रिपोर्ट/रिशु गुप्ता
रामसनेहीघाट बाराबंकी।बीते शुक्रवार को राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान एवं विकास दृष्टि के संयुक्त तत्वावधान में बुजुर्गों को समर्पित एक हृदयस्पर्शी कवि सम्मेलन का आयोजन मातृ-पितृ सदन वृद्धाश्रम, सफेदाबाद, बाराबंकी में किया गया।कार्यक्रम की परिकल्पना एवं संचालन डॉ. अखिलेश मिश्रा आइएएस द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वृद्धाश्रम के प्रबंधक लक्ष्मी निवास मौर्य ने की। मुख्य अतिथि न्यायाधीश कृष्ण चंद्र सिंह (जिला एवं सत्र न्यायाधीश / सचिव, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, बाराबंकी) उपस्थित रहे।कार्यक्रम का शुभारंभ विकास दृष्टि की सचिव एवं कवयित्री डॉ. सरला शर्मा की मधुर वाणी वंदना से हुआ। इसके पश्चात सभी कवियों ने अपनी भावपूर्ण रचनाओं के माध्यम से वहाँ उपस्थित बुजुर्गों के हृदय को छू लिया।
डॉ. अखिलेश मिश्रा ने अपनी मार्मिक रचना “इतने आँसू कैसे गाऊँ, किस-किस रंग के गीत सजाऊँ” से वातावरण को भावनाओं से भर दिया।डाॅ. हरि प्रकाश हरी ने संवेदनशील पंक्तियों के माध्यम से समाज में बढ़ती दूरी पर प्रश्न उठाया
“कोई हो के भी पराए क्यों लगें अपने से,कोई अपने भी क्यों अपने न लगें सपने से।”डॉ. सरला शर्मा ने अपने काव्य से मातापिता के त्याग और प्रेम को श्रद्धा के साथ नमन किया “ये भी मां-बाप से सीखा है कि बच्चों के लिए,अपनी हर एक ख़्वाहिश से बगावत करना।”
डॉ. ओम शर्मा ‘ओम’ ने सामाजिक कटु सच्चाई को उजागर किया —
“बूढ़े मां-बाप को भगा करके, लोग कुत्तों को पाल लेते हैं।”
संतोष कौशिक ने आज के परिपेक्ष में सुनाया ये माना तुम्हें भी कमाने बहुत हैशहर में तुम्हारे ठिकाने बहुत है मग़र मैं जिऊंगा, बुढ़ापे में कैसे? चले आओ घर, घर में दाने बहुत है,रेनू द्विवेदी ने माता-पिता की माता को समझाते हुए कहा
कर्म, वचन , वाणी से जब मैं,
माँ को सुख पहुँचाती हूँ!
धर्म-कर्म को किये बिना ही ,
सब कुछ मैं पा जाती हूँ!
विशेषकर जब विपुल मिश्रा ने अपनी मां को समर्पित भावनाओं से कहा“मुझको बनाया तुमने है इंसान मेरी मां,तेरे स्वभाव से मेरी पहचान मेरी मां कोई उऋण मां से कभी भी हो नही सकता।मेरे लिए मेरा हो तुम भगवान मेरी माँ।।कार्यक्रम के समापन पर मुख्य अतिथि ने जनाब राहत इंदौरी की प्रसिद्ध ग़ज़ल
“सख़्त राहों में भी आसान सफ़र लगता है,ये मेरी मां की दुआओं का असर लगता है।”तरन्नुम में सुनाकर वातावरण को भावविभोर कर दिया। वृद्धाश्रम के प्रबंधक लक्ष्मी निवास मौर्य द्वारा अभी अतिथियों को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह कवि सम्मेलन केवल एक साहित्यिक आयोजन नहीं, बल्कि मानवता की पुकार थी। उन सभी बच्चों के लिए यह एक सशक्त संदेश है जो अपने माता-पिता को उम्र के इस अंतिम पड़ाव पर अकेला छोड़ देते हैं।वृद्धाश्रम के ये चेहरे हमें याद दिलाते हैं कि समय के साथ तन बूढ़ा हो सकता है, पर मां-बाप का प्यार कभी बूढ़ा नहीं होता।































