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Allahabad High Court; Kasganj Rape Attempt Case | Sexual Assault | आज का एक्सप्लेनर: बच्ची का प्राइवेट पार्ट पकड़ना, सलवार का नाड़ा तोड़ना बलात्कार की कोशिश नहीं है; इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का क्या असर होगा


किसी लड़की के निजी अंग पकड़ लेना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश से रेप या ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का मामला नहीं बनता। सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ये फैसला सुनाते हुए दो आरोपियों पर लगी धाराएं बदल दीं।

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क्या है पूरा मामला, कोर्ट ने क्यों कहा रेप की कोशिश और तैयारी में फर्क है और इस फैसले का क्या इम्पैक्ट होगा; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: बच्ची के निजी अंग पकड़ने और सलवार का नाड़ा तोड़ने का पूरा मामला क्या है?

जवाबः 12 जनवरी 2022… उत्तर प्रदेश के कासगंज की एक महिला ने POCSO एक्ट की विशेष अदालत में एक आवेदन दायर किया। इसमें अपनी बेटी के साथ हुई पूरी घटना बताई…

  • 10 नवंबर 2021 को शाम करीब 5 बजे महिला अपनी ननद के घर से वापस आ रही थी। उसकी 14 साल की नाबालिग बेटी भी साथ थी।
  • कीचड़ भरे रास्ते में उसके गांव के ही पवन, आकाश और अशोक मिले। पवन ने बच्ची को बाइक पर लिफ्ट ऑफर की और कहा कि वो उसे सुरक्षित घर तक पहुंचा देंगे।
  • महिला ने उन पर भरोसा करते हुए बेटी को मोटरसाइकिल पर जाने की इजाजत दे दी। आरोपियों ने बच्ची को बिठा लिया, लेकिन गांव के रास्ते में ही मोटरसाइकिल रोक दी।
  • आरोपी बच्ची के निजी अंग दबाने लगे। आकाश ने नाबालिग को घसीटकर पुलिया के नीचे ले जाने की कोशिश की और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ दिया।
  • नाबालिग बच्ची के चिल्लाने की आवाज सुनकर पीछे ट्रैक्टर से आ रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे। आरोपियों ने दोनों पर देसी पिस्तौल तानकर जान से मारने की धमकी दी और मौके से भाग गए।
  • जब पीड़ित बच्ची की मां आरोपी पवन के घर शिकायत करने पहुंची, तो पवन के पिता अशोक ने उसके साथ गालीगलौज की और जान से मारने की धमकी दी।
  • महिला अगले दिन थाने में FIR दर्ज कराने गई। जब पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की, तो उसने अदालत का रुख किया।
प्रतीकात्मक तस्वीर (AI Generated)

प्रतीकात्मक तस्वीर (AI Generated)

21 मार्च 2022 को कोर्ट ने आवेदन को शिकायत के रूप में मानकर मामले को आगे बढ़ाया। शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए।

आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया। वहीं आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया।

आरोपियों ने समन आदेश से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के सामने पुनरीक्षण दायर किया। यानी कोर्ट से कहा कि इन आरोपों पर दोबारा विचार कर लेना चाहिए। जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार कर ली।

सवाल-2: आरोपियों के वकील ने हाईकोर्ट में क्या दलीलें दी?

जवाबः इलाहाबाद हाईकोर्ट में हुई सुनवाई में आरोपी पक्ष के वकील ने 3 प्रमुख तर्क दिए…

  • आरोपी आकाश और पवन मौसेरे भाई हैं और तीसरे आरोपी अशोक, पवन के पिता हैं। यानी तीनों बेहद क्लोज फैमिली मेंबर हैं। इसलिए तीनों ने एक बच्ची के साथ ऐसी घटना को अंजाम दिया हो, ये नेचुरल नहीं लगता।
  • ये मामला रंजिश में दर्ज कराया गया है। दरअसल, आरोपी आकाश की मां ने 17 अक्टूबर, 2021 को एक FIR दर्ज कराई, जिसमें कहा गया कि वो अपने बेटे के साथ खेत जा रही थी तभी राजीव, शैलेंद्र, सुखवीर और विदेश ने उनके साथ छेड़खानी, गालीगलौज और मारपीट की। इस केस में आरोपी सुखवीर नाबालिग पीड़िता का रिश्तेदार है। दोनों परिवारों में झगड़ा था, ऐसे में महिला अपनी बेटी को आरोपियों के साथ मोटरसाइकिल पर क्यों जाने देगी।
  • अगर शिकायत की फेस वैल्यू पर भी जाएं तो भी ये IPC की धारा 376 का मामला नहीं बनता।

शिकायतकर्ता की ओर से वकील इंद्र कुमार सिंह और राज्य सरकार के वकील ने तर्क दिया कि समन जारी करने के लिए केवल प्रथमदृष्टया मामला साबित करना आवश्यक होता है, न कि विस्तार से सुनवाई करना।

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने फैसला सुनाते हुए निचली अदालत को नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया।

जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्र ने फैसला सुनाते हुए निचली अदालत को नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया।

सवाल-3: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किस आधार पर रेप की कोशिश के चार्ज हटा दिए?

जवाबः हाईकोर्ट ने आरोपी आकाश और पवन पर IPC की धारा 376 और POCSO अधिनियम की धारा 18 के तहत लगे आरोपों को घटा दिया। अब उन पर धारा 354 (b) (नग्न करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग) और POCSO अधिनियम की धारा 9 और 10 (नाबालिग पर गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलेगा। साथ ही निचली अदालत को नए सिरे से समन जारी करने का निर्देश दिया।

जस्टिस मिश्रा ने अपने फैसले में 3 बातों को आधार बनाया…

  1. आरोपी पवन और आकाश पर यह आरोप है कि उन्होंने पीड़िता की छाती पकड़ी, आकाश ने उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी और उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की। गवाहों के हस्तक्षेप के बाद दोनों भाग गए, लेकिन इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि आरोपियों का इरादा बलात्कार करने का था।
  2. शिकायत या गवाहों के बयानों में ऐसा कोई आरोप नहीं है कि आकाश ने पीड़िता के पायजामे का नाड़ा तोड़ने के बाद खुद उत्तेजित होकर कोई और अश्लील हरकत की। गवाहों ने यह भी नहीं कहा कि पीड़िता के कपड़े उतर गए या वह नग्न हो गई। यह भी आरोप नहीं है कि आरोपी ने पीड़िता के साथ कोई जबरदस्ती या यौन संबंध बनाने की कोशिश की।
  3. पवन और आकाश के खिलाफ लगाए गए आरोप और केस की स्थिति से यह नहीं लगता कि यह बलात्कार की कोशिश का मामला है। बलात्कार की कोशिश का आरोप लगाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि यह केवल तैयारी से आगे बढ़ चुका था। तैयारी और कोशिश में मुख्य अंतर यह होता है कि कोशिश में व्यक्ति का इरादा और कदम ज्यादा स्पष्ट और पक्का होता है।

सवाल- 4: भारतीय कानून में ‘रेप की कोशिश’ किसे माना जाता है?

जवाब: सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट आशीष पांडे कहते हैं, ‘अपराध में अगर प्राइवेट पार्ट में पेनिट्रेशन नहीं है, तो वो रेप की कैटेगरी में नहीं आता। भले ही आरोपी किसी पीड़िता के कपड़े उतार कर नग्न कर दे, निजी अंग दबाए या सलवार का नाड़ा तोड़ दे। इसीलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस केस में फैसला सुनाते हुए रेप की तैयारी बताया।’

25 अक्टूबर 2021 को एक अन्य केस की सुनवाई के दौरान रेप की तैयारी और रेप की कोशिश में फर्क बताया गया था…

रेप की तैयारी: इसमें अपराध की योजना बनाना, साधन जुटाना या इरादा करना शामिल है। यह अपराध शुरू होने से पहले का चरण है। कानून इस प्रयास के लिए सजा देता है, भले ही अपराध पूरा हुआ हो या नहीं। प्रयास करने वाले को सजा दी जाती है, क्योंकि इसमें भी गलत इरादा होता है और यह समाज को नुकसान पहुंचाता है।

रेप की कोशिश: तैयारी के बाद अपराध को पूरा करने की ओर सीधा कदम उठाया जाता है, तो वह कोशिश कहलाती है। अगर कोशिश नाकाम रहती है तब भी कानून सजा देता है क्योंकि इरादा और नैतिक गलती मौजूद होती है।

सवाल-5: इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले का क्या इम्पैक्ट पड़ेगा?

जवाबः इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले के प्रभाव को समझने के लिए हमने सुप्रीम कोर्ट के 3 एडवोकेट अश्विनी दुबे, आशीष पांडे और एपी सिंह से बात की। उनके मुताबिक यह फैसला भले ही कानून के तहत सुनाया गया है, लेकिन इसका व्यापक प्रभाव समाज में महिलाओं की सुरक्षा और न्याय व्यवस्था के प्रति विश्वास पर पड़ सकता है। मसलन…

  • कोर्ट ने कहा कि किसी लड़की के निजी अंगो को पकड़ना, नाड़ा तोड़ना और उसे घसीटने की कोशिश IPC की धारा 376 (रेप) या रेप के प्रयास के तहत नहीं आता, बल्कि यह धारा 354B (महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला) और पॉक्सो एक्ट की अन्य धाराओं के तहत गंभीर यौन उत्पीड़न माना जाएगा। इससे निचली अदालतों में ऐसे मामलों में आरोप तय करने का तरीका बदल सकता है।
  • रेप या रेप के प्रयास की तुलना में यौन उत्पीड़न की धाराओं में सजा कम कठोर हो सकती है। इससे अपराधियों को कम सजा मिलने की संभावना बढ़ सकती है, जो पीड़ितों के लिए न्याय की भावना को कमजोर कर सकता है।
  • कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि रेप के प्रयास का आरोप साबित करने के लिए अभियोजन पक्ष को यह दिखाना होगा कि अपराधी की हरकतें ‘तैयारी’ से आगे बढ़कर ‘प्रयास’ की श्रेणी में थीं। यह सख्त कसौटी भविष्य में ऐसे मामलों में दोषसिद्धि को मुश्किल बना सकती है।
  • अगर अपराधियों को लगे कि ऐसी घटनाओं में उन्हें रेप जैसे गंभीर आरोपों से बचने का मौका मिल सकता है, तो यह यौन अपराधों को बढ़ावा दे सकता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलेगा। (प्रतीकात्मक चित्र)

कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि आरोपियों पर ‘अटेम्प्ट टु रेप’ का चार्ज हटाया जाए। उन पर यौन उत्पीड़न की अन्य धाराओं के तहत केस चलेगा। (प्रतीकात्मक चित्र)

सवाल-6: ‘अटेम्प्ट टु रेप’ के चार्ज हटने से क्या आरोपी छूट जाएंगे?

जवाबः एडवोकेट आशीष पांडे के मुताबिक, ‘इस केस में भले ही दो बड़ी धाराएं हट गई हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आरोपी सजा से बच जाएंगे। आरोपियों ने रेप नहीं किया और न ही रेप की कोशिश की, लेकिन रेप की तैयारी तो जरूर की है। इस अपराध के तहत उन पर जो धाराएं लगी हैं, उनके तहत सजा मिल सकती है।’

आरोपियों पर यौन उत्पीड़न की इन धाराओं के तहत केस चलेगा…

IPC धारा 354(B): यह धारा उन पुरुषों के लिए है जो किसी महिला को नग्न करने या उसे नग्न होने के लिए मजबूर करने के लिए उस पर हमला करते हैं या आपराधिक बल का इस्तेमाल करते हैं। इस अपराध के लिए दोषी पाए जाने पर 3 से 7 साल तक का कठोर कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।

POCSO अधिनियम की धारा 9 और 10: इस कानून में धारा 9 गंभीर यौन हमले को परिभाषित करती है और धारा 10 में इसके लिए सजा का प्रावधान है। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर 5 से 7 साल तक की जेल और जुर्माने की सजा हो सकती है।

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