प्रयागराज1 घंटे पहले
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स्वामी श्रील प्रभुपाद ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय वैष्णव परंपरा के 32वें आचार्य हैं। उन्हें विश्वगुरु की उपाधि दी गई।
इस्कॉन और विश्वव्यापी हरे कृष्णा आंदोलन के संस्थापक स्वामी श्रील प्रभुपाद को महाकुंभ में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहली बार ‘विश्व गुरु’ की उपाधि से सम्मानित किया। विश्व गुरु पट्टाभिषेक कार्यक्रम निरंजनी अखाड़ा परिसर में संपन्न हुआ। यह उपाधि श्रील प्रभुपाद को दुनियाभर में लाखों-करोड़ों अनुयायियों को सनातन धर्म से जोड़ने और इस्कॉन के प्रति देश-विदेश में उमड़ी श्रद्धा को देखते हुए दी गई।
निरंजनी पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानंद गिरी महाराज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्रपुरी महाराज, आवाहन अखाड़ा के पीठाधीश आचार्य महामंडलेश्वर अवधूत अरुण गिरी, अखाड़ों के महामंडलेश्वर, सचिव, श्रीमहंत और हजारों भक्तों की उपस्थिति में हुआ।
श्रील प्रभुपाद ने लाखों लोगों का जीवन बदला अखाड़ा परिषद ने कहा- हम सभी अत्यंत हर्ष की अनुभूति कर रहे हैं कि श्रील प्रभुपाद को विश्व गुरु की उपाधि दी गई। उनका योगदान सनातन धर्म के प्रसार में अद्वितीय है। उनकी शिक्षाओं से लाखों लोगों का जीवन बदल चुका है।
श्री पंचायती निरंजनी अखाड़े के महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा- संगम तट पर चल रहे विशाल, भव्य स्वच्छ और दिव्य महाकुंभ के पावन पर्व पर हमें आज उस महापुरुष के सानिध्य में बैठने का अवसर मिला। यह उपाधि 1968 के कुछ दिनों बाद ही मिल जाना चाहिए था, लेकिन आज इस त्रिवेणी तट पर हम सभ को इस शुभ काम को करने का श्रेय मिलना था।
श्रील प्रभुपाद को विश्वगुरु की पदवी, सूर्य को दीया दिखाने के बराबर अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष रवींद्र पुरी महाराज ने कहा- श्रील प्रभुपाद महाराज के लिए यह विश्वगुरु की पदवी, सूर्य को दीया दिखाने के बराबर है। श्रील प्रभुपाद महाराज ने श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम पर शानदार काम किया।
आवाहन पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर अरुण गिरी महाराज ने कहा- लोग मुझे अवधूत कहते हैं, लेकिन मैं स्वामी श्रील प्रभुपाद महाराज को अद्भुत कहता हूं। स्वामी प्रभुपाद के अनुयायी दो-दो पौधे लगाने का संकल्प लें, तभी राधा रानी की प्राप्ति होगी।
श्रील प्रभुपाद का परिचय स्वामी श्रील प्रभुपाद ब्रह्म-मध्व-गौड़ीय वैष्णव परंपरा के 32वें आचार्य हैं, जिन्होंने 70 वर्ष की आयु में श्री चैतन्य महाप्रभु और वृंदावन के 6 गोस्वामी की शिक्षाओं और हरि नाम संकीर्तन की महिमा को सफलतापूर्वक दुनिया भर में फैलाया। हजारों लोगों ने अपने जीवन को बदलकर सनातन धर्म के दर्शन और संस्कृति को अपनाया। श्रीमद्भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम पर उनके लेखन को दुनियाभर में 80 से अधिक भाषाओं में लाखों लोगों में वितरित किया गया है। आज भी दुनियाभर में लाखों लोगों को सनातन धर्म अपनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।