‘14 अप्रैल को मैं पाकिस्तान के सिंध से भारत आया था। बच्चे 8-9 महीने पहले ही आ गए थे। तब मेरा वीजा नहीं लगा था। अब जाकर वीजा लगा। पहलगाम हमले के बाद मोदी सरकार ने कह दिया कि पाकिस्तान से आए लोग वापस चले जाएं। हम डरे हुए हैं। दो दिन से खाना अच्छा नहीं
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49 साल के सीताराम (बदला हुआ नाम) दिल्ली के सिग्नेचर ब्रिज के नीचे अस्थायी तौर पर बनी शरणार्थी बस्ती में रह रहे हैं। उनके पास 45 दिन का वीजा था, जो रद्द कर दिया गया है। हालांकि सीताराम ने लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई किया है।
इसके बाद भी वे पाकिस्तान वापस भेजे जाने की आशंका से डरे हुए हैं। सीताराम अकेले नहीं हैं। दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज, यमुना खादर और मजनू का टीला में दो शरणार्थी कैंप हैं। यहां पाकिस्तान से आए करीब 1500 शरणार्थी रह रहे हैं।

इंटेलिजेंस ब्यूरो ने दिल्ली पुलिस को एक रिपोर्ट सौंपी है। इसमें दिल्ली में करीब 5 हजार पाकिस्तानी होने की बात कही गई है। इसके बाद से इन शरणार्थी कैंपों में दिल्ली पुलिस सभी के डॉक्युमेंट चेक कर रही है। हाल में आए शरणार्थी इस कार्रवाई से डरे हुए हैं। वे पाकिस्तान वापस जाने की बात सोचकर ही परेशान हो जाते हैं।
इन लोगों के कागजों की जांच कहां तक पहुंची, पाकिस्तान से आए शरणार्थी किस हाल में हैं, दोबारा कागजों की जांच से लोगों को क्या समस्याएं आ रही हैं? ये जानने दैनिक भास्कर इन शरणार्थी कैंप में पहुंचा।
‘पाकिस्तान वापस गए तो मार दिए जाएंगे’ सिग्नेचर ब्रिज के नीचे करीब 932 पाकिस्तानी हिंदू परिवार रह रहे हैं। इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जो हाल में भारत आए हैं। कई लोगों की नागरिकता मिलने की प्रोसेस चल रही है। कुछ तो पिछले एक महीने के अंदर ही भारत आए हैं।
सिग्नेचर ब्रिज खत्म होते ही हाईवे पर एक किनारे लोग रेहड़ी-पटरियां लगाए दिखते हैं। उनसे बात की तो पता चला कि सभी पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी हैं। ब्रिज के नीचे उनका कैंप है। काम न मिलने की वजह से ज्यादातर शरणार्थी हाईवे पर रेहड़ी-पटरी लगाते हैं। इसी से उनका घर चलता है।
कैंप में ज्यादातर बांस के घर बने हैं। बांस का ही एक छोटा सा मंदिर है। हर 4 से 5 घरों के लिए एक पक्का टॉयलेट है। नए आने वाले शरणार्थी ज्यादातर पहले से रह रहे लोगों के परिवार के ही सदस्य होते हैं।

शरणार्थी कैंपों में आम तौर पर एक घर में 5 से 6 परिवार और करीब 20 से 25 मेंबर रहते हैं। ये सभी तिरपाल और लकड़ी से बनी झुग्गियों में रह रहे हैं।
सिग्नेचर ब्रिज के कैंप में हाल में काफी पाकिस्तानी शरणार्थी आए हैं। सीताराम भी इन्हीं में से एक है।
सीताराम पहले तो कैमरे पर बात करने के लिए तैयार नहीं थे। वे बताते हैं कि उनके परिवार के करीब 40 सदस्य पहले ही भारत आ गए। मैं 14 अप्रैल को आया हूं। अब भी पाकिस्तान में परिवार के कुछ लोग बचे हैं। सीताराम को डर है कि उनका वीडियो पाकिस्तान में देखा गया, तो वहां रहे रहे परिवार को परेशान किया जाएगा। उन्हें जान का खतरा भी हो सकता है।
पहचान उजागर न करने की शर्त पर वे बात करने के लिए तैयार हो गए। वे बताते हैं, ‘मेरा वीजा रद्द हो गया है। जांच अधिकारी ने लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई करने को कहा है। इसके बाद भी डर है कि मुझे पाकिस्तान भेज दिया जाएगा।’
पाकिस्तान में गुजारे दिनों को याद करते हुए वे बताते हैं, ‘हम वहां सिंध प्रांत के सांग्ली जिले में रहते थे। किसानी और मजदूरी करते थे। पाकिस्तान में हिंदू धर्म की पहचान से काफी दूर हो गए थे। वहां की पुलिस को देखकर शरीर कांप जाता था। बच्चों को छिप-छिपकर पढ़ाते थे।’
‘मैं चाहता हूं कि बच्चे भारत में ही रहें और यहां के नागरिक बनें। हमें यहां से निकालें नहीं बस। मेरी बेटी अब भी पाकिस्तान में है। उसकी सलामती के लिए काफी डर लगता है। हम भारत आए तो लगा अब सब बदल जाएगा, लेकिन 7-8 दिन बाद यहां भी हालात खराब हो गए।’
पहलगाम हमले के खिलाफ सीताराम के अंदर भी गुस्सा है। वे कहते हैं कि भारत सरकार को दहशतगर्दों को बख्शना नहीं चाहिए। फिर थोड़ा ठहरकर बोलते हैं, ‘लेकिन वहां से आए हिंदुओं का ध्यान रखा जाना चाहिए। अगर वे पाकिस्तान वापस गए तो उन्हें मार देंगे।’

शरणार्थी कैंपों में लोग अभी सिर्फ पुलिस की कार्रवाई के बारे में बात कर रहे हैं। उन्हें डर है कि पहलगाम हमले से बिगड़े माहौल का असर उन पर न पड़े।
‘पुलिसवाले रोज आकर हमसे डॉक्यूमेंट्स मांगे रहे’ शांतिलाल (बदला हुआ नाम) भी सिग्नेचर ब्रिज के नीचे ही रहते हैं। वे कैमरे पर चेहरा दिखाने और नाम जाहिर होने से डरते हैं। शांतिलाल परिवार के साथ करीब 8-9 महीने पहले पाकिस्तान के सिंध से आए थे। उनके साथ पाकिस्तान से 28-29 लोग आए थे। परिवार से कुल 16 लोग हैं।
वे बताते हैं, ‘थोड़ी बहुत दिक्कत है, लेकिन धीरे-धीरे सही हो जाएगा। वहां के मुकाबले यहां अच्छा लग रहा है। वहां पढ़ाई-लिखाई की दिक्कत थी। बच्चे सही से पढ़ नहीं सकते थे, क्योंकि वहां इस्लामिक पढ़ाई थी।’
हालांकि यहां भी उनके बच्चे पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं। शांतिलाल कहते हैं, ‘यहां आकर भी जंगल में बैठ गए हैं। बच्चों को पढ़ाने का कोई इंतजाम नहीं है। एडमिशन नहीं मिल रहा है। 9 महीने हो गए, लेकिन अब तक आधार कार्ड नहीं बना। वहां से पढ़ाने के लिए आए थे, वही नहीं हो रहा है।’
पुलिस की हालिया कार्रवाई पर शांति लाल बताते हैं, ‘रोज आकर हमसे डॉक्यूमेंट मांगे रहे हैं। हमने वीजा बढ़वाने की बात कही है। हम यहां रहना चाहते हैं। हमारा वीजा 45 दिन का था, वो खत्म हो गया था। आगे बढ़ाने के लिए हमने डॉक्यूमेंट्स दिए हुए हैं। यहां हमें कोई डर नहीं है। हम चाहते हैं कि यहां कोई अच्छा घर मिल जाए, कमाने का सिस्टम बन जाए और बच्चे पढ़-लिख लें।’
मजनू का टीला कैंप में करीब 800 लोग हम दूसरे कैंप मजनू का टीला में भी पहुंचे। यहां सड़क किनारे कैंप बने हुए हैं। सिग्नेचर ब्रिज से अलग यहां पक्के घर भी काफी बने हैं। इस कैंप में करीब 700 से 800 लोग रहते हैं। इनमें से 181 लोग ऐसे हैं, जिन्हें नागरिकता मिल चुकी है। 81 लोगों को नागरिकता मिलने की प्रोसेस चल रही है।
आपसी सहमति से लोगों ने अपने मुद्दों को प्रशासन तक पहुंचाने के लिए तीन प्रमुख चुने हैं। इनमें सोनादास भी हैं। वे 2011 में भारत आए थे। उनके बाद 8 भाई भी परिवार के साथ 2013 तक भारत आ गए।
हम सोनादास के पास पहुंचे, तब वे लोगों के साथ मिलकर कैंप में रहने वालों के कागजों की लिस्ट बना रहे थे। 25 अप्रैल को पुलिस कैंप में आई थी। इसके बाद से ही सोनादास ने सबसे कागज जुटाने शुरू किए। वे कहते हैं कि कैंप में सभी के पास वैध सबूत हैं, इसलिए कोई डरा हुआ नहीं है। कुछ परिवारों के लोग अभी पाकिस्तान में रह गए हैं। वे जरूर डरे हुए हैं।

वे बताते हैं, ‘हमारे यहां प्रक्रिया चल रही है। जांच की जा रही है कि कोई अवैध रूप से तो नहीं रह रहा है। यहां ऐसा कोई नहीं है, जो बॉर्डर से घुसकर आया हो। सभी वैध तरीके से आए हैं। जिन्हें नागरिकता नहीं मिली है, उनके पास लॉन्ग टर्म वीजा है।’
‘कुछ परिवार हाल में ही आए हैं। उन्होंने भी लॉन्ग टर्म वीजा के लिए अप्लाई किया हुआ है। हालांकि सबके पास वैध कागज हैं। यहां कोई घुसपैठिए नहीं हैं, सब हिंदू परिवार हैं। घुसपैठियों को निकालने का सरकार का फैसला सही है।’
वे अपनी नागरिकता के कागज दिखाकर कहते हैं कि ये कागज हैं, फिर भी हमें दस्तावेज दिखाने पड़ रहे हैं। फिर भी हम सरकार की जांच में हर संभव मदद कर रहे हैं।
‘पाकिस्तान में हिंदू, कसाई के सामने बकरे जैसे’ पाकिस्तान के दिनों को याद कर सोनादास बताते हैं कि मैं सिंध से भारत आया था। जमीन-जायदाद सब वहीं छूट गई। भुट्टो साहब के समय माहौल ठीक था। तब हिंदू परिवारों पर खतरा कम था। धीरे-धीरे हालात बिगड़ गए। लोगों में डर बैठ गया।’
‘एक दिन में 10 से 20 लड़कियों का जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया जाता था। 12 से 14 साल की लड़कियों की ऐसी हालत थी। वहां हिंदू कसाई के सामने बकरे जैसी हालत में रहते हैं। ऐसे में अगर भारत से भी हिंदू भगाए जाएंगे, तो कहां जाएंगे।’
वे कहते हैं कि पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं की हालत खराब है, ऐसे में हिंदू जान बचाकर कहां जाएगा। वे भरोसा जताते हैं कि सरकार हिंदुओं के लिए सही फैसला करेगी।

सोनादास का दावा है कि उनके कैंप में सभी लोग वैध डॉक्यूमेंट के साथ रह रहे हैं। इसलिए डरने की बात नहीं है।
‘नागरिकता मिली, वोट भी डाला, पाकिस्तान में बहुत जुल्म झेला’ नानकी बागड़ी मजनू का टीला वाले कैंप में रहती हैं। वे पाकिस्तान के हैदराबाद से 2013 में भारत आई थीं। परिवार के सभी सदस्य भी बाद में यहीं आ गए। सिंध में वो किसानी करती थीं। उनकी दो लड़कियां और दो लड़के हैं। एक बेटा सब्जी मंडी में काम करता है। वे खुद सिलाई करके घर खर्च चलाती हैं।
नानकी बताती हैं कि मुझे भारत की नागरिकता मिल चुकी है। मैं यहां वोट भी डाल चुकी हूं। मेरे सहित परिवार के तीन लोगों को नागरिकता मिली है। परिवार पाकिस्तान में मुसलमानों की जमीन पर किसानी करता था।
वहां से वापस आने के पीछे की वजह बताते हुए नानकी कहती हैं, ‘वहां मुसलमान ज्यादा हैं। अब तो वहां ज्यादा घटनाएं होने लगी हैं। अभी 20 हिंदू लड़कियां उठाई गई हैं। क्यों ऐसा हुआ, हमें पता नहीं। पुलिस और सरकार मदद नहीं करती है। हिंदुओं की वहां कोई नहीं सुनता। वहां अन्याय हो रहा है।’
पहलगाम आतंकी हमले को लेकर नानकी कहती हैं, ‘उसके बारे में जानकर दिल कांप उठा।’
पाकिस्तान से आए लोगों से डॉक्यूमेंट्स मांगे जाने के बारे में वे कहती हैं, ‘ये तो अच्छी बात है। सरकार को सबकी जांच करनी चाहिए। हम उनसे बहुत खुश हैं। हम कोई चोरी-छिपे नहीं आए हैं। हमारे पास वीजा हैं, हमें तो नागरिकता भी मिल चुकी है।’
‘हमें कोई डर नहीं है। सरकार जितनी चाहे हमारी तलाशी कर सकती है। सरकार से हमें कोई दिक्कत नहीं है। सरकार को जांच करनी चाहिए, लेकिन ये वीजा बंद नहीं होना चाहिए। क्या पता वहां हमारे भाई-बहन भी बहुत पैसा खर्च करके, अपना घर बेचकर बैठे हों।’

पुलिस बोली- इंटेलिजेंस और सरकार तय करेंगे किसको भेजना है जांच प्रक्रिया कब तक चलेगी और इसका क्या असर होगा, ये जानने के लिए हमने जांच अधिकारी से बात करने की कोशिश की। इन दोनों कैंप में कोई पाकिस्तानी शरणार्थी आता है तो उसे तुर्कमान गेट के पास बने पुलिस भवन में जाकर कागज दिखाने होते हैं। अब भी सारे कागज पुलिस भवन जाकर ही दिखाए जा रहे हैं। यहां जाने पर हमें बताया गया कि इंटेलिजेंस ब्यूरो का मामला है तो DCP ऑफिस जाकर ही कुछ पता लगेगा।
हम DCP ऑफिस पहुंचे। यहां मीडिया सेल देखने वाले नीरज वशिष्ठ से मिले। उन्होंने हाई लेवल मामला होने की वजह से कुछ भी कहने से मना कर दिया। उन्होंने हमें नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के DC हरेश्वर वी स्वामी से मिलवाया। उन्होंने कैमरे पर बात करने से मना किया। ऑफ कैमरा बताया,
‘इंटेलिजेंस ब्यूरो की तरफ से दिल्ली पुलिस से जानकारी और डेटा मांगा गया था। हम बस जानकारी जुटाकर दे रहे हैं। इन कैंप में लॉन्ग और शॉर्ट टर्म दोनों तरह के वीजा होल्डर हैं। अगले एक दो हफ्ते में सबके कागजों की जांच हो जाएगी। हम फिलहाल सिर्फ इनका स्टेटस ऊपर बताएंगे।’
हमने पूछा कि क्या किसी को वापस भी भेजा जा सकता है? उनका कहना था कि ये फैसला तो IB और सरकार मिलकर करेगी। उन्होंने इसे इंटेलिजेंस का मामला बताकर और कुछ भी बताने से मना कर दिया।
हालांकि DCP ऑफिस में एक सूत्र ने हमें बताया कि जांच में देखा जा रहा है कि कोई मुसलमान पहचान छिपाकर तो नहीं रह रहा। किसी हिंदू को पाकिस्तान वापस भेजे जाने को लेकर सूत्र का कहना था कि सिर्फ महीनेभर के भीतर आए लोगों को खतरा है।

पहलगाम हमले के बाद कार्रवाई शुरू पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तानी नागरिकों का वीजा रद्द कर दिया। साथ ही 48 घंटे में वापस जाने के लिए कहा गया। हालांकि इसमें लॉन्ग टर्म वीजा वालों को छूट दी गई।
इस फैसले के बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो ने एक रिपोर्ट दिल्ली पुलिस को सौंपी है। इसमें दिल्ली के अंदर 5000 पाकिस्तानी होने की बात कही गई है। रिपोर्ट में दिल्ली के मजनू का टीला और सिग्नेचर ब्रिज के पास दो शरणार्थी कैंप का भी जिक्र है। इसमें करीब 1500 परिवार रह रहे हैं।
IB की रिपोर्ट मिलने के बाद से ही दिल्ली पुलिस पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थियों के दस्तावेजों की जांच कर रही है।
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