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‘मैंने नजीब को 9 साल से नहीं देखा। उसने आखिरी बार फोन पर बताया था कि उसे हॉस्टल के रूम में बंद करके 9 लोगों ने बहुत पीटा है। वो चाहता था कि हम उसके पास जल्द से जल्द पहुंच जाएं। हम कॉलेज पहुंचे, तो नजीब हमें छोड़कर जा चुका था। उसके रूम में किताबें और
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65 साल के नफीज अहमद अपने बेटे नजीब को याद करते हुए ये बात कहते हैं। नजीब दिल्ली की जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में पढ़ते थे। 15 अक्टूबर, 2016 को नजीब यूनिवर्सिटी कैंपस से लापता हो गए और आज तक नहीं मिले। उस वक्त नजीब की उम्र 27 साल थी।
दिल्ली पुलिस से लेकर CBI तक नजीब को खोजती रही। कोर्ट में 9 साल मामला चला। 30 जून को दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट ने केस बंद कर दिया। नजीब के वालिद नफीज अहमद कहते हैं कि हम केस बंद नही करेंगे, आगे हाईकोर्ट में अपील करेंगे। उन्होंने CBI और दिल्ली पुलिस की जांच पर तीन सवाल उठाए हैं।
- 9 आरोपियों के नाम होने के बावजूद अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया।
- CBI ने किसी आरोपी का पॉलीग्राफ टेस्ट नहीं कराया।
- आरोपियों के मोबाइल का डेटा रिकवर नहीं किया गया, दिल्ली पुलिस फोन का पैटर्न लॉक तक नहीं खोल पाई।

नजीब के गायब होने से पहले आखिरी रात क्या हुआ था…
बात अक्टूबर 2016 की है। JNU में चुनाव चल रहे थे। मेस सेक्रेटरी के पद के लिए कम्युनिस्ट स्टूडेंट ग्रुप के शाहिद रजा और ABVP कैंडिडेट विक्रांत कुमार के बीच मुकाबला था।
नजीब के रूममेट मोहम्मद कासिम ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि 14 अक्टूबर की रात करीब 11.30 बजे स्टूडेंट अपने-अपने कैंडिडेट के साथ प्रचार में जुटे थे। विक्रांत और उसके साथी बॉयज हॉस्टल के रूम नंबर 106 में गए। वहां विक्रांत और नजीब के बीच किसी बात को लेकर बहस हुई और झगड़ा शुरू हो गया।
नजीब झगड़े के बाद बहुत डर गया था। उसने ये बात अपने घरवालों को बताई थी। 15 अक्टूबर सुबह 11 बजे तक वो हॉस्टल में था। फिर गायब हो गया। उसके घरवाले कॉलेज पहुंचे, तब नजीब नहीं था। फैमिली ने वसंत कुंज पुलिस स्टेशन में उसके लापता होने की रिपोर्ट दर्ज करवाई।
अब्बू बोले- ‘हमसे कहा FIR मत लिखवाओ, आपका बच्चा ला देंगे’ यूपी की राजधानी लखनऊ से 270 किलोमीटर दूर बदायूं के वैदो टोला में नजीब का परिवार रहता है। घर में नजीब के अब्बू नफीज अहमद, अम्मी फातिमा नफीज, दो भाई हसीब और मुजीब रहते हैं।

ये नजीब के पिता नफीज अहमद हैं। बेटे के लिए 9 साल से कोर्ट में केस लड़ रहे हैं। उन्हें उम्मीद है कि नजीब एक दिन जरूर लौटेगा।
नफीज दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘नजीब परेशान होता था, तो अपनी अम्मी को फोन करता था। उस दिन भी उसने फोन किया था। बताया कि ABVP के छात्रों ने उसे बहुत मारा है। फातिमा अगली सुबह ही बदायूं से दिल्ली चली गईं। नजीब हॉस्टल में नहीं था। रूम में उसके कपड़े और मोबाइल रखा था। अगर उसे बाहर जाना था, तो फोन और पैसे लेकर क्यों नहीं गया।’
‘पूरे कॉलेज में खोजा, पर नजीब नहीं मिला। 15 अक्टूबर को बेगम फातिमा नफीस वसंत कुंज थाने में नजीब के लापता होने की शिकायत दर्ज कराने गईं। चौकी इंचार्ज ने FIR में नजीब से मारपीट करने वाले स्टूडेंट का नाम न लिखने का दबाव बनाया। उन्होंने कहा कि अगर हम ऐसा करेंगे, तो 24 घंटे के भीतर पुलिस नजीब को ढूंढ निकालेगी।’
‘नजीब नहीं लौटा तो उसकी अम्मी ने FIR में सभी 9 लड़कों का नाम जुड़वाया। इस पर थानेदार ने नाराज होकर कहा- तुम मेरी वर्दी उतरवाकर अपने बेटे को दे दो। ये बात साबित करती है कि दिल्ली पुलिस शुरू से ही आरोपियों को बचाने में जुटी थी।’

नजीब के गुमशुदा होने के बाद यूनिवर्सिटी ने भी जांच शुरू की। इसमें माही-मांडवी हॉस्टल के वॉर्डन और 20 से ज्यादा स्टूडेंट्स के बयानों के आधार पर नौ छात्रों अंकित राय, विजयेंद्र ठाकुर, विक्रांत किनार, ऐश्वर्य प्रताप सिंह, पुष्पेश झा, सुनील प्रताप सिंह, अर्नब चक्रवर्ती, अभिजीत कुमार और संतोष कुमार की पहचान की। ये सभी ABVP से जुड़े थे। दिल्ली पुलिस ने इन लोगों से पूछताछ की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

वॉर्डन के सामने धमकी- सर, इसे छोड़ दो, सुबह इसकी लाश मिलेगी नफीज अहमद आरोप लगाते हैं, ‘14 अक्टूबर की रात आरोपी छात्रों ने नजीब से मारपीट की थी। उसे गंभीर चोटें आईं। आरोपी जानते थे कि वो मुसलमान है, इसलिए कभी उन्हें वोट नहीं देगा। इसलिए उन्होंने इस्लाम विरोधी बातें कहीं, इसके बाद मामला बढ़ गया।’
हॉस्टल में हुई मारपीट की बात वॉर्डन तक पहुंची। उन्होंने नजीब, उसके रूममेट कासिम, कम्युनिस्ट पार्टी के कैंडिडेट शाहिद रजा और ABVP के छात्रों को अपने रूम पर बुलाया। दैनिक भास्कर को नजीब के रूममेट का एक पुराना वीडियो मिला है, जिसमें वो ये कह रहा है कि आरोपियों ने वॉर्डन के सामने नजीब को मार डालने की धमकी दी थी।

CBI के हलफनामे में वॉर्डन रूम में हुई मीटिंग का जिक्र है। साथ ही 9 आरोपियों के भी नाम हैं।
वीडियो में कासिम कह रहा है कि झगड़े के बाद वॉर्डन के रूम में हंगामा कर रहे छात्रों में शामिल अभिजीत नाम का लड़का बार-बार उसे चुप रहने की धमकी दे रहा था। अभिजीत का गुस्सा इतना बढ़ गया कि वो वॉर्डन के सामने नजीब की ओर इशारा करते हुए बोला- ‘सर इसे छोड़ दो, सुबह इसकी लाश मिलेगी और कासिम तू तो बाहर निकल, तुझे अभी देख लेंगे।’
केस भटकाने के लिए नजीब को ISIS एजेंट तक बता दिया 2018-19 में JNU छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे एन साई बालाजी 9 साल से नजीब के परिवार के साथ मिलकर कानूनी लड़ाई लड़ रहे हैं। उन्होंने ही नजीब की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज करवाने में मदद की थी। बाला दिल्ली प्रेस क्लब से लेकर कई बड़े मंचों पर नजीब को ढूंढने के लिए कार्यक्रम कर चुके हैं। उन्हें नजीब के मामले में अब तक हुई जांच में 3 बड़ी खामियां नजर आती हैं।
पहली गलती: JNU प्रशासन, दिल्ली पुलिस और CBI का ढीला रवैया एन. साई बालाजी के मुताबिक, यूनिवर्सिटी की प्रॉक्टोरियल जांच में ये बात सामने आई कि 9 लड़कों ने नजीब को मारा था। इसके बावजूद CBI या पुलिस ने उन्हें नोटिस जारी नहीं किया, न ही उन्हें कॉलेज से निकाला गया।
आमतौर पर यूनिवर्सिटी के कुलपति किसी प्रशासन या पुलिस के दबाव में न आकर अपनी बातें रखते हैं। इस मामले में यूनिवर्सिटी ने साफ कर दिया कि वह अपने लापता छात्र के साथ नहीं खड़ी है। यहां तक कि प्रॉक्टोरियल इन्क्वायरी में ABVP के छात्रों को मारपीट का दोषी माना, तो वाइस चांसलर ने जांच में शामिल लोगों से इस्तीफा मांग लिया। इससे पता चल गया कि JNU प्रशासन दोषी छात्रों को बचा रहा था।
दूसरी गलती: नजीब को न खोजकर केस को दूसरी दिशा में मोड़ने की साजिश बाला कहते हैं, ‘दिल्ली पुलिस ने जांच को दूसरी दिशा में ले जाने की कोशिशें कीं। कभी विक्टिम के बारे में फेक प्रोपेगैंडा फैलाया गया, तो कभी लोगों पर दबाव बनाकर झूठे बयान दिलवाए गए।’
‘मुझे याद है नजीब के लापता होने के 6 महीने बाद हॉस्टल के वॉर्डन अरुण कुमार श्रीवास्तव ने बयान दिया कि उन्होंने 15 अक्टूबर को नजीब को ऑटो में जाते देखा था। बाद में उस ऑटो वाले ने बताया कि वो नजीब को जामिया लेकर गया था।’
‘पुलिस और CBI बार-बार कहती रही कि JNU में कोई CCTV कैमरा नहीं है। ये बात सच है, लेकिन क्या JNU के बाहर रोड पर कोई CCTV नहीं था, जिससे नजीब को ट्रैक किया जा सकता था। ये भी सवाल खड़ा होता है कि जांच एजेंसी ने ऑटो वाले या वॉर्डन के बयान को वेरिफाई करने के लिए क्या किया, इन सवालों के जवाब CBI ने अपनी क्लोजर रिपोर्ट में भी नहीं दिए।’
तीसरी गलती: नजीब को ISIS एजेंट बताकर क्रिमिनल नैरेटिव बनाया गया नजीब के लापता होने के बाद मीडिया ने ये खबर चलाईं कि नजीब आतंकी संगठन ISIS के लिए काम करता था। टीवी पर दिखाया गया कि उसके पास संगठन से जुड़े दस्तावेज और खुफिया फोटो थीं। वो स्लीपर सेल की तरह काम कर रहा था।
बाद में छात्र संगठनों ने नजीब की फैमिली के साथ मिलकर ये खबरें चलाने वाले मीडिया हाउस के खिलाफ मानहानि का केस किया। उन्होंने माफी मांगते हुए खबरें हटा दीं। इससे साबित हुआ कि एक विक्टिम के बारे में क्रिमिनल नैरेटिव बनाया गया और यह केस को भटकाने की साजिश थी।
CBI ने आरोपी 9 छात्रों का पॉलीग्राफ टेस्ट कराने के लिए कहा, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। कानूनन तब तक किसी शख्स के पॉलीग्राफ टेस्ट की इजाजत नहीं दी जा सकती, जब तक कि उसकी सहमति न हो।

CBI का हलफनामा, जिसमें बताया गया कि ABVP के छात्रों ने पॉलीग्राफ टेस्ट करवाने से मना कर दिया है।
‘CBI आरोपियों के फोन का पैटर्न लॉक तक नहीं खोल पाई’ हमने पूरे मामले पर JNUSU (स्टूडेंट्स यूनियन) के अध्यक्ष नीतीश कुमार से बात की। उनका मानना है कि शुरुआती जांच में दिल्ली पुलिस ने सभी 9 आरोपियों के मोबाइल जब्त किए, लेकिन उन्हें कभी कोर्ट के सामने नहीं लाया गया।
नीतीश कहते हैं, ‘वसंतकुंज पुलिस ने आरोपियों के मोबाइल फोन जब्त करके उन्हें CBI को सौंपा था। जांच एजेंसी ने हलफनामे में लिखा था कि वो उन मोबाइलों का डेटा रिकवर नहीं कर पाई। पुलिस फोन का पैटर्न लॉक तक नहीं खोल पाई। CBI अगर उस समय सख्ती दिखाती तो नजीब का सुराग मिल सकता था।’
ABVP के छात्रों ने पुलिस को दिए बयान में बताया कि वे घटना के वक्त हॉस्टल में मौजूद ही नहीं थे। प्लेइंग एरिया में वॉलीबॉल खेल रहे थे। इसे साबित करने के लिए CBI ने उनकी मोबाइल लोकेशन दिखाई, जो घटना वाली जगह से दूर थी।
इस जांच पर नीतीश सवाल उठाते हुए कहते हैं, ‘क्या आरोपी मोबाइल दूसरी जगह छोड़कर हॉस्टल में नहीं जा सकते। जांच एजेंसी सिर्फ मोबाइल लोकेशन देखकर ही उन्हें बेकसूर कैसे मान सकती है।’

CBI ने 17 महीने जांच की, फिर कहा- केस बंद कर देना चाहिए 16 मई, 2017 को हाईकोर्ट ने नजीब के केस की जांच CBI को ट्रांसफर कर दी। डेढ़ साल तक जांच एजेंसी सबूत इकट्ठा करती रही, कामयाबी न मिलने पर 26 अक्टूबर 2018 को उसने लोअर कोर्ट में फाइनल रिपोर्ट दाखिल की। इस रिपोर्ट में CBI ने बताया कि उसने नजीब को ढूंढ़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन सुराग नहीं मिला। इसलिए इस केस को बंद कर देना चाहिए।
नजीब के परिवार ने CBI की फाइनल रिपोर्ट के खिलाफ फरवरी 2020 में रिवर्स पिटीशन दर्ज कराई। नजीब की मां फातिमा नफीस ने CBI जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्लोजर रिपोर्ट में JNU हॉस्टल के वॉर्डन अरुण श्रीवास्तव और उसके रूममेट मोहम्मद कासिम के बयान एक दूसरे से मेल नहीं खाते। ये जांच पर सवालिया निशाना उठाता है।
CBI को दिए बयान में वॉर्डन ने दावा किया कि नजीब सुबह 11:30 बजे हॉस्टल से ऑटो में बैठकर बाहर गया। वहीं उसके रूममेट कासिम ने बताया था कि नजीब सुबह 11:30 बजे तक हॉस्टल के कमरे में ही था।
नजीब का परिवार दिल्ली पुलिस की थ्योरी पर भी सवाल उठाता है। उसके मुताबिक, दिल्ली पुलिस को जांच के दौरान एक ऑटो ड्राइवर ने बताया था कि 15 अक्टूबर को नजीब उसके ऑटो में बैठकर JNU से निकला था। CBI ने ऑटो वाले से पूछताछ की, तो वो अपनी बात से पलट गया। उसने कहा कि ऐसा बयान देने के लिए उस पर दबाव बनाया गया था।
‘5 वक्त का नमाजी था नजीब, कभी किसी से झगड़ा नहीं किया’ बदायूं से लौटते वक्त हमने नजीब के बारे में उसके पड़ोसियों से बात की। बच्चन मियां, नजीब को स्कूल टाइम से जानते हैं। उसे याद कर बच्चन कहते हैं, ‘नजीब बड़ा ही शरीफ और होशियार बच्चा था। मैंने जब भी उसे देखा, उसके हाथ में किताबें रहती थीं। उसे लिखने-पढ़ने का बहुत शौक था, काम से काम रखता था। आज तक उसका किसी से झगड़ा नहीं हुआ।’
 
नजीब के वालिद और उसकी अम्मी ने बीते 9 साल में बहुत मुश्किलें झेली हैं। उसका केस लड़ने के लिए उन्होंने बदायूं में अपनी जमीन तक बेच दी। अल्लाह ने चाहा तो वो जरूर वापस आएगा।

वकील बोले- केस खत्म नहीं हुआ, नए सिरे से जांच हो नजीब की मां का पक्ष रख चुके दिल्ली हाईकोर्ट के सीनियर एडवोकेट कॉलिन गोन्साल्विस मानते हैं कि ये केस एक साल के अंदर खत्म हो जाना चाहिए था, लेकिन CBI की लापरवाह जांच और नजीब के परिवार को सही कानूनी सलाह न मिलने से ये 9 साल तक खिंच गया। अब भी परिवार को इंसाफ नहीं मिल पाया है।
कॉलिन कहते हैं, ‘आप खुद सोचिए एक स्टूडेंट यूनियन के 9 लोग हॉस्टल वॉर्डन के सामने 27 साल के बच्चे को धमकी देते हैं। कहते हैं कि सुबह तुम्हारी लाश मिलेगी और अगले दिन वो बच्चा गायब हो जाता है। केस बिल्कुल स्ट्रेट फॉरवर्ड था, लेकिन हैरानी की बात है कि पुलिस ने आज तक आरोपियों को न तो अरेस्ट किया, न ही उनकी जांच की। दुख की बात ये है कि हाईकोर्ट ने भी CBI जांच को सही ठहराया।’
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