पॉलिटिकल फेक न्यूज और डीपफेक पर भास्कर इन्वेस्टिगेशन के पहले पार्ट में आपने पढ़ा कि कैसे अमित शाह का डीपफेक वीडियो बनाया गया। इसके अलावा सोनिया गांधी और राहुल गांधी के खिलाफ भी मॉर्फ, फेक और डीपफेक का इस्तेमाल कर कैंपेन चलाए गए।
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दैनिक भास्कर की नेशनल इन्वेस्टिगेटिव टीम ने एवरमोर टेक और कोडव्रैप के अलावा वी-स्पार्क, प्रियस कम्युनिकेशन और टेक क्यूआरटी प्राइवेट लिमिटेड नाम की एजेंसियों से भी बात की। इनसे भी रिपोर्टर बहुजन समाज पार्टी (BSP) और LJP (रामविलास) के समर्थक बनकर मिले और स्टिंग किया।
छानबीन में अखिलेश के खिलाफ चले ‘टोटीचोर’ कैंपेन, राहुल गांधी की शादी की फेक न्यूज, सोनिया गांधी के रिलेशनशिप और बॉयफ्रेंड पर फेक न्यूज के अलावा बिहार में लालू के खिलाफ कैंपेन से संबंधित खुलासे हुए। साथ ही दिल्ली के एक BJP विधायक ने अरविंद केजरीवाल के खिलाफ फेक न्यूज कैंपेन चलाया। इस पार्ट में 3 चैप्टर में पढ़िए पूरी छानबीन…
पार्ट-1 और पहले दो चैप्टर पढ़ने के लिए क्लिक करें…
चैप्टर-3
एवरमोर और कोडव्रैप से हमें इतना अंदाजा लग चुका था कि फेक न्यूज बनाने और स्प्रेड करने के इस मार्केट में कई बड़े प्लेयर हैं। हमें एक और डिजिटल मार्केटिंग कंपनी के बारे में पता चला जिसका नाम वी-स्पार्क है और ये भी पॉलिटिकल पीआर का काम करती रही है। कंपनी की वेबसाइट पर मौजूद नंबर पर हमने कॉल किया। ये कॉल कनिका छाबरा नाम की एक महिला ने उठाया। कनिका ने बताया कि वे इस कंपनी की को-फाउंडर भी हैं।
यहां भास्कर रिपोर्टर ने कनिका को बताया कि हमें बहुजन समाज पार्टी (BSP) से कांट्रैक्ट मिला है, यूपी में पार्टी की छवि को फिर से मजबूत बनाने का काम कराना है। वी-स्पार्क का नाम सामने आया, इसलिए उन्हें कॉल कर रहे हैं। कॉल पर ही मीटिंग फिक्स हो गई।
मीटिंग-1, तारीख: 31/1/2025
‘मीम पकड़ में आ जाते हैं, मॉर्फ बेस्ट हैं, सारी पेमेंट कैश में होगी’ कनिका ने रिपोर्टर को सेक्टर-63 नोएडा के एक ऑफिस में बुलाया। एवरमोर के ऑफिस के मुकाबले ये काफी बड़ा और प्रोफेशनल लग रहा था। सामने कई एम्पलाई बैठकर काम भी कर रहे थे।

रिपोर्टर: मैं ये कह रहा था कि हमारे क्लाइंट BSP से हैं। वे बेसिकली BSP के फाइनेंसर हैं। ये एजेंडा हमारा पूरा हिडन रहेगा। इस प्रोजेक्ट में क्लाइंट का मेन एजेंडा फेक न्यूज है। ये सारी फेक न्यूज BJP, AAP, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के खिलाफ रहेंगी।
कनिका के पास बैठा शख्स: तो ये यूपी के लिए है प्रॉपर?
रिपोर्टर: हां, ये यूपी के लिए ही है। अभी यूपी ही है। आगे हम देखेंगे कि क्या प्लान बनेगा। बिहार में भी चुनाव है। अगर इसमें ये (BSP) कैंडिडेट उतारते हैं, तो आपसे बात कर लेंगे।
अपने साथी से बातचीत करने के बाद कनिका: तो ये आप मेजरली सोशल मीडिया पर कराना चाह रहे हैं। सोशल मीडिया ही होगा। अलग-अलग पेज हैं। मॉर्फ बनाकर वहीं होता है। नेगेटिव के लिए तो मॉर्फ ही बेस्ट है। मीम इमेज पकड़ में आ जाती है।
रिपोर्टर ने सीधे ही कनिका से पूछा कि क्या आपने कभी किसी पॉलिटिकल पार्टी के लिए फेक न्यूज का काम किया है।
रिपोर्टर: किस पार्टी का था वो काम? कनिका: आम आदमी पार्टी का था।
दूसरा एम्प्लॉई: एक कांग्रेस के थे और एक BJP के भी थे। कनिका: (याद करते हुए) जब पंजाब वाले के साथ कर रहे थे।
रिपोर्टर: आम आदमी पार्टी थी?
दूसरा एम्प्लॉई: (कनिका को जवाब देते हुए) नहीं, वो कांग्रेस के थे। कनिका: सिकंदर बहल थे कोई यूथ कांग्रेस के लीडर। उनके लिए किया था।
कॉलेज के स्टूडेंट हायर करते हैं, 100-200 रुपए में कमेंट करवाते हैं कनिका आगे बताने लगीं कि कैसे उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर पेज क्रिएट किए। ये सारे पेज दूरदराज के इलाकों में बैठे लोगों से बनवाए गए, जिससे खर्च कम आए और अगर कभी जांच-पड़ताल हो तो उससे भी बचा जा सके। कनिका के मुताबिक, पहले वे कॉलेज के स्टूडेंट्स भी हायर करती थीं। सोशल मीडिया पर कमेंट्स पोस्ट करने के लिए उन्हें 100-200 रुपए दिए जाते हैं। ये सभी फेक पोस्ट पर कमेंट कर इंगेजमेंट बढ़ाते हैं।
कनिका के साथ मीटिंग इस पॉइंट पर खत्म हुई कि वे एक डीटेल्ड प्रपोजल बनाकर भेजेंगे। इस प्रपोजल में बताएंगे कि कैसे वे फेक न्यूज-वीडियो बनाएंगे और कैसे उन्हें स्प्रेड करेंगे। जैसे ही हमें प्रपोजल मिल जाएगा, वे एक फाइनल मीटिंग करके डील फाइनल करेंगे। कनिका ने बेहद साफ शब्दों में ये भी कह दिया था कि पूरी पेमेंट कैश में ही करनी होगी।
कनिका: आपका जो काम है मेजर टू मेजर, हमारे यहां उसकी पेमेंट कैश में ही रहती है। मैं बताती हूं क्यों… क्योंकि जब हम नेगेटिव लिखने को देते हैं, ब्लॉगर भी हमसे पैसे सीधे नहीं लेना चाहते। वे नहीं दिखाना चाहते कि पैसा किस एजेंसी के जरिए आया है।
हम भी नहीं बताना चाहते हैं क्योंकि हम भी कोई ट्रेस नहीं छोड़ते हैं। कल को बोल सकते हैं कि यहां से पैसा आया है। हम कम्युनिकेशन भी टेलीग्राम के जरिए करते हैं, इसमें कम्युनिकेशन नेचुरली डिलीट हो जाता है।
मीटिंग-2, तारीख: 20/2/2025
कानपुर और बिहार के गोपालगंज से वायरल कराएंगे कंटेंट इस मीटिंग से पहले कनिका ने बताया के वो अभी एक इवेंट में बिजी है और कंपनी के क्रिएटिव हेड अभिजीत कुमार आगे की बातचीत करेंगे। इस बार रिपोर्टर की टीम अभिजीत कुमार से मिलने सेक्टर-63, नोएडा ऑफिस पहुंची। अभिजीत के साथ हुई बातचीत भी काफी चौंकाने वाली रही।
अभिजीत ने बताया कि कैसे इस तरह के काम के लिए डिजिटल मार्केटिंग की ये कंपनियां कम पढ़े-लिखे युवाओं को इस्तेमाल कर रही हैं।

रिपोर्टर: तो टेक्निकल सारा काम आपकी कंपनी कानपुर से करेगी? अभिजीत: देखिए, मेन तो कानपुर ही है हमारा। बाकी दो-तीन जगह और भी हैं, जो हम बताते नहीं हैं। मेन हमारा कानपुर से ऑपरेट होगा। बाकी बिहार में भी है। मैं थोड़ा बहुत आपको बता देता हूं, बिहार के गोपालगंज में भी है। वहां से भी काम होता है, लोकल एरिया के लोग होते हैं, वो ही करते हैं ये सब चीजें।
अभिजीत आगे बताता है: एजेंट नहीं होते ये लोग। गांव के लोग होते हैं, जो लोग थोड़े-बहुत पढ़े-लिखे हैं। 10वीं-12वीं तक पढ़े हैं। इसी के पास 10-12 बंदे इकट्ठा करते हैं। ये लोग कहीं भी, गांव के स्कूल में बैठकर ये काम कर रहे हैं। वहां पर कोई नहीं जाएगा। वैसे भी रूरल एरिया में कोई जाता नहीं, पुलिस भी नहीं जाती, तो वहां से ऑपरेट होता है।
रिक्रूटमेंट कंपनी बनाकर लोगों को हायर किया, 10 हजार सैलरी
अभिजीत के मुताबिक वी-स्पार्क की एक रिक्रूटमेंट कंपनी है, जो कानपुर से काम करती है। यहां काफी बेरोजगार युवा नौकरी ढूंढते हुए आते हैं। इन्हीं को 5 से 10 हजार रुपए सैलरी देकर फेक न्यूज का काम करने पर लगा लेते हैं।
अभिजीत: मैं आपको बताता हूं, कानपुर में हमारी एक और एजेंसी है। जैसे नौकरी डॉट कॉम है, वैसी समझिए। वहां बहुत लोग आते हैं जिन्हें जॉब चाहिए। 5 हजार-10 हजार की जॉब चाहते हैं। रिपोर्टर: अच्छा..
अभिजीत: लोग इस एजेंसी में इंटरव्यू देने आते हैं…
रिपोर्टर: ये लोग पूछते नहीं कि यहां क्या हो रहा है? अभिजीत: लोगों को जॉब से मतलब है।
रिपोर्टर इस एजेंसी का नाम पता करने की कोशिश करता है, लेकिन अभिजीत बार-बार नाम बताने से बचता रहता है। वो ये जरूर बताता है कि ये एजेंसी बनाई ही इसलिए है कि फेक न्यूज वाले काम के लिए लोगों को रिक्रूट कर सके।
रिपोर्टर: सीधे क्यों नहीं बताते, इतना घुमा-घुमाकर क्यों? सीधे बताओ न फेक वीडियो और मॉर्फ वीडियो बनाने के लिए कंपनी बनाई है? अभिजीत: हमारी चीज वही है… लेकिन सामने नहीं दिखा सकते उसे।
रिपोर्टर: सीधे बताओ आपने कंपनी इसी काम के लिए क्रिएट की है? अभिजीत: बिल्कुल, मेन काम वही है हमारा, लेकिन सामने दिखाते हैं कि नौकरी देते हैं लोगों को।
रिपोर्टर: करवाओ, आपको यही काम होता है इनसे क्योंकि सेफ्टी रहेगी। पढ़े-लिखे ज्यादा नहीं हैं।
अभिजीत: जो ज्यादा पढ़े लिखे होते हैं न, वहां दिक्कत होती है… फिर तेज भी बनने लगते हैं।
रिपोर्टर बातचीत में पता लगाने की कोशिश करते हैं कि अभिजीत ने किस-किस पॉलिटिकल पार्टी के लिए काम किया है। अभिजीत काफी खुश होते हुए बताता है कि उसने कांग्रेस की स्टूडेंट विंग NSUI के अलावा कांग्रेस और BJP के लिए काम किया है। वो कई बड़े कैंपेन का हिस्सा रहा है, उसे किसी पार्टी से कोई दिक्कत नहीं, बस काम के लिए पैसा मिलना चाहिए।
अभिजीत: हमारा क्या है, हम तो पैसा कमाने बैठे हैं। चाहे कोई काम कराए, वो ही चीज है।
दिल्ली के एक BJP विधायक ने काम दिया, अभी वो मंत्री हैं अभिजीत के दावे के मुताबिक, अभी हाल में उसने दिल्ली चुनाव से जुड़ा काम खत्म किया है। उन्हें दिल्ली के एक BJP विधायक से एक कांट्रैक्ट मिला था। वे फिलहाल रेखा गुप्ता सरकार में मंत्री भी हैं। अभिजीत के मुताबिक ये विधायक भी एक कस्टमर-मैनेज्ड रिलेशनशिप (CMR) नाम की एजेंसी चलाते थे। इस एजेंसी ने ही वी-स्पार्क को काम दिया था।
अभिजीत: वे पॉलिटिकल न्यूज एजेंसी चलाते थे, फिर उसी के जरिए ये चले गए।
रिपोर्टर: पॉलिटिक्स में चले गए। अभी वी-स्पार्क को इन्होंने फेक न्यूज का काम दिया था? इसी वाले चुनाव में? अभिजीत: इसमें भी दिया था… इससे पहले वाले में भी दिया था।
अभिजीत के दावे के मुताबिक, वी-स्पार्क ने BJP के राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ इन्हीं चुनावों में फेक वीडियोज बनाए थे। अभिजीत ये दावा भी करते हैं कि उनके BJP में काफी अच्छे कॉन्टैक्ट हैं।
अभिजीत: हां, वैसे कॉन्टैक्ट में मेरे बहुत सारे लोग हैं। BJP में मैं ज्यादा अच्छे से जानता हूं लोगों को क्योंकि मेरे मामा भी BJP में ही हैं। उनसे बात होती रहती है।
रिपोर्टर: फेक वीडियोज कैसे थे, जो बनाए थे। कुछ बताओ? अभिजीत: एक होता है फेस स्वैप, किसी का चेहरा हटाकर किसी और का चेहरा लगा देना, जैसे मनीष सिसोदिया और केजरीवाल साथ बैठे हैं, लेकिन चेहरा बदल कर किसी BJP नेता का लगा दिया और वायरल करा दिया।
रिपोर्टर: जो आपने हमें भेजा है, उसमें ये सब है? अभिजीत: ये तो बेसिक है। जब कोई एजेंडा चलता है तो तब मॉर्फ वीडियो आती है। जैसे मैं आपको बताता हूं कि राजनाथ सिंह के साथ हुआ था ऐसा..
रिपोर्टर: किसके साथ? अभिजीत: राजनाथ सिंह के साथ हुआ था। एक फोटो थी, कोई लीडर मोदी जी के साथ बैठे हुए थे। जब 2017 का चुनाव हुआ था यूपी में।
रिपोर्टर: अच्छा.. अभिजीत: जब योगी जी पहली बार सीएम बने थे तब
रिपोर्टर: 2017? अभिजीत: एक मिठाई खिलाते हुए फोटो था, कोई थे मनोज सिंह, वे अपना नैरेटिव सेट कर रहे थे। ऐसा ही कुछ नाम था उनका…
रिपोर्टर: मनोज सिन्हा? अभिजीत: हां, इन्हीं को अपोनेंट बनाकर खड़ा कर दिया था। कैंपेन था कि राजनाथ चाहते हैं कि ये सीएम बनें और पीएम चाहते हैं कि योगी जी बनें। ऐसा चलाया कि अब दोनों आपस में बात भी नहीं करते। पूरे महीने ये नेगेटिव कैंपेन चला। बाद में पता चला के फोटो तो मॉर्फ थी।

गृह मंत्री राजनाथ सिंह की ये फोटो भी वायरल हुई थी। इसमें वे CPM लीडर प्रकाश करात को लड्डू खिला रहे हैं। असल में ये फोटो PM मोदी को लड्डू खिलाने की है।
रिपोर्टर: अच्छा, दिल्ली यूनिवर्सिटी में क्या किया था? अभिजीत: NSUI हमारी क्लाइंट थी और ABVP के खिलाफ किया था। ABVP का कोई बंदा था रौनक जैन, उसके खिलाफ किया था। उसका दारू पीते हुए वीडियो बना था। बाद में वो खुद ही बर्बाद हो गया। अपनी बीवी के साथ कुछ चीजों में फंस गया, तो हमने छोड़ दिया।
रिपोर्टर: इनके (BJP विधायक) लिए आपने दिल्ली चुनाव में कैसे वीडियो बनाए थे? अभिजीत: सबसे पहले कांग्रेस-AAP का चला था कि ‘चोर-चोर मौसेरे भाई’ मतलब साथ खड़े थे कि मोदी को हराएंगे, लेकिन दिल्ली की बारी आई तो आपस में ही लड़ने लगे। एक तो मैंने ही भेजा था…उसके (यमुना) किनारे बैठकर आम आदमी पार्टी के बंदे बोलते हैं कि छी..छी कितना गंदा पानी है, कौन पिएगा ये। कैंपेन था कि कौन पूजता है यमुना जी को। केजरीवाल खड़े हैं और बोल रहे हैं कि ‘कौन पूजता है यमुना को’, इसे वायरल कराया था।
आलोक सुमन ने लालू के खिलाफ कैंपेनिंग कराई अभिजीत ने ये भी बताया कि बिहार में उन्होंने लालू प्रसाद यादव के खिलाफ कैंपेनिंग का काम किया है। वहां उन्हें आलोक सुमन ने हायर किया था। आलोक सुमन बिहार के गोपालगंज से जदयू के लोकसभा सांसद हैं। चौंकने वाली बाते ये थी कि अभिजीत ने फेक न्यूज के काम का सेंटर भी कानपुर के अलावा गोपालगंज में बनाने की बात कही थी।

मीटिंग इस पॉइंट पर खत्म हुई कि अभिजीत इस काम के लिए प्रपोजल शेयर करेंगे। अभिजीत ने प्रपोजल शेयर भी किया। वी-स्पार्क ने इस काम के लिए 51.5 लाख रुपए हर महीने मांगे। 2 लाख रुपए हर मॉर्फ इमेज के लिए, 3 लाख मॉर्फ वीडियो के लिए और 2.5 लाख फेक वीडियो बनाने के लिए।

चैप्टर-4 प्रियस कम्युनिकेशन, तारीख:10/2/2025 भास्कर रिपोर्टर्स की टीम ने प्रियस कम्युनिकेशन नाम की एजेंसी से भी दो मीटिंग की। प्रियस में हमारी मीटिंग कंपनी के फाउंडर बलदेव राज के साथ हुई। ये मीटिंग बलदेव के ऑफिस- बंगला नंबर L/11, साउथ एक्स पार्ट-2, नई दिल्ली के बेसमेंट में हुई।
पहली मीटिंग में बलदेव को रिपोर्टर पर भरोसा नहीं हो रहा था। रिपोर्टर ने यहां भी खुद को बहुजन समाज पार्टी के लिए कांट्रैक्ट पर काम करने वाला बताया था। पहली मीटिंग में बलदेव फेक न्यूज पर बात करने से बचता रहा।
बलदेव ने कुछ दिन बाद दूसरी मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में उसने एक PPT प्रजेंटेशन दिखानी थी, जो कि काम करने के लिए प्रियस का प्रपोजल था। हालांकि इस मीटिंग में भी बलदेव ने टेक्निकल दिक्कतें बता दीं और प्रजेंटेशन नहीं दिखाई। बलदेव ने फिर तीसरी मीटिंग के लिए हमें बुलाया। इस मीटिंग में बलदेव ने कई बड़े खुलासे किए। इस मीटिंग में भास्कर के दो अंडरकवर रिपोर्टर शामिल हुए।

‘सब बनाते हैं, पर रखते नहीं; काम खत्म होते ही डिलीट कर देते हैं’
रिपोर्टर-1, रिपोर्टर-2 से: युवा वाहिनी का सब काम इनकी एजेंसी ने ही किया था। जो योगीजी की युवा वाहिनी सेना थी। उसका जितना भी प्रमोशन का काम था, इन्हीं का था।
बलदेव: पॉलिटिकल काम हमने काफी किया है सर। वो हम कहीं रखते नहीं हैं क्योंकि आप उसे कहीं रख ही नहीं सकते।
रिपोर्टर 2: क्यों? बलदेव: नहीं सर, कभी नहीं रखते। एक एग्जांपल से आपको बताता हूं। कई बार ऐसा होता है कि पीआर एजेंसी के लोगों को ही उठा लेते हैं वो लोग… ये वाली सरकार आपको पता ही है। ये आपको बिना बात के भी जेल में डाल सकते हैं। मतलब उसमें काफी वर्किंग ऐसी होती है, जिस डेटाबेस को आप अपने पास नहीं रखते।
बस इस्तेमाल होने के बाद उसे डिलीट कर देते हो क्योंकि कोई भी डेटाबेस ऐसे काम का आपने अपने पास रखा, कभी भी कोई चीज हुई तो वो आपके लैपटॉप या सिस्टम से उसे निकालकर आपके ऊपर कार्रवाई करते हैं, उसमें से ही पॉइंट्स निकाल लेते हैं। ये चैलेंज आता है।
रिपोर्टर: तो युवा वाहिनी वाले में ऐसा कुछ था क्या? क्या कोई उस तरह का कंटेंट था? बलदेव: उसमें भी था सर… हटा ही देते हैं। पॉलिटिकल कंटेंट जो भी होता है, हम हटा देते हैं।
रिपोर्टर: दूसरी बात ये कि अपनी प्रोफाइल में आपने क्या-क्या काम कर रखा है? बलदेव: हमारी प्रोफाइल में जैसा सर मैंने आपको बताया कि जब वे यूपी में CM नहीं बने थे, हमने वर्किंग की थी, उनके लिए दो साल तक।
रिपोर्टर: कौन CM नहीं बने थे? बलदेव: योगी… योगी जब नहीं बने थे। युवा वाहिनी के लिए हमने किया था। वो कैसे चर्चा में बने रहें। हमने काम किया है। अलग-अलग पॉलिटिकल फोरम के लिए भी काम किया है। कोई सुनील सिंह थे, जिनके साथ हम काम करते थे।
रिपोर्टर: इसके अलावा क्या-क्या किया है आपने? बलदेव: एक तरह से अखिलेश के लिए भी किया है। उनके भाई हैं प्रतीक, तो अपर्णा के लिए डेढ़ साल काम किया था। उन्हें अखिलेश जी टिकट नहीं दे रहे थे, हमने कैंपेन डिजाइन किया था। कैंपेन का नाम था ‘बी अवेयर’ इसी की वजह से उन्हें टिकट मिला था।
रिपोर्टर: पप्पू वाले कैंपेन पर भी आपने ही काम किया था ? बलदेव: नहीं सर, हमने नहीं किया था लेकिन मैं उस टीम को जानता हूं। इनफेक्ट जिसने ‘वाइब्रेंट गुजरात’ किया था, वही थे। मैं और अमित उस टीम में साथ थे। यूएस की कंपनी है, उसी ने किया था।
बड़े मीडिया ब्रांड के लोगो इस्तेमाल कर बना रहे फेक वीडियो बलदेव बातचीत में एक और चौंकाने वाला खुलासा करते हैं। उनके मुताबिक, फेक न्यूज फैलाने के लिए वे भरोसेमंद न्यूज मीडिया ब्रांड्स का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। उनके मुताबिक ऐसी खबरों पर वे बड़े मीडिया ब्रांड्स का लोगो लगा देते हैं या फिर उन्हें ऐसा बनाते हैं, जैसे वो वहां पब्लिश हुई खबर की तरह दिखें। बलदेव हमें इंडिया टुडे चैनल की एक क्लिप दिखाते हैं। ये अमित शाह के बयान ‘अंबेडकर-अंबेडकर-अंबेडकर’ वाली क्लिप है।
रिपोर्टर: ये तो इंडिया टुडे की असली क्लिप है? बलदेव: नहीं सर, ये इंडिया टुडे की नहीं है।
रिपोर्टर: इसे आपने फेब्रेकेटेड किया है? ये चैनल पर नहीं चली है? बलदेव: हां किया है। आप जो ओरिजिनल देखेंगे, वो राज्यसभा की है। हमने ये इंडिया टुडे की बनाकर फेब्रेकेट की है।
रिपोर्टर: ये पूरी फेब्रेकेटेड है? बलदेव: हां। ये सब तो अब हम हिंदी में भी क्रिएट कर सकते हैं। वो अखबार की क्लिपिंग कैसी लगेगी।
बलदेव एक और फेक वीडियो दिखाता है। इसमें कई क्लिपिंग हैं जिन पर आज तक, दैनिक भास्कर और द प्रिंट के लोगो लगाए गए हैं।

बलदेव ने रिपोर्टर को अखबारों की ये क्लिप दिखाईं। इनमें बड़े मीडिया ब्रांड का इस्तेमाल कर फेक न्यूज तैयार की गई हैं।
रिपोर्टर: एक तो इसमें दैनिक भास्कर भी है? बलदेव: इसमें सारे हैं, दैनिक भास्कर, लल्लनटॉप जैसे रेफरेंस देने पड़ते हैं, नहीं तो कंटेंट ऑथेंटिक नहीं लगता। लोगों को भरोसा हो जाए, इसलिए करते हैं।

चैप्टर-5 टेक-क्यूआरटी प्राइवेट लिमिटेड, तारीख:15/2/2025
अब तक टीम ने जितनी एजेंसियों से मुलाकात की थी, वे सभी दिल्ली-एनसीआर में ही मौजूद थीं। टीम ने डिसाइड किया कि किसी ऐसी एजेंसी से भी बात की जाए, जो कि राष्ट्रीय राजधानी से दूर हो। इसके लिए हमने लखनऊ चुना।
लखनऊ में हमारी मुलाकात टेक-क्यूआरटी प्राइवेट लिमिटेड के आकाश श्रीवास्तव से हुई। कंपनी का ऑफिस बाबा दयाल सिंह कॉलोनी, न्यू हैदराबाद, लखनऊ में था। ये लखनऊ के निशातगंज इलाके में है। शुरुआती बातचीत के बाद रिपोर्टर ने फेक न्यूज पर बातचीत शुरू की…

रिपोर्टर: जैसा आपने कहा के सोनिया गांधी के बारे में फेक न्यूज बनाई, तो क्या न्यूज बनाई थी आपने। राहुल गांधी के बारे में भी थी? आकाश: बहुत सारी चीजें… सोनिया गांधी के रिलेशनशिप को लेकर काफी कुछ था…इनका चक्कर था… बॉयफ्रेंड था… मतलब इस तरह की कहानियां, बहुत सारी बातें थीं उसमें। अब तो 2014 के वो पोस्ट निकालना बहुत मुश्किल है। गुजरात मॉडल को लेकर भी बहुत पॉजिटिव कहानियां बनाई गई थीं। गुजरात मॉडल में ये होता है, वो होता है, 100% रोजगार है वहां पर।
आकाश आगे बताता है… जैसे होता क्या है कि हम लोग बैठे हैं, बेसिकली मैं उस समय कंसल्टेंट था। उनके लिए BJP में हम लोगों को सर्विस देना था। संयोजक हमारे मित्र थे… जैसे अभी हम लोग बैठे हैं। एक टॉपिक डिफाइन हो गया कि आज राहुल गांधी पर कुछ डालना है।
फिर जो कमांड सेंटर बना हुआ था, वहां चार-पांच लोगों को बैठा दिया। कुछ भी रेंडमली ढूंढो, जो उनकी हिस्ट्री रही हो। गूगल पर ढूंढो, कहां से पढ़ाई की है, कौन-कौन था साथ में, इन्फॉर्मेशन निकाल लो। इसी इन्फॉर्मेशन के बिहाफ पर फर्जी कहानी बना दी कि इनका कोई दोस्त था… उससे चक्कर चल रहा है या राहुल गांधी की डिग्री फर्जी है।
आकाश ने ये भी कबूल किया कि उस दौरान (2014) वो खुद ऐसे फेक न्यूज कैंपेन में शामिल रहा, जिसमें फैलाया गया था कि राहुल गांधी की शादी हो चुकी है। इस बातचीत में आकाश किसी अभिषेक कौशिक का नाम भी मेंशन करते हैं…
आकाश: हमारे अभी तो साथ में नहीं है, लेकिन एक हैं अभिषेक कौशिक…शायद आप लोगों ने नाम सुना होगा BJP आईटी सेल में हैं… इस समय यूपी में हैं। जो ‘टोटी चोर’ चल रहा है न अखिलेश यादव का, वो इनकी ही देन थी।

नोट: अभिषेक साल 2017 से 20 मई 2022 तक सीएम योगी आदित्यनाथ के OSD रहे थे। उनकी सोशल मीडिया प्रोफाइल के मुताबिक वे अभी यूपी सॉफ्ट टेनिस असोसिएशन के अध्यक्ष हैं। सरकारी घर से ‘टोटी’ चोरी होने वाली घटना के बाद अखिलेश यादव ने भी प्रेस कान्फ्रेंस कर अभिषेक कौशिक और IAS मृत्युंजय नरेन पर उन्हें बदनाम करने का आरोप लगाया था।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अखिलेश यादव ने जून, 2018 में सरकारी बंगला खाली किया था। आरोप लगा कि वे अपने साथ सरकारी बंगले की टोटियां भी ले गए हैं। इसके बाद 13 जून 2018 की प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश टोटी लेकर गए थे।
रिपोर्टर: तो टोटी चोरी नहीं हुई थी ? आकाश: टोटी चोरी कुछ नहीं हुई थी… अखिलेश क्यों टोटी चुराएगा भाई। जो एम्पलॉई थे, उन्होंने निकालकर इधर-उधर कर दी…उठापटक हो रही थी….उसी को उन्होंने टोटी चोर बना दिया था अपने हिसाब से।
आकाश ने ये भी बताया कि जवाहर लाल नेहरू, रॉबर्ट वाड्रा और प्रियंका गांधी के लिए भी नेगेटिव कैंपेन बनाने का वे हिस्सा रहे हैं। ये सभी कैंपेन 2014 में चलाए गए थे। इसके अलावा मनमोहन सिंह के चुप रहने को निशाना बनाते हुए भी कैंपेन चलाया गया था।

स्टिंग से जो जरूरी बातें सामने आईं
1. गृहमंत्री अमित शाह दो बार इस तरह के कैंपेन के शिकार हुए। पहली बार 2024 में ‘रिजर्वेशन खत्म कर देंगे’ वाली डीपफेक वीडियो की वजह से, इसका असर लोकसभा चुनाव में यूपी में दिखा। दूसरी बार 2025 में ‘अंबेडकर-अंबेडकर-अंबेडकर’ बयान को तोड़-मरोड़ कर वायरल कराया गया।
2. 2014 लोकसभा चुनावों से पहले सोनिया गांधी को निशाना बनाया गया। उनकी पर्सनल तस्वीरें एडिट कर वायरल की गईं। उनके बॉयफ्रेंड की एक झूठी कहानी बनाई गई। एक कहानी बार डांसर वाली बनाई गई। विदेशी बहू नाम से एक कैंपेन चलाया गया।
3. राहुल गांधी 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले से निशाने पर रहे। इसी दौरान उनके खिलाफ ‘पप्पू’ कैंपेन चलाया गया। उनका ‘आलू-सोना’ वाला वीडियो भी वायरल कराया गया।
4. साल 2018 में अखिलेश भी इसके घेरे में आए। उनके सरकारी घर से ‘टोटी चोरी’ होने की घटना को कैंपेन में बदला गया। इसमें कथित तौर पर यूपी सीएम के एक तत्कालीन OSD अभिषेक कौशिक का नाम सामने आया है। अभिषेक ने ही राहुल की शादी और सोनिया के बॉयफ्रेंड वाली फेक न्यूज फैलाने में भूमिका निभाई।
5. दिल्ली के एक मंत्री ने वी-स्पार्क को दिल्ली चुनाव में हायर किया। इस एजेंसी ने केजरीवाल को निशाना बनाते हुए फेक वीडियो बनाए और ‘यमुना को कौन पूजता है’ कैंपेन चलाया।
6. नमो गंगे ट्रस्ट और एवरमोर के विजय शर्मा ने माना कि मनमोहन सिंह के खिलाफ ‘सायलेंट पीएम’ वाला कैंपेन उन्होंने चलाया। ये कैंपेन उन्होंने BJP के नेशनल स्पोक्सपर्सन और सीनियर एडवोकेट नलिन कोहली के कहने पर चलाया था। मोदी की कैंपेनिंग के लिए एवरमोर के विजय शर्मा को 16 करोड़ रुपए मिले।
7. 2017 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी एक बार इसके शिकार हुए और उनकी मनोज सिन्हा के साथ एक मॉर्फ फोटो वायरल कराई गई थी। गोपालगंज से JDU सांसद आलोक सुमन ने भी लालू प्रसाद यादव के खिलाफ कैंपेन चलवाया था।

फेक न्यूज या फोटो-वीडियो का असर टारगेटेड पर्सन या पार्टी के खिलाफ नैरेटिव गढ़ा जाता है। इसके लिए ऐसा समय चुना जाता है, जब उसे ज्यादा से ज्यादा नुकसान हो, जैसे लीडर या पार्टी के मामलों में चुनाव से बिल्कुल पहले ऐसे मैसेज सर्कुलेट किए जाते हैं।



मॉर्फ बनाने पर 7 साल जेल और 5 की सजा, AI पर कंट्रोल जरूरी फेक न्यूज इंडस्ट्री इससे जुड़े कानून पर भास्कर ने साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल से बात की।
सवाल: कोई मॉर्फ्ड वीडियो बनता है, जिससे किसी की इमेज खराब होती है। ये सही है या गलत है? जवाब: अगर आप मॉर्फ्ड वीडियो बनाते हैं तो ये BNS के तहत क्राइम है। आप मॉर्फ्ड वीडियो बना रहे हैं तो आप झूठा इलेक्टॉनिक रिकॉर्ड बना रहे हैं। अगर उसका मकसद लोगों को चीट करना है, फ्रॉड करना है, तो 7 साल की सजा है। अगर किसी व्यक्ति की छवि को नकारात्मक रूप से प्रभावित करना है, तो 3 साल की सजा है।
अगर आप वीडियो मॉर्फ्ड कर देते हैं, तब कंप्यूटर रिलेटेड ऑफेंसेस भी करते हैं। IT एक्ट की धारा-66 के तहत 3 साल की सजा और 5 लाख का जुर्माना है। इसी तरह अश्लील कंटेंट को मॉर्फ्ड करते हैं, तब भी आप अपने आप अश्लील इलेक्ट्रानिक जानकारी के पब्लिकेशन या सर्कुलेट करने में सीधा योगदान देते हैं। ये भी दंडनीय अपराध है। ये IT एक्ट धारा-67 में आता है। इसमें 3 साल की सजा और 5 लाख जुर्माना है।

आज तो डीपफेक का जमाना है। बहुत से फ्री टूल आ गए हैं। झूठे इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड बनाते हैं। भारत में डीपफेक या मॉर्फ्ड टेक्नोलॉजी के लिए अलग से कोई कानून नहीं है।
कैलिफोर्निया में नवंबर 2024 में नया लॉ आ चुका है। ये कहता है कि आप AI के जरिए फेक कंटेंट बनाएंगे तो दंडनीय अपराध है। आपको पहले घोषणा करनी होगी कि मैंने इसे ये AI से बनाया है ताकि लोग गुमराह न हों। अगर आप कानून का पालन नहीं करते हैं तो सजा का प्रावधान है। भारत अब तक उस दिशा में नहीं पहुंचा है। मुझे उम्मीद करता हूं कि आने वाले समय में इसके लिए कुछ कानूनी प्रावधान आने चाहिए।

सवाल: सोशल मीडिया अकाउंट कौन ऑपरेट कर रहा है, मॉर्फ्ड वीडियो किसने डाला, ये पता नहीं चल पाता। ये लोग कौन सी टेक्नोलॉजी इस्तेमाल करते है? जवाब: ज्यादातर लोग इसके लिए वर्चुअल प्राइवेट नेटवर्क यानी VPN का इस्तेमाल करते हैं। ये ऐसी टेक्नोलॉजी है जो आपकी मौजूदा लोकेशन पर पर्दा डाल देती है। आपकी लोकेशन किसी और देश में दिखाती है, जहां आप मौजूद नहीं है। इसका उद्देश्य ये है कि आइडेंटिटी छिपी रहे ताकि आप इसका दुरुपयोग कर सकें। ज्यादातर लोग VPN का इस्तेमाल गैरकानूनी गतिविधियों के लिए करते हैं, ताकि कानून और सरकार के दायरे से बच सकें।

भारत में VPN को लेकर अलग से कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। हाल में भारत सरकार VPN सर्विस प्रोवाइडर के लिए कुछ नए प्रावधान लाई है। ये कहते हैं कि अगर आप भारत में VPN की सेवाएं देना चाहते हैं, तब आपको अपनी लोकेशन बतानी होगी।
सरकार आपसे कोई जानकारी मांगेगी, वो आप सरकार को देंगे। नहीं देंगे तो आपके ऊपर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। हालांकि इस कानून का ये असर है कि जो सर्विस प्रोवाइडर भारत में सर्विस दिया करते थे, वे भारत से बाहर जा चुके हैं। वे नहीं चाहते कि अपने कस्टमर का डेटा सरकार को दें।
हम VPN क्यों इस्तेमाल करते हैं, अपनी पर्सनल प्राइवेसी, डेटा और लोकेशन सेफ कर सकें। अगर सर्विस प्रोवाइडर इसकी जानकारी सरकार को दे देगा तो VPN इस्तेमाल करने का कोई मतलब नहीं होगा। यही वजह है कि ज्यादातर सर्विस प्रोवाइडर भारत से चले गए हैं। भारत के कानून का पालन नहीं कर रहे हैं। भारत के लोग भी विदेश में मौजूद सर्विस प्रोवाइडर की सेवाओं का इस्तेमाल कर रहे हैं।
सवाल: अगर कोई VPN का इस्तेमाल करके भारत में अफवाह फैलाता है, तो क्या सरकार ने ऐसी कोई व्यवस्था बनाई है, जिससे उस तक पहुंचा जा सके? जवाब: सरकार उस जगह तक पहुंच सकती है, अगर VPN सर्विस प्रोवाइडर भारत में मौजूद है और वो जानकारी सरकार से शेयर कर रहा है। आज दो–तीन को छोड़कर सभी सर्विस प्रोवाइडर भारत से बाहर चले गए हैं। वे भारत तो छोड़िए तो किसी भी सरकार से जानकारी शेयर नहीं करते। सरकार को उस लोकेशन तक पहुंचने में दिक्कत होती है। इसीलिए ज्यादातर साइबर क्रिमिनल्स भारत से बाहर मौजूद VPN सर्विस प्रोवाइडर की सर्विस यूज करते हैं।
सरकार ने बहुत से ठोस प्रावधान बनाए हैं। IT एक्ट 2000 है। ये 25 साल पुराना कानून है, लेकिन सर्विस प्रोवाइडर पर लागू है। इसके तहत केंद्र सरकार ने 2021 में नए रूल्स बनाए हैं। इसका नाम information technology intermediary guidelines and digital media ethics code rules 2021 है।
ये कोड रूल्स साफ तौर पर कहते हैं कि अगर आप सर्विस प्रोवाइडर हैं तो आपको बुनियादी कदम उठाने होंगे। बहुत से सर्विस प्रोवाइडर को ये दायित्व दिया गया है कि जब सरकार या लॉ इनफोर्समेंट एजेंसी उनसे यूजर की पहचान के बारे में जानकारी मांगेगी, या साइबर सुरक्षा में सेंध से जुड़ी कोई डिटेल मांगी, तो वे ये जानकारी सरकार को देंगे।
कानूनी प्रावधान तो हैं, उनके जरिए सरकार अलग अलग केस में जानकारी मांगती है। ऐसा नहीं है सरकार को हर तरह की जानकारी मिलती है।

सवाल: प्ले स्टोर पर 5 हजार रुपए में ऐसे ऐप मौजूद हैं, ये क्रिमिनल्स के लिए कितना आसान है? जवाब: VPN रामपुरी चाकू की तरह है। आप इससे सब्जी भी काट सकते हैं, मर्डर भी कर सकते हैं। अभी इसका दुरुपयोग ज्यादा हो रहा है, हमारे पास प्रभावी कानूनी प्रावधान भी नहीं हैं। भारत के IT एक्ट 2000 को संशोधित करने की जरूरत है। साथ ही IT रूल्स 2021 में भी संशोधन कर VPN के दुरुपयोग जैसे इश्यूज को भी एड्रेस करने की जरूरत है।
सवाल: सोशल मीडिया पर इलेक्शन जैसे बड़े इवेंट के दौरान फेक न्यूज, वीडियो वायरल होते हैं, ये क्यों नहीं रुक पाते? जवाब: ये डेटा इकोनॉमी का युग है। हम इंसान कम और डेटा ऑब्जेक्ट ज्यादा बन गए हैं। 24 घंटे डेटा तैयार कर रहे हैं, कंज्यूूम कर रहे हैं। ऐसा होता है तब लोग डेटा वायरल करना शुरू कर देते हैं। जितनी आपकी पोस्ट वायरल होगी, उतनी ही आपकी मॉनिटाइज करने की क्षमता बढ़ेगी।
वायरल डेटा से कोई न कोई पैसा कमा रहा है। वो डिजिटल इकोनॉमी में योगदान दे रहा है। इसी के साथ एडवर्टाइजिंग रेवेन्यू जनरेट होता है। इस तरह की चीजें चलती रहेंगी।
सवाल: वायरल वीडियो की मॉडस ऑपरेंडी क्या है, ऐसा करने वाले क्यों नहीं पकड़े जाते? जवाब: वीडियो वायरल करना दंडनीय अपराध नहीं है। इसलिए उसे पकड़ने की जरूरत नहीं होती
और आखिर में… फेक न्यूज की ये इंडस्ट्री इतनी ताकतवर हो चुकी है कि देश के गृहमंत्री, रक्षा मंत्री, नेता विपक्ष और एक्स चीफ मिनिस्टर जैसे लोग इसके विक्टिम हैं। ऐसे मामलों में फिलहाल न तो केस ठीक से दर्ज हो रहे हैं और न ही जांच के बाद दोषी सामने आ रहे हैं।
पॉलिटिकल फेक न्यूज के अलावा 2020 दिल्ली दंगे और कई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं में ऐसे सबूत मिले हैं कि लोगों को भड़काने में फेक न्यूज और मॉर्फ इमेज का इस्तेमाल किया गया था।
हालांकि, पॉलिटिकल फेक न्यूज सबसे खतरनाक इसलिए है क्योंकि ये नेताओं और पार्टियों के बारे में फेक कंटेंट के आधार पर लोगों की राय बनाती हैं। इस राय के आधार पर ही वे वोटिंग भी करते हैं। ऐसी वोटिंग और सरकारें डेमोक्रेसी के लिए बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं।
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इस इन्वेस्टिगेशन का पहला पार्ट भी पढ़िए
‘विदेशी बहू’ सोनिया की स्विमसूट फोटो, शाह का फर्जी वीडियो, राहुल को ‘पप्पू’ बनाने का प्लान

अमित शाह, अखिलेश यादव, राहुल गांधी, सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल और राजनाथ सिंह। अगर हम आपसे ये कहें कि ये सभी फेक न्यूज इंडस्ट्री के विक्टिम हैं। अमित शाह का ‘रिजर्वेशन खत्म कर देंगे’ बयान, सोनिया गांधी की ‘स्विमसूट फोटो’ और अखिलेश का ‘टोटीचोर’, सब इसी इंडस्ट्री के प्रोडक्ट है। कैसे चल रही है ये इंडस्ट्री… पढ़िए पूरी खबर