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Malegaon Blast Case; Yogi Adityanath Pravin Togadia | ATS Torture | ‘पुलिसवालों ने दांत तोड़े, कहते थे-तुम्हारी बेटी से रेप करेंगे’: मालेगांव ब्लास्ट से बरी रमेश और समीर बोले- कस्टडी में मांस खिलाया, जनेऊ कुचला

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‘एक सुबह मैं पत्नी के साथ घर के बाहर टहल रहा था। तभी ATS वाले आए और मुझे उठा ले गए। आरोप लगाया कि मैंने मालेगांव ब्लास्ट की साजिश रची है। मुझे बुरी तरह पीटते थे। कहते थे कि पत्नी को यहां लाएंगे और तुम्हारे सामने नंगा करेंगे। बेटी से रेप करेंगे। वे लो

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ATS पर टॉर्चर करने का आरोप लगाने वाले रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय 8 सितंबर, 2008 को हुए मालेगांव बम ब्लास्ट में आरोपी थे। 31 जुलाई, 2025 को कोर्ट ने उन्हें और बाकी 6 आरोपियों को बरी कर दिया। रमेश उपाध्याय अब पुणे के हड़पसर एरिया में रह रहे हैं।

दैनिक भास्कर ने उनसे बात की। रमेश उपाध्याय ने बीते 17 साल की पूरी कहानी सुनाई। हम इसी केस में आरोपी रहे समीर कुलकर्णी से भी मिले। दोनों ने दावा किया कि महाराष्ट्र ATS ने उन्हें कस्टडी में बुरी तरह पीटा और गलत गवाही देने का दबाव बनाया।

पहले रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय की आपबीती

‘प्राइवेट पार्ट पर इलेक्ट्रिक शॉक दिए, जनेऊ पर पैर रखकर मसला’ रमेश उपाध्याय मालेगांव केस में 17 साल चले ट्रायल और 9 साल की सजा काटने के बाद बरी हुए हैं। इस केस की शुरुआत कैसे हुई? रमेश उपाध्याय बताते हैं, ’24 अक्टूबर, 2008 की सुबह मैं पत्नी के साथ टहलने निकला था। तभी एक गाड़ी हमारे पास आकर रुकी। उसमें से 4-5 लोग उतरे। उन्होंने कहा कि हम ATS से हैं। आपको हमारे साथ चलना होगा। जिस तरह से वे लोग आए थे, लग रहा था कि हमला कर सकते हैं इसलिए मैं उनके साथ चल दिया।’

‘ATS ने मेरे ऊपर मालेगांव ब्लास्ट की साजिश रचने का आरोप लगाया। मुझे जानबूझकर 24 अक्टूबर को उठाया गया। 25 और 26 अक्टूबर को शनिवार-रविवार था। 28 अक्टूबर को दिवाली थी। इस वजह से 5 दिन तक छुट्टियां थीं। मुझे और बाकी आरोपियों को गैरकानूनी हिरासत में रखा गया। ये 5 दिन यातनाओं से भरे थे। 29 अक्टूबर को मुझे और बाकी लोगों को नासिक कोर्ट में पेश किया गया।’

रमेश उपाध्याय आगे कहते हैं-

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हिरासत में हमें बेल्ट और घूंसों से पीटा गया। प्राइवेट पार्ट्स पर करंट लगाया। मेरे पैरों पर लकड़ी रखते थे, इसके बाद उस पर दो सिपाही खड़े होते थे। ये बहुत दर्दनाक था।

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‘मैं जनेऊ पहनता हूं। जनेऊ पर पैर रखकर उसे मसला गया। जमीन पर लिटाकर पीटा। पूरा शरीर सूज जाता था। हालत ऐसी हो जाती थी कि उठकर खुद टॉयलेट नहीं जा पाते थे। वे लोग इतने पर भी नहीं रुकते थे। कमरे में पानी भर देते थे, हमें गीला करके एसी चला देते थे। ये मारपीट परमबीर सिंह (मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर) खुद तो कर ही रहे थे, उनके मातहत अधिकारी और सिपाही भी करते थे।’

क्या पूछताछ करते थे? उपाध्याय जवाब देते हैं, ‘हमें कुछ नाम बताते थे। कहते थे कि इनके नाम ले लो। वे इन लोगों के नाम ब्लास्ट से जोड़ना चाहते थे। हम बार-बार कहते रहे कि हम कभी मालेगांव नहीं गए। हमने ब्लास्ट नहीं किया। आप जिनके नाम लेने के लिए कह रहे हैं, उनसे हमारी कभी बात नहीं हुई।

‘उन्हें हमसे ये नहीं सुनना था। उन्हें बस इतना सुनना था कि हम मालेगांव ब्लास्ट की साजिश में शामिल हैं।’

‘कहते थे तुम्हारे सामने पत्नी को नंगा करेंगे, बेटी से रेप करेंगे’ रमेश उपाध्याय एक पल के लिए चुप हो जाते हैं। फिर कहते हैं, ‘हमसे नाम उगलवाने के लिए पुलिस अधिकारी कहते थे कि यहीं तुम्हारे सामने तुम्हारी पत्नी को नंगा करेंगे। बेटियों से रेप करेंगे। ये टॉर्चर सिर्फ हम तक सीमित नहीं था। उन्होंने हमारे मकान मालिक से कहा कि तुमने आतंकवादियों को शरण दी है। मकान मालिक ने हमारा सामान बाहर फेंक दिया। कोई हमें किराए पर घर नहीं देता था।’

‘बच्चों के कॉलेज, बेटियों के ऑफिस जाकर पुलिस कहती थी कि ये टेररिस्ट के बच्चे हैं। बेटे का कॉलेज जाना छूट गया। वो उस वक्त कानून की पढ़ाई कर रहा था। बेटियों का नौकरी करना मुश्किल हो गया। पुलिसवाले बेटियों के ससुराल भी जाते थे। उनसे तरह-तरह के सवाल करते थे। ससुरालवालों को परेशान करते थे’

‘हमारा नार्को टेस्ट हुआ, रिपोर्ट भी आई, पर दबा दी गई’ उपाध्याय कहते हैं, ‘हमें मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो पहली ही लाइन हमने यही कही कि आप हमारा नार्को टेस्ट करा लें। सब क्लियर हो जाएगा। हमारे अलावा कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा समेत सभी आरोपियों का तीन बार टेस्ट हुआ। उस रिपोर्ट को कोर्ट में जमा ही नहीं किया गया।’

रिपोर्ट क्यों जमा नहीं हुई? उपाध्याय जवाब देते हैं, ‘उन्हें नहीं करनी थी। हमने एप्लिकेशन लगाई कि रिपोर्ट जमा की जाए। हमने तर्क दिया कि 2006 के मालेगांव ब्लास्ट में 9 आरोपी इसलिए छूट गए थे क्योंकि उन्होंने दूसरी बार हुए नार्को टेस्ट में अपराध कबूल नहीं किया था। पहली बार में उन्होंने माना था कि ब्लास्ट उन्हीं ने किया है। लिहाजा हमारी भी रिपोर्ट जमा हो, ताकि सच सामने आए।’

कोर्ट ने रिपोर्ट नहीं मांगी? उपाध्याय कहते हैं, ‘प्रॉसिक्यूशन ने कोर्ट से कहा कि ये रिपोर्ट हमारी जांच को सपोर्ट नहीं करती है। हम इस पर भरोसा नहीं करते, इसलिए इसे कोर्ट में जमा नहीं कर सकते। कोर्ट ने भी प्रॉसिक्यूशन की बात मानी और हमारी एप्लिकेशन खारिज कर दी।’

‘मैंने RTI के जरिए नार्को टेस्ट रिपोर्ट निकाली और कोर्ट में जमा की। इस केस में कई जज बदले। सभी ने उस रिपोर्ट को देखा, पर उस पर बहस नहीं हुई। जजों को ये मालूम था कि हम बेगुनाह हैं। 31 जुलाई 2025 के फैसले में इस रिपोर्ट को भी सबूत माना गया।’

‘BJP-RSS से कोई मदद नहीं मिली’ रमेश उपाध्याय 1998 से 2003 तक BJP के पूर्व सैनिक मंच के अध्यक्ष रहे। RSS के धर्म जागरण विभाग से जुड़े रहे। हमने उनसे पूछा कि क्या पार्टी या संगठन से कोई मदद मिली? उपाध्याय बिना लाग-लपेट कहते हैं, ‘मदद तो दूर, किसी ने बात तक नहीं की। जेल से छूटने के बाद भी किसी ने सुध नहीं ली। अब फैसला आ गया, तब भी कहीं से फोन नहीं आया।’

17 साल बाद बरी हुए, कानूनी आधार क्या बना? उपाध्याय कहते हैं, ‘मैं और समीर कुलकर्णी दोनों ने चार्जशीट पढ़ी। इसका ज्यादातर हिस्सा मराठी में और कुछ अंग्रेजी में था। समीर की मराठी और मेरी अंग्रेजी अच्छी है। हमने इससे 4 पॉइंट निकाले। इन 4 पॉइंट पर पूरा केस खत्म हो गया।

1. बाइक में इस्तेमाल बाइक साध्वी प्रज्ञा की है, इसके सबूत नहीं हैं साध्वी प्रज्ञा का नाम लेकर जो बाइक इस केस में सबसे बड़े सबूत की तरह पेश की गई। उसका चेसिस नंबर और इंजन नंबर नहीं था। और भी जो नंबर होते हैं, वे चार्जशीट में नहीं थे। मतलब यही सबूत नहीं मिला था कि ये किस बैच की बाइक है। इसके मालिक का पता लगाना तो दूर की बात है।

2. फरीदाबाद-भोपाल में मीटिंग का सबूत नहीं मिला उपाध्याय कहते हैं कि चार्जशीट में कहा गया था कि जनवरी 2008 में फरीदाबाद और अप्रैल 2008 में भोपाल में बैठक हुई थी। इन्हीं बैठकों में ब्लास्ट की साजिश रची गई। ये आरोप भी साबित नहीं हो पाया। चार्जशीट पढ़ते वक्त ये दूसरा पॉइंट भी हमने निकाला था। जिस गवाह ने इन बैठकों में साजिश रचने की गवाही दी थी, उसका हमसे कोई संबंध नहीं निकला।

3. एक आरोपी के लैपटॉप में मिले ऑडियो से आवाज मैच नहीं हुई उपाध्याय बताते हैं, ‘शंकराचार्य भी इस केस में आरोपी थे। उनके लैपटॉप से ऑडियो मिले। कहा गया कि हमारी आवाजें उससे मैच कर रही हैं। इसकी जिन पुलिसवालों ने गवाही दी थी, वे हमसे कभी नहीं मिले थे। न ही कभी हमारी फोन पर बात हुई थी। फिर वे हमारी आवाज कैसे पहचान सकते हैं।’

‘FSL रिपोर्ट में ये साबित हो गया। प्रॉसिक्यूशन ने FSL रिपोर्ट भी कोर्ट में जमा नहीं की। मैंने इसे RTI से निकाला और कोर्ट में जमा किया। लैपटॉप किसका है, ये भी साबित नहीं हो पाया।’

4. फोन पर की बात इंटरसेप्ट कर कोर्ट में पेश की, वह ब्लास्ट के बाद की थी उपाध्याय कहते हैं, ‘हमारी फोन पर की गई बातों को इंटरसेप्ट कर कोर्ट में पेश किया गया। इसमें सबसे बड़ा पेंच ये था कि ये बातचीत ब्लास्ट के बाद की थी। इसे ब्लास्ट से पहले की बताकर कोर्ट में जमा किया गया। कहा गया कि ये लोग साजिश रच रहे थे। पहली बात कि धमाका होने के बाद तो साजिश की नहीं होगी। साजिश तो पहले होती है। दूसरी बात उसमें कोई कबूलनामा भी नहीं था।’

अब समीर कुलकर्णी की आपबीती

समीर कुलकर्णी ने केस लड़ने के लिए वकील नहीं किया। उन्होंने खुद अपना केस लड़ा। 9 साल बाद जेल से छूटे, फिर ट्रायल की हर तारीख पर कोर्ट पहुंचे। कुलकर्णी RSS से जुड़े हैं। सिर्फ भगवा कपड़े ही पहनते हैं। उन्होंने शादी नहीं की है। परिवार में सिर्फ मां हैं।

‘15 मिनट पूछताछ का बोलकर प्लेन से मुंबई ले गए’ कुलकर्णी कहते हैं, ’25 अक्टूबर को मैं भोपाल से ग्वालियर जा रहा था। हबीबगंज रेलवे स्टेशन पर कुछ पुलिसवालों ने चुपके से बताया कि आपकी जान को खतरा है। मैंने मजाक में टाल दिया। फिर कुछ पुलिसवाले आए और मुझसे 15 मिनट मांगे। मैं उनकी गाड़ी में बैठा, तो वे सीधे भोपाल के एयरपोर्ट पर ले गए। इसके बाद मुझे मुंबई ले गए।’

वे आगे कहते हैं, ‘ये पूरी साजिश सरकार चला रही पार्टी की थी। हम लोग सरकार की देश विरोधी, धर्म विरोधी गतिविधियों का विरोध करते थे, इसलिए निशाना बने। उस वक्त की सरकार का शीर्ष नेतृत्व मुस्लिम समुदाय को खुश करने में लगा था।’

‘मुझसे कहा-भागवत, योगी, तोगड़िया का नाम ले लो, चुनाव के बाद मुकर जाना’ समीर कुलकर्णी भी रमेश उपाध्याय की बात पर मुहर लगाते हैं। वे कहते हैं- ‘हमसे कहा गया कि योगी आदित्यनाथ, मोहन भागवत, इंद्रेश, प्रवीण तोगड़िया का नाम ले लो। हमें ऑफर दिया गया कि नाम ले लो और सरकारी गवाह बन जाओ। 2009 के लोकसभा चुनाव के बाद बयान से मुकर जाना।’

समीर कहते हैं, ‘मैं जानता था कि मैं बेगुनाह हूं। इसलिए मैंने कोई वकील नहीं किया। मैं निर्दोष हूं, ये मुझे साबित नहीं करना था। अभियोजन पक्ष को साबित करना था कि हम दोषी हैं। मैं ये भी जानता था कि अगर हमने अपराध किया ही नहीं है, तो फिर ये लोग सबूत कहां से लाएंगे। मैंने कोर्ट की एक भी तारीख छोड़ी नहीं। यहां तक कि कभी देर से भी नहीं पहुंचा, ताकि कोई बहस न छूटे।’

‘गीता, हनुमान चालीसा को पैरों से कुचला, मुंह में मांस ठूंसा’ समीर कुलकर्णी आगे कहते हैं, ‘पुलिसवाले हमें रोज 20-20 घंटे तक पीटते थे। तलवों पर डंडे मारे गए। बिजली के शॉक दिए। चेहरे पर 30-40 किक मारते थे। उसी वक्त मेरे तीन दांत टूट गए। उन्हें पता था कि मैं शाकाहारी हूं। उन्होंने मेरे मुंह में मांस के टुकड़े ठूंसे।’

‘हमारे पास कुछ धर्म ग्रंथ थे, जैसे गीता, हनुमान चालीसा और राम रक्षास्त्रोत। ATS के अफसरों और सिपाहियों ने उन्हें हमसे छीनकर फाड़ दिया। हमारे सामने पैरों से कुचला।’

इस दौरान आपकी मां कहां थीं? समीर कुलकर्णी जवाब देते हैं, ‘मेरी बुजुर्ग मां ने भी बहुत कुछ सहा। ये लोग 9 साल तक उन्हें बार-बार पूछताछ के लिए बुलाते थे। उन्होंने रिश्तेदारों के यहां रहकर इतने साल काटे।’

‘मैंने जो पहले दिन कहा, 17 साल बाद वही कोर्ट ने दोहराया’ समीर कुलकर्णी कहते हैं, ’हम पहले दिन से कह रहे थे कि हम निर्दोष हैं। अब कोर्ट ने वही फैसला सुनाया, जो हम कह रहे थे। इस पूरे मामले के दोषी महाराष्ट्र ATS के परमबीर सिंह, सुखविंदर सिंह, अनामी राय, सचिन कदम और अरुण खानविल्कर हैं। इन लोगों ने पूरी जांच की, लेकिन ये लोग कोर्ट में गवाही देने नहीं आए। इतना बड़ा आरोप लगाकर ये लोग गायब हो गए।’

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1. मालेगांव के विक्टिम बोले- हमारे बच्चे मरे, बताओ मुजरिम कौन, इंसाफ कौन देगा

‘मालेगांव ब्लास्ट के सभी 7 आरोपी बरी हो गए। ये सरासर गलत फैसला है। अगर सब छूट गए, तो फिर बताओ मुजरिम कौन है, हमें इंसाफ कौन देगा।’ 80 साल के निसार अहमद का शरीर ये बात बोलते हुए गुस्से में कांपने लगता है। जिस अजहर को निसार अहमद इंसाफ दिलाना चाहते हैं, वो उनका बेटा था। इस ब्लास्ट में 6 लोग मारे गए थे। इनमें 10 साल की शगुफ्ता भी थी। पढ़िए पूरी खबर…

2. कर्नल पुरोहित की पत्नी का दावा- ISI-दाऊद की जांच का बदला लिया

मालेगांव ब्लास्ट केस में सेना में कर्नल श्रीकांत प्रसाद पुरोहित भी आरोपी थे। उनकी पत्नी अपर्णा दावा करती हैं कि ATS ने कर्नल पुरोहित को गैरकानूनी तरीके से उठाया था। कर्नल ने जाकिर नाईक, फेक करेंसी के रैकेट, दाऊद इब्राहिम और पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI पर रिपोर्ट तैयार की थीं। ATS वाले इन रिपोर्ट्स के सोर्स के बारे में पूछते थे। पढ़िए पूरी खबर…

3. ATS में रहे अफसर बोले- ACP कहते थे, मोहन भागवत को उठाकर लाओ

मालेगांव ब्लास्ट में कोर्ट का फैसला आने के बाद ATS के पूर्व अधिकारी रहे महबूब मुजावर सामने आए। उन्होंने दावा किया कि ATS के अधिकारियों ने RSS चीफ मोहन भागवत को ब्लास्ट केस में फंसाने की साजिश रची थी। महबूब के मुताबिक, मुंबई के ACP रहे परमबीर सिंह ने उन्हें नागपुर से RSS चीफ मोहन भागवत को उठाकर लाने का आदेश दिया था। पढ़ें पूरी खबर…

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