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The problem of salinity is increasing in the fields along the Ganges | गंगा किनारे खेतों में बढ़ रहा खारे पन का संकट: नहरों से ज्यादा सिंचाई और रासायनिक खाद है जिम्मेदार,बीएचयू के वैज्ञानिकों ने जताई चिंता – Varanasi News


बीएचयू में हुए अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण और धारणीय विकास सम्मेलन के तीसरे दिन गंगा के मैदानी क्षेत्रों की मिट्टी में बढ़ते खारेपन को लेकर चिंता जताई गई। रासायनिक खाद के ज्यादातर इस्तेमाल और नहरों के पानी से हो रही अत्यधिक सिंचाई को मिट्टी में खारेपन का

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बीएचयू में शोध प्रस्तुति करते शोधार्थी।

बीएचयू में शोध प्रस्तुति करते शोधार्थी।

80 फीसदी फलीदार पौधों में नाइट्रोजन फिक्स करने वाले गांठ अनुपस्थिति

बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ के प्रोफेसर नवीन कुमार अरोरा ने ये चिंता व्यक्त की। कहा कि हमें नई तकनीक जैसे बायो एग्रीकल्चर और जैविक उपचार की विधियों का सहारा लेना होगा। उन्होंने कहा कि कानपुर में एक प्रयोग के दौरान देखा गया कि 80 फीसदी फलीदार पौधों में गांठ अनुपस्थित रहे। ये गांठें मिट्टी में नाइट्रोजन को फिक्स करती हैं। उन्होंने सुझाया कि स्यूडोमोनास, बैसिलस और राइजोबियम नाम के बैक्टीरिया से बने बायो फर्टिलाइजर्स मिट्टी के खारेपन को कम कर सकते हैं। पौधों की भी बेहतर वृद्धि में मदद करते हैं।

बैसिलस और राइजोबियम नाम के बैक्टीरिया से बने बायो फर्टिलाइजर्स कम किया जा सकता है मिट्टी का खारापन।

बैसिलस और राइजोबियम नाम के बैक्टीरिया से बने बायो फर्टिलाइजर्स कम किया जा सकता है मिट्टी का खारापन।

जैविक कार्बन से दूर होगी हैवी मेटल्स की समस्या

गुरु घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर के प्रोफेसर सुधीर पांडे ने कहा कि मिट्टी से हैवी मेटल्स के विषाक्तता को कम करने में जैविक कार्बन काफी मदद कर सकते हैं। मूंगफली और धान पर इसका प्रयोग कर देखा गया तो मिट्टी में उपस्थित भारी धातु कैडमियम की कमी थी और मिट्टी की गुणवत्ता भी बढ़ी थी। सीएसआईआर-नेशनल बॉटेनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, लखनऊ के डॉ. पुनीत सिंह चौहान ने कहा कि सूक्ष्मजीव वैश्विक खाद्य सुरक्षा में योगदान कर सकता है।



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