‘2010 की बात है। मेरा एक दोस्त था- रवि। हम दोनों स्कूल फ्रेंड थे। गहरी दोस्ती थी। एक रात रवि दिल्ली-जयपुर हाईवे से अपने घर के लिए जा रहा था। रास्ते में एक जगह रुका खड़ा था, तभी रोड-रोलर उसके ऊपर चढ़ गया।
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उसकी वहीं पर डेथ हो गई। इस घटना की वजह से मैं कई महीनों तक डिप्रेशन में रहा। एक बार रवि की फैमिली से मिलने भी गया था, लेकिन किस मुंह से दुबारा जाता।
सच कहूं, तो सच्ची दोस्ती सिर्फ स्कूल की ही होती है। यह दोस्ती तब बनती है, जब हमारे पास कुछ नहीं होता है। छानबीन में रोड-रोलर वाले ने बताया कि रात में उसे दिखा नहीं कि पीछे कोई व्यक्ति खड़ा है।
तब मैंने सोचना शुरू किया कि काश! ड्राइवर को समय रहते मेरा दोस्त दिख जाता, तो आज जिंदा होता।’
मैं अभी राजस्थान की राजधानी जयपुर में हूं। रीतेश कोचेता कुछ प्रोडक्ट दिखा रहे हैं। ये सभी रोड सेफ्टी केयर प्रोडक्ट्स हैं। कहते हैं, ‘दोस्त की मौत के बाद मैंने इस तरह के प्रोडक्ट बनाने के बारे में सोच लिया था।’

रीतेश की कंपनी हेलमेट के पिछले हिस्से में लाइट लगाती है। यह लाइट चार्जिंग बेस्ड होती है।
रीतेश सेफ्टी केयर प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी ‘क्रूजर’ के फाउंडर हैं। वह जिस प्रोडक्ट को दिखा रहे हैं, उसमें लाल रंग की ब्लिंक करती हुई लाइटें जल रही हैं।
कहते हैं, ‘ जब हम रात में सड़क पर दिखेंगे, तभी तो बचेंगे। गाड़ी ड्राइव करते वक्त सामने तो लाइट जलती है, लेकिन पीछे…?
अब पीछे वाले व्यक्ति को यदि मैं दिख रहा हूं, तो वह जानबूझकर तो एक्सीडेंट नहीं करना चाहेगा। कौन चाहता है कि वह किसी को मार दे।
सबसे पहला प्रोडक्ट मैंने ये कंधे पर पहनने वाला बनाया था। इसमें लाइटें लगी हुई हैं। रात में ड्राइव करते वक्त यदि कोई इसे पहन लेता है, तो अंधेरे में भी पीछे वाला व्यक्ति उसे देख सकता है।
2017 में सबसे पहले इस तरह के प्रोडक्ट पर काम करना शुरू किया था।’

इस तरह से कंधे पर नाइट विजिबिलिटी सेफ्टी प्रोडक्ट लगाकर कोई व्यक्ति रात में खुद को एक्सीडेंट से बचा सकता है।
रीतेश मुझे अपनी यूनिट दिखा रहे हैं। एक डेस्क पर करीब दर्जनभर हेलमेट रखे हुए हैं। दूसरे पार्ट में कुछ स्टाफ असेम्बलिंग कर रहे हैं। LED लाइट्स के बोर्ड्स तैयार कर रहे हैं। उसे सेफ्टी केयर प्रोडक्ट्स, हेलमेट में सेट कर रहे हैं।
रीतेश कहते हैं, ‘घर के बेसमेंट में ये कंपनी आप देख रहे हैं। पापा का ज्वेलरी बिजनेस है। मेरा शुरू से रिसर्च और इनोवेशन पर काम करने का पैशन रहा है। यकीन नहीं करेंगे आप, 1998 से मेरा एक लैब रूम रहा है। इसमें मैं कबाड़ की चीजों को तोड़-जोड़ करके कुछ न कुछ बनाता रहता था।
मुझे साइंटिस्ट बनने का मन था। 2004-05 की बात है। 12वीं के बाद एरोनॉटिक्स इंजीनियरिंग के लिए उदयपुर चला गया। उस वक्त अमूमन लोग इस सब्जेक्ट को जानते भी नहीं थे। पढ़ाई तो दूर की बात है।
कॉलेज के दिनों में मैंने जेट इंजन भी बनाए थे। स्टडी कम्प्लीट करने के बाद अलग-अलग मिनिस्ट्री और एनर्जी डिपार्टमेंट के साथ काम करने लगा।’

रीतेश की पुरानी तस्वीरें हैं। उन्हें बचपन से राइडिंग और रिसर्च का पैशन रहा है।
पापा चाहते थे कि आप ये सब करें?
मुस्कुराते हुए रीतेश कहते हैं, ‘घर के सभी लोग चाहते थे कि मैं फैमिली बिजनेस ही जॉइन कर लूं। जब मैंने लाइट-बल्ब लेकर एक्सपेरिमेंट करना शुरू किया, तो पापा ने कहा- ये सब पैशन के लिए ठीक है। इसमें बिजनेस क्या होगा।
दो साल बाद 2019 में घरवालों के खिलाफ जाकर मैंने जॉब छोड़ दी। फुल टाइम प्रोडक्ट को डेवलप करने में लग गया। तब तक मेरी शादी भी हो चुकी थी। पैसे के लिए खुद के खर्च को कम करने लगा।
जॉब से जितने कमाए थे। तकरीबन 40 लाख रुपए का इन्वेस्टमेंट किया था। प्रोडक्ट डेवलप करना शुरू किया।’

रीतेश की टीम में 11 लोग काम करते हैं। रिसर्च के बाद फाइनल प्रोडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग की जाती है।
एक स्टैंड में हेलमेट पहनाया गया है। इस हेलमेट के पीछे लाइट लगी हुई है। पूछने पर रीतेश कहते हैं, ‘जब कोई व्यक्ति इस तरह का सेफ्टी केयर बेस्ड हेलमेट पहनेगा तो कैसा लगेगा। लाइट का रिफ्लेक्शन क्या होगा।
पीछे से ड्राइव कर रहे व्यक्ति को यह लाइट कैसी लगेगी। मान लीजिए कि कोई ट्रक या बस ड्राइवर है। इनकी व्हीकल की हाइट ज्यादा होती है। ऐसे में हेलमेट में लगी लाइट इन्हें दिखेगी या नहीं।
इन सारे एंगल पर रिसर्च करने के बाद ही हम फाइनल प्रोडक्ट लेकर आते हैं। हम ऐसे प्रोडक्ट बना रहे हैं कि यदि कोई लाइट को बंद कर दे, तो पता भी नहीं चलेगा कि मार्केट में मौजूद हेलमेट से यह अलग है।
बहुत बारीकी से इसके भीतर लाइट फिट करते हैं।’
यह जलता कैसे है?
रीतेश हेलमेट के एक हिस्से के बटन को दबाते हुए कहते हैं, ‘पूरा सिस्टम चार्जिंग पर बेस्ड है। एक घंटे चार्ज करने पर कोई व्यक्ति 28 घंटे तक इस तरह के हेलमेट का इस्तेमाल कर सकता है।
कुछ हेलमेट हमने वायरलेस भी बनाए हैं। यह ब्लूटूथ से कनेक्टेड होता है। बातचीत करने के लिए कान में फोन लगाने की जरूरत नहीं है।’

रीतेश की कंपनी कंस्ट्रक्शन साइट्स, ट्रैफिक में, सड़क पर काम करने वाले लोगों या राइडर्स के लिए इस तरह की जैकेट बनाती है।
रीतेश के हाथ में कुछ जैकेट भी हैं। यह जैकेट कंट्रक्शन साइट पर काम करने वाले वर्कर के ड्रेस की तरह लग रही है।
रीतेश बताते हैं, ‘इसमें भी हमने LED लाइट लगाई है, ताकि कोई वर्कर कंस्ट्रक्शन साइट पर भी सेफ्टी के साथ काम कर पाए। रात में यदि व्हीकल मूवमेंट हो रहा हो, तो दूर से दिख जाए कि कोई खड़ा है।’
आप इसे बेचते कैसे हैं?
‘मुझे खुद राइडिंग का शौक है। शुरुआत में जब प्रोडक्ट बनाना शुरू किया था, तो अपनी कम्युनिटी के लोगों को टेस्टिंग के लिए फ्री में देता था। बाद में उन्हें ये जरूरी प्रोडक्ट लगने लगा।
कई लोग ऐसे भी मिले, जो कहते थे कि सेफ्टी केयर प्रोडक्ट की वजह से उनकी जान बची या उन्होंने दूसरों को एक्सीडेंट से बचा लिया। देशभर के 80 हजार राइडर्स हैं। हम उनके साथ भी प्रोडक्ट सेल करते हैं।
ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर भी हमारी सर्विस है। अब हम देशभर के बड़े हेलमेट प्रोड्यूसर से डील कर रहे हैं। इंडिया में हमारी पहली ऐसी कंपनी है, जो इस तरह के LED बेस्ड सेफ्टी केयर प्रोडक्ट्स बना रही है।
सालाना तकरीबन डेढ़ करोड़ का बिजनेस कर रहे हैं। सबसे ज्यादा सुकून मिलता है, जब यह प्रोडक्ट किसी की जान बचाता है। इंडिया में 40 परसेंट एक्सीडेंट रात में होते हैं। यानी लो विजिबिलिटी की वजह से ये सब हो रहा है।’
