ब्यूरो रिपोर्ट ताहिर रिजवी बाराबंकी
बाराबंकी । नगर के करबला सिविल लाइन में हुआ हज़रत अली अ. के जन्म दिन के उपलक्ष में महफ़िल का आयोजन । हुई नज़रों नियाज़ ,एक दूसरे के गले मिलकर किया ख़ुशी का इज़हार , मांगी दुआएं ,बांटी मिठाई ।मुल्क में चैन व अमन की भी मांगी दुआएं। शायरों ने बरसाये अपनी अक़ीदत के फूल । महफ़िल में डाक्टर रज़ा मौरानवी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – न उसके पास दौलत थी न मख़मल का बिछौना था ,अली के सामने लेकिन ज़माना कितना बौना था ।अली की उंगलियों में कौन जाने कितनी ताक़त थी, दरे खैबर अली के हाथ पे जैसे खिलौना था । अजमल किन्तूरी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा- अली की मदहा को जब मैं कलम बदस्त हुआ ,मेरी नजात का तब जाके बन्दोबस्त हुआ ।डाक्टर मुहिब रिज़वी ने अपना बेहतरीन कलाम पेश करते हुए पढ़ा- चेहरा ए हैदर में जब सूरज ज़मीं पर आ गया .ज़ुल्मतों की आंखों का हर आइना पथरा गया । बारह क़ुरआनों का हर सूरा है पैग़ामे रसूल, ये न समझो आइनों को छोड़कर चेहरा गया। आरिज़ जरगांवीं ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा- विलायत को जो अनसुना कर रहे हैं , तो फि र इस मुसल्ले पे क्या कर रहे है। हाजी सरवर अली करबलाई ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – खुश अबूतालिब हुए आंखों का तारा आ गया , अहमद ए मुरसल की ख़ातिर इक सहारा आ गया । बन ही जायेगा नमाज़ों का ये क़िबला एक दिन, ख़ाना ए माबूद में मोमिन का मौला आ गया । फ़राज़ ज़ैदी ने अपना कलाम पेश करते हुए पढ़ा – तब से न विलायत पे उठीं उंगलियां जब से , हारिस को जवाब ईंट का पत्थर से मिला है ।इसके अलावा सलीम काज़मी ,हिलाल ज़ैदी , दिलकश रिज़वी ,अदनान रिज़वी ,आसिफ़ अख़्तर बाराबंकवी , हसनैन आब्दी ,ज़मानत अब्बास , ज़ईम क़ाज़मी , हैदर ज़ैदी , रज़ा मेहदी ,ग़ाज़ी ,ज़मानत ,बाक़र ,अली ,वहदत ,कियान और जौशन ने भी गुलहाए अक़ीदत पेश किये।महफ़िल का आरम्भ तिलावत ए कलामे इलाही से डाक्टर रज़ा मौरानवी ने किया । आयोजक हाजी सरवर अली रिज़वी व उनके सहयोगियों ने सभी का आभार प्रकट किया ।