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सतसंग कार्यक्रम में आने से सब तरह के कर्म कटते हैं और तकलीफों में आराम मिलता है

 

 

          रिपोर्ट/सतीश कुमार नारद संवाद

उत्तरप्रदेश। जयगुरुदेव शब्द योग विकास संस्था, लखनऊ के अध्यक्ष, कम समय में ज्यादा और सभी तरह के कर्मों को काटने का उपाय बताने वाले, माया अपने आप पीछे फिरने लगे वो तरीका बताने वाले, परमार्थ में बाधक चीजों का ज्ञान कराने वाले, इस समय के महापुरुष, पूरे समरथ सन्त सतगुरु, त्रिकालदर्शी, दुःखहर्ता, उज्जैन वाले बाबा उमाकान्त जी महाराज ने 12 अप्रैल 2023 प्रातः कुंडा (उत्तर प्रदेश) में दिए व अधिकृत यूट्यूब चैनल जयगुरुदेवयूकेएम पर लाइव प्रसारित संदेश में बताया कि यह सब सतसंग यूट्यूब पर पड़ा रहता है। यह प्रेमी लोग डालते रहते हैं। बराबर संतसग सुनते रहना चाहिए। और जब इस तरह का कोई (सतसंग कार्यक्रम का) आयोजन हो तो आना चाहिए। उसमें एक-दूसरे के कर्म कटते हैं। यूट्यूब पर अगर देखोगे, हाथ में अगर मोबाइल पकड़ोगे तो केवल हाथ की सेवा हो पाएगी, केवल हाथ के कर्म कटेंगे, आंख से देखोगे तो केवल आंख के कटेंगे। और यहां (सतसंग कार्यक्रम में) आए हो तो हाथ, पैर, आंख, कान, दिल, दिमाग से जो भी जान-अनजान में कर्म, अपराध बन गए, वह सब कटते हैं। कान से सुनते हो, कोई निंदा-बुराई, गलत बातों को सुना, उसको अमल में ले आए तो इस तरह के जमा कर्म ये (सतसंग) सुनने से कटते हैं। जब से कर्मों का यह जटिल विधान बना तब से इससे कोई भी छुटकारा नहीं पाया।

माया को परछाई क्यों बताया गया

माया का सुख चार दिन, अपना कहे गंवार। सपने पायो राजधन, जात ने लागे बात। यह माया है। जहां तक मन जाता है वहां तक माया का असर है। गो गोचर जहां लगी मन जाए, सो सब माया जानेहु भाई। माया क्या है? रुपैया, पैसा और औरतें- यही है माया। इसी के पीछे आदमी परेशान है, दौड़ता रहता है, इसी में पगलाया हुआ है। इसी के लिए शरीर से पाप चोरी, बेईमानी, कत्ल सब कर डालता है, ईमान-धर्म को बेच देता है। यह माया किसी के हाथ आई? यह तो है छाया। छाया यानी परछाई। परछाई किसी के काम नहीं आती है। परछाई अपनी नहीं होती है। परछाई पीछे-पीछे चलती है। किसके? जो इसकी तरफ से मुख मोड़ लेता है। जो आगे की तरफ बढ़ जाता है, परमार्थ की तरफ चल पड़ता है, अपने भजन, भाव-भक्ति में लग जाता है, उसके पीछे-पीछे परछाई की तरह से माया चलती है। और परछाई को पकड़ने की कोशिश करो तो परछाई दूर भागती चली जाती है। माया छाया एक सी, विरला जाने कोय, भगता के पीछे फिरे और सन्मुख भागे सोये। ऐसे पीछे घूम करके देखोगे तो परछाई रहेगी। उसको पकड़ने के लिए दौडौगे तो परछाई दूसरी तरफ चली जाएगी। और आगे बढ़ोगे तो आपके पीछे-पीछे परछाई बढ़ती जाएगी। तो इसी तरह से इस माया के चक्कर से थोड़ा दूर रहने की जरूरत है।

महात्मा भूख को ही खा लेते हैं

महाराज जी ने 4 दिसंबर 2022 सायं बावल (हरियाणा) में एक प्रसंग में बताया कि भट्टी के अंदर महात्मा जी लेटे हुए थे। राजा ने पूछा आपने मेरे सवाल का जवाब दिया। महात्मा जी बोले और कोई नहीं दिए तो आपके सवाल का जवाब देने का मेरा धर्म बनता था तो मैंने आपको जवाब दिया। राजा ने पूछा कि आपकी इस बात को समझाओ कि आपकी रात कुछ मेरे जैसी कटी, कुछ मुझसे बेहतर कटी। पूछा रात को कहां सोए थे। बोला भाड़ में, भट्टी में सोए थे। क्या खाये? चना खाए, जो बाहर पड़ा हुआ था। पूछा उससे पेट भर गया? कहा हमारा पेट! अरे हमको तो नहीं मिलता है तो हम भूख को ही खा लेते हैं। हमको क्या है? हमारा तो उसी से पेट भर गया, पानी पी लिया।

ब्याज परमार्थ का बाधक है

महाराज जी ने 5 दिसंबर 2020 सांय बावल आश्रम, रेवाड़ी (हरियाणा) में बताया कि सन्तमत में ब्याज बाधा डालता है। परमार्थ में यह बाधक है। कहा गया है चोरी, जुआ, मुखबरी, ब्याज, घूस, परनारी, जो चाहे दीदार को एती वस्तु निवार। चोरी, जुआ से दूर रहो। मुखबरी लोग करते हैं, फंसा, बता देते हैं। दिल दुखा कर के लोग ब्याज घूस लेते हैं। निश्चित कर दिया जाए कि इसमें इतना लो तो वह तो उनकी मजदूरी हुई। पूंजी जो उन्होंने लगाया, उसका जो मुनाफा हुआ, एक तरह से वह व्यापार है। लेकिन जो दबा कर के लेते हैं, जिसको खून चूसना कहते हैं, उससे परमार्थ का नुकसान तो होता ही होता है, पाप भी लगता है।

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