13 घंटे पहलेलेखक: इंद्रभूषण मिश्र
- कॉपी लिंक
एक बाबा हैं गंगापुरी महाराज। उम्र 57 साल और हाइट महज 3 फीट और 8 इंच। हाइट की वजह से लोग उन्हें लिलिपुट बाबा कहते हैं। बाबा ने 32 सालों से स्नान नहीं किया है। ये उनका हठयोग है। वे अपने पैरों में खड़ाऊ और नाक के बीच में बाली पहनते हैं। लंबे समय तक श्मशान में साधना भी कर चुके हैं।
गंगापुरी असम के रहने वाले हैं और खुद को जूना अखाड़े का साधु बताते हैं। हालांकि, वे अखाड़े से अलग एक छोटी कुटिया में रहते हैं। जन्म से पहले उनके माता-पिता ने सात संतानों को खोया था। उनके जन्म के बाद उनकी माता का निधन हो गया। इसके बाद पिता ने उनका त्याग कर दिया। गंगापुरी को उनकी मां की सहेली ने पाला।
गंगापुरी कहते हैं- ‘मेरे मन में एक इच्छा है। जब वो इच्छा पूरी हो जाएगी तो शिप्रा नदी में नहाऊंगा और कामाख्या चला जाऊंगा।’
‘महाकुंभ के किस्से सीरीज’ के 10वें एपिसोड में आज हठयोग और ऐसा करने वाले अनोखे बाबाओं की कहानी…
गंगापुरी बाबा का दावा है कि उन्होंने 32 साल से स्नान नहीं किया है।
हठ का शाब्दिक अर्थ है ‘जिद्दी’। यानी इंद्रियों और मन के दखल के बिना योग का अभ्यास। हठ योग की उत्पत्ति राज योग से हुई है। आमतौर पर सभी योग मुद्राएं और प्राणायाम हठ योग के अंतर्गत आते हैं। इसका मतलब है कि अगर आप कोई योग, आसन या प्राणायाम करते हैं, तो आप हठ योग कर रहे हैं।
हठयोग की सबसे मशहूर और पुरानी किताब ‘हठयोग प्रदीपिका’ के मुताबिक ‘ह’ कार सूर्य स्वर या दायां स्वर का प्रतीक है। जबकि ‘ठ’ कार चंद्र स्वर या बायां स्वर का प्रतीक है। सूर्य और चंद्र स्वरों के योग से ही हठयोग बनता है। सूर्य स्वर को पुरुष शक्ति का प्रतीक और चंद्र स्वर को स्त्री शक्ति का प्रतीक माना गया है।
बहुत सालों तक हठ योग सिर्फ साधु-संतों तक ही सीमित था। आम लोग इससे फैमिलियर नहीं थे। कुछ कुलीन परिवारों में थोड़ी-बहुत हठयोग की परंपरा थी। बाद में धीरे-धीरे हठयोग की लोकप्रियता बढ़ने लगी।
18वीं सदी के अंत में अंग्रेजों ने भी इसमें दिलचस्पी दिखानी शुरू की। कई ब्रिटिश फोटोग्राफरों ने हठयोग की तस्वीरें छापीं। इससे विदेशों में भी हठयोग को लेकर दिलचस्पी बढ़ने लगी। कई लोग हठयोग सीखने के लिए भारत आए। साधु-संतों की कुटिया में रहे। फिर अपने देश लौटकर लोगों को हठयोग के बारे में बताया। इस तरह योग भारत के अलावा कई देशों में लोकप्रिय हो गया।
हठयोग करने वाले बाबाओं के किस्से….
9 साल से हाथ ऊपर ही रखा है, एक फुट से ज्यादा बड़े हो गए हैं नाखून हठयोगी नागा संन्यासी महाकाल गिरि ने पिछले 9 सालों से अपने बाएं हाथ को ऊपर उठा रखा है। उनकी उंगलियों के नाखून कई इंच तक लंबे हो गए हैं। उनका दावा है कि उन्होंने अपने हाथ में शिवलिंग बना रखा है। इस हठयोग को ऊर्धबाहु कहा जाता है।
गिरि अपने सभी काम एक हाथ से ही करते हैं। एक हाथ से ही उन्होंने कुटिया के बाहर रेत से शिवलिंग बना रखा है। वे रोटी भी एक हाथ से बना लेते हैं। कहते हैं- ‘अब इस तरह रहने की आदत पड़ गई है। गुरु की कृपा से कोई दिक्कत नहीं आती। आखिरी सांस तक इसी अवस्था में रहूंगा।’
शरीर को इतना कष्ट क्यों दे रहे? इस पर महाकाल गिरि कहते हैं- ’कोई भी तपस्या यूं ही नहीं होती। हर तपस्या के पीछे कोई न कोई मकसद होता है। मेरा संकल्प है कि धर्म की स्थापना हो और गौ हत्या बंद हो।’
महाकाल गिरि 8 साल की उम्र में साधु बने थे। 2001 में प्रयागराज में उन्होंने नागा साधु की दीक्षा ली थी। वे नर्मदा की परिक्रमा कर चुके हैं।
महाकाल गिरि की तरह जूना अखाड़े के महंत राधेपुरी ने भी 14 साल से एक हाथ को ऊपर उठा रखा है। वे 2011 से ऐसा कर रहे हैं। इससे पहले राधेपुरी 12 साल तक खड़े रहने का हठयोग भी कर चुके हैं।
बाबा का हाथ पूरी तरह सुन्न पड़ गया है। वे अपने नाखून भी नहीं काटते हैं। इस वजह से उनके नाखून एक फीट तक लंबे हो गए हैं। वे कहते हैं कि हठ योग तपस्या के बल पर उन्होंने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया है।
महाकाल गिरि ने 8 साल से अपना एक हाथ ऊपर उठा रखा है।
35 साल से कांटों पर ही सोते-बैठते हैं बाबा, राम मंदिर के लिए लिया था संकल्प रमेश कुमार कांटे वाले बाबा नाम से मशहूर हैं। बाबा कांटे पर अपना आसन लगाकर रहते हैं। कांटों पर ही वे सो भी जाते हैं। उनके लिए कांटा ही बिस्तर है। वे पिछले 35 सालों तक इसी तरह से साधना करते हुए आ रहे हैं। अब उन्हें इसकी आदत पड़ गई है।
बाबा का जन्म प्रयागराज के एक छोटे से गांव में हुआ था। 1990 में जब अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए देशभर में आंदोलन हो रहा था। कारसेवा हो रही थी, तब उनकी उम्र 17 साल थी। वे कारसेवक बनकर अयोध्या गए थे।
वे कहते हैं- ‘पुलिस रामभक्तों को लाठियों से पीट रही थी। उनके साथ मार-पीट कर रही थी। इससे आहत होकर मैंने संकल्प लिया कि जब तक राम लला टेंट से हटकर मंदिर में विराजमान नहीं होते, मैं कांटों पर ही रहूंगा।’
पिछले साल अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा के बाद कांटों वाले बाबा ने दर्शन भी किया, लेकिन अपना प्रण नहीं छोड़ा। बाबा का कहना है कि अयोध्या की तरह ही मथुरा और काशी में भी भव्य मंदिर बनेगा, तब वे अपना प्रण छोड़ेंगे।
हठयोगी बाबा, जो हमेशा कांटों पर लेटे रहते हैं।
सिर पर 45 किलो का रुद्राक्ष, भगवान शिव को मनाने के लिए हठयोग संन्यासी गीतानंद महाराज अपने सिर पर सवा लाख रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं, जिनका वजन 45 किलो है। पिछले 6 साल से बाबा ये रुद्राक्ष धारण किए हुए हैं। बाबा, 13 अखाड़ों में से एक आह्वान अखाड़ा के सचिव हैं। वे भगवान शिव को मनाने लिए यह हठयोग कर रहे हैं।
बाबा बताते हैं कि उनके माता-पिता की कोई संतान नहीं हो रही थी। गुरु के आशीर्वाद से तीन बच्चे हुए। वे दूसरे नंबर पर थे। उनकी मां ने खुश होकर उन्हें गुरु को दान कर दिया। तब उनकी उम्र महज ढाई साल थी। गुरु उन्हें लेकर अपने साथ चले गए। 12-13 साल की उम्र में उनका हरिद्वार में संन्यास कार्यक्रम हुआ। इसके बाद वे संन्यासी बन गए।
गीतानंद ने इस हठयोग की शुरुआत प्रयागराज में 2019 अर्धकुंभ के दौरान की थी।
14 साल से एक पैर पर खड़े हैं राजेंद्र गिरि, 12 साल की उम्र में लिया था संन्यास योगी राजेंद्र गिरि बाबा 14 साल से एक पैर पर खड़े होकर तपस्या कर रहे हैं। वे पंचदश नाम जूना अखाड़े से जुड़े हैं। लगातार खड़े रहने की वजह से उनका नाम खड़ेश्वरी बाबा पड़ गया है।
राजेंद्र गिरि 12 साल के थे, तब उन्होंने संन्यास की दीक्षा ली थी। इसके बाद 6 साल तक उन्होंने तपस्या की। 18 साल की उम्र में उन्होंने एक पैर पर खड़े होने का हठयोग शुरू किया। वे कहते हैं कि जब तक जिंदा रहेंगे एक पैर पर खड़े रहेंगे। बाबा एक झूले की मदद से एक पैर पर खड़े रहते हैं और इसी अवस्था में वे खाना-पीना करते हैं।
राजेंद्र गिरि बाबा 14 साल से एक पैर पर खड़े हैं।
5 साल से अपने सिर पर अन्न उगा रहे हैं बाबा
यूपी के सोनभद्र के रहने वाले बाबा ने अपने सिर पर ही अन्न उगा रखा है। बाबा का नाम अमरजीत है और पिछले पांच साल से वे ऐसा करते आ रहे हैं। बाबा के हठयोग का मकसद पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करना है।
बाबा ने सिर पर जो फसल उगाई है। उसमें दाना पड़ने पर वह प्रसाद भी बांटते हैं। बाबा का कहना है कि, सिर पर लगी फसल जब पक जाती है, तो वह भंडारा करते हैं।
बाबा ने बताया- ‘फसल की वजह से मेरे सिर की चमड़ी फट जाती है। पौधों की जड़ें अंदर चली जाती हैं। इन पौधों को बाहर निकालने की कोशिश करता हूं, तो खून भी निकलने लगता है।’
बाबा अपने सिर पर उगी फसल में पानी भी डालते हैं। इन्हें लोग अन्न वाले बाबा के नाम से जानते हैं।
सिर्फ चाय पर जिंदा हैं पयहारी बाबा, 40 साल से मौन धारण किया है
पयहारी बाबा ने अन्न त्याग कर दिया है। वे सिर्फ चाय पीकर जिंदा हैं। भक्तों को प्रसाद के रूप में भी वे चाय ही पिलाते हैं। पिछले 41 सालों से पयहारी बाबा ने मौन धारण किया है। वे लिखकर किसी से बात करते हैं। बाबा का नाम दिनेश स्वरूप ब्रह्मचारी है। यूपी के महोबा के रहने वाले बाबा ने बायोलॉजी में ग्रेजुएशन किया है। वे सुबह उठकर यूपीएससी के छात्रों के लिए नोट्स तैयार करते हैं। वॉट्सऐप के जरिए नोट्स भेजकर गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं। बाबा को स्पीड में बाइक चलाना पसंद है।
पयहारी बाबा दिनभर में 10 कप चाय पी जाते हैं।
———————————————–
महाकुंभ से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें…
महाकुंभ के किस्से-1 : अकबर का धर्म बदलने पुर्तगाल ने पादरी भेजा: जहांगीर ने अखाड़े को 700 बीघा जमीन दी; औरंगजेब बीमार होने पर गंगाजल पीते थे
औरंगजेब गंगाजल को स्वर्ग का जल मानते थे। एक बार वे बीमार पड़े तो उन्होंने पीने के लिए गंगाजल मंगवाया। फ्रांसीसी इतिहासकार बर्नियर ने अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है- ‘औरंगजेब कहीं भी जाता था तो अपने साथ गंगाजल रखता था। वह सुबह के नाश्ते में भी गंगाजल का इस्तेमाल करता था।’ पूरी खबर पढ़ें…
महाकुंभ के किस्से-2 : पहली संतान गंगा को भेंट करते थे लोग:दाढ़ी-बाल कटवाने पर टैक्स लेते थे अंग्रेज; चांदी के कलश में लंदन भेजा जाता था गंगाजल
1827 से 1833 के बीच एक अंग्रेज कस्टम अधिकारी की पत्नी फेनी पाकर्स इलाहाबाद आईं। उन्होंने अपनी किताब ‘वंडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम इन सर्च ऑफ द पिक्चर्स’ में लिखा है- ‘जब मैं इलाहाबाद पहुंची, तो वहां मेला लगा हुआ था। नागा साधु और वैष्णव संतों का हुजूम स्नान के लिए जा रहा था। मैं कई विवाहित महिलाओं से मिली, जिनकी संतान नहीं थी। उन लोगों ने प्रतिज्ञा की थी कि पहली संतान होगी तो वे गंगा को भेंट कर देंगी।’ पूरी खबर पढ़ें…