1991 में एक छात्र की गिरफ्तारी के बाद हवाला का कुछ रुपया पकड़ा गया। CBI ने जांच शुरू की। छापेमारी में उद्योगपति एसके जैन की एक डायरी मिली, जिसमें कई वरिष्ठ सांसदों, मंत्रियों और बड़े अफसरों के नाम थे।
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16 जनवरी 1996 को CBI ने चार्जशीट पेश की। इसमें आडवाणी पर 60 लाख रुपए की रिश्वत लेने का आरोप था। आडवाणी ने नैतिकता के आधार पर सांसद पद से इस्तीफा दे दिया। डायरी में ‘एम एल’ नाम के शख्स के आगे भी 3 लाख रुपए लिखा था। ये ‘एम एल’ उस वक्त दिल्ली के मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना थे।
वरिष्ठ पत्रकार मनोज कुमार मिश्र बताते हैं कि खुराना ने आडवाणी की देखा-देखी इस्तीफा दिया था। उनको लगा, ‘जब मैं वापसी करूंगा, तो मुझे कुर्सी मिल जाएगी।’ 3 महीने बाद मदन लाल को क्लीनचिट तो मिली, लेकिन CM कुर्सी दूर होती चली गई। इस फैसले का उन्हें जिंदगी भर मलाल रहा।
मैं दिल्ली का CM सीरीज के पहले एपिसोड में मदन लाल खुराना के CM बनने की कहानी और उनकी जिंदगी से जुड़े किस्से…
पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मदन लाल खुराना।
पाक में जन्मे, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ABVP से जुड़े 8 अक्टूबर 1936 को पाकिस्तान के लायलपुर में मदन लाल खुराना उर्फ मन्नू का जन्म हुआ। पिता शिवदयाल तेल के व्यापारी थे। 1947 में बंटवारा हुआ तो शिवदयाल ने भारत चुना। शुरुआत में मौजूदा उत्तर प्रदेश के ललितपुर में तेल का कारोबार किया, फिर दिल्ली आ गए।
मदनलाल खुराना को पढ़ाई के लिए इलाहाबाद यूनिवर्सिटी भेजा गया। इस दौरान वे RSS के संपर्क में आए और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के महासचिव बने। इन्हीं दिनों वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी छात्र संघ के अध्यक्ष भी चुने गए।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा अपनी किताब ‘दिल्ली पॉलिटिकल 1947-2013’ में लिखते हैं कि यूनिवर्सिटी में छात्र संघ का सालाना कार्यक्रम था। यूनिवर्सिटी के कुलपति और अधिकारी, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को बतौर चीफ गेस्ट बुलाना चाहते थे। खुराना को छात्रों की ओर से नेहरू को आमंत्रित करने के लिए दिल्ली भेजा गया।
खुराना ने नेहरू से ही पूछ लिया कि हम आपके साथ जनसंघ के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को भी बुलाना चाहते हैं। नेहरू ने न सिर्फ सहमति दी, बल्कि खुराना को बाहर छोड़ने तक आए। खुराना नेहरू से बहुत प्रभावित हुए। इस तरह उस कार्यक्रम में नेहरू और अटल दोनों शामिल हुए।
खुराना को राजनीति की ट्रेनिंग जनसंघ के जमाने में मिली थी। इलाहाबाद में पढ़ने के दौरान वे मुरली मनोहर जोशी के संपर्क में थे। शुरुआती दौर में जनसंघ की एक सभा को संबोधित करते मदन लाल खुराना।
इमरजेंसी के विरोध में नौकरी गई, दंगों में राष्ट्रपति ने मदद मांगी पढ़ाई पूरी कर खुराना दिल्ली में नौकरी करने लगे और राजनीतिक तौर पर भी सक्रिय थे। 25 जून 1975 को इंदिरा सरकार ने इमरजेंसी लगाई तो विरोध करने वालों में मदनलाल खुराना भी थे। उन्हें पहाड़गंज के बाल भारती स्कूल की नौकरी से निकाल दिया गया। गिरफ्तारी का वारंट भी जारी हो गया।
वो गाजियाबाद, इलाहाबाद और दिल्ली में छिपते रहे। सरकार ने घर कुर्क कर लिया। परिवार के लोग सड़क पर आ गए। आखिरकार पुलिस ने खुराना को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया और जेल में डाल दिया। कुछ दिनों बाद चुनाव का ऐलान हुआ और मदनलाल खुराना भी जेल से छूट गए।
दिल्ली में मदन लाल खुराना का ऐसा नाम हुआ कि जो काम बड़े-बड़े नेता नहीं कर पाते, वो खुराना अपने संबंधों के बूते पर करते थे। विपक्ष के लोग भी उनसे मदद मांगते थे। ऐसा ही एक किस्सा 1984 का है।
मदनलाल खुराना के बेटे हरीश खुराना बताते हैं,
1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में सिख विरोधी दंगे भड़क गए थे। ऐसे में हमारे घर राष्ट्रपति भवन से एक फोन आया। राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने डैडी से उनके दो करीबी रिश्तेदारों को सुरक्षित निकालने का निवेदन किया। डैडी अपनी कार से वहां गए और राष्ट्रपति के रिश्तेदारों को सुरक्षित जगह छोड़ा। उन्होंने अपने क्षेत्र के कई परिवारों को अपने इलाके में शरण दी। उन दिनों लोग उन्हें मदन सिंह खुराना कहने लगे थे।
पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह (बाएं) के साथ मदन लाल खुराना।
1993 में दिल्ली को मिली विधानसभा, खुराना पहले CM बने मदन लाल खुराना ने 1983 से दिल्ली की झुग्गियों में BJP का झंडा लेकर घूमना शुरू किया। उन्होंने मुद्दा बनाया कि दिल्ली को राज्य का दर्जा मिले। 1987 में जस्टिस सरकारिया आयोग बना, उसके बाद बालकृष्ण की कमेटी बनी। उनकी रिकमंडेशन पर 1991 में संशोधन हुआ और दिल्ली को राज्य का दर्जा और विधानसभा दी गई।
1993 में पहला विधानसभा चुनाव हुआ, तब मदन लाल खुराना दिल्ली BJP के अध्यक्ष थे। 44% वोट शेयर पाकर BJP की सरकार बनी और मदन लाल खुराना मुख्यमंत्री बने।
वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ मिश्रा बताते हैं कि नए राज्य बने दिल्ली को केंद्र धीरे-धीरे पावर ट्रांसफर कर रहा था। उस समय दिल्ली सरकार के पास टैक्स संबंधी निर्णय लेने का अधिकार नहीं था। खुराना चाहते थे कि उनकी सरकार को वित्त-संबंधी सारे अधिकार दिए जाएं, लेकिन उन्हें फाइनेंस की ज्यादा समझ नहीं थी।
उसी समय जनकपुरी से प्रोफेसर जगदीश मुखी BJP के टिकट पर जीत कर आए थे। वे शहीद भगत सिंह कॉलेज में इकोनॉमिक्स पढ़ाया करते थे। वे इकोनॉमिक्स और फाइनेंस के जानकार थे। खुराना ने जगदीश मुखी से डॉ मनमोहन सिंह को समझाने को कहा।
मनमोहन सिंह के साथ मीटिंग में जगदीश मुखी बोले,
आपने दिल्ली सरकार में फाइनेंस मिनिस्टर नहीं बनाया, बल्कि मिनिस्टर फॉर एक्सपेंडिचर (यानी केवल खर्च करने वाला मंत्री) बनाया है। आप मुझे पैसा देते हैं, मैं खर्च करता हूं। मैं चाहता हूं कि आप मुझे दिल्ली में टैक्स तय करने का अधिकार दें।’
इस बात पर डॉ मनमोहन सिंह राजी हो गए और इस तरह मदनलाल खुराना की सूझबूझ से दिल्ली सरकार को शुरुआत में सेल्स टैक्स तय करने का अधिकार मिला।
सीनियर जर्नलिस्ट रामेश्वर दयाल बताते हैं कि मुख्यमंत्री बनने के बाद मदन लाल खुराना ने एक बहुत बड़ा फैसला लिया। पूर्वांचल के लोग दिल्ली में बहुतायत में हैं। 1982 में जब एशियाई खेल हुए थे तब दिल्ली का पूरा स्ट्रक्चर बदला गया था। यहां फ्लाईओवर और स्टेडियम बने थे, तब पूर्वांचल की आबादी यहां मजदूरी के लिए आई थी और यहीं बस गई थी। मदन लाल खुराना ने उस वक्त 1073 अन-ऑथराइज्ड यानी अवैध कॉलोनियों को रेगुलराइज करने की घोषणा की थी।
जब नींद में पत्नी से बोले- बहनजी मुझे ही वोट दीजिए सीनियर जर्नलिस्ट रामेश्वर दयाल बताते हैं कि मदन लाल खुराना के पास पत्रकारों की एक लॉबी थी। जब उन्हें दिल्ली के लिए कोई निर्णय लेना होता था, तो वे उन पत्रकारों से बात किया करते थे। उसी दौरान उन्होंने पत्रकारों के साथ क्रिकेट का मैच भी करवाया। उन्होंने पत्रकारों को काफी सहूलियतें दीं। मदन लाल खुराना की अप्रोच टिपिकल पंजाबी थी। जिनसे उनका अपनापन है, उनसे अपनापन है। उन्होंने अपने मंत्रिमंडल में बड़े कमजोर लोग रखे थे।
पत्नी के साथ मदन लाल खुराना
सीनियर जर्नलिस्ट गुलशन राय खत्री बताते हैं,
मदन लाल खुराना जितने सीरियस नेता थे, उतने ही हंसोड़ भी थे। एक बार चुनाव के दिनों वे हम लोगों के साथ बैठे हुए थे तो कहने लगे कि हम लोगों पर चुनाव का कितना असर रहता है, इसका आपको अंदाजा भी नहीं। एक बार मैं सुबह देर तक सोता रहा। जब मेरी पत्नी उठाने आईं तो मैंने उठते ही कहा- ‘बहन जी मुझे ही वोट दीजिए’। मेरे घर में सब हंस रहे थे कि मैं नींद में भी वोट ही मांग रहा हूं।
साहिब सिंह वर्मा दिल्ली ग्रामीण के नेता थे। वे खुराना के प्रतिद्वंदी थे। एक समारोह में साहिब सिंह (बाएं) और मदन लाल खुराना।
साहिब सिंह को CM बनाने के खिलाफ थे खुराना रामेश्वर दयाल बताते हैं, ‘किसी को अंदाजा नहीं था कि मदन लाल खुराना 5 साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे। 1996 में उन पर उद्योगपति एसके जैन से हवाला कांड में पैसे लेने का आरोप लगा। आडवाणी भी इसी मामले में इस्तीफा दे चुके थे। ऐसे में ये कंफर्म था कि मदन लाल खुराना को भी इस्तीफा देना पड़ेगा, लेकिन वो जानते थे कि इस्तीफा देकर अगर वे किसी गैर पंजाबी को मुख्यमंत्री बना देंगे तो भविष्य में उनके लिए संकट पैदा हो जाएगा, और ऐसा हुआ भी।’
उस समय दिल्ली देहात में साहिब सिंह वर्मा का बहुत नाम था। उनको दूसरा नंबर का नेता कहा जाता था। मदन लाल खुराना की कोशिश थी कि साहिब सिंह वर्मा को CM न बनाया जाए। उसके लिए उन्होंने पूर्वांचल के लाल बिहारी तिवारी, जो उस समय राशन विभाग के मंत्री थे और करोलबाग से समाज कल्याण मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह को मंत्री बनाने की कोशिश की। लेकिन साहिब सिंह वर्मा की लॉबी के विधायक भी कम नहीं थे। उन्होंने दबाव बनाना शुरू कर दिया कि हर हाल में वर्मा को ही CM बनाया जाए, वरना विद्रोह हो सकता है।
रामेश्वर दयाल के मुताबिक,
खुराना पार्टी हाईकमान के आगे गए और कहते हैं कि वो रो भी पड़े थे कि साहिब सिंह वर्मा के अलावा किसी और को मुख्यमंत्री बना दो तो चल जाएगा। लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए और वर्मा मुख्यमंत्री बने।
आडवाणी और खुराना दोनों को रिश्वत केस में क्लीनचिट दे दी गई इसके बाद खुराना को लगा कि पार्टी उन्हें वापस CM बनाएगी। वो पार्टी पर दबाव बनाने लगे। उधर उनकी जगह CM बने साहिब सिंह वर्मा कुर्सी छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। पार्टी भी दिल्ली को डिस्टर्ब करने के मूड में नहीं थी। कुछ साल बाद खुद खुराना ने इस बात का जिक्र किया था कि CM पद छोड़ना उनकी सबसे बड़ी भूल थी।
राजस्थान के गवर्नर के रूप में मदन लाल खुराना और उनकी पत्नी राज (बीच में) एवं तब की राजस्थान की CM वसुंधरा राजे सिंधिया। खुराना ने राजभवन में जनता दरबार शुरू कर दिया था। इससे वसुंधरा नाराज हो गई थीं।
राजस्थान के राज्यपाल बने, लेकिन 10 महीने में ही इस्तीफा दिया वरिष्ठ पत्रकार सुशील कुमार सिंह बताते हैं कि 14 जनवरी 2004 को उन्हें सक्रिय राजनीति से हटाकर राजस्थान का राज्यपाल बनाया गया। वसुंधरा राजे सिंधिया CM थीं। खुराना लोगों से सीधा संवाद रखने वाले थे। वो कहते थे, ‘कहां मुझे सोने के पिंजरे में कैद कर दिया।’
खुराना ने राजस्थान की जनता की समस्याएं सुनने के लिए 29 जनवरी 2004 को पहली बार राजभवन में जनता दरबार लगाया। देश में ये पहली बार हुआ था। जब ये खबर मीडिया में आई, तो सुर्खियां बनीं। फोन राजभवन से जाता तो अफसर भी मना नहीं कर पाते। लोगों के काम तुरंत हो रहे थे।
नौकरशाहों ने CM वसुंधरा से शिकायत की। वसुुंधरा ने सीधे PM अटल बिहारी वाजपेयी तक बात पहुंचाई। इसके बाद खुराना ने सरकार में दखलंदाजी कम कर दी। आखिरकार राजभवन रास नहीं आया और खुराना ने लगभग 11 महीने बाद 1 नवंबर 2004 को इस्तीफा दे दिया।
राज जन्मभूमि आंदोलन के दौरान निकाली गई रथयात्रा में लाल कृष्ण आडवाणी को स्मृति चिह्न देते मदन लाल खुराना और पूर्व PM अटल बिहारी वाजपेयी। आडवाणी की सलाह पर ही खुराना ने दिल्ली CM पद से इस्तीफा दिया था।
पार्किंसन से ग्रस्त हुए, जवान बेटे की मौत
- 2003 के विधानसभा चुनाव में फिर से उनको प्रदेश अध्यक्ष बनाकर मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित किया गया, लेकिन तब तक उनकी याद्दाश्त चली गई थी। वो अपने ही कार्यकर्ता को नहीं पहचानते थे। उस चुनाव में शीला दीक्षित दोबारा जीत गईं और खुराना राजनीति से विदा हो गए। उनको पार्किंसन रोग लंबे समय तक था।
- अगस्त 2005 में मदनलाल खुराना ने बयान दिया कि जिस तरह कांग्रेस ने सिख दंगों के लिए माफी मांगी है, उसी तरह भाजपा अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी को गुजरात हिंसा के लिए माफी मांगनी चाहिए। CM नरेंद्र मोदी से इस्तीफा मांगना चाहिए।
- इस बयान के बाद खुराना को सस्पेंड किया गया। एक अनुशासन समिति बनाई गई। उस समिति ने फैसला लिया कि खुराना को पार्टी से निकाल देना चाहिए। इस तरह 6 सितंबर 2005 को खुराना को BJP से निकाल दिया गया।
- इसके एक साल बाद खुराना ने BJP से अलग होकर नई पार्टी बनाने वाली उमा भारती की रैली में भाग लिया। 21 मार्च 2006 में पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण पार्टी से फिर बाहर का रास्ता दिखाया गया।
- इससे पहले 23 जनवरी 1999 को ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टुअर्ट स्टेंस के परिवार को जलाकर मार दिया गया था। आरोप बजरंग दल के कार्यकर्ता दारा सिंह पर आरोप लगा। मदनलाल खुराना ने इस घटना की निंदा की।
- बजरंग दल की आलोचना करते हुए मदन लाल ने केंद्र सरकार में पर्यटन और संसदीय मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। बड़े नेताओं के दबाव के कारण अटल बिहारी बाजपेयी ने इस्तीफा स्वीकार कर लिया था।
- उन्होंने अपने बेटे विमल को राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर तैयार किया था, लेकिन हार्ट अटैक के चलते 17 अगस्त 2018 को विमल का निधन हो गया। खुराना और टूट गए, बीमारी उन पर हावी होने लगी।
- 27 अक्टूबर 2018 की रात 11 बजे 82 वर्ष की उम्र में अपने घर में मदन लाल खुराना ने आखिरी सांस ली।
- इसके बाद उनकी राजनीतिक विरासत हरीश खुराना को मिली। हरीश दिल्ली BJP के प्रवक्ता रहे हैं। वे इस चुनाव में खुराना की सीट मोती नगर से चुनाव से मैदान में हैं।
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