‘मेरा बेटा सोनापुर से सामान लेकर लौट रहा था। उसे पता भी नहीं था कि गांव में क्या हो रहा है। वो रेलवे लाइन पार करके जैसे ही गांव में घुसा, पुलिस ने उसे गोली मार दी। वो परिवार में इकलौता कमाने वाला था। प्रशासन ने मेरा भी घर तोड़ दिया।’
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ये घटना 12 सितंबर 2024 की है। असम के सोनापुर के कचुटौली गांव में रहने वाले मकबूल हुसैन उस दिन को याद कर भावुक हो जाते हैं। वे कहते हैं, ’मकान तो तोड़ ही दिया। बेटे मोहम्मद हैदर अली पर गोली चलाने वालों पर अब तक कोई कार्रवाई भी नहीं हुई और न ही शिकायत लिखी गई।’
9 सितंबर 2024 को प्रशासन ने गांव में आदिवासियों के लिए रिजर्व सरकारी जमीन खाली कराई। प्रशासन ने अवैध मकानों पर बुलडोजर चलाया। 12 सितंबर को जब टीम दोबारा गांव पहुंची, तो उस दिन कार्रवाई हिंसा में बदल गई। इसी हिंसा में गांव में रहने वाले मोहम्मद हैदर अली और जुबाहिर अली की मौत हो गई। करीब 35 लोग घायल हुए।
गांव वालों का आरोप है कि यहां सिर्फ मुस्लिम परिवारों के मकानों पर ही बुलडोजर चलाया गया। गांव में हिंदू और बाकी कम्युनिटी के लोग भी हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई। प्रशासन की टीम यहां 4 अप्रैल को फिर पहुंची। इस बार कार्रवाई के बाद यहां टेंट लगाकर रह रहे परिवारों को फिर उजाड़ा गया। ये कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के स्टे के बाद हुई।

गांव में अभी क्या हालात हैं? पुलिस की कार्रवाई में जिनकी मौत हुई, उनके परिवार अब किस हाल में और कहां हैं? सिर्फ मुस्लिम परिवारों पर कार्रवाई के आरोप के पीछे वजह क्या है? गांव के हिंदू परिवार और प्रशासन क्या कह रहा है। ये जानने के लिए हम ग्राउंड पर पहुंचे…
सबसे पहले गांववालों के आरोप… सिर्फ हम मुसलमानों के घर तोड़े, हिंदुओं के घर छोड़ दिए असम में 39 उप जिले बनाए गए हैं। सोनापुर उन्हीं में से एक है। यहां का कचुटौली गांव गुवाहाटी से करीब 20 किलोमीटर की दूरी पर है। गांव में ज्यादातर बांग्ला बोलने वाले मुस्लिम हैं। इन्हें असम के CM हिमंता बिस्वा सरमा कई बार ‘बाहरी’ बता चुके हैं। असम में इन्हें तंज भरे लहजे में ‘मिया मुसलमान’ भी कहते हैं।
गांव में रहने वाले कुरपन अली ई-रिक्शा चलाते हैं। वे कहते हैं, ‘हम मामले में सुनवाई होने तक सिर्फ टेंट लगाकर यहां रह रहे हैं। 4 अप्रैल को प्रशासन ने फिर यहां तोड़फोड़ की।’

कुरपन सिर्फ मुस्लिमों को निशाना बनाने का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं, ’गांव में ज्यादातर मुस्लिम हैं, लेकिन हिंदू और बाकी धर्म के लोग भी रहते हैं। जब कार्रवाई हुई तो गांव में सिर्फ मुस्लिम परिवारों के ही घर तोड़े गए। अब तक करीब 600 लोगों के मकान तोड़ दिए गए हैं। सब मुस्लिम हैं। बगल में ही हिंदू परिवार भी इसी रिजर्व जमीन पर रह रहे हैं, लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई।’
दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मोहम्मद साकिब भी सिर्फ मुस्लिमों पर ही कार्रवाई का आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं, ‘मेरे पास जमीन खरीदी की मियादी है, लेकिन फिर भी प्रशासन इसे मानता नहीं है।’
वे बताते हैं, ‘यहां रह रहे ज्यादातर लोगों ने 30-35 साल पहले ये जमीन आदिवासियों से खरीदी थी। तब जमीन हमारे नाम नहीं हुई, लेकिन हमारे पास मियादी के कागज हैं। प्रशासन इन कागजों को नहीं मान रहा। हम कई पीढ़ियों से यहां रह रहे हैं। हमारे दादा-पुरखों की कब्र भी यहीं है।‘

कचुटौली गांव में बुलडोजर कार्रवाई के बाद बेघर हुए परिवार टेंट लगाकर रह रहे हैं।
पुलिस ने पहले खाने पर लात मारी, तब कार्रवाई के दिन हिंसा भड़की दिहाड़ी मजदूरी करने वाले मोहम्मद साकिब 12 सितंबर को हिंसा वाले दिन गांव में ही थे। वे पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘उस दिन गांव में कई पुलिस वाले आए थे। 9 सितंबर को जिनके मकान तोड़े गए, वे खुले में ही मेज लगाकर खाना खा रहे थे। पुलिस ने लात मारकर उनकी मेज गिरा दी। वे लोग पुलिस पर चिल्लाए तो आस-पास के लोग भी देखने आ गए।‘

पुलिस ने इसे ऐसे पेश किया कि जैसे भीड़ उन पर हमला करने आ गई हो। पुलिस ने फायरिंग कर दी। सब इधर-उधर भागने लगे।
पुलिस की गोली से भतीजे की मौत, न पोस्टमॉर्टम कराया, न शिकायत लिखी हमने गांव में रहने वाले बिलालुद्दीन से भी बात की। उनके भतीजे जुबाहिर अली की 12 सितंबर को हुई हिंसा में मौत हो गई थी। वे पुलिस पर धमकाने का आरोप लगाते हुए बताते हैं, ‘हमारे भतीजे की उम्र महज 17-18 साल थी। वो पढ़ाई के साथ काम भी करता था। उस शाम वो काम से वापस ही लौट रहा था। तभी पुलिस ने उसे पहले पीछे से गोली मारी, फिर सामने से मारी।

’तीन दिन बाद हमें उसकी डेड बॉडी दी गई। हमने पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट मांगी तो सोलापुर पुलिस ने बोला कि तुम्हें भी अंदर डाल देंगे।’
गांव में ये सब तब हुआ, जब सर्किल ऑफिसर नितुल खटानियार भी वहां थे। कचुटौली गांव उन्हीं के अधिकार क्षेत्र में आता है। जब हमने उनसे बात करने की कोशिश की तो उन्होंने पंचायत चुनावों का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि इस पर किसी भी कमेंट के लिए डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर की इजाजत लेनी होगी।
‘NRC हुआ फिर भी हमें बांग्लादेशी बता रहे‘ साकिब आगे कहते हैं, ‘जमीन के कागजों के साथ ही लोगों के आधार कार्ड और वोटर कार्ड भी सोनापुर के हैं। NRC क्लियर होने के बाद भी उन्हें बांग्लादेशी बताया गया। जबकि यहां रहने वाले सभी भारतीय हैं।‘
वे कहते हैं, ‘हमारा पहले भी NRC हुआ और इस बार भी हुआ, फिर भी हमें बांग्लादेशी बता दिया।‘

गांव में रहने वाले ज्यादातर परिवार दशकों पहले मोरीगांव जिले से आए हैं। ब्रह्मपुत्र नदी में कटाव के कारण ये लोग मोरीगांव से विस्थापित हुए थे।
गांव के हिंदू परिवार बोले… हमारे पास भी मियादी कागज ही, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई गांव में जहां बुलडोजर चले, उससे 50 मीटर दूर कुछ हिंदू परिवार रहते हैं। हमने हिंदू परिवारों से बात करने की कोशिश की। हालांकि कोई कैमरे पर आने को राजी नहीं हुआ। एक शख्स ने हमसे नाम न छापने की शर्त पर बात की। वे डरे हुए थे कि अगर उनकी पहचान सामने आई तो प्रशासन उन पर भी कार्रवाई कर सकता है।
वे बताते हैं, ‘पहले सब मिल-जुलकर रहते थे, लेकिन जब से प्रशासन ने तोड़फोड़ की है, हिंदू अलर्ट हो गए हैं। हमारे पास भी मियादी के ही कागज हैं, लेकिन कार्रवाई उधर (मुस्लिम घरों पर) ही हुई। प्रशासन ने हमें कोई नोटिस नहीं दिया है। कुछ आदिवासी संगठन पहले भी कब्जा खाली कराने की बात कर चुके थे।‘

पंचायत सदस्य बोले- चुनाव है, बात नहीं करूंगा गांव में मौजूदा पंचायत सदस्य नूर अहमद लश्कर से भी हमने बात करने की कोशिश की। हालांकि उन्होंने चुनाव का हवाला देकर बात करने से मना कर दिया। उनका कहना था कि वे सरकार या लोगों में से किसी के भी खिलाफ कुछ बोलेंगे तो दिक्कत होगी।
गांव के पूर्व पंचायत सदस्य मेन उल चौधरी पूरी कार्रवाई को सांप्रदायिक बताते हैं। वे आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘कचुटौली में काफी आबादी हिंदुओं की भी है, लेकिन सिर्फ मुसलमानों के घरों को टारगेट किया गया। ट्राइबल जमीन खाली कराने के नाम पर सांप्रदायिक कार्रवाई की गई है।‘
12 सितंबर की हिंसा में मेन उल चौधरी के भतीजे अब्दुल करीम की मौत पुलिस कस्टडी में हुई थी। उनका आरोप है कि पुलिस ने करीम को बहुत पीटा था, जिसके बाद हिरासत में उसकी मौत हो गई।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद चले बुलडोजर गांव के करीब 48 परिवार कार्रवाई के खिलाफ गुवाहाटी हाईकोर्ट चले गए। 20 सितंबर 2024 को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने बुलडोजर कार्रवाई पर तब तक रोक लगा दी, जब तक जिला प्रशासन याचिकाकर्ताओं के दावों की जांच नहीं कर लेता। हालांकि प्रशासन की कार्रवाई जारी रही। 24 और 25 सितंबर को करीब 340 मकान तोड़े गए।
इसके बाद 25 सितंबर 2024 को गांव वालों ने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की। दावा किया कि बुलडोजर कार्रवाई ने सुप्रीम कोर्ट के 17 सितंबर के निर्देश का उल्लंघन किया, जिसमें 1 अक्टूबर तक देशभर में सभी बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाई गई थी।
30 सितंबर 2024 को पहली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने सोनापुर में आगे किसी की बेदखली और घर तोड़े जाने पर रोक लगाने वाला आदेश जारी किया। साथ ही असम सरकार को अवमानना नोटिस जारी किया।
जिनके पास रहने का अधिकार नहीं, सिर्फ उनके घर ढहाए सोनापुर डिस्ट्रिक्ट कमिश्नर बिश्वजीत साकिया मुस्लिम समुदाय पर कार्रवाई के आरोप को गलत बताते हैं। उन्होंने कहा कि जिनके पास वहां रहने का अधिकार है, उन पर कार्रवाई नहीं की गई।
वे बताते हैं, ‘ट्राइबल बेल्ट में 6 कैटेगरी के लोग रह सकते हैं, लेकिन सिर्फ वही जो नोटिफाई हैं।’

कोर्ट के स्टे के बावजूद कार्रवाई पर साकिया कहते हैं कि गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक 156 याचिकाएं आई थीं। मजिस्ट्रेट ऑफिस से सबका रिव्यू करने पर ही कार्रवाई की गई।
विस्थापितों के पुनर्वास के इंतजाम के लिए वो कोर्ट ऑर्डर के इंतजार की बात कहते हैं। वे बताते हैं कि पुनर्वास की व्यवस्था करना उनके हाथ में नहीं है। गांव वाले कोर्ट चले गए हैं, जैसा फैसला आएगा, प्रशासन उस हिसाब से काम करेगा।
कार्रवाई के दिन हुई हिंसा को लेकर साकिया कहते हैं, ‘जांच में पता चला कि जब गांव में कार्रवाई हुई तो लोगों ने हमारे अफसरों पर हमला कर दिया। हमारे कई अधिकारी घायल भी हुए थे। पुलिस और भीड़ की झड़प में 2 लोगों की मौत हुई। फिलहाल मामले की मजिस्ट्रेट जांच जारी है।‘
वकील बोले- प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं माना हम गुवाहाटी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में गांव वालों का पक्ष रख रहे वकील एआर भुइया से भी मिले। वे बताते हैं, ‘मेरे पास ऐसा कोई डेटा तो नहीं है कि कितने मुस्लिम या हिंदू घर गिराए गए। हालांकि मेरे पास आए सभी लोग मुस्लिम कम्युनिटी से हैं। कार्रवाई में भेदभाव हुआ है और सिर्फ मुस्लिमों के घर गिराए गए। इसे हमने याचिका में भी शामिल किया है।‘

BJP बोली- सरकार ने अवैध रूप से रह रहे लोगों को खदेड़ा असम BJP के प्रवक्ता किशोर उपाध्याय सिर्फ मुस्लिमों के घरों पर कार्रवाई के आरोपों को नकाराते हैं। वे दावा करते हैं कि जो लोग अवैध तौर पर रह रहे थे, वो कार्रवाई के बाद वापस मोरीगांव जा चुके हैं।
वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लेकर कहते हैं, ‘सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का कोई उल्लंघन नहीं किया। अवैध रूप से रह रहे लोग अब वापस चले गए हैं। वहां से सबको खदेड़ दिया गया है। ये एक पैटर्न है जिसे समझना जरूरी है। कोई कहीं भी सरकारी जमीन पर आकर रहने लगेगा तो क्या उस पर कार्रवाई नहीं की जाएगी। अगर सुप्रीम कोर्ट के किसी आदेश को लेकर कोई दुविधा है तो सरकार कोर्ट में जवाब दे देगी।’
वे आगे कहते हैं कि असम में कुछ समुदाय के लोग 4-5 जगह सरकारी जमीनों पर कब्जा करते हैं। फिर सब जगह वोटर कार्ड भी रखते हैं। असम सरकार को सब खबर है, इसीलिए कार्रवाई की जा रही है।’
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असम के जिस एपेक्स बैंक पर 50 करोड़ के घोटाले के आरोप लगे हैं, असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा उसके डायरेक्टर हैं। BJP विधायक बिस्वजीत फुकन चेयरमैन हैं। लिहाजा बैंक में कथित घोटाले को कवर कर रहे जर्नलिस्ट की गिरफ्तारी को मीडिया की आजादी पर खतरे की तरह देखा जा रहा है। हालांकि, CM हिमंता ने दिलबर के भाई और उनके परिवार को जमीन का दलाल बताया है। पढ़िए पूरी खबर…