22 अप्रैल को 4 आतंकवादी पहलगाम के बायसरन घाटी में आए, सैलानियों के धर्म पूछे, ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं और गायब हो गए। पिछले 13 दिनों से भारतीय सुरक्षा बलों ने उन्हें खोजने में एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, कुछ सुराग हाथ जरूर लगे, लेकिन आतंकी अभी तक पकड़
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आखिर कहां भाग गए आतंकी और उन्हें पकड़ना इतनी बड़ी चुनौती क्यों है; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…
सवाल-1: पहलगाम में 26 लोगों का कत्ल करने के बाद कहां भागे चारो आतंकी?
जवाब: आतंकियों ने पहलगाम की बायसरन घाटी में बेहद प्लानिंग से हमला किया था। उन्हें पता था कि सुरक्षा बलों को यहां तक पहुंचने में कम से कम आधे घंटे लग ही जाएंगे। इतनी देर में वो आसानी से जंगलों में भाग जाएंगे।
हुआ भी यही। बायसरन घाटी टाउन से 6-7 किमी दूर चढ़ाई पर है। ये पूरा रास्ता कच्चा है। यहां पैदल या फिर घोड़े से ही जाया जा सकता है। जब तक सुरक्षा बलों को सूचना मिली और वो हमले वाली जगह पहुंचे, आतंकियों को काफी बफर टाइम मिल गया।

जम्मू-कश्मीर के जर्नलिस्ट्स और डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि जिन रास्तों में इन आतंकवादियों को ट्रैक किया गया है, वो लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मोहम्मद जैसी आतंकी संगठनों का एक एस्केप रूट है, जिसका वे लंबे समय से इस्तेमाल करते आ रहे हैं।
कोकेरनाग के जंगलों से आगे बढ़ने के बाद वो किश्तवाड़ के जंगलों में घुसते हैं और जम्मू डिवीजन में आते हैं। यहां के जंगल और भी घने हैं। साथ ही किश्तवाड़ में एंटी-टेररिस्ट ग्रिड थोड़ी कम है, जिसका फायदा आतंकी उठाते हैं, लेकिन जम्मू में भी सिक्योरिटी फोर्सेस की तैनाती बढ़ा दी गई है।
रिटायर्ड ब्रिगेडियर विजय सागर बताते हैं,

त्राल का जंगल पाकिस्तानी और लोकल सपोर्ट वाले आतंकियों का गढ़ है। यहीं से उन्हें सपोर्ट मिलता है। ये बायसरन घाटी से सटा हुआ है। आतंकियों के लिए छिपने की सबसे सेफ जगह त्राल का जंगल ही है।
इंटेलिजेंस सूत्रों ने बताया कि पहलगाम हमला करने वाले आतंकी साउथ कश्मीर के जंगलों में छिपे हैं। उनके पास राशन-पानी है, ऐसे में ये इन पहाड़ी इलाकों में लंबे समय तक रह सकते हैं।
सवाल-2: भारतीय सेना कितनी तैयारी से आतंकियों को खोज रही है?
जवाब: आतंकवादियों की खोज में आर्मी, राष्ट्रीय रायफल्स, पैरा कमांडो यूनिट, CRPF, जम्मू-कश्मीर पुलिस और अन्य अर्धसैनिक बलों के हजारों जवान लगे हुए हैं। शुरुआत में पहलगाम से 10 किमी. के एरिया में खोजबीन की जा रही थी, लेकिन अब ये दायरा बढ़ा दिया गया है।

सर्च ऑपरेशन चलाते भारतीय जवान।
जंगलों और पहाड़ों के साथ-साथ रिहायशी इलाकों में भी तलाश की जा रही है। सिक्योरिटी फोर्सेस की टीमें अनंतनाग के ऊपरी और दक्षिणी कश्मीर के जंगली और पहाड़ी इलाकों में छानबीन कर रही हैं। दिन-रात सर्च ऑपरेशन चलाया जा रहा है। 100 से ज्यादा जगहों पर छापेमारी की गई है। करीब 10 आतंकियों के घरों को नेस्तनाबूद किया गया है।
आतंकियों की मदद करने वाले ओवर ग्राउंड वर्कर्स यानी OGW के जरिए भी आतंकियों के तार खोजे जा रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 100 से ज्यादा OGW से पूछताछ की है। करीब 1000 OGW को हिरासत में लिया है। वहीं हमले की जांच कर रही नेशनल इन्वेस्टिगेशन एजेंसी यानी NIA की टीम ने 3000 से ज्यादा पूछताछ की हैं। सुरक्षा एजेंसियों ने बायसरन में हुए हमले में 20 से ज्यादा OGW को संदिग्ध माना है, जिन्होंने आतंकियों की मदद की है।
रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल संजय कुलकर्णी बताते हैं,

घाटी में अब आतंकियों को लोकल का सपोर्ट नहीं मिलता, लेकिन ओवर ग्राउंड वर्कर्स अभी भी सपोर्ट करते हैं। वे जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की आंख और कान हैं।
सवाल-3: क्या अभी तक आतंकियों का कोई सुराग हाथ नहीं लगा है?
जवाब: इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आतंकवादियों को पहले पहलगाम तहसील के हापतनार गांव के जंगलों में देखा गया, लेकिन जब तक घेराबंदी की जाती, वे घने इलाके का फायदा उठाकर भाग निकले। इसके बाद उन्हें कुलगाम के जंगलों में देखा गया, जहां मुठभेड़ तो हुई, लेकिन यहां से भी भाग गए। फिर त्राल की पहाड़ियों और कोकेरनाग के जंगलों में उन्हें लोकेट किया गया।

पहलगाम हमले में आतंकियों को लीड कर रहा आतंकी हाशिम मूसा पाकिस्तानी सेना में कमांडो रह चुका है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, 28 अप्रैल तक सिक्योरिटी एजेंसियों ने आतंकियों को कम से कम 2 बार लोकेट किया और उन्हें साउथ कश्मीर के जंगलों में घेरने के बेहद करीब पहुंचे। लोकल लोगों, इंटेलिजेंस इनपुट्स और सर्च ऑपरेशंस के जरिए आतंकवादियों को लोकेट किया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पहलगाम हमले में शामिल 3 आतंकियों पर 20 लाख का इनाम रखा है और इनके स्केच जारी किए हैं। इसमें आदिल हुसैन ठोकेर, हाशिम मूसा और अली भाई शामिल है। तीनों ही लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े हैं।
सूत्रों के मुताबिक जांच एजेंसियों को जिस वक्त घटना हुई, उस वक्त के दो बार अल्ट्रा स्टेट के सिग्नल मिले हैं, जिसके द्वारा मोबाइल को कनेक्ट करके ऑडियो, वीडियो कॉल या मैसेज किया जाता है। इसमें किसी सिम कार्ड की जरूरत नहीं पड़ती। NIA को चीनी सैटेलाइट फोन की मौजूदगी डिटेक्ट हुई। यह फोन भारत में बैन है। इसे पाकिस्तान या किसी और देश से भारत में स्मगल करके लाया गया होगा।
सवाल-4: आतंकियों को खोजने में इतनी देर क्यों लग रही है?
जवाब: रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जरनल सतीश दुआ के मुताबिक,

सर्च ऑपरेशन में सबसे बड़ी चुनौती इंटेलिजेंस होती है। किसी भी खबर का पुख्ता होना और उसका समय से मिलना बेहद जरूरी है। वहां की भौगोलिक स्थिति भी एक चुनौती है।
एक्सपर्ट्स के मुताबिक आतंकियों को खोजने में इतनी देरी के पीछे 3 बड़ी वजहे हैं…
1. इलाके के घने जंगल और दुर्गम रास्तों का फायदा उठा रहे आतंकी
पहलगाम और उससे जुड़ने वाले कश्मीर के और इलाकों में कई घने जंगल है। बायसरन घाटी में हमले के बाद आतंकी जंगल के रास्ते ही भागे थे। यहां के जंगलों में 100 से 328 फीट ऊंचे पेड़ हैं। इन इलाकों में कई जगहों पर 10 मीटर से आगे भी देख पाना मुश्किल हो जाता है। कई इलाकों में ड्रोन्स भी सर्विलांस नहीं कर पाते।

बायसरन वैली चारों ओर से घने जंगल से घिरी हुई है।
इसके अलावा आस-पास के इलाकों में 15,000 फीट तक की ऊंची पहाड़ियां हैं। टूटे और उबड़-खाबड़ रास्ते हैं जहां गाड़ियां भी नहीं जा सकतीं। वहीं पहलगाम के ऊपरी हिस्से में किश्तवाड़ा रेंज के पहाड़ हैं।
इस मौसम में इन पहाड़ों पर ज्यादा बर्फबारी नहीं होती। ऐसे में आतंकी इन पहाड़ियों में भी कहीं छिपे हो सकते हैं, जिससे सुरक्षाबलों के लिए आतंकियों की खोज करने का एरिया बहुत ज्यादा बढ़ गया है।

बायसरन वैली से कुछ ही दूरी पर बर्फीली पहाड़ियां मौजूद हैं।
2. लोकल सपोर्ट से आतंकियों को खबर मिल जाती है
आतंकी हमले के बाद सुरक्षाबलों ने 100 से भी ज्यादा लोकल लोगों से पूछताछ की। इसमें से ज्यादातर लोगों पर आतंकवादियों के समर्थक होने या उनके लिए काम करने का शक है। ऐसे और भी लोग घाटी में हो सकते हैं जो अभी भी आतंकियों की मदद कर रहे हों। हो सकता है कि ये लोग अभी भी छिपे आतंकवादियों को सेना की मूवमेंट की जानकारी दे रहे हों या उन्हें कहीं छिपाकर रखा हो। NIA भी पहलगाम हमले में लोकल सपोर्ट होने की जांच कर रही है।
3. आतंकी इस तरह के ऑपरेशन के लिए ट्रेंड हैं
आतंकियों को जंगल में कई दिन बिताने और छिपकर रहने के लिए ट्रेन किया गया है। उनके पास खाने-पीने और सैटेलाइट के जरिए अपने साथियों से संबंध साधने की भी सुविधाएं होने की संभावना है। ऐसे में आतंकी घने जंगलों में बिना गलती करे लंबे समय तक रह सकते है, जिससे सेना का उन्हें ढूंढना और मुश्किल बन जाता है।
इंडिया टुडे ने एक रिपोर्ट में सैन्य अधिकारी के हवाले से लिखा, ‘अमूमन आतंकी खाने के लिए या तो गांव जाते हैं या फिर किसी के जरिए जंगलों में खाना मंगवाते हैं। इससे हमें इनपुट जुटाने में मदद मिलती है, लेकिन अभी ये काफी सावधान हैं।’
एक सैन्य अधिकारी ने कहा, ‘यह एक चूहे-बिल्ली का खेल है। कई बार ऐसा हुआ है कि आतंकियों को साफ-साफ देखा गया है, लेकिन जब तक उनकी घेराबंदी होती, तब तक वो भाग चुके थे, लेकिन हमें यकीन है कि हम आतंकियों को पकड़ लेंगे, यह सिर्फ कुछ दिनों की बात है।’
सवाल-5: क्या आतंकी देश छोड़कर भाग चुके हैं?
जवाब: 3 मई को चेन्नई से कोलंबो पहुंची फ्लाइट UL122 में भारत के एक मोस्ट वॉन्टेड अपराधी के होने की आशंका जताई गई। इसके बाद कोलंबो एयरपोर्ट पर सुरक्षाबलों ने पूरी फ्लाइट की जांच की। हालांकि कुछ संदिग्ध नहीं निकला। श्रीलंकन एयरलाइंस ने इस घटना के संबंध में प्रेस रिलीज भी जारी की है।
इसके बाद कुछ रिपोर्ट्स में अंदेशा जताया गया कि इसमें पहलगाम आतंकवादी हमले में वॉन्टेड आतंकी हो सकते हैं। डिफेंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि आतंकी अभी भी दक्षिणी कश्मीर में ही मौजूद हैं। उन्होंने जंगलों में ही अपने खाने-पीने का पर्याप्त बंदोबस्त कर रखा है। हालांकि जल्द ही उन्हें उनके अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है।
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रिसर्च सहयोग- श्रेया नाकाड़े
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