय कर रहे हैं कि वोट किसे देना है, उनमें से ज्यादातर या तो पूरी तरह झूठ हैं या फिर इस तरह से पेश की गई हैं, जिससे उसका असली मतलब ही बदल गया है।

दैनिक भास्कर की नेशनल इन्वेस्टिगेटिव टीम ने ऐसी 5 कंपनियों से पॉलिटिकल पार्टी बनकर मुलाकात की, इस दौरान इनका स्टिंग भी किया। इन सभी को फेक न्यूज, डीपफेक बनाकर दूसरी पार्टियों और नेताओं को बदनाम करने का ऑफर दिया।

इन सभी ने न सिर्फ ये ऑफर कबूल किया बल्कि बतौर उदाहरण के लिए अपने पिछले काम भी दिखाए और लाखों-करोड़ों का रेट कार्ड भी बताया। ये छानबीन कुल 5 चैप्टर में है। स्टोरी के पहले पार्ट में कुल 2 चैप्टर हैं। आज पढ़िए कहां से आई सोनिया गांधी की स्विमसूट फोटो और क्यों बना अमित शाह का डीपफेक वीडियो।

चैप्टर-1 एवरमोर टेक/ नमो गंगे ट्रस्ट सबसे पहले भास्कर की टीम ने UP के नोएडा में मौजूद टेक बेस्ड कंपनी एवरमोर से बातचीत शुरू की। हमने उन्हें सीधे फोन किया। ये कॉल नीतीश शर्मा नाम के एक शख्स ने रिसीव किया। नीतीश ने बातचीत में माना कि एवरमोर पॉलिटिकल पब्लिक रिलेशन का काम करती रही है। नीतीश के साथ हमारी मीटिंग फिक्स हो गई।

मीटिंग-1, तारीख: 13/2/2025

‘डीपफेक बनवा देंगे, ऑस्ट्रेलिया-कनाडा से वायरल करवा देंगे’ एवरमोर वालों से मीटिंग करने के लिए हम नोएडा के सेक्टर-27 में उनके ऑफिस पहुंचे। एवरमोर का ऑफिस इस मार्केट में मौजूद श्रीराम पैलेस बिल्डिंग के चौथे फ्लोर पर एक छोटी सी दुकान में था। 10×10 का केबिन था जिस पर बोर्ड लगा था, एवरमोर टेक।

करीब 30 साल की उम्र वाले नीतीश से हमारी मुलाकात हुई। फोन पर नीतीश ने जिन बड़ी पॉलिटिकल पार्टियों के लिए काम करने का दावा किया था, उससे ये दफ्तर मैच नहीं कर रहा था। यहां अकेला नीतीश था और कुछ खाली कुर्सियां पड़ी थीं।

रिपोर्टर: बड़ा छोटा ऑफिस है आपका? नीतीश: ये सेल्स ऑफिस है। यहां जरूरत नहीं पड़ती है। यहां तो सिर्फ मीटिंग होती है।

रिपोर्टर: हेड ऑफिस कहां है आपका? नीतीश: ये भी रजिस्टर्ड ऑफिस है। कुछ लोग गाजियाबाद में बैठते हैं। कुछ सेक्टर-63 (नोएडा) में भी हैं। डिजिटल मार्केटिंग की पूरी टीम सेक्टर-63 में ही बैठती है। वहां कस्टमर विजिट नहीं होती, सिर्फ काम होता है।

थोड़ी बहुत बातचीत के बाद रिपोर्टर ने नीतीश से फेक न्यूज को लेकर बात शुरू की। हमने नीतीश को बताया था कि हमें एक बड़ी पॉलिटिकल पार्टी ने कॉन्ट्रैक्ट दिया है। हमने पार्टी का नाम लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) बताया और कहा कि आने वाले बिहार विधानसभा चुनावों में चिराग पासवान के लिए काम करना है। नीतीश ने हमें बताया कि हम फिक्र न करें, वे लोग समाजवादी पार्टी के लिए भी काम कर चुके हैं।

रिपोर्टर ने नीतीश को बताया कि प्रोजेक्ट का मोटिव है कि कैसे चिराग पासवान को बिहार में ‘दलितों का मसीहा’ बनाकर प्रोजेक्ट किया जाए। इसके लिए चिराग के पॉजिटिव पीआर के साथ-साथ विपक्षी पार्टियों के खिलाफ फेक न्यूज बनाना और उसे सर्कुलेट कराने का काम भी करना होगा।

रिपोर्टर: फेक न्यूज के लिए आपके पास क्या प्लानिंग है? नीतीश: देखिए सर, फेक न्यूज हम नहीं बना सकते, लेकिन फेक वीडियो हम जनरेट कर सकते हैं और ग्रुप्स (सोशल मीडिया) में डाल सकते हैं।

नीतीश ने आगे ये भी बताया कि उनके पास ऐसे सारे टूल्स और टेक्नोलॉजी मौजूद है, जिससे वे मॉर्फ्ड इमेज बना सकते हैं, किसी वीडियो का ऑडियो चेंज कर सकते हैं और उसे ऐसा बना सकते हैं, जिससे लगे कि वीडियो में दिख रहे शख्स ने ही वो बात कही है। इसे ही डीपफेक भी कहते हैं।

इन सब कामों के लिए उसके पास विदेशों में भी लोग मौजूद हैं। अगर कोई क्लाइंट उन्हें फेक बनाने और स्प्रेड करने के लिए कहता है तो वे इन लोगों के जरिए ही फेक न्यूज और ऐसे वीडियोज फैलाते हैं। ​​​​​​

रिपोर्टर: VPN सेटअप है आपके पास? नीतीश: हमारा बंदा ही बाहर बैठा है।

रिपोर्टर: बाहर कहां बैठा हुआ है? नीतीश: ऑस्ट्रेलिया, कनाडा में।

रिपोर्टर: वे लोग वायरल करने का काम करते हैं? नीतीश: फेक नरेटिव वाला काम हम यहां से करते ही नहीं। हम उन्हें दे देते हैं कि भैया ये वायरल करना है।

ये मीटिंग मुश्किल से 40 मिनट चली। इस मीटिंग में नीतीश ने हमसे वादा किया कि वो जल्द ही हमें उस शख्स से मिलाएगा जो इस पूरे ऑपरेशन को चला रहा है। इससे ये भी समझ आया कि नीतीश सिर्फ फेस है और अभी हमारा उस तक पहुंचना बाकी है। हमें उम्मीद थी कि नीतीश जल्द ही मीटिंग फिक्स करके हमें कॉल करेगा।

मीटिंग: 2, तारीख: 18/2/2025

नमो गंगे ट्रस्ट, ‘मौनमोहन सिंह’ कैंपेन और 16 करोड़ का काम पहली मीटिंग में नीतीश ने हमें उस शख्स से मिलाने का वादा किया था, जो उनका पूरा ऑपरेशन चला रहा है। नीतीश ने रिपोर्टर को फोन किया और 12/52 साइट-2, इंडस्ट्रियल एरिया, मोहन नगर, गाजियाबाद, UP में अपने बॉस से मिलने के लिए बुलाया।

यहां हमारी मुलाकात विजय शर्मा नाम के शख्स से होनी थी। इस एड्रेस पर पहुंचते ही रिपोर्टर को काफी हैरानी हुई, क्योंकि ये किसी डिजिटल कंपनी का ऑफिस नहीं था बल्कि नमो गंगे ट्रस्ट की ऑफिस बिल्डिंग है। विजय शर्मा भी इसी ट्रस्ट से जुड़े हुए हैं।

रिपोर्टर: एवरमोर टेक कंपनी भी आपकी है? विजय शर्मा: वो हमारा सिर्फ आईटी का काम देखती है। सोशल मीडिया का सारा काम उसी कंपनी से करते हैं, क्योंकि ट्रस्ट के जरिए ये सब काम नहीं कर सकते। आप मुझसे बोलोगे कि मेरा सोशल मीडिया का काम कर दो, मैं एक संस्था हूं, मैं उससे कॉमर्शियल एंगल का एक रुपए का काम नहीं करूंगा। उसके लिए अलग से कंपनी है।

अलग-अलग कामों के लिए अलग कंपनी हैं। एवरमोर में सिर्फ सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, मीडिया मार्केटिंग और कैंपेनिंग का काम करते हैं।

विजय ने बातचीत में ये भी कन्फर्म किया कि जिस नीतीश से हम सेक्टर-27 के ऑफिस में मिले थे, वही इस प्रोजेक्ट को एवरमोर की तरफ से लीड करेगा। विजय ने रिपोर्टर से ये दावा भी किया कि उनकी कंपनी ने 2014 में BJP का चुनावी कैंपेन भी संभाला था।

विजय शर्मा: BJP के लिए सैकड़ों कंपनियों ने काम किया है। उस टाइम 2014 में हम लोगों ने BJP की कैंपेनिंग के लिए करीब 16 करोड़ का काम किया था। उस समय नेगेटिव कैंपेनिंग कांग्रेस के लिए की गई थी। एंटी-इनकम्बेंसी का नैरेटिव तैयार किया गया था।

2014 में नेगेटिव कैंपेनिंग कैसे हुई थी, ये समझने के लिए रिपोर्टर सवाल करता है तो विजय डीटेल में समझाते हैं।

विजय शर्मा: हमारी डीलिंग नलिन कोहली जी (BJP लीडर) के साथ होती थी। नलिन ने एक कैंपेन शुरू किया था… कहा था मनमोहन सिंह के चुप होने का फायदा उठाओ… ऐसा प्राइम मिनिस्टर, जो कुछ बोलता ही नहीं….सत्ता किसके हाथ में है, राजशाही किसके हाथ में है, सोनिया जी के… हमने सोनिया जी को, राहुल गांधी को टारगेट किया। सिर्फ एक चीज…कांग्रेस ने 10 साल में जितना देश को लूटा है। सिर्फ एक कैंपेन चला था… 200 साल में जितना अंग्रेज नहीं लूट पाए, उससे ज्यादा 10 साल में कांग्रेस ने देश का पैसा बाहर भेज दिया।

‘विदेशी बहू’ सोनिया की स्विमसूट फोटो और राहुल को ‘पप्पू’ बनाने का प्लान रिपोर्टर ने विजय शर्मा से ये भी पूछा कि सोनिया गांधी के खिलाफ दूसरे कैंपेन और राहुल गांधी को ‘पप्पू’ बनाने का कैंपेन भी ऐसे ही चलाया गया था?

विजय शर्मा: हां, पुराने फोटो निकाल कर लाए गए थे सर, ये सारे हमें प्रोवाइड किए थे BJP ने। आपको याद होगा कि एक फोटोग्राफ सामने आया था, जिसमें सोनिया गांधी अंडरगारमेंट्स में थीं। स्विमिंग कॉस्ट्यूम में काफी पुरानी फोटो थी। वो फोटो आसानी से हाथ नहीं लगती, वो फोटो टॉप लिंक से निकलवाई गई थी। उसको खूब हाइलाइट किया गया था। ये उस समय चला था सोनिया गांधी को लेकर और विदेशी बहू कैंपेन बनाया गया था।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी कुछ पुरानी फोटो इस्तेमाल कर सोनिया गांधी के खिलाफ नेगेटिव कैंपेन चलाया गया था।

2014 के लोकसभा चुनाव से पहले ऐसी कुछ पुरानी फोटो इस्तेमाल कर सोनिया गांधी के खिलाफ नेगेटिव कैंपेन चलाया गया था।

रिपोर्टर: हम लोग चाह रहे थे कि फेक कंटेंट तो जाएगा ही, कुछ मॉर्फ वीडियो चलें, कुछ ऐसे बयान जिनको एडिट करके वायरल…

विजय शर्मा रिपोर्टर को बीच में काटते हुए कहता है: ‘वो कट किया जाता है, वो रिसर्च का काम होता है। रिसर्च टीम पूरा बयान उठाएगी, फिर देखेगी कि इसमें कौन सा पार्ट गायब कर देना है। बयान का पूरा मतलब ही बदल जाता है… आप कहते रह जाते हैं कि यार वो पूरा बयान दिखाया ही नहीं गया… पूरे संदर्भ में दिखाया नहीं गया।’

राहुल गांधी को पप्पू कैसे बनाया गया, राहुल गांधी पप्पू हैं क्या, राहुल गांधी स्टेटमेंट देता है सर…काटकर वो वाला पार्ट उठाया जाता है, जिससे पूरी बात का मतलब ही बदल जाता है। उसी पार्ट को हाइलाइट करते हैं। पहली चीज जो उसने बोली है, जिस संदर्भ में बोली है, वो गायब कर दी जाती है। छोटा स्टेटमेंट बन गया और आपने पप्पू बना दिया।

राहुल गांधी का वायरल वीडियो देखिए…

अलग-अलग देशों में लोग बैठे हैं, सब वहां से अपलोड हो जाएगा रिपोर्टर ने आगे विजय से उनकी टीम के बारे में सवाल किया। क्या आपके पास ऐसी टीम है, जो बड़े लेवल पर फेक न्यूज का काम कर सके?

विजय शर्मा: जी, ये सारी टीम खुलेआम काम नहीं करती। ये लोग फ्रीलांसर की तरह घर बैठकर काम करते हैं। सबको डर है कि एक झटके में लपेटे में आ गए तो मानहानि के इतने केस आ जाएंगे कि जितना बेचारा कमाएगा नहीं, उतना बैठ जाएगा।

विजय शर्मा आगे बताते हैं: हमारा सब कुछ फ्रीलांस चलता है। समझ लीजिए कि ये वही ब्लॉकचेन वाला नेटवर्क है। कौन कहां बैठा हुआ है…कोई दुबई बैठा है, कोई यहां बैठा है। अलग-अलग देशों में अलग-अलग लोग बैठे हुए हैं। वहां से ही काम होता है, ज्यादातर वीडियो अपलोड होते हैं। इंडिया में काम होता है, जो बनता है, वो सारा फॉरेन सर्वर से अपलोड होता है, क्योंकि वहां तक कोई पहुंच ही नहीं सकता।

रिपोर्टर विजय शर्मा से पेमेंट की बात करता है। यहां भी एवरमोर जैसा ही जवाब मिलता है।

विजय शर्मा: इसमें सब कुछ कैश है, कुछ वाइट नहीं है। इसमें वाइट चल ही नहीं सकता। हम और आप अपने बीच कोई सिंगल एविडेंस क्रिएट नहीं कर सकते।

मीटिंग इस पॉइंट पर खत्म हुई कि नीतीश एक प्रपोजल बनाएगा और रिपोर्टर को भेजेगा। हालांकि, बाद में नीतीश की तरफ से मैसेज आया कि लिखित में कुछ भी नहीं भेजा जाएगा। नीतीश ने बताया कि कंपनी 6 महीने के प्रोजेक्ट के 2 करोड़ रुपए चार्ज करेगी। इसमें हर महीने एक से दो फेक वीडियो भी बनाए जाएंगे।

नीतीश से फोन पर बातचीत: 6 महीने का बिल 2 करोड़

रिपोर्टर: वो कोई दिक्कत नहीं है। आपने टेंटेटिव बजट कितना बनाया है, आपने परसों कुछ बताया भी था? नीतीश: हां, 2 करोड़ बताया था मैंने।

रिपोर्टर: कितने महीने का है ये? नीतीश: 6 महीने का है।

चैप्टर-2: कोडव्रैप, तारीख- 12/2/2025 भास्कर रिपोर्टर्स की अंडर कवर टीम मनोज पाल नाम के शख्स से भी मिली। मनोज कोडव्रैप नाम की कंपनी के फाउंडर मेंबर हैं। ये एक इंटरनेट मार्केटिंग कंपनी है, जिसका ऑफिस सेक्टर-63 नोएडा, UP में है। मनोज ने साफ बताया कि वे फेक न्यूज का काम नहीं करते। हालांकि, वे अपने ऐसे कॉन्टैक्ट से मिला सकते हैं, जो ये काम कर सकता है।

मनोज पाल: नहीं, मैं आपको पहले ही बता रहा हूं कि क्या चीज फर्जी है और क्या नहीं। ओरिजिनल काम हमसे कितना भी करवा लो, कोई टेंशन नहीं, लेकिन गलत वाला काम मैं अपनी कंपनी से नहीं करता हूं। आपका काम दूसरे तरीके से हो जाएगा। VPN लेकर जो उस तरह के तरीके हैं, उससे हो जाएगा, मैं बात कर लूंगा।

मनोज ने भास्कर रिपोर्टर से कहा कि कल वो उससे मिलेंगे और एक गूगल मीट पर मीटिंग फिक्स करवा देंगे, जिसमें वो आदमी भी आएगा, जो फेक न्यूज वाला काम करने में माहिर है। रिपोर्टर अगले दिन मनोज के ऑफिस पहुंचे, तो उसने गूगल मीट के जरिए एक शख्स से बातचीत शुरू की। उस तरफ कोई अतुल मौजूद था, जिसने आइडेंटिटी छिपाने के लिए अपना कैमरा ऑफ किया हुआ था।

मनोज: हां अतुल, क्लाइंट मेरे साथ ही हैं। रिपोर्टर: अतुल जी नमस्कार

मनोज: अतुल आपको आवाज आ रही है? अतुल: हां, आ रही है।

मनोज: मैंने आपको बताया था न ऑडियो क्लिप के बारे में, उसी बारे में बात करनी है। अतुल: अभी बता देता हूं, मेरी बात कराओ।

रिपोर्टर: अतुल जी नमस्ते अतुल: नमस्कार भाई साहब, मैं समझ गया आपकी बात, आप डीपफेक वीडियो की बात कर रहे हो न? रिपोर्टर: हां

अतुल: डीपफेक वीडियो पर काम कर रखा है, लेकिन इसकी अपलोडिंग इंडिया से नहीं होती।

अतुल ने रिपोर्टर को बताया कि उसके लोग नाइजीरिया में बैठे हैं। वे वहीं से डीपफेक, फेक वीडियोज अपलोड करते हैं।

अतुल: नाइजीरिया में हमारे फ्रीलांसर हैं। असल में हम ये सब किसी को बताते भी नहीं हैं कि कौन है, कहां है।

अमित शाह का फेक वीडियो: संविधान खत्म कर देंगे, UP के लिए बनाया इस बातचीत में अतुल ने विपक्षियों को बदनाम करने के लिए रिपोर्टर को एक स्ट्रैटजी भी बताई। अतुल के मुताबिक, वोटिंग से एक-दो दिन पहले ही विपक्षी के खिलाफ फेक न्यूज प्लांट करनी चाहिए, इसका सबसे ज्यादा इम्पैक्ट होता है। इससे विपक्षी के पास रिएक्ट करने का टाइम ही नहीं होता या बेहद लिमिटेड टाइम होता है, जिससे डैमेज रोकना बहुत मुश्किल हो जाता है। ऐसे बहुत डैमेज होता है। अतुल ने इसे एग्जांपल देकर समझाया-

अतुल: एक छोटा सा एग्जांपल देता हूं। अभी 2024 का चुनाव हुआ था। अमित शाह का एक फेक वीडियो वायरल हुआ। आपको याद भी होगा कि संविधान को खत्म करने से रिलेटेड था। ये कब वायरल हुआ, वोटिंग से एक हफ्ता पहले या शायद चार दिन पहले। ये एरिया स्पेसिफिक था, एंडटाइम का गेम है फेक वाला।

अमित शाह का वीडियो देखिए…

रिपोर्टर: UP में जो संविधान वाला मामला था, अमित शाह वाला, ये भी आप लोगों ने ही किया था? अतुल: सर, मैं ज्यादा अंदर की चीजें नहीं बता सकता। हां, लेकिन ये सारी चीजें बिल्कुल फेक हुई थीं और उसी टाइम पर हुई थीं। आप थोड़ा मोमेंट याद करो, तो वो कैंपेन तब जाकर हमने की थी, जब एंड वोटिंग का टाइम था।

बाकी कंपनियों की तरह अतुल ने भी हमें बताया कि कैसे VPN सर्विस इस तरह की फेक न्यूज सर्कुलेट करने में सबसे ज्यादा मददगार साबित हो रही है। मीटिंग के कुछ देर बाद अतुल ने भास्कर रिपोर्टर से वॉट्सएप के जरिए प्रपोजल भी शेयर कर दिया। बाकी सभी खर्चों के अलावा हर फेक वीडियो के लिए 1.5 लाख रुपए मांगे गए।

कैसे चलती है फेक न्यूज इंडस्ट्री

स्टेप 1:

  • पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ा कोई व्यक्ति डिजिटल मार्केटिंग एजेंसी से कॉन्टैक्ट करता है।
  • टारगेटेड पार्टी या पर्सन के खिलाफ कैंपेनिंग का पूरा प्रोजेक्ट तैयार होता है।

इसमें 4 कैटेगरी होती हैं:

  1. फेक न्यूज: पूरी तरह फर्जी सूचना। जिसके खिलाफ ये बनानी होती है उसकी किसी सही इन्फॉर्मेशन को आधार बनाकर पूरी कहानी तैयार कर देते हैं।
  2. मॉर्फ्ड फोटो और वीडियो: किसी का चेहरा हटाकर किसी और का चेहरा लगा देना।
  3. मिस इन्फॉर्मेशन वाले वीडियो: इसमें स्टेटमेंट से सिर्फ वो पार्ट लिया जाता है, जिससे पूरी बात का मतलब बदल जाता है।
  4. डीपफेक: ये ज्यादातर ऑडियो के साथ करते हैं। इसमें किसी वीडियो पर पूरा फेक ऑडियो लगा देते हैं। वीडियो में नजर आ रहे शख्स की ऑडियो के साथ लिप्सिंग भी मैच करा देते हैं। देखने में लगता है कि ये बात उसी ने कही है।

कॉन्ट्रैक्ट करने के बाद पूरे प्रोजेक्ट या फोटो-वीडियो के हिसाब से रेट तय किए जाते हैं।

स्टेप 2

  • एजेंसी की टीम टारगेटेड पर्सन या पार्टी पर कंटेंट तैयार करती है, इससे जुड़े फोटो और वीडियो तैयार किए जाते हैं।
  • कंटेंट तैयार करने में फ्रीलांसर की मदद ली जाती है, क्योंकि पकड़े जाने पर मानहानि का केस होने का खतरा रहता है।
  • ये तय किया जाता है कि इस कंटेंट को किस खास एरिया या कम्युनिटी तक पहुंचाना है, जैसे बिहार, UP या दिल्ली। किसी खास धर्म या जाति से जुड़े लोग।
  • कंटेंट तैयार होने के बाद VPN के जरिए देश के रूरल इलाकों में बैठे लोग या फिर विदेश में बैठे लोग उसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हैं।
  • एवरमोर जैसी एजेंसियां भारत में कंटेंट तैयार करके उसे फॉरेन सर्वर से अपलोड कराती हैं, क्योंकि वहां तक कोई पहुंच नहीं सकता।
  • एवरमोर ने इसके लिए ऑस्ट्रेलिया और कनाडा में लोग रखे हैं।
  • एक अन्य एजेंसी वी स्पार्क ये काम UP के कानपुर और बिहार के गोपालगंज से ऑपरेट करती है। कोडव्रैप के लिए ये काम नाइजीरिया में बैठे फ्रीलांसर करते हैं।

स्टेप 3

  • देश के अलग-अलग शहरों या विदेश में बैठे लोग वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी VPN के जरिए फोटो या वीडियो पोस्ट करते हैं।
  • VPN यूज करने की वजह से फोटो-वीडियो पोस्ट करने वाले की लोकेशन पता नहीं चलती।
  • इसे वायरल करने के लिए सोशल मीडिया पर पेज तैयार किए जाते हैं, फोटो-वीडियो पार्टी से जुड़े वॉट्सएप, फेसबुक, टेलीग्राम ग्रुप और इंस्टाग्राम पर शेयर किए जाते हैं, वहां से लोग इन्हें फॉरवर्ड करने लगते हैं।
  • एजेंसी कॉलेज स्टूडेंट या बेरोजगार युवाओं को हायर करती हैं, जो ऐसी पोस्ट पर कमेंट पोस्ट करते हैं, इससे इंगेजमेंट बढ़ता जाता है।

भारत में सर्कुलेट हो रहीं 46% फेक न्यूज पॉलिटिकल भारत में सर्कुलेट हो रहीं फेक न्यूज में तकरीबन आधी पॉलिटिकल हैं। इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस और साइबर पीस की स्टडी में ये पता चला है। दिसंबर, 2024 में आई इस स्टडी में बड़ी संख्या में फेक न्यूज का एनालिसिस किया गया।

इससे पता चला कि पॉलिटिकल फेक न्यूज का हिस्सा सबसे ज्यादा 46% है। इसके बाद जनरल इश्यूज से जुड़ी 33.6% खबरें फेक निकलीं। तीसरे नंबर पर धर्म से जुड़ी खबरें हैं, जिनमें 16.8% खबरें फेक थीं। यानी 94% फेक न्यूज इन्हीं तीन कैटेगरी से हैं।

77.4% फेक न्यूज का सोर्स सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म थे। मेन स्ट्रीम मीडिया से फेक न्यूज के 23% मामले ही सामने आए। सबसे ज्यादा 61% फेक न्यूज एक्स और 34% फेसबुक पर सर्कुलेट हुई हैं।

खुलेआम कैसे चल रहा है फेक न्यूज और डीप फेक का धंधा फेक न्यूज और डीपफेक के इस पूरे धंधे पर भास्कर ने साइबर कानूनों के जानकार एडवोकेट शैलेंद्र बब्बर से बात की-

सवाल: फेक न्यूज पर कानून क्या कहता है, क्या कानून में कोई प्रावधान है? जवाब: इस पर संसद नया बिल ला रही है। इसे ‘प्रॉहिबिशन ऑन फेक न्यूज ऑन सोशल मीडिया-2023’ कहते हैं। इसमें ये प्रावधान है कि वे एक रेगुलेटरी अथॉरिटी भी बनाएंगे। कोई व्यक्ति फेक न्यूज फैला रहा है, तो कैसे उसे रोका जाए। कानून में पनिशमेंट भी है।

ऐसा नहीं है कि अभी कानून नहीं है। भारतीय न्याय संहिता का सेक्शन-353 है, इसमें 2 से 5 साल की सजा है। ये स्पेसिफिक इसी पर नहीं है, लेकिन इसमें झूठ फैलाने वाले कॉन्सेप्ट को डील किया गया है। 197 (1D) है। इस तरह के प्रोविजन BNS में हैं, IPC में भी थे।

सवाल: फेक न्यूज की इंडस्ट्री बन चुकी है। ये किस अपराध की श्रेणी में आता है? जवाब: अगर कोई फेक न्यूज फैलाना चाहता है और दूसरा उसे एग्जीक्यूट करता है। ऐसे में जो फैलाना चाह रहा है, वो भी बराबरी से अपराधी है। इसके लिए दोनों जिम्मेदार रहेंगे। अगर किसी कंपनी या न्यूज एजेंसी की तरफ से फेक न्यूज गई है और ये उसके एडिटर की जानकारी में है, तब वो भी जिम्मेदार है। ये BNS के सेक्शन 353, 197 (1D), 153 (A), 505 में आता है। नया बिल भी आ रहा है। इसमें 5 लाख तक जुर्माना रहेगा।

सवाल: किस तरह के लोग फेक न्यूज का ज्यादा इस्तेमाल कर रहे हैं? जवाब: महाकुंभ इसका हालिया उदाहरण है। कुंभ के लिए सरकार ने बड़ा एफर्ट किया। इसे अंडरमाइन करने के लिए कुछ लोग कुछ भी बोलते थे, जैसे भगदड़ हो गई, पानी पीने लायक नहीं है। छोटे-छोटे पॉलिटिकल बेनिफिट लेने के लिए फेक न्यूज फैलानी शुरू कर दी।

पहले बालाजी मंदिर के प्रसाद में चर्बी वाली बातें आई थीं। आप ऐसी न्यूज को बढ़ा-चढ़ाकर भी नहीं दे सकते। आप आम लोगों का ओपिनियन बना रहे हैं। पब्लिक उससे प्रभावित होकर कुछ करे या न करे, उनके एक्शन को ही तो कंट्रोल करना है। लॉ एंड ऑर्डर की सिचुएशन कंट्रोल करने के लिए तो सारे कानून बनाए गए हैं।

ऐसे मामले रोज आते हैं। अभी सोशल मीडिया पर ट्रम्प और जेलेंस्की की बातचीत में भी शब्द भर दिए। लोग इससे पता नहीं क्या अचीव करना चाहते हैं।

सवाल: कोर्ट में किस तरह के फेक न्यूज रिलेटेड केस आ रहे हैं? जवाब: फेक एक ब्रॉडर टर्म है। इसकी तीन कैटेगरी हैं- फॉल्सिटी, फोर्जरी और मॉर्फिंग। इनका पर्पज एक है। उस पर भरोसा दिलाना, जो है ही नहीं। फॉल्सिटी यानी कोई है नहीं और मैंने उसके नाम का डॉक्यूमेंट बना दिया।

कोई है, मैंने उसके नाम का डॉक्यूमेंट बनाया और उसके साइन लगा दिए, ये फोर्जरी है।

मॉर्फिंग मतलब किसी व्यक्ति का चेहरा बदल दिया या AI से ऐसे शब्द ऐड कर दिए, जो उसने कहे ही नहीं। विधानसभा चुनाव के दौरान हमने ऐसे बहुत से वीडियो देखे। मार्फिंग भी एक तरह से फोर्जरी ही है।

सवाल: पुलिस ऐसे मामलों में कितना इन्वेस्टिगेट कर पाती है? जवाब: सुप्रीम कोर्ट के बहुत डायरेक्शन आए कि हमें इलेक्ट्रानिक एविडेंस इकट्‌ठा करना चाहिए। उसके बाद जांच एजेंसियां भी यही कर रही हैं।

बहुत से टूल हैं, जिनसे सोर्स और IP एड्रेस पकड़े जा सकते हैं। आजकल वॉट्सएप और सोशल मीडिया का डेटा आसानी से ट्रेसेबल है। कम्प्यूटर से जनरेट कोई भी डॉक्यूमेंट डिलीट नहीं हो सकता। वो होता है, आपको बस उस तक पहुंचना है।

पार्ट-2 में पढ़िए अखिलेश को ‘टोटी चोर’ बनाने वाले का योगी कनेक्शन इन्वेस्टिगेशन के अगले पार्ट में कुल 3 चैप्टर हैं। 12 अप्रैल यानी कल इसमें अखिलेश के खिलाफ चले ‘टोटीचोर’ कैंपेन का सच सामने आएगा। इसके अलावा दिल्ली चुनावों में केजरीवाल के खिलाफ चले ‘यमुना को कौन पूजता है’ का दिल्ली BJP सरकार में मंत्री से कनेक्शन का भी खुलासा होगा। इसके अलावा राहुल गांधी की शादी हो गई, राजनाथ सिंह की फेक फोटो और लालू प्रसाद यादव के खिलाफ चलाए कैंपेन से भी पर्दा उठेगा…



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