‘हम दिल्ली के युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में सक्षम बनाने के लिए एकमुश्त 15 हजार रुपए की मदद देंगे, ताकि वे अच्छी तैयारी कर सकें। उनके मां-बाप पर बोझ न पड़े। परीक्षा केंद्र तक आने-जाने और दो बार आवेदन की फीस भी BJP की सरकार देगी।’
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BJP नेता अनुराग ठाकुर ने दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए जारी संकल्प पत्र में कॉम्पिटिटिव एग्जाम देने वाले स्टूडेंट को मदद देने का वादा किया। ये वादा दिल्ली के स्टूडेंट के लिए है, लेकिन देशभर से पढ़ाई के लिए दिल्ली आने वाले स्टूडेंट अब भी मदद के इंतजार में हैं। उनके लिए अब तक किसी पार्टी ने कोई ऐलान नहीं किया है।
ये हर साल फीस और रहने-खाने पर 6 से 8 लाख रुपए खर्च करते हैं। इनकी शिकायत है कि दिल्ली की इकोनॉमी में हमारी भी हिस्सेदारी है, लेकिन सरकार हमारे लिए कुछ नहीं करती। कम से कम सस्ते पीजी ही बनवा दे। दैनिक भास्कर की सीरीज ‘हम भी दिल्ली’ के चौथे एपिसोड में आज इन्हीं स्टूडेंट्स की बात…
मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर, IAS-IPS अफसर बनाने की ‘फैक्ट्री’ दिल्ली के मुखर्जी नगर और राजेंद्र नगर में हर साल हजारों स्टूडेंट IAS-IPS अफसर बनने की तैयारी करने आते हैं। आते ही शुरू होता है उनका स्ट्रगल। छोटे-छोटे, लेकिन महंगे किराए वाले कमरे, कोचिंग का खर्च और परिवार की उम्मीदों का प्रेशर, इनकी जिंदगी का हिस्सा हो जाता है।
मुखर्जी नगर के वर्धमान मॉल में UPSC की कई कोचिंग चलती हैं। मशहूर दृष्टि कोचिंग क्लासेस भी यहां बेसमेंट में चलती थी। जुलाई, 2024 में राजेंद्र नगर की राउज IAS कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में पानी भरने से 3 स्टूडेंट्स की मौत के बाद यहां से शिफ्ट करनी पड़ी।
इस जगह बेसमेंट में राऊज IAS कोचिंग क्लास चलती थी। 27 जुलाई को हुए हादसे के बाद बेसमेंट को बंद कर दिया गया है।
मॉल के सामने टूटी-फूटी और कीचड़ से भरी गलियों वाली बस्ती है। चार मंजिला घरों में 6 से 8 कमरे हैं। दिल्ली के यही कमरे UPSC की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स का पता हैं। दिल्ली में हर तबके के लिए चुनावी वादों की होड़ लगी है। अब तक किसी ने स्टूडेंट्स की जरूरतों पर बात नहीं की। इनके मुद्दे और मन टटोलने हम पहुंचे मुखर्जी नगर।
पहली कहानी रामस्वरूप तिवारी की ‘अफसर बन गए तो लाखों की सैलरी, उससे पहले रहने लायक जगह भी नहीं’ 4 मंजिला एक मकान में संकरी और खड़ी सीढ़ियां हैं। गली के पानी और कीचड़ से गीली हो चुकी ये सीढ़ियां किसी अंधेरी सुरंग जैसी लगती हैं। हम ऊपर एक कमरे में पहुंचे। कोने में सलीके से रखी मेज-कुर्सी। मेज पर भारत और कुर्सी के बगल में लगा दुनिया का नक्शा। कमरे के एक तरफ 6 बाई 4 का बेड और दूसरी तरफ किताबों से भरी रैक।
ये कमरा रामस्वरूप तिवारी का है। रामस्वरूप 5 साल पहले UP के बहराइच से दिल्ली आए थे। UPSC की तैयारी कर कर रहे हैं। उम्र 30 साल हो गई है। पढ़ाई पर हर महीने 11-12 हजार रुपए खर्च होता है। हमने पूछा- घर से कितना पैसा आता है?
सिर झुकाए रामस्वरूप कहते हैं- ‘सच बोलूं तो अब पैसा नहीं आता। परिवार भी कब तक पैसे भेजेगा। मैं घर में कुछ दे नहीं सकता, तो उनसे कैसे लूं। पापा छोटे किसान हैं। मैं 4 बहनों में अकेला भाई हूं। सबके खर्चे हैं।’
हमने रामस्वरूप से पूछा, इस इलाके में कैसी सुविधाएं हैं? रामस्वरूप हल्का सा मुस्कुराते हैं और कहते हैं,
आप तो देख ही रही हैं, कैसी सुविधाएं हैं। थोड़ी सी बारिश हो जाए तो सड़क नाला बन जाती है। एक बड़ा नाला बगल में है। 5-10 साल रहते-रहते कई स्टूडेंट्स को सांस की बीमारी हो गई।
‘अभी न्यूज देखी कि यहां दूसरे इलाकों के मुकाबले ज्यादा पॉल्यूशन हैं। हिंदी मीडियम वाले स्टूडेंट्स का यही ठिकाना है। ज्यादातर साधारण घरों से होते हैं। कोचिंग वाले दूसरे इलाके तो और महंगे हैं।’
कबसे तैयारी कर रहे हैं? रामस्वरूप जवाब देते हैं, ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन किया था। एक साल वहीं तैयारी की। एग्जाम के पैटर्न में बदलाव हुआ, तो सोचा दिल्ली में पढ़ाई का अच्छा माहौल मिलेगा। इसलिए यहां आ गया।’
‘2019 में आया था, तभी से यहां हूं। तैयारी तो UPSC की करने आया था, लेकिन UP-PCS की तैयारी करता हूं। UP-PCS का प्रीलिम्स और मेंस का एग्जाम निकाल चुका हूं, इंटरव्यू क्रैक नहीं कर पाया।’
‘तैयारी करते-करते 5 साल, 10 साल कब निकल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। आप सोचिए लड़का और करे भी क्या। कोचिंग भी एक तरह का ट्रैप हैं। कोई यहां 1-2 साल रह लेता है, तब उसे पता चलता है कि कोचिंग तैयारी का उतना बड़ा हिस्सा नहीं, जितना बताया जाता है। ये भी है कि हिंदी मीडियम वालों का सिलेक्शन भी ज्यादा नहीं होता।’
रामस्वरूप आगे कहते हैं, ‘एक साल, दो साल, तीन साल पढ़ते-पढ़ते और यहां रहते-रहते पढ़ाई से लगाव हो जाता है। कई लोग मुझसे भी सीनियर हैं, जो तैयारी छोड़ नहीं पाते। ऐसा लगता है कि जब तक एग्जाम नहीं निकालूंगा, तब तक छोड़ूंगा नहीं। ऐसा लगता है कि बस अब हो ही जाएगा। इसी उम्मीद में साल बीतते जाते हैं।’
महीने का खर्च कितना है? जवाब मिला, ’11-12 हजार रुपए। कमरे का किराया 5500 रुपए, मेस का 1100 रुपए, लाइब्रेरी का 1500-2000 रुपए। फिर चाय-पानी, सब्जी, कॉपी किताब और कई तरह के खर्च हैं। महीने के अलावा कोचिंग का खर्च बहुत बड़ा है। पूरे सिलेबस के 2 से 2.5 लाख रुपए लगते हैं।’
‘यहां रहना बहुत खर्चीला है। कमरे के किराए पर लगाम लगे या स्टूडेंट्स के रहने के लिए सरकार पीजी बनवाए। कोचिंग की फीस पर लगाम लगे। इकोनॉमिक वीकर सेक्शन के स्टूडेंट्स के लिए फ्री या कम फीस में कोचिंग की व्यवस्था की जा सकती है।’
‘सरकार नाकाम रहने वाले स्टूडेंट के लिए भी प्लान बनाए’ आपको लगता है कि UPSC एस्पिरेंट्स के लिए सरकार की कुछ जिम्मेदारी है? रामस्वरूप शायद इसी सवाल का इंतजार कर रहे थे। वे कहते हैं, ‘बिल्कुल, अभी मैं एक इंटरव्यू देख रहा था। एक भैया हैं, जिन्होंने IAS का मेंस एग्जाम कई बार निकाला है, लेकिन सिलेक्ट नहीं हो पाए। इतने प्रीलिम्स और मेंस निकालने और इंटरव्यू तक पहुंचने वाले स्टूडेंट्स में कोई तो काबिलियत होगी ही न। भले ही वो अफसर नहीं बन पाया।’
‘सरकार एग्जाम निकालने के करीब तक पहुंचने वाले स्टूडेंट्स के लिए प्लान B तैयार करे। उन्हें हमारे एजुकेशन सिस्टम में लगाए। कोई स्कीम बनानी चाहिए क्योंकि ऐसे एग्जाम का सक्सेस रेट तो 2.5-3% ही है। फिर बाकियों का क्या होगा।’
दूसरी कहानी अंजलि पटेल की लाइब्रेरी में वॉशरूम नहीं, पढ़ाई छोड़कर रूम पर आना पड़ता है अंजलि 3 साल से मुखर्जी नगर में रह रहीं हैं। जौनपुर से आई हैं। कहती हैं, ‘यहां आने वाले ज्यादातर स्टूडेंट लोअर मिडिल क्लास या मिडिल क्लास फैमिली से होते हैं। पापा मुझे 15 हजार रुपए महीना भेजते हैं। मेरी 2 बहनें और एक भाई है। पापा को चारों का खर्च उठाना है। एक आम आदमी कैसे इतने पैसे देगा।’
‘तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स को कुछ तो प्रोवाइड करना चाहिए। मैं जिस कमरे में रहती हूं, उसका किराया 9 हजार रुपए है। सरकार सस्ते पीजी बना सकती है। लाइब्रेरी की व्यवस्था करवा सकती है।’
अंजलि आगे कहती हैं, ‘ये जगह रहने लायक नहीं है। आप खुद देख रही हैं, लेकिन क्या करें, तैयारी करनी है, तो मजबूरी में रहना पड़ता है। लड़कियों के साथ तो और दिक्कत है। लाइब्रेरी जाओ, तो वहां वॉशरूम नहीं हैं। हैं भी तो बहुत गंदे हैं। अगर पढ़ाई के बीच वॉशरूम जाना हो, तो रूम पर आना पड़ता है। रात में आने-जाने में डर लगता है।’
कब तक तैयारी करने का प्लान है? अंजलि कहती हैं, ‘बस इसी साल। कब तक तैयारी करेंगे। लड़कियों के साथ दिक्कत ये भी है कि मां-बाप कहे न कहें, पड़ोसी-रिश्तेदार पूछने लगते हैं कि लड़की दिल्ली में क्या कर रही है।’
तीसरी कहानी वैभव की रूम से सब्जी तक, सब महंगा, किसी को हमारी परेशानी से मतलब नहीं हिंदी मीडियम के स्टू़डेंट्स का ठिकाना जैसे मुखर्जी नगर है, वैसे ही इंग्लिश मीडियम से तैयारी करने वाले राजेंद्र नगर में रहते हैं। यहां के हालात मुखर्जी नगर से बेहतर दिखते हैं, लेकिन परेशानियां एक जैसी हैं। यहां हमें वैभव सिंह मिले। बनारस से आए हैं। तैयारी करते हुए 3 साल हो गए।
वे कहते हैं, ‘यहां सबसे बड़ा स्ट्रगल रहने के लिए जगह खोजना है। ब्रोकर का बड़ा नेटवर्क एक्टिव है। मकान मालिक सीधे बात नहीं करते। ब्रोकर एक महीने के किराए के बराबर कमीशन लेता है। अगर किसी वजह से कमरा आपको ठीक न लगे, तो फिर वही ब्रोकर दोबारा एक महीने का किराया लेगा, तब नया कमरा खोजकर देगा।’
‘फिर मकान मालिक को एक महीने का एडवांस और मौजूदा महीने का किराया देना पड़ता है। यानी रूम के लिए पहले तीन महीने का किराया होना चाहिए। एक रूम का किराया करीब 13-14 हजार है। स्टूडेंट्स को शुरुआत में ही 40-42 हजार रुपए देना पड़ता है। मकान मालिकों का रवैया स्टूडेंट्स के लिए अच्छा नहीं होता। वे स्टूडेंट्स की समस्याओं से कोई मतलब नहीं रखते।’
‘प्रचार ऐसा कि बस पढ़ने आओ और DM बन जाओगे’ वैभव आगे बताते हैं, ‘स्टूडेंट टीचर्स के मोटिवेशनल वीडियो और कोचिंग का प्रचार देखकर चले आते हैं। नामी टीचर्स ऐसे रील्स बनाते हैं कि बस आप यहां आए और बन गए DM। कोई टीचर ये तक नहीं बताता कि IAS, PCS, IPS, IFS के अलावा कितने और पद हैं।’
‘आपको पता है 28 पद हैं ऐसे, पर कोई बताता नहीं है। यहां जितने लड़के हैं, उनके सिलेक्ट होने की प्रोबेबिलिटी एक भी नहीं है। एक लाख मे 1000 स्टूडेंट चुने जाएंगे, ये कोई नहीं बताता। ये सब यहां आने के 1-2 साल बाद पता चलता है।’
एक स्टूडेंट का हर साल का खर्च 6-8 लाख रुपए कोचिंग पर कितना खर्च आता है? वैभव इसका गणित बताते हैं, ‘3 से 3.5 लाख लाख कोचिंग का खर्च। जनरल नॉलेज के पेपर की तैयारी 2 लाख में, ऑप्शनल की तैयारी 50-60 हजार रुपए में। सीसैट की तैयारी 10-12 हजार रुपए, अगर किसी सब्जेक्ट में कमजोर हैं तो उसका अलग से देना होगा। अब आप जोड़ लो, कितना हो गया।’
‘महीने का किराया 14-15 हजार रुपए, मेस और चाय-पानी का 6-7 हजार रुपए, लाइब्रेरी के 3500 रुपए, यानी कम से कम 20-22 हजार रुपए तो हर महीने चाहिए। साल में करीब 2.5 लाख रुपए।’
‘यहां की इकोनॉमी में स्टूडेंट्स की बड़ी हिस्सेदारी, पर योजनाओं में हम कहीं नहीं’ वैभव कहते हैं, ‘यहां की इकोनॉमी में हमारी बड़ी हिस्सेदारी है, भले ही हम वोटर न हों। सरकार सबके लिए कुछ न कुछ ऐलान करती है, पर हमारी तरफ देखती भी नहीं। बेसमेंट में पानी भरने से तीन स्टूडेंट्स की मौत के बाद हमने एक प्लान सरकार के लोगों को सौंपा था। वे हमसे मिलने आए थे। हमने एक सिस्टम बनाने की डिमांड की थी।’
‘हमारे सुझाव थे कि एक रेंट कमिश्नर बनाया जाए। स्टूडेंट उससे किराए से जुड़ी शिकायतें करें। वो रेंट को रेगुलेट करे। कमिश्नर की डायरी में दर्ज शिकायतों का ऑडिट भी होना चाहिए।’
‘कोचिंग पर भी एक रेगुलेटरी बॉडी हो। किसी स्टूडेंट ने सारी फीस जमा कर दी। एक महीने बाद उसे लगा कि वो तैयारी नहीं कर पाएगा, तो उसकी फीस कुछ तो वापस होनी चाहिए। सीवरेज की समस्या बहुत है। सफाई की जिम्मेदारी भी तय हो। लाइब्रेरी के लिए अलग से संस्था बने।’
चौथी कहानी देवव्रत शुक्ला की ‘कोचिंग की धांधली- टॉपर की फोटो हर इंस्टीट्यूट ने लगाई’ देवव्रत दो साल पहले गोरखपुर से दिल्ली आए थे। उनकी परेशानी भी रामस्वरूप और वैभव जैसी ही है। वे कहते हैं, ‘मैं सबके साथ नहीं पढ़ सकता, इसलिए अकेला एक रूम लेकर रहता हूं। रूम का किराया 23 हजार रुपए है। इतना ही पैसा ब्रोकर को दिया। फिर मकान मालिक को दो महीने का किराया दिया। आप रूम देख लो कैसा है।’
‘रेंट के अलावा बिजली बिल देना पड़ता है। मकान मालिक यूनिट के हिसाब से चार्ज करते हैं। कोई 10 रुपए, कोई 12 रुपए यूनिट तक लेता है।’
देवव्रत लाइब्रेरी में मनमानी का किस्सा सुनाते हैं। कहते हैं, ‘मैंने एक लाइब्रेरी जॉइन की थी। फिक्स सीट के लिए 3500 रुपए फीस थी। मैं 10 मिनट बैठा और मुझे घुटन होने लगी। मैंने लाइब्रेरी छोड़ दी। उस 10 मिनट के लिए मुझे 3500 रुपए देना पड़ा। बहुत लड़ाई -झगड़े के बाद 700 वापस मिले।’
‘मुझे लगता है कि सरकारी लाइब्रेरी होनी चाहिए। एक है भी, लेकिन वहां सिर्फ 40 सीट हैं। वो भी अभी खुली है, जब बेसमेंट वाले हादसे के बाद स्टूडेंट ने प्रोटेस्ट किया। बेसमेंट की लाइब्रेरी पर लगाम लगी। इसके बाद लाइब्रेरी ऊपर के फ्लोर पर खुलने लगीं। दिक्कत ये हुई कि उन्होंने अपना चार्ज 2500 की जगह 3500 कर दिया। अब इसे कौन रोकेगा।’
‘कोचिंग की धांधली इस कदर है कि मैं यहां आया तो कन्फ्यूज हो गया। मैं जिस टॉपर का नाम सुनकर आया था, उसकी फोटो हर कोचिंग में लगी थी। समझ ही नहीं आया कि वो कहां-कहां पढ़ा है। कोचिंग किसी का भी ऐडवर्टाइजमेंट कर रही है। इस पर तो सरकार को कुछ करना चाहिए।’
अलग-अलग शहरों से आए रामस्वरूप, अंजलि, वैभव और देवव्रत की तरह हजारों स्टूडेंट की परेशानियां एक जैसी हैं। इन सबका एक ही सवाल है कि सरकार की योजनाओं में हम कहां हैं। यही सवाल हमने पॉलिटिकल पॉर्टियों से पूछा। पढ़िए उनके जवाब…
AAP: कमरों के ज्यादा किराए पर सोचेंगे पार्टी के विधायक कुलदीप कुमार कहते हैं, ‘निश्चित तौर पर अरविंद केजरीवाल ने तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स के लिए बहुत कुछ किया है। सबके लिए सरकारी अस्पतालों में इलाज मुफ्त है, वही इनके लिए भी है। तैयारी करने वाली बच्चियां बस से फ्री आ-जा सकती हैं। बिजली फ्री है।’
हमने उनसे पूछा कि ये सारे स्टूडेंट तो किराएदार हैं, बिजली कैसे फ्री है? कुलदीप जवाब देते हैं, ‘अलग-अलग मीटर लगे होंगे, तो बिजली फ्री मिलेगी। रही बात कमरों के ज्यादा किराए की, तो हम इस मुद्दे पर सोचेंगे।’
BJP: सरकार बनेगी तो कुछ न कुछ जरूर करेंगे UPSC एस्पिरेंट के सवाल पर दिल्ली में BJP के जनरल सेक्रेटरी विष्णु मित्तल कहते हैं, ‘अरविंद केजरीवाल को तो मतलब ही नहीं है इनसे। कहते थे कि MCD में आएंगे, तो दिल्ली को लंदन बना देंगे। सबने देखा कि कैसे बेसमेंट में पानी भरने से बच्चों की जान चली गई। हमारी प्लानिंग में 100% स्टूडेंट हैं। हमारी सरकार बनेगी, तो गरीब तबके के स्टूडेंट्स के लिए हम कुछ न कुछ जरूर करेंगे।’
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