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मेरा नाम काजल मंगलमुखी है। मैं किन्नर हूं और कर्नाटक के मैसूर की रहने वाली हूं, लेकिन लंबे अरसे से चंडीगढ़ के मनीमाजरा में रह रही हूंं। नदी में मौसी की लड़की के साथ नहाते वक्त पहली बार पता चला कि मैं ना लड़का हूं और ना लड़की। मेरे मां-बाप मुझे मेकअप
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मेरी प्राइवेट पार्ट कटाने की कहानी रोंगटे खड़ा कर देने वाली है। मैं एक लड़के मोहन को प्यार करती थी। उसे पाने के लिए मैंने अपने प्राइवेट पार्ट कटवा लिए। इसे आधी रात को दाई ने चाकू से काटा था। उस दिन मैं मौत से जूझी थी। सुंदर दिखने के लिए जो खून निकला था, उसे पूरे शरीर पर लीपा था, लेकिन मेरे सपनों पर तब पानी फिर गया, जब मेरी गुरू ने साफ कहा—‘तू अब भी हिजड़ा ही रहेगा, शादी-ब्याह का सपना मत देख।’
मैं किन्नर बच्चों को पढ़ाती भी हूं। मेरे पढ़ाए बच्चे वकील, डॉक्टर्स बन चुके हैं। कुछ तो लंदन, अमेरिका जाकर पढ़ रहे हैं। किन्नरों के हक की लड़ाई भी लड़ रही हूं। हमें नौकरी मिलना चाहिए, इसके लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश की ‘स्वच्छ भारत अभियान’ की ब्रांड एंबेसडर भी हूं। मुझे अमिताभ बच्चन के टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में भी बुलाया गया।

कर्नाटक के मैसूर की रहने वाली काजल मंगलमुखी चंडीगढ़ के मनीमाजरा स्थित अपने घर में। वह एक्टिविस्ट भी हैं, उनके काम को लेकर उन्हें सम्मानित किया जाता रहता है।
आपसे अपनी कहानी शुरू से बताती हूं। दरअसल, मेरा बचपन जिल्लत, बेइज्जती और प्रताड़ना से भरा रहा, जो कमोबेश हर किन्नर का होता है। मैं क्लास छठी में थी। एक बार भाई-बहनों के साथ नदी में नहाने गई। वहां मेरी मौसी की बेटी भी नहा रही थी। मैंने देखा कि उसका प्राइवेट पार्ट मेरे से अलग है। मेरा ना तो लड़कों जैसा है और ना ही लड़कियों जैसा। उस दिन मुझे पहली बार झटका लगा था।
जब मैं जूनियर कॉलेज में थी, तो मुझे अपने से एक साल सीनियर मोहन नाम का लड़का बहुत अच्छा लगता था। जब भी मुझे कोई छेड़ता या तंग करता था, तो वही मुझे बचाता था।
उस समय लगा था कि वह मुझे प्यार करता है। एक दिन वो किसी को लव लेटर लिख रहा था। उसने लेटर के आखिर में दिल बनाया और उस पर अंग्रेजी में ए लिख दिया। वह देखकर तो जैसे मेरी दुनिया ही उजड़ गई।
मैंने उसके हाथ से लेटर छीनते हुए पूछा- तुमने आर क्यों नहीं लिखा? मेरा नाम राजू है। तुम्हारा नाम भी तो एम से आता है, यह ए से किसका नाम है? वह जोर-जोर से हंसने लगा और वापस हाथ से लेटर छीन लिया। कहने लगा- यार तुम्हारे और मेरे बीच कैसे प्यार हो सकता है? तू भी लड़का, मैं भी? फिर तो लगा कि मैं मर जाऊं! उस दिन तय कर लिया कि उसे पाने के लिए या तो मर जाऊंगी या औरत बनूंगी।
लड़कियों की तरह रहने से मेरे भाई परेशान थे। उनके दोस्त उन्हें कहते- ‘तेरा भाई तो लड़की है।’ एक दिन वह तंग आकर रात को उठे और मुझे पीटने लगे। मैं चिल्ला रही थी। जब वह मुझे मारते-मारते थक गए, तो मैंने आखिरी उम्मीद में मम्मी-पाप की तरफ देखा, लेकिन उन्होंने भी मुझसे नजरें फेर लीं। मैं कहीं जाना नहीं चाहती थी, लेकिन उस दिन भाई ने मुझे घर से निकाल दिया।

काजल जब युवा थीं। वह बताती हैं कि उनका बचपन जिल्लत, बेइज्जती और प्रताड़ना से भरा रहा। उनके भाई ने उन्हें मारकर घर से निकाल दिया। मम्मी-पापा भी उनसे मुंह फेर लिए।
रात में ही मैसूर बस स्टॉप पर पहुंची और वहीं बैठ गई। अंधेरा गहरा था और कुत्ते भौंक रहे थे। एक बस मेरे पास आकर रुकी। उसके कंडक्टर ने पूछा- कहां जाना है? मैंने कहा- मैसूर जाना है, लेकिन मेरे पास पैसे नहीं हैं। वह भले आदमी थे। उन्होंने मुझे रात में खाना खिलाया और सौ रुपए देते हुए कहा- आप दूसरी बस से जाना, यह मैसूर नहीं जाती।
मैं एकदम सुबह दूसरी बस से मैसूर चली गई। वहां मुझे एक होटल में साफ-सफाई का काम मिल गया। काम के बदले में मुझे रात में खाना और सोने को मिलता था। उसके बाद लगभग दो साल तक बेंगलुरु में अलग-अलग जगह काम किया। एक दिन वहां मुझे किन्नर समुदाय के लोग मिले और वे मुझे अपने डेरे पर ले गए। फिर उनके साथ काफी वक्त तक रही।
उनमें एक संध्या नाम की गुरु थीं। वह मुझे मुंबई लेकर आईं। मुंबई पहुंचने पर यह सोचकर बहुत खुश थी कि अब मुझे मेकअप करने को मिलेगा। स्कर्ट पहन सकूंगी।
दरअसल, बचपन में मुझे मेकअप का बहुत शौक था, लेकिन मम्मी-पापा करने नहीं देते थे। उस समय अपने रुमाल में मेकअप पाउडर रखती और उसे अंडरवियर में छिपाकर स्कूल ले जाती थी। वहां टॉयलेट में जाकर चेहरे पर लगाती थी।
उस समय मुझे फेयर एंड लवली क्रीम लगाने का बहुत शौक था, वह जिनके घरों मिलती उसे लगाने के लिए उनके घर खासतौर से जाती थी।
मुंबई के ग्रांट रोड एरिया में कर्नाटक के किन्नरों का अलग ही इलाका है। उनसे मिली तो मेरी खुशी का ठिकाना ही नहीं था। उन्हें देखकर मेरा हौसला बढ़ा कि— ये लोग भी तो मेरे जैसे ही हैं। मेरी भाषा में बात करते हैं। वहां उनकी टोली की बुजुर्ग मोती नानी की सेवा करती थी। वह मुझे मेकअप करने देती थी, लेकिन धीरे-धीरे उससे भी मन भर गया। सोचने लगी कि आखिर मैं कौन हूं? क्या कर रही हूं? मेरा भविष्य क्या है?
जब अपने प्राइवेट पार्ट देखती थी तो मुझे घिन आती थी। सोचती थी कि इन्हें काट कर फेंक दूं। वह मुझे मेरे सबसे बड़े दुश्मन लगते थे। सोचती थी कि कोई जादू या चमत्कार हो जाए, जिससे मैं लड़की बन जाऊं और उनकी तरह मेरे सेक्सुअल अंग आ जाएं। तब लगता था कि अगर स्त्री बन जाऊं, तो समाज मुझे अपना लेगा। ये सब सोचकर उदास रहने लगी।
संध्या गुरु को मेरी उदासी देखी ना गई। एक दिन उन्होंने मुझसे कहा- कैस्ट्रेशन यानी ऑपरेशन को तैयार हो? मैंने कहा- हां। फिर पूछा- डॉक्टर से कटाएगी या दाई मां से। मैंने कहा- दाई मां से।
उस वक्त यह सोचकर काफी खुश थी कि अब औरत बन जाऊंगी। जानती थी कि इस तरह कटाने से लोग मर भी जाते हैं, लेकिन बस दुनिया को दिखाना चाहती थी कि मैं औरत हूं।
फिर वह मुझे मुंबई के अंबरनाथ इलाके में ले गईं, जहां रेलवे स्टेशन के पास दाई मां का छोटा-सा कमरा था। दीवार पर ‘मुर्गे वाली माता’ की तस्वीर टंगी थी। उस दिन दाई मां ने मुझे अच्छा खाना खिलाया- जिसमें मछली, बैंगन की सब्जी और कुछ फल थे।
उन्होंने आधी रात को एक कमरे में पूजा की। पूजा में फल और मिठाइयां चढ़ाईं। बगल में उन्होंने एक गड्ढा खोद रखा था, क्योंकि अगर उस दिन मैं मर जाती, तो मुझे उसी गड्ढे में दफना दिया जाता।
पूजा करने के बाद उन्होंने मुझे कमरे में बुलाया और मेरे प्राइवेट पार्ट काटने के लिए चाकू लेकर आईं। उन्होंने सबसे पहले मेरे लंबे बालों को मेरे मुंह में ठूंसा और मुझे पूरी तरह नंगा कर दिया। ना तो मुझे सुन्न किया गया और ना ही कोई दवा दी गई।
उन्होंने मेरे प्राइवेट पार्ट्स धागे से बांधे। एक चाकू ऊपर, एक नीचे रखा और झटके में उन्हें काट दिया। मुझे भयानक दर्द हो रहा था। मैं बेहोश हो गई। दाई मां ने मुझे 30-35 थप्पड़ मारे, फिर मुझे होश आया। आखिर देखिए औरत बनने के लिए मैं मौत तक पहुंच गई।
होश आया तो देखा पूरे कमरे में खून फैला था। दाई मां उस खून को अपने शरीर पर लगा रही थीं और मुझे भी खून को पूरे शरीर पर लगाने की रस्म निभाने को कहा। ऐसा माना जाता है कि अगर उस खून को पूरे शरीर पर लगाया जाए तो सूरत औरत जैसी निखर आती है। यह भी माना जाता है कि कोई मौत का दरवाजा खटखटा कर वापस नई जिंदगी पाया है, जो जश्न की बात होती है।
उस वक्त दर्द से कराहते हुए भी मेरे दिमाग में एक ही बात चल रही थी कि अब मेरी शादी हो जाएगी। मेरी जिंदगी में लड़का आएगा।
खून को शरीर पर लगाने के बाद दाई मां ने अजवाइन और लहसुन के छिलकों से मेरे जख्मों पर धुआं दिया। उस पर गरम तेल डाला। यह सब तीन दिन तक चलता रहा। चौथे दिन मुझे संध्या गुरु के घर ले जाया गया, जहां 40 दिन एक कमरे में बंद रखा गया। इसे हमारे किन्नर समाज में जचका कहते हैं। जचका में 40 दिन तक शीशा नहीं देखा जाता।
वहां रोज कमरे में खड़ा करके मेरे जख्मों पर गरम पानी डाला जाता, ताकि वे ठीक हो सकें। 40 दिन पूरा हुआ तो मेरी गोद भराई हुई। हल्दी, मेहंदी लगाई गई। हरे और लाल रंग की साड़ी पहनाई गई। पूरा श्रृंगार किया गया। मेरी गुरु ने मुझे मंगलसूत्र पहनाया। उस वक्त मुझे अपने घर की और भाइयों की बहुत याद आ रही थी।
फिर मुझे शीशा दिखाया गया। 40 दिन बाद शीशे में खुद को देखकर लगा- अरे यह मैं ही हूं! इतनी सुंदर लग रही थी कि क्या बताऊं। उस वक्त लगा कि अब औरत बन गई हूं। अब अपने प्यार मोहन को पा लूंगी। मैंने उसको पाने के लिए ही यह सब करवाया है।
मेरे मोहन से प्रेम की बात जब गुरु संध्या को पता चली तो उन्होंने मुझे बुलाया। फटकारते हुए कहा- ‘ऐसा मत सोचना की तुम औरत बन गई हो और तुमसे कोई शादी कर लेगा। अब भी हिजड़ा हो और हिजड़ा ही रहोगे। हिजड़ों से कोई शादी नहीं करता। उनका घर नहीं बसता।’
उसके बाद तो मेरे अरमानों पर पानी फिर गया। तब मैंने तय किया अब बचपन वाले कृष्ण गोपाल को अपना मोहन बनाऊंगी। दुनिया के लोगों से प्यार करूंगी।

काजल अपना प्राइवेट पार्ट कटवाने के बाद 40 दिन तक एक कमरे में बंद रहीं, जहां उनके जख्मों पर गरम पानी डाला गया। 40 दिन बाद उन्होंने शीशे में पहली बार खुद को औरत के रूप में देखा।
अब मैं औरत बन गई थी। मुझे पता चला कि पंजाब में बच्चा पैदा होने पर बधाई गाने के लिए किन्नरों को बहुत इज्जत मिलती है। मैंने अपनी गुरु से कहा- पंजाब जाना चाहती हूं। पहले तो तैयार नहीं हुईं, फिर मान गईं और मुझे यहां भेज दिया।मैं 1995 में चंडीगढ़ के मनीमाजरा इलाके में आ गई। यह मुझे मुंबई से बिल्कुल अलग लगा। यहां किन्नरों को अपमान करना बुरा माना जाता है। उन्हें किसी के घर से खाली हाथ जाने नहीं दिया जाता। फिर यहां बधाई गाने लगी। इसमें अपनी पहचान बनाई और यहीं की हो गई।
मुझे अमिताभ बच्चन के टीवी शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ से भी बुलावा आया था, लेकिन मेरी गुरु ने जाने से मना कर दिया था। वो कह रही थीं- ‘ये सब करोगी तो हिजड़ों की परंपरा कौन निभाएगा।’
मुझे नौ भाषाएं आती हैं। अपने डेरे पर जब भी अंग्रेजी बोलती थी तो बवाल मच जाता था। हमारे साथी किन्नर कहते- ‘अरे तू हिजड़ा है, सिर्फ ताली बजा।’ लेकिन फिर भी मैं टॉयलेट में छिपकर अखबार, किताबें पढ़ती थी। किसी के घर जाती, तो वहां भी किताबें और अखबार ढूंढ़कर पढ़ती थी।
मैंने किन्नरों के हक की लड़ाई भी शुरू की है। उन्हें नौकरी मिल सके इसके लिए पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। उस पर तो मेरे समुदाय ने ही मेरे खिलाफ फतवा निकाल दिया। कहा- तेरा सिर मुंडवाया जाएगा।
लेकिन उस याचिका के बाद ही देश में 2019 में ट्रांसजेंडर अधिकार अधिनियम लागू हो गया, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्ति को मान्यता मिली। अब वे अपने जेंडर का पहचान पत्र रख सकते हैं। जेंडर परिवर्तन का भी प्रमाण पत्र मिलता है।
मुझे अक्सर ब्लड डोनेशन कैम्प और ट्रांसजेंडर्स से जुड़े विषयों पर बोलने के लिए चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया जाता है। स्कूल-कॉलेजों में जाकर छात्रों को ट्रांसजेंडर्स और किन्नर समाज के प्रति संवेदनशील बनाती हूं।

काजल को तमाम सामाजिक काम के लिए अवॉर्ड मिले हैं। वह हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश की स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एम्बेसडर हैं। ब्लड डोनेशन कैम्प और ट्रांसजेंडर्स से जुड़े विषयों पर उन्हें अक्सर चीफ गेस्ट के तौर पर बोलने के लिए बुलाया जाता है।
मैं अब किन्नर बच्चों को पढ़ाती हूं। लेकिन जब उन बच्चों के माता-पिता उन्हें पढ़ाने के लिए मेरे पास लाते हैं तो समझाती हूं- इन्हें 15 साल तक अपने पास रखें। कई बार 15 साल में प्राइवेट पार्ट विकसित होते हैं। अब इसलिए 10वीं क्लास के बच्चों को ही पढ़ाने की जिम्मेदारी लेती हूं। आज मेरे पढ़ाए बच्चे वकील, डॉक्टर्स हैं। कुछ लॉ कर रहे हैं, कुछ एमए और पीएचडी कर रहे। कुछ तो इंग्लैंड, अमेरिका में हैं।
जो मां-बाप अपने किन्नर बच्चों को मेरे पास छोड़ना चाहते हैं, उन्हें रोकने में भी लगी हूं। जिस तरह मैं अपने मम्मी-पापा के पास नहीं रह सकी, नहीं चाहती कि वे भी अपने माता-पिता के साथ न रहें। वर्ना ये नाइंसाफी जारी रहेगी, लेकिन मेरा समुदाय साथ ही नहीं देता।
आज मैं ट्रांसजेंडर्स के लिए स्कूल कॉलेज में अलग से टॉयलेट बनवाने का काम कर रही हूं और जो ट्रांसजेंडर्स बधाई नहीं गाना चाहते, उनके लिए चाय की स्टॉल खुलवा रही हूं। इसके लिए मैं फंड्स की व्यवस्था करती हूं।
स्वच्छ भारत अभियान की ब्रांड एंबेसडर भी हूं। अब चाहती हूं कि हमें किन्नर या हिजड़ा कहना बंद किया जाना चाहिए। हमारे बिना मंगल कार्य अधूरे रहते हैं, इसलिए हमें मंगलमुखी कहा जाना चाहिए।

अपने घर में काजल मंगलमुखी। वह कहती हैं कि ट्रांसजेंडर्स के लिए स्कूल-कॉलेजों में वह अलग से टॉयलेट बनवाती हैं। जो ट्रांसजेंडर्स बधाई नहीं गाना चाहते, उनके लिए चाय की स्टॉल खुलवाती हैं। किन्नर बच्चों को पढ़ाती भी हैं। उनके पढ़ाए बच्चे वकील, डॉक्टर्स हैं।
(किन्नर काजल मंगलमुखी ने अपने ये जज्बात भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए हैं।)
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1- संडे जज्बात-पत्नी-बच्चे नहीं चाहते फिर भी लाश, मरीज ढोता हूं:लोग चिल्लाते हैं तो सांस अटक जाती है, पेशाब भी रोकना पड़ता है

मेरा नाम सुखदेव सिंह है। मैं एम्बुलेंस ड्राइवर हूं और पंजाब के नंगल का रहने वाला हूं। लोग कई बार एम्बुलेंस का हूटर बजाने पर भी रास्ता नहीं देते, जबकि उस हूटर के पीछे एक जिंदगी मौत से जूझ रही होती है। उस हालत में परिजन चिल्लाकर मेरे ऊपर प्रेशर बनाते हैं तो दिमाग में धुंध छा जाती है, सांस अटक जाती है। पूरी खबर यहां पढ़ें
2- संडे जज्बात-‘हमारे अंधेपन का मजाक उड़ाने पर हमने रास्ते बदले’:लोग बहाने से हाथ छूते हैं, ससुर की बेइज्जती से तंग आकर घर छोड़ा

मेरा नाम समता है। मैं 75 फीसदी विजुअली इम्पेयर्ड यानी दृष्टिबाधित हूं। मेरी बहन सुमन भी ठीक से देख नहीं पाती और पापा तो 100 फीसदी दृष्टिबाधित हैं। लोग कुछ भी लेते-देते समय हाथ छूते हैं। मेरी अंधेपन का फायदा उठाकर ऑटो वाले कई बार मुझे गलत रास्ते से लेकर गए।
शादी होने के बाद ससुराल में बहुत जलालत झेली। मेहमान घर पर आते, तो मैं डर जाती थी क्योंकि मेरे ससुर उन्हीं के सामने बेइज्जती करना शुरू कर देते थे। कहते थे- देखो मैंने कितना बड़ा उपकार किया है, ब्लाइंड बहू लाया हूं। आखिरकार तंग आकर मैंने घर ही छोड़ दिया।
दरअसल, मेरे परिवार में सभी लोग दृष्टिबाधित हैं। बस मां हैं, जिन्हें दिखाई देता है, लेकिन उनका एक पैर पूरी तरह पोलियोग्रस्त है। पूरी खबर यहां पढ़ें
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