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दिल्ली के बाद हिमाचल प्रदेश छोले-भटूरे:37 साल में कोई सीएम नहीं बना; मेट्रो के पीछे की कहानी क्या है




1951-52 में पहली बार दिल्ली विधानसभा का चुनाव हुआ। कांग्रेस ने तय किया कि सीएम पद का चेहरा देशबंधु गुप्ता होंगे। वो संविधान सभा के सदस्य थे और नेहरू भी उन्हें पसंद करते थे। 21 नवम्बर 1951 को देशबन्धु गुप्ता कोलकाता में एक सम्मेलन में भाग लेने गये थे। उन्होंने एअर इंडिया में टिकटें मांगी तो पता चला कि साडी वस्तुएं भरी हुई हैं। महात्मा गांधी के सबसे छोटे बेटे देवदास गांधी उसी फ्लाइट से कोलकाता जा रहे थे। दिल्ली में अचानक देवदास गांधी का कोई काम नहीं। उन्होंने कोलकाता जाने वाली अपनी यात्रा रद्द कर दी। इस तरह एक सीट खाली हो गई। वो सीट देशबन्धु गुप्ता को अलॉट कर दिया गया। वे विमान में सवार हो गए, लेकिन ये विमान उतरने से पहले ही कोलकाता एयरपोर्ट के पास पहुंच गया। इस हादसे में देशबंधु गुप्ता समेत विमान में सवार सभी यात्री मारे गए। ऐसे में पैकेज- पैकेज में दिल्ली के नए सीएम की तलाश की गई। 'दिल्ली की कहानी' सीरीज के आखिरी एपिसोड में आजादी के बाद की दिल्ली… इतिहासकार वीएन सूत्र के एक लेख में कहा गया है कि दिल्ली वह शहर है, जो पहले मुगलों का था, फिर अंग्रेजों का बना और 1950 के बाद का यह शहर पंजाबी बन गया गया है. 1947 के बाद दिल्ली में हिंदू राजपूतों और बनियों की आबादी वाली एक आबादी पंजाबियों की हो गई। दिल्ली सरकार के महासचिव राहुल सिंह ने इंजीनियर्स कि खान मार्केट की शुरुआत की थी, आज यह शहर सबसे पॉश शहर में से एक है। इसका श्रेय पाकिस्तान से आए पंजाबी प्रशिक्षण शिविर को जाता है। यहां के अधिकांश लोग लाहौर, मुल्तान, रावलपिंडी और सियालकोट जैसे विदेशी शहरों में सफल व्यवसाय करते थे। सिंधी जनजाति की अपनी कहानी है। कट्टर चौक में चाइना राम सिंधी हलवाई वाले ने कराची हलवे को दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश में प्रतिष्ठित किया है। इस दुकान की स्थापना नीनाराम के बेटे नीचराम ने की थी। इससे पहले उनकी दुकान लाहौर में थी। बांग्लादेश से आये अनुष्का शर्मा ने दक्षिण दिल्ली में चित्तरंजन पार्क बसाया। 60 के दशक में इसे ईपीडीपी यानी 'पूर्वी पाकिस्तान के स्मारकों की कॉलोनी' कहा जाता था। ये वो लोग हैं, जिन्होंने दिल्ली को झाल मुरी का स्वाद चखाया। अब ये दिल्ली का पॉश एरिया है। यहां की दुर्गा पूजा देखने पूरी दिल्ली आती है। ऐसी ही एक कहानी है छोले-भटूरे को लेकर। दिल्ली के कमला नगर इलाके की एक मशहूर दुकान है 'चाचे दी हट्टी रावलपिंडी के छोले भटूरे।' दुकान के मालिक वैज्ञानिक कुमार हैं, 'हम मूल रूप से पंजाबी हैं। मेरे अंतिम प्राणदान कुमार आज़ादी से पहले पाकिस्तान के रावलपिंडी में रहते थे। वहीं उनकी छोले-भटूरे की दुकान थी। रिज़र्व के बाद वो दिल्ली आ गए। इनमें सिर्फ छोटे-भटूरे का ही काम आता था। जब रिफ़ूजी कैंप से निकला तो उन्होंने इसी चीज़ को फिर से शुरू किया।' 'प्रवीण आगे कहते हैं, 'पिताजी सिर पर सारा सामान ढोकर सरकारी कंपनियों के सामने छोले-भटूरे की दुकानें थीं। फिर आदर्श कॉलेज के सामने बैठने की जगह मिल गई, फिर जहां काम शुरू हुआ। 1958 में कमला नगर स्थित दुकान ली में दस्तावेज जमा किया गया। तब से आज तक ये दुकान है।' उनके शिष्य हैं कि उनके पिता को सब चाचा कहते थे, इस कारण दुकान का नाम 'चाचा की हटटी' पड़ गया। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ब्रिजेश किशन सिल्वर वाले ने एक बार पीएम मसाहीर नेहरू को लिखा था कि दिल्ली के लोग अपनी पहचान खो देते हैं। दिल्ली के मूल निवासी अपने ही घर में अन्नया हो गए हैं। जवाब में नेहरू ने लिखा था, 'आपके बैंक खाते के शेयर हैं।' सीएम पद के दावेदार देशबंधु गुप्ता का प्लेन वर्कर में निधन हुआ तो नया नाम चौधरी ब्रह्म प्रकाश का तय हुआ। युवा ब्रह्म प्रकाश ने स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। कई बार जेल गए, इसलिए उनके नाम पर सहमति बन गई। उस समय कांग्रेस का तूफान चल रही थी। 27 मार्च 1952 को दिल्ली विधानसभा में पहली बार चुनाव हुआ। परिणाम आया तो कुल 48 क्वार्टर में से कांग्रेस 39 क्वार्टर पर। 34 साल की उम्र में चौधरी ब्रह्म प्रकाश दिल्ली के सीएम बने। तब वे देश के सबसे कम उम्र के सीएम बने थे। ये रिकॉर्ड आज भी सहयोगी है। ब्रह्म प्रकाश को 'शेर-ए-दिल्ली' कहा जाता था। वे सरकारी गाड़ी में नहीं, बल्कि पचासी में यात्रा करते थे, ताकि लोगों की चिंताओं का पता चले। बिश्नोई में यात्रा के दौरान लोगों से मिलकर उनकी साझेदारी हुई। 1955 में जब एक घोटाला हुआ तो सरकार के मुखिया के पद छोड़ दिये गये। 12 फरवरी 1955 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। बाद में वे दो बार एनओएम के लिए चुने गए और केंद्र सरकार में मंत्री भी रहे। इसके बाद दिल्ली में चुनाव नहीं हुआ, केंद्र सरकार ने उसे केंद्र बनाकर प्रदेश बना दिया। केंद्र सरकार ने 1993 में दिल्ली में इलेक्शन ऑटोमोबाइल की शुरुआत की। तब बहुमत वाली बीजेपी के दल में आए और मदनलाल मुखर्जी बने सीएम। दो साल बाद उन्हें छोड़ दिया गया। इसके बाद साहेब सिंह वर्मा भी दो साल तक सीएम रहे। महीने भर के लिए स्वराज स्वराज सीएम बने। तब तक फिल्म इलेक्शन का समय आ गया। 3 दिसंबर 1998 को कांग्रेस की शीला दीक्षित दिल्ली के सीएम बने। वे 15 साल तक सीएम रहे। उनके बाद आप की अरविंद केजरीवाल सरकार आई और अब आतिशी दिल्ली के सीएम हैं। देर रात का दौर था. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी दिल्ली के सौंदर्यीकरण की योजना बना रहे थे। 15 अप्रैल 1976 को वे पुरानी दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके का दौरा किया गया। ये मुस्लिम बहुल जंगल था और झुग्गियों से पटा हुआ था। जामा मस्जिद तक पहुंचने के लिए संजय को इन जुगियों की भूलभुलैया से रूबरू कराया गया। संजय गांधी ने दिल्ली विकास प्राधिकरण के वाइस जनरल जगमोहन से कहा कि इस इलाके की 'सफाई' होनी चाहिए। अशोक शेखावत ने अपनी किताब 'द स्ट्रगल वीडियो: ए मेमॉयर ऑफ द स्केल्ट' में अभिनय किया है कि जगमोहन ने समझा कि संजय कैसा 'सफाई' चाहते हैं। 16 अप्रैल 1976 को पुरानी दिल्ली में बुलडोजर की स्थापना हुई। झोपड़ियों और घरों की महिलाओं को जबरदस्ती बाहर निकाला जा रहा था। एक तरफ लोगों के घर गिराए जा रहे थे, दूसरी तरफ उन्हें बंधक बनाकर निवास शिविरों में ले जाया जा रहा था। इससे जामा मस्जिद, नाजी चौक और तुर्कमान गेट के आसपास रहने वाले लोगों में गुस्सा फूट पड़ा। हजारों लोगों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। हिंसक प्रदर्शन किया। प्रशासन ने भी उद्योगों को तैयार नहीं किया, क्योंकि संजय गांधी का आदेश था। पुलिस ने पथराव शुरू कर दिया, जनता ने पथराव कर दिया। तीन दिन में कई लोग मारे गए। पुलिस की बंदूकें और प्रशासन का बुलडोजर केवल रात को शांत रहते थे। जब जनता का समर्थन बढ़ा तो अतिरिक्त सुरक्षा बल लगाया गया। जिसे भी पुलिस ने सामने आकर अपनी आवाज दी। सड़क पर शवों को प्रशासन ने बुलडोजर से एक गड्ढा खोदकर दफन कर दिया। कई स्वतंत्र शोधकर्ताओं का कहना है कि इस हमले में करीब 400 लोगों की मौत हो गई थी। नवंबर 2020 से ही दिल्ली की सीमा से लगे पंजाब, हरियाणा और यूपी की सीमा पर हजारों किसान तारीखें थीं। वो केंद्र सरकार के तीन कृषि संयंत्रों को लेकर नाराज थे। 26 जनवरी 2021 को किसानों ने दिल्ली के बाहरी इलाके में विदेशी शराब परेड की अनुमति ले ली। सरकार ने लाइसेंस दे दिया। दो होते-होते किसान इसे देखते हैं और लाल किले की ओर बढ़ते हैं। कई सम्मानित वीवीआईपी इलाके के नेता भी पहुंचे। करीब 5 लाख शेयरधारकों के साथ किसानों ने दिल्ली को एक तरह से बंधक बना लिया था। कुछ आंदोलनकारी लाल किले तक पहुंच गए। जहां हर साल 15 अगस्त को पीएम झंडा फहराते हैं, उस पोल पर एक ताकत ने भगवा झंडा फहराया था। पूरी दुनिया ने इसे लाइव देखा। दिल्ली में जगह-जगह चीज़ें कर रहे थे। लाखों किसानों के आगे पुलिस और सुरक्षा तंत्र बेबस नज़र आये। जब किसानों की आलोचना हुई तो ठंडी ठंड पड़ी और शाम होते-होते दिल्ली में शांति हुई। बाद में आंदोलन के मुखिया और किसान नेता राकेश अख्तर ने कहा, 'हुड़दंग करने वाले लोग किसान नहीं हैं। हमारे आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।' इस घटना से सरकार ने सबक लिया। सुरक्षा व्यवस्था इतनी टैग की गई कि ऐसी कोई घटना नहीं हुई है। प्रदर्शन अब भी होते हैं, लेकिन अब आंदोलनकारियों को जंतर-मंतर पर ही अंतिम रूप दिया जाता है। दिल्ली में हुआ कुछ और बड़ा आंदोलन…अन्ना आंदोलन: 5 अप्रैल 2011 को समाज सेवी अन्ना हजारे ने लोकपाल बिल की मांग को लेकर दिल्ली में आमरण अनशन शुरू किया था। रोजाना दिल्ली के मैदान में लाखों लोग समर्थन के लिए इकठ्ठा हो रहे थे। आस्था में लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे। अंतत: सरकार से बातचीत की तैयारी हुई और 9 अगस्त 2011 को अन्ना ने आंदोलन समाप्त कर दिया। निर्भया आंदोलन: 16 दिसंबर 2012 को दिल्ली में एक लड़की की ग्रुप कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। महिला सुरक्षा को लेकर दिल्ली के नोएडा मैदान और जंतर-मंतर पर लोगों ने प्रदर्शन किया था। मृत लड़की को 'निर्भया' नाम दिया गया और पूरा देश इस आंदोलन में कूद गया था। रॉयलन बाग: दिल्ली के रॉयलन बाग इलाके में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ 15 दिसंबर 2019 को आंदोलन शुरू हुआ था। इसमें महिलाएं और बुजुर्ग अपने बच्चों के साथ भाग ले रही हैं। 24 मार्च 2020 को सरकार ने लागू किया। इसके बाद यह आंदोलन ख़त्म हो गया। एशियाई खेल: दिल्ली को पहचान मिली, इन्फ्रा आबेल्लामी 1951 में भारत को पहले एशियाई खेल की मेजबानी मिली थी। प्रोफेसर गुरुदत्त सोंधी ने एशियाई खेलों की आयोजन समिति का गठन किया। बिना किसी सुपरमार्केट और डॉक्टर के प्रोफेसर की कमी से परेशानी सोंधी ने छह महीने पहले इवेंट के लिए छुट्टी दे दी। इसके बाद बीसीसीआई के संस्थापक सदस्य एक एंथनी स्टैनिस्लॉस डी मेलो को नया निदेशक बनाया गया। खेल समिति में रह रहे एसएस के बेटे टूटू कलाकार हैं कि पहले एशियाड की सारी चीजें आज भी मेरे घर में जस की तस राखियां हैं। तब दिल्ली में कोई स्टेडियम नहीं था. कोई ट्रैक नहीं था, कोई उपकरण नहीं था, कोई फंड नहीं था। केंद्र सरकार ने फंडिंग से इनकार कर दिया था। भारतीय ओलंपिक संघ के पास पैसा नहीं था। 1000 प्लेयर्स के स्टेस्ट और गेम विलेज बनाने के लिए डी मेलो, टैब के आर्मी चीफ जनरल केईएम करिअप्पा के पास गए। उन्होंने सेना की दो बिल्डिंगों को उर्जीकरण दे दिया, जो स्टेडियम के दो चोरों पर थी। उस समय के टूटे हुए स्मारक, ट्रैक और सड़कें बनाई गईं। एक तरह से दिल्ली का इन्फ्रा व्हीलचेयर तैयार हुआ। डी मेलो ने अपने संस्मरण में लिखा है कि मैंने चार साल का काम छह महीने में किया था। डी मेलो, पीएम नेहरू के पास गए और कहा कि सरकार को कुछ मदद करनी चाहिए। इसके बाद उन्होंने पीएम रिलीफ फंड से 10 लाख रुपये खर्च करने की जानकारी दी। इस तरह दिल्ली में पहले एशियाई खेल हुए, जिससे इस शहर को नई पहचान मिली। सीएनजी: सुप्रीम कोर्ट ने 1 हजार रुपये प्रति बस का जुर्माना लगाया, 1990 के दशक के अंत में कुछ सोशल सोसाइटी ने सुप्रीम कोर्ट में तोड़फोड़ निकाली। याचिका में कहा गया है कि दिल्ली में सांस लेना मुश्किल हो रहा है। इसकी वजह दिल्ली में चल रहे डीजल वाले वाहन हैं। कोर्ट सरकार को निर्देशित करें। सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में पर्यावरण प्रदूषण (रोकथाम और नियंत्रण) पर प्रतिबंध लगा दिया। तय किया गया कि सीएनजी लाएंगे तो प्रदूषण दूर हो जाएगा। सन् 2000 तक दिल्ली के सभी ऑटो टैक्सियों को सीएनजी में बदल दिया गया। मार्च 2001 तक सभी सरकारी वाहनों में सीएनजी किट लगी थी, लेकिन 2002 तक ये भी नहीं मिला। सर्वोच्च न्यायालय ने फिर से लात मारी। शीर्ष अदालत ने प्रति बस 1 हजार रुपये प्रतिदिन का आकलन किया। सरकार ने श्रीलंकाई सारिल्ला परिवार और सरकारी वाहन सीएनजी करवा विवरण दिया। मेट्रो: दिल्ली की लाइफलाइन, जो 99% समय पर थ्री बार चलती है दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित ने एक साक्षात्कार में बताया था, 'मैं पहली बार सीएम बनी थी। कुछ दिनों बाद मैं प्रधानमंत्री अटलबिहारी बिहारवासी के पास गया। हमारा कहना है कि शहर में रसायन बढ़ रहा है। हमारे पास दिल्ली मेट्रो का प्लान तैयार है। हमें आपकी सहमति चाहिए। अटलजी ने केवल एक ही वाक्य कहा था, इसे तुरंत लागू करवाएं।' 1984 में दिल्ली मेट्रो की योजना में पहली बार दिल्ली मास्टर प्लान शामिल किया गया था, लेकिन वित्तीय और तकनीकी समस्याएं इसे तुरंत लागू नहीं कर पाईं। 1995 में दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन का निर्माण हुआ। ई श्रीधरन को प्रोजेक्ट का मुखिया बनाया गया। मेट्रो प्रोजेक्ट में खर्च को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार में हिस्सेदारी थी। केंद्र की कांग्रेस सरकार हिलीचा रही थी। इसके बाद अटल बिहारी वैल्थ की बीजेपी सरकार ने इसे हरी झंडी दे दी। ई श्रीधरन की सख्त कार्यशैली के कारण 2002 में मेट्रो का पहला चरण पूरा हुआ। टैब 8.4 किमी शाहदरा से तीस हजारी तक मेट्रो चली थी। आपके जन्मदिन के एक दिन पहले 24 दिसंबर 2002 को पीएम अटल बिहारी जी ने यात्रा करके उद्घाटन किया। दिल्ली की मेट्रो पूरे देश में मिसाल दी जाती है। इसकी 99% ट्रेनें समय पर चलती हैं। आज के समय में 200 गाड़ियाँ प्रतिदिन 69 हजार किलोमीटर की यात्रा करती हैं। —————- दिल्ली की कहानी श्रृंखला के अन्य एपिसोड… 1. महाभारत का इंद्रप्रस्थ कैसे बना दिल्ली: पांडवों ने नागों को भगकर बसाया; अवशेषों के महल में बेइज्जत हुए दुर्योधन दिल्ली का इतिहास भारत की पौराणिक कथा यानी पौराणिक कथाएं पुरानी हैं। महाभारत के युद्ध में दिल्ली की सबसे बड़ी भूमिका थी। हालाँकि तब इसे इन्द्रप्रस्थ कहा गया था। उस दौर में नाग यहां रह रहे थे। जानिए कैसे पांडवों ने उन्हें भगाया। पूरी खबर पढ़ें पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का पहला मुकाबला 1191 के तराईन के युद्ध में हुआ। ये जगह हरियाणा के करनाल के करीब है। पृथ्वीराज की सेना ने मोहम्मद गोरी की सेना को तहस-नहस कर दिया। मोहम्मद गोरी सेना समेत पंजाब की तरफ भाग खड़ा हुआ। पृथ्वीराज ने गोरी को कोल्डने की कोशिश नहीं की और उसकी जान बच गई। पृथ्वीराज की इस गलती ने भारत के इतिहास का रुख ही बदल दिया। पढ़ें पूरी खबर… 3. बालाजी ने कलकत्ता से दिल्ली क्यों राजधानी:महारानी तक से छुपाया गया प्लान; नई दिल्ली में 20 साल बाद बनी बात उन दिनों की है, जब देश की राजधानी थी कोलकाता। 1905 में बंगाल के खिलाफ विद्रोह हुआ, तो ब्रिटिश विद्रोह शुरू हो गया। अंग्रेज़ों पर लगातार हमले हो रहे थे। Vasak kay के कलकत कलकत कलकत कलकत कलकत कलकत असु rur असु rur औ rur औ r अस अस अस अस अंग अंग अंग अंग अंग ने नई नई नई नई नई गई गई गई गई गई गई गई अस पढ़ें पूरी खबर…



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