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UP Assembly Election 2027 BSP Mayawati Meeting Update | Lucknow | यूपी विधानसभा–2027 पर BSP की नजर: ताकत घटी, पर अभी भी 10% वोटबैंक, मायावती ने 2 मार्च को बुलाई देश भर के पदाधिकारियों की बैठक – Uttar Pradesh News



बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व सीएम मायावती

बहुजन समाज पार्टी की नजर 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव पर है। चुनाव से पहले बसपा संगठन को मजबूती और धार देने में जुटी है। 2 मार्च को बसपा की राष्ट्रीय बैठक उत्तर प्रदेश पार्टी के राज्य कार्यालय में आयोजित की गई है। बसपा की ओर से बताय

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बसपा अगले विधानसभा चुनाव से पहले उत्तर प्रदेश में अपनी पुरानी ताकत में लौटने की कवायद में है। प्रदेश की 22 प्रतिशत एससी–एसटी आबादी में आज भी पूर्व सीएम मायावती की अपील सबसे अधिक है। हालांकि 2012 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद से लगातार प्रदेश में बसपा कमजोर होती जा रही है।

आज की हालत ये है कि यूपी विधानसभा में बसपा का सिर्फ एक विधायक है। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के 15.2 करोड़ वोटर में से 12.9 फीसदी वोट बसपा को मिला। उसे कुल एक करोड़ 18 लाख 73 हजार 137 वोट मिले थे।

2024 के लोकसभा चुनाव में भी बसपा की स्थिति नहीं सुधरी। वर्ष 2019 के लोकसभा में 10 सीटें जीतने वाली बसपा इस बार खाता भी नहीं खोल पाई। उसका वोट प्रतिशत 2019 में 19.43%से गिरकर 9.35% रह गया। ये विधानसभा चुनाव से भी लगभग 3 प्रतिशत कम था।

महाराष्ट्र–झारखंड के बाद मायावती को दिल्ली विधानसभा चुनाव से भी मायूसी हाथ लगी। उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनाव में 70 में से 69 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। पार्टी के नेशनल कॉआर्डिनेटर और मायावती के भतीजे आकाश आनंद ने इस चुनाव में काफी प्रचार किया था। इसके बावजूद पार्टी के प्रदर्शन पर कोई असर नहीं डाल पाए। आलम ये रहा कि पार्टी के अधिकतर प्रत्याशी हजार वोट का आंकड़ा भी नहीं पार कर पाए। बसपा को कुल 55,066 (0.58 प्रतिशत) ही वोट मिल पाए।

यूपी में 2007 में बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन

यूपी की राजनीति में आज भले ही बसपा सुप्रीमो का दबदबा घटता दिख रहा है, लेकिन अब भी पार्टी के पास 10 प्रतिशत के लगभग वोटबैंक है। गठबंधन में ये किसी का भी पलड़ा भारी कर सकता है। बसपा का सबसे शानदार प्रदर्शन 2007 में रहा। तब बसपा अपने बलबूते सूबे की सत्ता में लौटी थी। विधानसभा में तब उसके 206 विधायक जीत कर पहुंचे थे। पार्टी को तब 30 प्रतिशत से अधिक वोट मिले थे। ये सफलता सोशल इंजीनियरिंग को माना गया था। बसपा एक बार फिर प्रदेश की राजनीति में अपने उन्हें सुनहरे दौर में लौटने का सपना बुन रही है।

दलित मुद्दों पर मुखर रहने वाली बसपा की अब नहीं दिखती आवाज

प्रदेश में कभी दलितों के मुद्दों पर सबसे मुखर रहने वाली बसपा की आवाज अब वैसी नहीं सुनाई पड़ती है। मथुरा के करनावल गांव में जिस तरीके से दबंग यादव परिवारों ने दलित बहनों की शादी में हंगामा मचाया और बारात लौटा दी, उस मामले में बसपा के एक भी बड़े नेता का बयान नहीं आया। पार्टी का कोई नेता पीड़ित परिवार से मिलने तक भी नहीं पहुंचा। जबकि दलित समाज के नए रहनुमा बनने की कवायद में जुटे आजाद समाज पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं नगीना सांसद चंद्रशेखर ने पीड़ित परिवार से मिलने में तनिक भी देर नहीं लगाई। भाजपा ने समाज कल्याण मंत्री असीम अरुण को भेजा। आरोपियों की गिरफ्तारी और सख्त कार्रवाई कर भाजपा ये संदेश देने में सफल रही कि दलित समाज की चिंता उसे भी है।

क्यों अहम माना जा रहा है बसपा की ये बैठक

बसपा की ये बैठक काफी अहम मानी जा रही है। इसकी कई वजहें भी हैं। पहला दिल्ली विधानसभा चुनाव के बाद मायावती ने भतीजे आकाश के ससुर अशोक सिद्धार्थ को पार्टी से निष्कासित कर दिया था। अशोक सिद्धार्थ के साथ ही बसपा मेरठ के पूर्व सांसद नितिन सिंह को भी पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा चुकी है। दोनों नेताओं के निष्कासन पर खुद मायावती की ओर से एक्स पर लिखा गया था कि “दोनों ही नेता चेतावनी के बावजूद गुटबाजी आदि की गतिविधियों में लिप्त थे। इसी वजह से पार्टी ने उनके निकालना का फैसला लिया है।”

दूसरा उदित राज का विवादित बयान है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस बहाने कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए करारा प्रहार कर चुकी हैं। पार्टी के दूसरे नेता भी इस मुद्दे पर काफी मुखर हुए थे। पार्टी संगठन में नए सिरे से कुछ बदलाव कर सकती है। कुछ नेताओं की जिम्मेदारियों में बदलाव भी किए जा सकते हैं।



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