Naradsamvad

जबरिया टिकट की मांग से युवाओं की कुपोषित राजनीति ने नेताओं को किया बदहजमी का शिकार -निकाय चुनाव में भी कर रहे दखल

राघवेन्द्र मिश्रा(प्रधान-सम्पादक)

अबकी हमहू ठाड़े हुइबो- भैंस बेंच कुर्ता बनबइवो

 

नगर निकाय चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है।वर्तमान पीढ़ी की आंखों पर चढ़े हसीन ख्वाबों के चश्मे से जो दिखाई दे रहा है, उसे हकीकत में बदलने के लिए जोर आजमाइश शुरू हो चुकी है। देश में राजनीतिक दलों के खद्दरधारी नेताओं के ठाठ बाट महंगे महंगे शौक और शानो शौकत कुछ चंद दिनों में हासिल करने के ख्वाब संजोकर,अपना भविष्य कैरियर सब कुछ दांव पर लगा कर युवा पीढ़ी राजनीति के इस दलदल में समाने को आतुर है..

हक़ीक़त को कैसे करें बयाँ-जब हम ही खा बैठे ग़रीबों का हक

वर्तमान परिदृश्य में गांव गरीब किसान महिलाओं बच्चों एवं नौनिहालों की दशा सुधारने के खोखले दावे और वादे तो कब के पीछे छूट चुके हैं। राजनीति अब एक धंधा और बिजनेस का रूप ले चुकी है,जो जितना लगाएगा वह उतना ही कमाएगा. चुनाव चाहे छोटा हो या बड़ा सबसे ज्यादा झूठ और मक्कारी के साथ-साथ रंग बदलने की कला और वक्त आने पर लाशों पर चढ़कर आगे बढ़ना जिसे आता है,वही राजनीति का कुशल खिलाड़ी कहलाता है. ऐसे गिरगिटों को ढूंढ कर सत्ता की चाबी से अपनी तिजोरी का ताला खोलने वाले भामाशाह भी हर चुनाव में दांव लगाने के लिए तैयार रहते हैं.जिन्हें वर्तमान परिदृश्य में फाइनेंसर कहा जाता है, ग्राम पंचायत के चुनावों से लेकर देश की राजनीति तक के बड़े चुनावों में ऐसे मोहरे पहले ही तय कर लिए जाते हैं..

बेचारी जनता को कुछ हाँथ नही लगता

सोचनीय प्रश्न यह है कि हमारे देश की 70% जनता जोकि ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करती है,जहां के स्कूलों और अस्पतालों के साथ-साथ शिक्षण संस्थानों विद्यालयों की हालत बद से बदतर हो चुकी है.अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 5 वीं क्लास के छात्रों को पहली क्लास तक की जानकारी नहीं है.जिलों में चल रहे पीएचसी,सीएचसी,जिला चिकित्सालय जिन्हें मेडिकल कॉलेज के रूप में अपग्रेड तो किया जा रहा है.लेकिन वहां पहुंचने वाली ग्रामीण क्षेत्रों की भोली भाली गरीब जनता को अपना खून पसीना बेचकर महंगी महंगी दवाइयां प्राइवेट लिमिटेड मेडिकल की दुकानों से खरीदनी पड़ती है. दो वक्त की रोटी कमाने के लिए लोग पलायन कर रहे हैं, गांव गरीब किसान अपनी गाढ़ी कमाई को बचाने के लिए दिन रात एक कर रहा है रात रात भर जाग कर अपनी फसलों की रक्षा करने के लिए अपने प्राण तक न्यौछावर कर रहा है.जबकि दूसरी ओर देश हमारा तरक्की कर रहा है,चहुंओर विकास ही विकास दिखाई दे रहा है।

आखिर कहां जा रहा है हमारा देश और हमारा भविष्य

देश की राजनीति में अपना भविष्य देखने सजाने और संवारने की चाहत लेकर पहुंच रहे,चाटुकार नेताओं ने समाज में ऐसा जहर घोल दिया है कि लोगों में नफरत की चिंगारी चल रही है,अब सामाजिक एकता छिन्न-भिन्न सी हो गई है।प्रत्येक समाज के स्वघोषित ठेकेदार अपने-अपने समाजों की जिम्मेदारी की गठरी सर पर लेकर नेताओं की चरण वंदना करते देखे जा सकते हैं. राजनीतिक दलों के इशारों पर विभिन्न समाजों के चिंतन शिविर आयोजित कर समाज के चंद दलालों के भविष्य की चिंता की जाती है.जो अपने आप को स्वघोषित समाज का ठेकेदार दर्शाकर पिछलग्गू समाज का खून चूस कर उनकी लाशों से होकर गुजरते हैं और अपना भविष्य सजाने और सँवारने के लिए दिन रात एक किए रहते हैं,और पिछलग्गू समाज के मासूम लोगों को समझाते हैं कि यदि आज आपने अपने समाज का सहयोग नहीं किया,साथ नहीं दिया तो हमारे समाज का भविष्य बर्बाद हो जाएगा. देश के 70% लोग ऐसे चाटुकारों गिरगिटों की बातों में आकर अपना भविष्य बर्बाद करते हैं. और इसका फायदा देश में विभिन्न सत्ताधारी राजनीतिक दलों से अलग-अलग जिम्मेदारियों के तहत मोहरे बनाकर जोड़े गए 30% लोग जमकर फायदा उठाते हैं।

बर्बादी के बाद कुछ भी हाँथ नहीं लगता-सिवा उदासी के

वर्तमान पीढ़ी में ऐसे अनेकों उदाहरण और सैकड़ों लोग हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा ठगे गए और अपना कैरियर दांव पर लगाकर हसीन सपने संजोकर देश को सुधारने का जज्बा लेकर पहुंचे थे.जिनके पास अब कुछ भी नहीं बचा. थक हार कर छोटा-मोटा धंधा पानी बिजनेस कर अपनी रोजी-रोटी चलाने को मजबूर हैं. हमारी युवा पीढ़ी भी उसी दिशा में जा रही है आखिर कौन सुधारेगा इस देश को यह यक्ष प्रश्न बना हुआ है।

लेखनी—–
राघवेन्द्र मिश्रा
नारद संवाद न्यूज़
बाराबंकी

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