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WATCH: दिवाली के अगले दिन ‘पत्थरबाजी’, घायल शख्स के रक्त से क्यों होता है मां भद्रकाली का तिलक?


Himachal Pradesh News: देवभूमि हिमाचल प्रदेश की अद्वितीय परंपराओं के आगे हर कोई नतमस्तक है. हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला से करीब 30 किलोमीटर की दूरी पर धामी में एक ऐसे ही परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है. धामी के हलोग में सालों पहले शुरू हुई यह परंपरा आज भी निभाई जा रही है.

धामी में हर साल दिवाली के अगले दिन पत्थर के मेले का आयोजन होता है. यहां तब तक दो गुट आपस में एक-दूसरे पर पत्थर फेंकते हैं, जब तक कोई घायल न हो जाए. इसके बाद घायल शख्स के रक्त से ही मां भद्रकाली का तिलक किया जाता है.

क्या है सालों पुरानी मान्यता?

मान्यता है कि राजाओं के दौर में धामी रियासत में स्थित भद्रकाली मंदिर में मानव बलि का रिवाज था. रियासत के राजा की मौत के बाद जब रानी ने सती होने का फैसला लिया, तो उन्होंने यहां होने वाली मानव बलि पर रोक लगाने का आदेश दिया था.

इसके बाद एक भैंसे को लाकर उसका कान काटकर छोड़ दिया जाता था और माता भद्रकाली को सांकेतिक रूप से पशु बलि दी जाती थी. कहा जाता है कि माता द्वारा पशु बलि स्वीकार न करने पर इस पत्थर के मेले की शुरुआत हुई.

शिवम संजू राजपूत के रक्त से मां का तिलक 

दिवाली के एक दिन बाद शुक्रवार को इसी परंपरा का निर्वहन किया गया. कई देर तक दो गुटों के बीच जमकर पत्थर चले. पत्थरबाजी के दौरान शिवम संजू राजपूत नाम के लड़के के सिर पर जाकर पत्थर लगा. 30 साल के शिवम संजू के रक्त से मां भद्राकाली का तिलक किया गया. शिवम संजू राजपूत ने बताया कि वे बीते करीब आठ सालों से इस पत्थर के मेले में भाग लेने के लिए आ रहे हैं. माता भद्रकाली के आशीर्वाद से आज उनके सिर पर आकर यह पत्थर लगा. वे खुद को बेहद भाग्यशाली मानते हैं. शिवम संजू का कहना है कि उन्हें पत्थर के मेले में बिलकुल भी डर नहीं लगता, क्योंकि उनके सब साथ मां का आशीर्वाद है.

खुशहाली के किया जाता है मेले का आयोजन 

सालों से इस अनूठी परंपरा को आगे बढ़ा रहे राज परिवार के सदस्य कंवर जगदीप सिंह के मुताबिक, इस मेले का आयोजन धामी की खुशहाली के लिए किया जाता है. इस मेले को देखने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं. आज तक इस मेले में हिस्सा लेने वाले लोग पत्थर से चोट लगने की परवाह नहीं करते. इस पत्थर मेले में खून निकलने को लोग अपना सौभाग्य समझते हैं. किसी व्यक्ति के खून निकलने पर उसका तिलक मंदिर में किया जाता है. पत्थर का मेला इलाके की सुख शांति के लिए आयोजित किया जाता है.

सालों पुराना मेला कब हुआ शुरू?

सालों पहले यहां मानव बलि के बाद मां का तिलक किया जाता था, लेकिन समय के साथ इसमें बदलाव किया गया. हालांकि यह अनूठा पत्थर का मेला कब से मनाया जा रहा है, इस बारे में कोई पुष्ट जानकारी नहीं है. पत्थर मेले में बाहर से आया कोई भी व्यक्ति हिस्सा नहीं ले सकता है.

इस पत्थर मेले में सिर्फ दो ही टोलियां होती हैं. एक टोली में राजपरिवार, धगोई, तुनडू, कटेडू, जठौति और दूसरी तरफ से जमोगी टोली के लोग होते है. राज परिवार उत्तराधिकारी जगदीप सिंह ने बताया कि दोनों गुटों में से किसी को भी पत्थर लगने के बाद हरी झंडी दिखाई जाती है. यह पत्थरबाजी को रोकने का संकेत होता है.

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