Naradsamvad

[post-views]

Kashmir Hindu Teacher Murder; Rajni Bala Husband | Muslim Student | संडे जज्बात- स्कूल में मेरी बीवी को गोली मारी: कश्मीरी बच्चों की फेवरेट टीचर थी, खौफ से अंतिम संस्कार में एक भी मुस्लिम नहीं आया


मैं राजकुमार, कश्मीर में तीन साल पहले स्कूल में रजनी नाम की जिस सरकारी टीचर को आतंकियों ने गोली मारी थी, उसका पति हूं। मैं भी सरकारी टीचर हूं। 15 साल की बेटी भी है, जिसका नाम रजनी ने गुड़िया रखा था। जम्मू के नानके चक गांव का रहने वाला हूं। बीवी के मर

.

मेरी बीवी की पोस्टिंग कुलगांव में थी, जो सबसे ज्यादा मिलिटेंसी वाला जिला था। रजनी का स्कूल इंटीरियर इलाके में जंगल की तरफ था। सेब के बगीचे से होकर जाना पड़ता था। साल 2022 के शुरुआती दिनों में कश्मीर में टारगेट किलिंग शुरू हुई। आसपास के जिलों में लोग मारे जा रहे थे।

रजनी कहने लगी कि मुझे स्कूल जाने में डर लगता है। मैंने दिलासा देते हुए कहा कि हम लोग ट्रांसफर के लिए अप्लाई करेंगे।

राजकुमार के घर पर लगी उनकी बीवी रजनी की तस्वीर।

राजकुमार के घर पर लगी उनकी बीवी रजनी की तस्वीर।

सरकारी दफ्तरों के खूब चक्कर काटे, लेकिन ट्रांसफर नहीं हुआ। आखिरकार हम दोनों श्रीनगर के डायरेक्टोरेट ऑफिस गए। वहां हमने कहा कि ट्रांसफर नहीं हो रहा तो कम से कम हम दोनों की ड्यूटी एक ही स्कूल में लगा दो। उसी दिन शाम को लिस्ट आ गई, जिसमें मेरी और रजनी की पोस्टिंग कुलगाम के एक ही स्कूल में हो गई। वह स्कूल शहर में था और हमारे घर के पास भी था।

हम दोनों बहुत खुश थे। श्रीनगर गए, वहां रजनी ने खूब सारी शॉपिंग की थी। हमें क्या पता था कि एक झटके में सबकुछ खत्म हो जाएगा।

31 मई 2022 का वो दिन मुझे कभी नहीं भूलता। सबकुछ आंखों के सामने तैरने लगता है। सुबह सोकर उठा तो रजनी ने चाय बनाकर दी। हम दोनों ने साथ में चाय पी, फिर वो गुड़िया को स्कूल के लिए तैयार करने लगी। मैंने कहा- जल्दी चलो आज तो इस स्कूल में हमारा आखिरी दिन है, फिर साथ ही स्कूल जाया करेंगे।

सुबह 9.40 पर हम घर से स्कूल के लिए निकले। रास्ते में पहले रजनी का स्कूल पड़ता था। कार से उतरकर उसे जंगल की तरफ कुछ दूर पैदल जाना पड़ता था। जैसे ही वो कार से उतरकर जाने लगी, मैंने कहा गाड़ी बैक करवा दो। उसने गाड़ी बैक करवाई और मैं अपने स्कूल के लिए निकल गया।

रजनी स्कूल से 10-15 मीटर की दूरी पर थी। आतंकी वहां छिपकर बैठे थे। उन लोगों ने अचानक गोलियां चलानी शुरू कर दीं। पीछे से उसके सिर पर गोली मारी। गोलियों की आवाज सुनकर बच्चे स्कूल से बाहर आ गए। देखा तो मेरी बीवी का लाल पर्स और जूतियां एक तरफ पड़ी हुई थीं। उसका खून बहकर उन जूतियों तक पहुंच रहा था। उस स्कूल में मुस्लिम टीचर भी थे, लेकिन आतंकियों के निशाने पर मेरी बीवी ही थी।

स्कूल से 10-15 मीटर की दूरी पर ही टीचर रजनी को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया।

स्कूल से 10-15 मीटर की दूरी पर ही टीचर रजनी को आतंकियों ने अपना निशाना बनाया।

उधर, मैं अपने स्कूल पहुंचा ही था, तभी हेडमिस्ट्रेस को एक फोन आया। उन्होंने मुझे बुलाकर कहा कि राजकुमार गाड़ी निकालो, मेरी बेटी बहुत बीमार है, हमें अस्पताल जाना है। मैंने आनन-फानन में गाड़ी निकाली और उन्हें साथ लेकर चल पड़ा। वो लगातार कह रही थी कि गाड़ी तेज चलाओ, तेज चलाओ। मैंने कहा कि मैडम घबराएं नहीं सब ठीक हो जाएगा।

जैसे ही कुलगाम के सरकारी अस्पताल पहुंचे तो हेडमिस्ट्रेस ने कहा- राजकुमार अंदर जाओ, तुम्हारी बीवी को किसी ने गोली मार दी है। सुनते ही मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। मन में आया चीखें मारकर रोने लगूं, लेकिन तब किसी भी तरह मुझे अपनी बीवी के पास पहुंचना था। अस्पताल में भीड़ लगी थी।

लोग मुझे रजनी के पास जाने नहीं दे रहे थे। मुझे यकीन था कि वह जिंदा होगी, लेकिन जब उन्होंने रजनी को सफेद चादर में लपेट कर दिया, तो सब खत्म हो गया। रजनी को इस तरह देखते ही पहला ख्याल हमारी बेटी का आया और मैं वहीं फूट-फूटकर रोने लगा।

ऐसा लगा कि एक सेकेंड में जिंदगी खत्म हो गई। लग रहा था कि कोई मुझे और मेरी बेटी को भी गोली मार दे। हमें भी खत्म कर दे। रजनी के बिना कैसे जिंदा रहेंगे। तभी मेरी बेटी भी अपनी प्रिंसिपल के साथ हॉस्पिटल पहुंच गई। मेरे गले लगकर रोने लगी।

हम अस्पताल से रजनी की डेड बॉडी लेकर जम्मू के लिए निकल गए। रजनी एम्बुलेंस में थी, मैं और मेरी बेटी कार में। इससे पहले हम लोग जाने कितने दफा श्रीनगर होते हुए जम्मू तक लॉन्ग ड्राइव पर गए थे, लेकिन इस बार सफर खत्म ही नहीं हो रहा था।

आतंकियों ने जब गोली मारी, रजनी के हाथ में लाल रंग का पर्स था और यही जूतियां पहनी हुई थीं।

आतंकियों ने जब गोली मारी, रजनी के हाथ में लाल रंग का पर्स था और यही जूतियां पहनी हुई थीं।

हमेशा रजनी कार में बगल वाली सीट पर होती थी। हम गाने सुनते थे, कुछ खाते-पीते जाते थे। आज वो एम्बुलेंस में पड़ी थी। उस सफर को याद करता हूं तो आज भी फूट-फूटकर रोने लगता हूं।

हमारे स्कूल में मुस्लिम बच्चे ही पढ़ते थे। हम उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार करते थे। वो बच्चे और उनके पेरेंट्स भी हमसे बहुत प्यार करते थे। हमारा सम्मान करते थे। मुझे याद है कि एक दफा एक बच्चे ने मुझसे कहा कि आपको जन्नत मिलेगी। मैंने कहा कि क्यों, तो कहने लगा कि आप मारते नहीं हैं, प्यार करते हैं। मेरी आंखों में आंसू आ गए थे। रजनी स्कूल के बच्चों को गोद में बिठाकर पढ़ाती थी, सिखाती थीं।

रजनी स्कूल के मुस्लिम बच्चों और उनके पेरेंट्स की फेवरेट टीचर थीं, लेकिन उनके अंतिम संस्कार में एक भी मुस्लिम नहीं आया। स्कूल के कुछ साथियों का फोन जरूर आया था, लेकिन वो आए नहीं। शायद डर गए होंगे।

रजनी के जाने के बाद जिंदगी में कुछ बचा ही नहीं है। मेरे माता-पिता यहीं पास में रहते हैं। वो लोग कहते हैं हमारे साथ ही रहो, लेकिन मैं मना कर देता हूं। रजनी का बनाया ये घर छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहता। इस घर की हर ईंट में रजनी की मौजूदगी महसूस होती है। मुझे लगता है कि वो यहीं है। हर कोने में, हर कमरे में उसकी खुशबू है।

जम्मू में बना राजकुमार और रजनी का घर।

जम्मू में बना राजकुमार और रजनी का घर।

आज तक इस गिल्ट से उबर नहीं पाया कि रजनी की जान मेरी वजह से चली गई। अगर उसे नौकरी न करने देता, घर बिठा लेता या हम लोग जम्मू से कश्मीर नहीं जाते तो वो जिंदा होती। वो हमारे घर की रौनक थी।

उसके जाने के बाद मेरे लिए सबसे ज्यादा मुश्किल होता है अकेले चाय पीना। चाहे कुछ हो जाए हम दोनों चाय एक साथ पिया करते थे। चाय पर हम इतनी बातें करते थे, गप्पे मारते थे। वो सुकून वाली चाय जिंदगी में फिर कभी नसीब ही नही हुई।

फरवरी साल 2008 की बात है। हम दोनों की अरेंज मैरिज हुई थी। पहली बार में ही दोनों ने एक दूसरे को पसंद कर लिया था। रजनी खास थी। सुंदर, पढ़ी-लिखी और व्यवहार एकदम सादा। तब वह जम्मू यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस में एमफिल कर रही थी।

मैं उससे मिलने यूनिवर्सिटी जाता था। दिन कब बीत जाता था पता ही नहीं चलता था। घर जाते वक्त बहुत उदासी होती थी, लगता था शादी कब होगी। आज भी वो दिन भूल नहीं पाता हूं। जब वो मेरे साथ होती थी तो लगता था कोई भरोसेमंद और प्यार करने वाला साथी है।

हम दोनों एक साथ स्कूल के लिए निकलते थे। वो हमेशा जल्दी घर आने के लिए कहती थी। मैं शाम को दोस्तों के पास बैठ जाता था। इसलिए वह फिक्रमंद रहती थी और कहती थी कि घर जल्दी आया करो। बाहर बहुत खतरा है। इतना बाहर मत घूमा करो। इस बात पर हमारी लड़ाई भी हो जाती थी।

राजकुमार कहते हैं कि रजनी के जाने के बाद ज्यादातर समय घर की देखभाल में ही बिता देता हूं।

राजकुमार कहते हैं कि रजनी के जाने के बाद ज्यादातर समय घर की देखभाल में ही बिता देता हूं।

रजनी को पहलगाम घूमना सबसे ज्यादा पसंद था। आज अगर जिंदा होती तो पहलगाम हादसे से वो बिखर जाती, डर जाती। कश्मीर में नौकरी करते हुए मुझे रजनी की चिंता कभी नहीं हुई। हमेशा यही लगता था कि अगर किसी आतंकी ने कुछ किया भी तो मुझे करेगा। किसी महिला और बच्चों के साथ कोई कुछ नहीं कर सकता।

कश्मीर के लोगों ने हमें इस बात का एहसास ही नहीं होने दिया कि हम जम्मू से आए हिंदू हैं। ईद पर सभी हमें घर बुलाते थे। कहते थे कि आपके लिए वेज खाना बनेगा। ये सब सुनकर हमें खुशी होती थी, हालांकि हम जाते नहीं थे। अच्छा नहीं लगता था कि कोई हमारी वजह से परेशान हो।

अपनी बेटी गुड़िया को पढ़ाना था इसलिए हम दोनों जम्मू आना चाहते थे। कश्मीर में आए दिन स्कूल बंद हो जाते थे। बच्चों की पढ़ाई पर असर पड़ता था। हमने कोशिश भी की जम्मू ट्रांसफर लेने की, लेकिन हुआ नहीं।

राजकुमार ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं…

———————————–

संडे जज्बात सीरीज की ये स्टोरीज भी पढ़िए…

1. मुगलों की बहू हूं, रहने को छत नहीं:पानी में ब्रेड डुबोकर बच्चे पाले; लालकिला भी टिकट लेकर जाती हूं

मेरा नाम रजिया सुल्ताना बेगम है। मैं मुगल सल्तनत के आखिरी बादशाह बहादुर शाह जफर के पड़पोते मिर्जा बेदार बख्त की बीवी हूं। इन दिनों मैं हावड़ा के शिवपुरी इलाके की एक गरीब बस्ती में जिंदगी काट रही हूं। पढ़िए पूरी खबर…

2. संडे जज्बात- भाई की इच्छा थी बेटी का ख्याल रखना:मुस्कान मेरे भाई को खा गई, अब सभी घरवाले नींद की गोली खाकर सोते हैं

मैं उसी सौरभ का भाई हूं, जिसकी लाश एक नीले ड्रम के अंदर 4 टुकड़ों में मिली थी। उसकी बीवी मुस्कान ने उसे मार दिया। सौरभ जब आखिरी बार लंदन जा रहा था, शायद तभी उसे अंदाजा हो गया था। पूरी खबर पढ़ें…



Source link

Loading

अन्य खबरे

गोल्ड एंड सिल्वर

Our Visitors

1725904
Total Visitors
error: Content is protected !!