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Jammu Kashmir Kishtwar Cloudburst Tragedy; Chasoti | Machail Mata Yatra | किश्तवाड़ में 65 मौतें, 200 लापता; अपनों की तलाश जारी: 4 मंदिर समेत पूरा गांव मलबे में दबा, चश्मदीद बोले- एक धमाका और सब खत्म

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‘दोपहर का वक्त था। हम सब घर पर ही थे। तभी एक भयानक आवाज सुनाई दी। बेटी ने कहा- लगता है, कोई VIP हेलिकॉप्टर से मचैल माता की यात्रा में शामिल होने आया है। हम जैसे ही बाहर निकले, हमें पहाड़ी के ऊपर अजीब सी धुंध और धूल दिखाई दी। पल भर में बड़े-बड़े पत्थर

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किश्तवाड़ के चसोटी गांव में 14 अगस्त की दोपहर बादल फटने के बाद आए सैलाब को पूजा देवी ने बहुत करीब से देखा है। उनका मकान गांव के पास ही थोड़ी ऊंचाई पर है। लिहाजा घर तो सुरक्षित बच गया, लेकिन गांव के काली मंदिर में पूजा-पाठ करने गए अपने पिता को उन्होंने खो दिया। पूजा बताती हैं कि काली माता मंदिर के आस-पास ही गांव में 4 मंदिर थे, लेकिन किसी का नामोनिशान नहीं बचा।

हादसा दोपहर करीब 12:30 बजे हुआ। हजारों श्रद्धालु मचैल माता यात्रा के लिए किश्तवाड़ के पड्डर सब-डिवीजन में चसोटी गांव पहुंचे थे। ये पैदल यात्रा का पहला पड़ाव है। 25 जुलाई को यात्रा शुरू होने के बाद से ही यहां लंगर चल रहा था। रोज 5000 लोगों के लिए खाना बन रहा था। घटना के दिन भी यहां काफी श्रद्धालु थे। सैलाब में उनकी बसें, टेंट, लंगर, दुकानें सब बह गईं।

हादसे में अब तक 65 लोगों की मौत हो चुकी है। 500 से ज्यादा लोग रेस्क्यू किए गए हैं, जबकि 200 लोग अब भी लापता हैं। 80 लापता लोगों की डिटेल उनके परिजन ने प्रशासन को दी है। NDRF की 3 टीमें, सेना के 300 से ज्यादा जवान, व्हाइट नाइट कोर मेडिकल टीम, पुलिस, SDRF और अन्य एजेंसियां रेस्क्यू में जुटी हैं।

किश्तवाड़ के चसोटी गांव में दैनिक भास्कर की टीम ग्राउंड जीरो पर पहुंची। हमने मौजूदा हालात और रेस्क्यू देखा। साथ ही घटना के चश्मदीदों और प्रभावितों से मिले।

सब बाढ़-मलबे में दफन, गांव का नामोनिशान नहीं बचा जम्मू से करीब 210 किमी का सफर तय कर हम किश्तवाड़ पहुंचे। चसोटी गांव यहां से लगभग 90 किलोमीटर और मचैल माता मंदिर के रास्ते में पहला गांव है। ये जगह पड्डर घाटी में आती है, जो 14-15 किलोमीटर अंदर की ओर है। इस इलाके के पहाड़ 1,818 मीटर से लेकर 3,888 मीटर तक ऊंचे हैं। इतनी ऊंचाई पर ग्लेशियर और ढलानें हैं, जो पानी के बहाव को तेज करती हैं।

यहां बाढ़ और मलबे ने गांव को ऐसा ढंक लिया है, जिसे देखकर ऐसा लगता है कि यहां कभी कुछ था ही नहीं। हादसे से पहले गांव में 300 लोग रहते थे, लेकिन अब ये वेस्टलैंड में तब्दील हो गया है।

चसोटी गांव के जिन लोगों के घर बादल फटने से बह गए, उन्हें पास के गांव में पहुंचाया जा रहा है। यहां लोगों के खाने-पीने और रहने की व्यवस्था की गई है।

चसोटी गांव के जिन लोगों के घर बादल फटने से बह गए, उन्हें पास के गांव में पहुंचाया जा रहा है। यहां लोगों के खाने-पीने और रहने की व्यवस्था की गई है।

गांव वाले बताते हैं कि जब ये हादसा हुआ, तब मचैल माता तीर्थयात्रा चल रही थी। ये हर साल जुलाई से शुरू होकर 5 सितंबर तक चलती है। इसमें हजारों श्रद्धालु आते हैं। इसमें पड्डर से चसोटी तक 19.5 किमी तक सफर गाड़ियों से तय किया जा सकता है। इसके बाद 8.5 किमी की पैदल यात्रा होती है। जब हादसा हुआ, तब बड़ी संख्या में श्रद्धालु यात्रा के लिए चसोटी पहुंचे हुए थे।

यहीं रहने वाली पूजा देवी बताती हैं, ‘आपदा के वक्त मेरे पापा गांव के काली मंदिर पूजा करने गए थे। उसके बाद से उनकी कोई खबर नहीं मिली। बाढ़ के बाद से जब मंदिर का ही नामोनिशान नहीं बचा, तब मेरे पापा भला कैसे जिंदा हो सकते हैं। यहां हर तरफ इतना मलबा है कि अब तक उनकी डेडबॉडी भी नहीं मिल सकी है।’

गांव में हुए नुकसान के बारे में पूछने पर पूजा कहती हैं, ‘अब यहां गांव बचा ही कहां है। यहां तो बस अब तबाही के निशान हैं।‘

गांव के काली माता मंदिर के मुख्य पुजारी भी मंदिर के साथ इस सैलाब में बह गए। आपदा को लेकर उनकी बेटी मीना देवी कहती हैं, ‘हमारे गांव के लोगों से पाप हुआ है। मेरे पिता लगातार चेतावनी दे रहे थे कि ये मां चंडी का श्राप है। उन्होंने हमारे मंदिर और हमारे देवी-देवता हमसे छीन लिए। ये बहुत बड़ा अपशकुन हो गया है। अब हमें यहां नहीं रहना चाहिए।’

जम्मू-कश्मीर सरकार ने पूरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों के लिए 1 लाख रुपए, बुरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों के लिए 50 हजार रुपए और आंशिक नुकसान पर 25 हजार रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।

जम्मू-कश्मीर सरकार ने पूरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों के लिए 1 लाख रुपए, बुरी तरह क्षतिग्रस्त इमारतों के लिए 50 हजार रुपए और आंशिक नुकसान पर 25 हजार रुपए आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।

चंद सेकेंड में हमारी पूरी दुनिया ही उजड़ गई, अब कहां जाएं चसोटी इलाके का आखिरी गांव है, जहां तक गाड़ियां पहुंच सकती हैं। बादल फटने और बाढ़ के चलते अब यहां सब तबाह हो गया है। सैलाब अपने साथ CISF कैंप और करीब 16 मकान बहा ले गया।

चसोटी में रहने वाली शांति चंद घटना को याद कर सिहर उठती हैं। वे कहती हैं, ‘इस हादसे ने तो हमारी दुनिया ही उजाड़ दी। बाढ़ में हमारे दोनों घर बह गए। मेरे ससुर ठाकुर चंद और जेठ समेत कई रिश्तेदार इस तबाही में मारे गए। हमारा सब कुछ छिन गया। आखिर अब हम कहां जाएं, क्या करें। हमारे पास तो अब सिर छिपाने तक के लिए जगह नहीं है।‘

घटना की चश्मदीद शांति चसोटी में होटल चलाती थीं। अब वो भी नहीं रहा। वो घटना के दिन का आंखों देखा हाल बताते हुए कहती हैं,

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जब बादल फटा और मलबा गांव की ओर बढ़ा तो सब भागने लगे। जो भागने में कामयाब हुए वो बच गए। जो नहीं भाग सके, वो सैलाब के साथ बह गए। बस चंद सेकेंड में ये बाढ़ अपने साथ सबको समेट ले गई।

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चसोटी में छोटा सा होटल चलाने वाले रवि शर्मा भी जान बचाने में कामयाब रहे। वो घटना के दिन का जिक्र करते हुए कहते हैं, ‘पहले हमें अजीब सी आवाज सुनाई दी। अगले पल ही समझ आ गया कि ये बादल फटने की आवाज है। पहाड़ टूटकर गांव की तरफ गिरने लगा। हम सब जान बचाकर भागे।‘

‘मैंने पापा और अपने स्टाफ के साथ आस-पास मौजूद लोगों को भागने के लिए आवाज लगाई। कुछ लोग भागने में कामयाब रहे, लेकिन कुछ सैलाब की चपेट में आकर जख्मी हो गए। अभी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा है।‘

इलाके में सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। खराब मौसम की वजह से बचाव अभियान में परेशानी आ रही है।

इलाके में सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन जारी है। खराब मौसम की वजह से बचाव अभियान में परेशानी आ रही है।

हादसे के वक्त मंदिर में चल रहा था लंगर सरकारी डेटा के मुताबिक, 80 से ज्यादा लोगों के लापता होने की आधिकारिक जानकारी मिली है। हालांकि, लोकल लोगों और चश्मदीदों की मानें तो इनकी संख्या 200 से ज्यादा हो सकती है। चश्मदीदों का कहना है कि काली माता मंदिर समेत चारों मंदिर और ब्रिज के पास लंगर चल रहा था, जिसमें हादसे के वक्त बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।

रवि बताते हैं, ‘मैंने अब तक की जिंदगी में कभी ऐसी घटना नहीं देखी। गांव में 3-4 मंदिर आस-पास ही थे, जहां मचैल माता तीर्थयात्रा के चलते लंगर चल रहा था। वहां काफी संख्या में श्रद्धालु जुटे थे, वो सब सैलाब की चपेट में आ गए। हमें अब भी नहीं पता कि कितने लोग लापता हैं। सच कहें तो इसका अंदाजा भी लगा पाना नामुमकिन है।‘

वहीं गांव के ही रहने वाले निखिल बताते हैं, ‘जब ये हादसा हुआ, तब लंगर में सबसे ज्यादा भीड़ थी। करीब 300 से 400 लोग खाना खाने जुटे थे। वो सब सैलाब के साथ बहते चले गए। जो तेज बहाव की वजह से पहाड़ी से नीचे गिरे, उनमें से कुछ जख्मी हुए, लेकिन बच गए। जो मलबे में दब गए, उनका अब तक पता नहीं चल सका है।

खराब मौसम और बारिश रेस्क्यू में बन रही रोड़ा सरकार चसोटी में राहत और बचाव कार्य को रफ्तार देने के लिए हेलिकॉप्टर तैनात करने की कोशिश में लगी है। हालांकि, पिछले 3-4 दिनों से खराब मौसम और तेज बारिश के चलते हेलिकॉप्टर की लैंडिंग कराना मुश्किल हो रहा है। रेस्क्यू टीम को लैंडिंग के लिए जगह नहीं मिल रही। इसकी वजह से ऑपरेशन में देरी हो रही है।

NDRF, SDRF, जम्मू-कश्मीर पुलिस और बाकी रेस्क्यू एजेंसी लगातार राहत और बचाव कार्य में जुटी हैं। रेस्क्यू टीम की पहली प्राथमिकता लापता लोगों की तलाश करना है। रेस्क्यू में जुटे अफसरों का कहना है कि तबाही बहुत बड़ी है। मलबा हटाने और रेस्क्यू ऑपरेशन में अभी कई दिन लग सकते हैं। टीमें मलबे और कीचड़ में लापता लोगों की तलाश कर रही हैं, ताकि अपने परिजन को तलाश रहे परिवारों को उनके शव सौंपे जा सकें।

रेस्क्यू टीम का कहना है कि परिजन अपनों की तलाश में लगातार चसोटी गांव में रेस्क्यू साइट पर पहुंच रहे हैं। उनकी सरकार से अपील है कि कम से कम उन्हें अपने परिजन के शव सौंप दिए जाएं, ताकि वो विधिविधान से अंतिम संस्कार कर सकें।

चसोटी में सर्च ऑपरेशन जारी है। यहां पेड़ों को काटा जा रहा और पत्थरों को तोड़ा जा रहा है। ताकि मलबा हटाकर लापता लोगों की तलाश की जा सके।

चसोटी में सर्च ऑपरेशन जारी है। यहां पेड़ों को काटा जा रहा और पत्थरों को तोड़ा जा रहा है। ताकि मलबा हटाकर लापता लोगों की तलाश की जा सके।

CM ने हर मुमकिन मदद का दिलाया भरोसा CM उमर अब्दुल्ला 15 अगस्त को किश्तवाड़ पहुंचे। उन्होंने लोकल लोगों से मुलाकात कर हालात का जायजा लिया। उमर किश्तवाड़ में ही रुके और अगले दिन सुबह चसोटी गांव पहुंचकर रेस्क्यू और रिलीफ ऑपरेशन देखा। इस दौरान परिजन को तलाश रहे कई परिवारों ने उन्हें घेर लिया और डेडबॉडी सौंपने की मांग करने लगे। कई परिवारों ने रेस्क्यू में लापरवाही को लेकर शिकायत भी की।

एक युवक ने CM से चिल्लाते हुए कहा, ‘हमें और कुछ नहीं चाहिए। हमें सिर्फ इस तबाही की चपेट में आए अपने रिश्तेदारों की डेडबॉडी दे दीजिए। कम से कम हम रीति-रिवाज से उन्हें अंतिम विदाई तो दे सकें।‘ इस पर मुख्यमंत्री ने पीड़ित परिवारों को भरोसा दिलाया है कि मलबे में दबे लोगों के शव जल्द से जल्द रिकवर करने की हर संभव कोशिश की जा रही है। रेस्क्यू टीमें बचाव में जुटी हैं।

जम्मू-कश्मीर के CM उमर अब्दुल्ला ने 15 अगस्त को किश्तवाड़ आपदा के पीड़ितों के लिए सीएम राहत कोष से मुआवजे की घोषणा की है। मृतकों के परिजन को 2 लाख रुपए की मदद दी गई।

जम्मू-कश्मीर के CM उमर अब्दुल्ला ने 15 अगस्त को किश्तवाड़ आपदा के पीड़ितों के लिए सीएम राहत कोष से मुआवजे की घोषणा की है। मृतकों के परिजन को 2 लाख रुपए की मदद दी गई।

कठुआ में भी 3 जगह बादल फटा जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले में बॉर्डर से सटे इलाके में 3 जगह बादल फटा। जोद घाटी इलाके में 7 लोगों की मौत हो गई और कई घायल हैं। जोद के अलावा मथरे चक, बगार्ड-चंगड़ा और दिलवान-हुटली में भी लैंडस्लाइड हुई। लैंडस्लाइड के बाद जोद गांव का शहर से संपर्क टूट गया था, काफी मशक्कत के बाद रेस्क्यू टीम गांव पहुंची।

घरों में कई फीट तक पानी-मलबा भरा है। घायलों को अस्पताल में भर्ती कराया गया है। कठुआ डिप्टी एसपी राजेश शर्मा ने कहा- लैंडस्लाइड में 2 से 3 मकानों को नुकसान पहुंचा है। जांगलोट समेत नेशनल हाईवे पर कई जगहों पर सड़क को भी नुकसान पहुंचा है। रेलवे ट्रैक भी बाधित है।

जम्मू-कश्मीर पुलिस, SDRF और NDRF की टीमें लगातार काम कर रही हैं ताकि सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।

जम्मू-कश्मीर पुलिस, SDRF और NDRF की टीमें लगातार काम कर रही हैं ताकि सर्च और रेस्क्यू ऑपरेशन जल्द से जल्द पूरा किया जा सके।

एक्सपर्ट बोले- ये ग्लोबल वॉर्मिंग का सीधा असर इस हादसे को लेकर हमने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हाइड्रोलॉजी के जियोलॉजिस्ट रियाज अहमद मीर से बात की। वे बताते हैं, ‘उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख और जम्मू-कश्मीर वेस्टर्न हिमालय के रीजन में आता है। इन इलाकों में बदलते क्लाइमेट के कारण ज्यादा आपदाएं होती हैं।’

‘क्लाइमेट में बदलाव के कारण हिमालयन रीजन की हवा में नमी तेजी से बढ़ी है। इसकी वजह से इन राज्यों में लगातार प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं।’ मीर अलर्ट करते हुए कहते हैं कि भविष्य इस तरह की घटनाएं और बढ़ सकती हैं।

मीर धराली का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ‘कुछ दिनों पहले ही हमने उत्तराखंड में ऐसे ही त्रासदी देखी, जहां बादल फटने से पूरा गांव तबाह हो गया। ये ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर है और हमें इसे गंभीरता से लेने की जरूरत है।’

वे खतरनाक बदलावों की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, ‘सर्दी के महीने में झरने सूख गए, बर्फबारी पहले से काफी कम हो गई और तापमान बढ़ गया। ग्लेशियर खिसक रहे हैं और अब तो सर्दियों के दौरान पहाड़ों की ऊपरी सतह पिघल रही है। ये अच्छे संकेत नहीं हैं।’

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