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WhatsApp Chat Privacy Vs Government; New Income Tax Bill Impact Explained | आज का एक्सप्लेनर: सरकार ने वॉट्सएप चैट से कैसे पकड़े 250 करोड़, क्या आपके मैसेज पढ़ रही सरकार; नए कानून का क्या होगा असर


वॉट्सएप चैट और इंस्टाग्राम अकाउंट्स डिकोड करके 250 करोड़ रुपए की बेहिसाब संपत्ति पकड़ी गई। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 25 मार्च 2025 को संसद में ये बात कही। उन्होंने कहा कि गैरकानूनी लेनदेन के सबूत मिलने के बावजूद इसकी जांच के लिए कोई कानून नहीं है।

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वॉट्सएप चैट तो इंक्रिप्टेड होती है, फिर सरकार ने इसे कैसे पढ़ा, क्या इसे आधार बनाकर सरकार सभी के मैसेज पढ़ने का कानून बनाने जा रही है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: वित्त मंत्री निर्मला सीतामरण ने संसद में ऐसा क्या कहा, जिसकी चर्चा हो रही है?

जवाब: निर्मला सीतारमण ने संसद में बताया कि इनकम टैक्स ऑफिसर्स ने लोगों के इंस्टाग्राम अकाउंट्स एक्सेस किए, वॉट्सएप मैसेज डिकोड किए और गूगल हिस्ट्री से उनकी लोकेशन ट्रेस की। इससे करोड़ों की बेहिसाबी संपत्ति पकड़ी गई। उन्होंने अपने भाषण में बताया…

  • एनक्रिप्टेड मैसेज (कोडेड मैसेज) और मोबाइल फोन्स को डिकोड करके 250 करोड़ रुपए की बेहिसाबी संपत्ति पकड़ी गई। वॉट्सएप मैसेज से 90 करोड़ के क्रिप्टो एसेट्स और उससे जुड़ा नेटवर्क सामने आया।
  • वॉट्सएप पर हुई बातचीत और उससे मिले आपत्तिजनक मटेरियल से 200 करोड़ रुपए के फर्जी बिल और इस फर्जीवाड़े में शामिल लोगों को आइडेंटिफाई करने में मदद मिली।
  • जमीन की बिक्री से कमाए गए 150 करोड़ रुपए फर्जी डॉक्यूमेंट के जरिए सिर्फ 2 करोड़ रुपए ही दिखाए गए। लोगों के फोन की गूगल हिस्ट्री से उन ठिकानों का पता लगा, जहां गैरकानूनी कैश को छिपाया गया।
  • बेनामी संपत्ति के मामले में इंस्टाग्राम अकाउंट्स का इस्तेमाल किया गया। इससे महंगी गाड़ियों के असली मालिकों का पता चला। हमने इंस्टाग्राम के जरिए इस केस को सॉल्व कर लिया।

सवाल-2: वॉट्सएप तो इन्क्रिप्टेड रहता है, उसे कोई तीसरा व्यक्ति नहीं पढ़ सकता, फिर सरकार ने ये डेटा कैसे निकाला?

जवाब: आमतौर पर कोई तीसरा व्यक्ति किसी के वॉट्सएप चैट या एन्क्रिप्टेड मैसेज नहीं पढ़ सकता। लेकिन सरकार को बेनामी संपत्ति, फर्जी लेनदेन या किसी और आपराधिक मामले में जांच के दौरान आरोपी के कंप्यूटर या मोबाइल जब्त कर उसकी जांच करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक-

  • कोई भी आरोपी जांच के दौरान अपनी प्राइवेसी के अधिकार का हवाला देकर अपना निजी डेटा देने या अपना फोन या कंप्यूटर जब्त करने से मना नहीं कर सकता। सरकार आपराधिक मामलों में मोबाइल फोन जब्त करने के बाद ही पासवर्ड लेकर सारे डिटेल निकालती है। आर्यन खान और सुशांत सिंह राजपूत जैसे हाई-प्रोफाइल मामलों में भी जांच करने वाले अधिकारियों ने मोबाइल से डेटा निकाला।
  • वित्तमंत्री ने जो मामले बताए हैं, उनमें सरकार ने शिकायत के बाद जांच की, उसके बाद कानून से उसे जो ताकत मिली है, उसके तहत ही जब्त किए गए फोन से डिटेल निकाले गए हैं। सरकार किसी की लगातार जासूसी नहीं करती है। सरकार चाहे भी तो ऐसा नहीं कर सकती है, क्योंकि उसे इसका अधिकार नहीं है।
  • लोगों के फोन से एन्क्रिप्टेड मैसेज और डेटा निकालना और सर्विलांस के जरिए डेटा हासिल करना दो अलग बातें हैं। जांच एजेंसियों को किसी आरोपी के डिजिटल सर्विलांस का अधिकार है।
  • एजेंसियां उन्हें कानून से मिले डिजिटल सर्विलांस के अधिकार के तहत ही डेटा निकालती हैं, लेकिन पेगासस जैसे किसी सॉफ्टवेयर के इस्तेमाल से या किसी के फोन या उसके डिजिटल उपकरणों की जासूसी करके उसका निजी डेटा निकालना गैर-कानूनी है।
बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ने अवैध ड्रग्स रखने के आरोप में जांच के दौरान अपने फोन का पासवर्ड देने से मना कर दिया था, तब उनकी फेस आईडी से उनका फोन खोला गया। हालांकि मई 2022 में उन्हें मामले में क्लीनचिट दे दी गई थी।

बॉलीवुड एक्टर शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान ने अवैध ड्रग्स रखने के आरोप में जांच के दौरान अपने फोन का पासवर्ड देने से मना कर दिया था, तब उनकी फेस आईडी से उनका फोन खोला गया। हालांकि मई 2022 में उन्हें मामले में क्लीनचिट दे दी गई थी।

सवाल-3: ऐसे कौन-से कानून हैं, जिसके तहत सरकार को आरोपी का पर्सनल डेटा निकालने का अधिकार मिलता है?

जवाब: सरकार को फिलहाल 3 प्रमुख नियम-कानूनों के तहत यह अधिकार मिले हुए हैं-

इनकम टैक्स एक्ट 1961: इस कानून की धारा-132 के तहत ऑफिसर्स को टैक्स की चोरी और संपत्ति छिपाने के मामलों में लॉकर तोड़ने, सामान जब्त करने और फाइलों की जांच करने के अधिकार हैं। अगर जांच करने वाले ऑफिसर के पास किसी आरोपी के एक्सेस कोड (पासवर्ड वगैरह) नहीं हैं और वह व्यक्ति जांच में सहयोग नहीं कर रहा है तो, ऑफिसर उसके कंप्यूटर सिस्टम तक पहुंच सकते हैं।

इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000: इस कानून में फाइल्स के अलावा इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड्स का भी जिक्र है। टैक्स चोरी के मामलों में मोबाइल वगैरह जब्त करने के बाद पूछताछ होती है। जब्त मोबाइल से इनकम टैक्स डिपार्टमेंट वॉट्सएप की बातचीत और गूगल सर्च हिस्ट्री हासिल कर लेता है। आयकर विभाग, टेलीकॉम कंपनियों से लोगों की बातचीत यानी सीडीआर का विवरण भी हासिल कर सकता है।

दिसंबर 2018 का गृह मंत्रालय का आदेश: विराग बताते हैं कि दिसंबर 2018 में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करके 10 सरकारी जांच एजेंसियों- ईडी, एनआईए, इंटेलिजेंस ब्यूरो, नार्कोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, सीबीआई, डीआरआई, रॉ, दिल्ली पुलिस और आयकर विभाग को डिजिटल सर्विलांस करने का भी अधिकार दिया था। इसके दायरे में इंटरनेट, ऑनलाइन और डिजिटल उपकरण भी आते हैं। हालांकि इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी।

सवाल-4: जब सरकार को पहले से पर्सनल डेटा निकालने का अधिकार है, फिर इनकम टैक्स एक्ट में नए प्रावधान क्यों जोड़े जा रहे हैं?

जवाब: निर्मला सीतारमण ने अपने भाषण में इसका जवाब दिया। उन्होंने कहा, ‘इनकम टैक्स एक्ट में फिजिकली मौजूद बही-खाते, कमाई, खर्चे और लेनदेन के मैन्युअल रिकॉर्ड की बात की गई है, लेकिन डिजिटल की बात नहीं की गई है।

इसलिए अक्सर इस कानून पर विवाद होता है और प्राइवेसी का मुद्दा उठता है। लोग कोर्ट जाकर कहते हैं कि मेरे बही-खाते मैंने दिखा दिए हैं, फिर मेरा डिजिटल डेटा देखने के लिए मेरा पासवर्ड क्यों मांगा जा रहा है। ये एक बड़ा मुद्दा है।’

विराग गुप्ता भी कहते हैं, इनकम टैक्स एक्ट 1961 में इस कानून में स्पष्ट तौर पर इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड और कंप्यूटर जैसे टूल्स का जिक्र नहीं है। इसीलिए इनकम टैक्स ऑफिसर जांच के दौरान मोबाइल फोन, लैपटॉप, हार्ड-डिस्क और ईमेल में एक्सेस की मांग करते हैं।’

विराग के मुताबिक, क्रिप्टो का कारोबार बढ़ रहा है, लोग फोन और कंप्यूटर में इसके रिकॉर्ड्स रखते हैं। कानून के पालन, टैक्स चोरी पर लगाम और अपराधों को रोकने के लिए डिजिटल मामलों को लेकर स्पष्ट कानून बनाए जाने की जरूरत है।

क्रिप्टोकरेंसी, रुपए या किसी दूसरी ऑफिशियल करेंसी की तरह बैंक में जमा नहीं की जा सकतीं। कहा जा रहा है कि नए इनकम टैक्स कानून में क्रिप्टो एसेट्स को अनडिस्क्लोज्ड यानी बेहिसाबी संपत्ति माना जाएगा।

क्रिप्टोकरेंसी, रुपए या किसी दूसरी ऑफिशियल करेंसी की तरह बैंक में जमा नहीं की जा सकतीं। कहा जा रहा है कि नए इनकम टैक्स कानून में क्रिप्टो एसेट्स को अनडिस्क्लोज्ड यानी बेहिसाबी संपत्ति माना जाएगा।

वित्त मंत्री ने अपने भाषण के दौरान करीब 5 मिनट में 5 बार कहा कि सरकार अब इनकम टैक्स एक्ट 2025 में कुछ सख्त नियम जोड़ने जा रही है, एक्ट को संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास भेजा गया है। बिल में डिजिटल एलिमेंट जोड़ा जाएगा, जिससे किसी की डिजिटल जानकारी को हासिल करना कानूनी हो जाएगा।

सवाल-5: इनकम टैक्स बिल में डिजिटल निगरानी से जुड़े नए प्रावधान क्या हैं?

जवाब: नए इनकम बिल यानी इनकम टैक्स बिल 2025 के आर्टिकल-247 में टैक्स चोरी के मामलों में वर्चुअल डिजिटल स्पेस और कम्प्यूटर की जांच के अधिकार दिए गए हैं। आर्टिकल के अनुसार एक्ट के दायरे में लोगों के ई-मेल सर्वर, सोशल मीडिया अकाउंट, ऑनलाइन इन्वेस्टमेंट, ट्रेडिंग अकउंट, क्लाउड सर्वर, प्रॉपर्टीज को स्टोर करने वाली वेबसाइट और डिजिटल एप्लीकेशन प्लेटफॉर्म वगैरह शामिल हैं। नए कानून में स्पष्टता आने से सरकार को जांच में कोई कानूनी अड़चन नहीं आएगी।

इनकम टैक्स बिल 2025 अभी संसद की सेलेक्ट कमेटी के पास विचाराधीन है। इसमें कई संशोधन हो सकते हैं, उसके बाद बिल संसद के दोनों सदनों से पारित होगा।

वित्त मंत्री ने कहा है कि संसद के मानसून सत्र यानी जुलाई से अगस्त के दौरान इसे संसद में पेश किया जाएगा। बिल संसद से पारित होने के बाद जब इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिल जाएगी तो नोटिफिकेशन जारी करके नए कानून लागू किया जाएगा।

सवाल-6: क्या सरकार के डिजिटल सर्विलांस के प्रावधान लोगों की राइट टू प्राइवेसी के खिलाफ है?

जवाबः इनकम टैक्स एक्ट के नए प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील आशीष कुमार पांडेेय 4 प्रमुख चिंताएं बताते हैं-

पर्सनल डेटा और एक्टिविटी पर सरकारी निगरानी: नए कानून से सक्षम इनकम टैक्स ऑफिसर्स को बिना वारंट या बिना कोई जानकारी दिए लोगों के वर्चुअल डिजिटल स्पेस यानी ईमेल, सोशल मीडिया अकाउंट्स, बैंक खातों, और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स तक एक्सेस का हक मिल सकता है।

राइट टु प्राइवेसी पर खतरा: सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी मामले में, प्राइवेसी को मौलिक अधिकार के बतौर मान्यता दी थी। इसे संविधान के आर्टिकल-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का हिस्सा माना गया। सरकार को लोगों के फाइनेंशियल डिटेल्स को एक्सेस करने का हक है, लेकिन आम लोगों में डर है कि उनकी पर्सनल एक्टिविटी और बातचीत भी निगरानी में आई तो यह उनके राइट टू प्राइवेसी का उल्लंघन होगा।

मान लीजिए आपने एक विदेश यात्रा पर खूब पैसा खर्च किया है, और इसकी फोटो फेसबुक पर डाली हैं तो, सरकार उस खर्चे का हिसाब तो लगा सकती है, लेकिन अगर आपकी पर्सनल फोटोज भी उसकी निगरानी में हैं तो ये राइट टू प्राइवेसी के खिलाफ होगा।

राजनीतिक हित के लिए कानून के दुरुपयोग का खतरा: इस कानून का इस्तेमाल केवल टैक्स चोरी रोकने तक सीमित न होकर व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों के लिए भी हो सकता है। खास तौर पर सरकार का विरोध करने वालों या विपक्ष के नेताओं के खिलाफ इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

सामान्य नागरिकों पर कार्रवाई का डर: शक के आधार पर किसी को भी इस निगरानी का शिकार बनाया सकता है। सोशल मीडिया पोस्ट या ऑनलाइन शॉपिंग भी निगरानी के दायरे में आ सकती है। आजकल लोग डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर बहुत समय बिताते हैं, ऐसे में एक सर्विलांस स्टेट जैसी स्थिति बन सकती है।

विराग गुप्ता कहते हैं कि नए नियमों का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए एक्सपर्ट कानून में ही कुछ और प्रावधान करने की भी मांग कर रहे हैं। कानून का दुरुपयोग न हो इसके लिए दुरुपयोग करने वाले अधिकारियों के खिलाफ पेनाल्टी और सजा का भी प्रावधान होना चाहिए।

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