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Delhi Judge Yashwant Varma Cash Row Explained | CJI | आज का एक्सप्लेनर: ‘मुझे कोई जली नोट नहीं दिखी’, क्या ये दलील जस्टिस वर्मा को बचा पाएगी; 3 जज कैसे करेंगे इन्वेस्टिगेशन


सुप्रीम कोर्ट ने 65 सेकेंड का जो वीडियो जारी किया, उसमें नोटों की गड्डियां सुलगती दिख रही हैं, लेकिन जस्टिस यशवंत वर्मा ने अपनी सफाई में कहा है कि उन्होंने या उनके परिवार के किसी सदस्य ने जली हुई नकदी देखी ही नहीं। उनका कहना है कि मैं वीडियो देखकर खु

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क्या जस्टिस वर्मा की ये दलील उन्हें बचा पाएगी, जांच समिति के 3 जज सच तक कैसे पहुंचेंगे और दोषी पाए जाने पर क्या कार्रवाई होगी; जानेंगे आज के एक्सप्लेनर में…

सवाल-1: जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नोटों का ढेर मिलने के मामले में अब तक क्या-क्या हुआ? जवाब: 14 मार्च यानी होली की रात करीब साढ़े 11 बजे जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित सरकारी बंगले यानी 30, तुगलक क्रेसेंट कोठी में आग लगी। जस्टिस वर्मा घर पर नहीं थे तो उनकी बेटी और वृद्ध मां ने फोन कर फायर ब्रिगेड और पुलिस को बुलाया।

फायर ब्रिगेड ने मौके पर पहुंचकर आग बुझाने का काम किया और पुलिस भी आ पहुंची। दमकलकर्मी घर के बाहर की ओर स्टोर रूम में गए, तो जलता हुआ नोटों का ढेर मिला। इसके बाद के घटनाक्रम की टाइमलाइन…

  • 15 मार्च को कमिश्नर ने इसकी सूचना दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को दी। फिर बात CJI संजीव खन्ना तक पहुंची। इस घटना के वीडियो और फोटो भी CJI को भेजे गए।
  • शाम करीब 4 बजे जस्टिस वर्मा और उनकी पत्नी भोपाल से दिल्ली लौट आए। इसी दौरान दिल्ली पुलिस कमिश्नर संजय अरोड़ा ने जस्टिस वर्मा को कॉल कर घटना की जानकारी दी। रात करीब 9 बजे दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रजिस्ट्रार सह सचिव ने घटनास्थल का दौरा किया।
  • 16 मार्च को चीफ जस्टिस उपाध्याय लखनऊ से दिल्ली पहुंचे और CJI संजीव खन्ना से मिले। चीफ जस्टिस उपाध्याय के रजिस्ट्रार-सह-सचिव ने दौरे की अपनी रिपोर्ट पेश की, जिसमें कहा गया कि ‘वहां आधे जले हुए सामान पड़े थे और जले हुए सामान/मलबा फर्श पर पड़ा था।’
  • 17 मार्च को चीफ जस्टिस उपाध्याय ने दिल्ली हाईकोर्ट गेस्ट हाउस में जस्टिस वर्मा से मुलाकात की। चीफ जस्टिस उपाध्याय ने जस्टिस वर्मा को स्टोर रूम में मिली नकदी की तस्वीरें और वीडियो दिखाए, जो पुलिस कमिश्नर ने उन्हें दिखाए थे। जस्टिस वर्मा ने उन्हें फंसाने की साजिश की आशंका जताई।
  • 20 मार्च को CJI के कहने पर चीफ जस्टिस उपाध्याय ने आग की घटना की 3 फोटो, एक वीडियो और दो मैसेज भेजे। CJI ने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की मीटिंग में जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने का फैसला सुनाया।
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस मामले में प्रस्ताव पारित किया, जिसमें नोटों के ढेर की रकम 15 करोड़ बताई।
  • 21 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने इन-हाउस जांच प्रक्रिया शुरू की, जिसमें सबूत और जानकारी इकट्ठा की गई।
  • 22 मार्च को CJI संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस उपाध्याय को निर्देश दिया कि जस्टिस वर्मा को कोई काम न सौंपा जाए। CJI संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए 3 जजों का इन्क्वायरी पैनल गठित किया और 65 सेकेंड का आग की घटना का वीडियो जारी कर दिया। जस्टिस वर्मा ने चीफ जस्टिस डी के उपाध्याय को पत्र लिखकर सफाई दी।
जस्टिस यशवंत वर्मा के घर मिला जले हुए नोटों का ढेर।

जस्टिस यशवंत वर्मा के घर मिला जले हुए नोटों का ढेर।

सवाल-2: जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को अपनी सफाई में क्या कहा? जवाब: 22 मार्च को जस्टिस वर्मा ने दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डीके उपाध्याय को एक चिट्ठी लिखकर अपना पक्ष रखा। उन्होंने अपनी चिट्ठी में 5 प्रमुख दलीलें दीं…

1. जली हुई नकदी मिली ही नहीं: जस्टिस वर्मा लिखते हैं, ‘मुझे हैरानी इस बात की है कि कथित रूप से जले हुए नोटों की कोई बोरी बरामद या जब्त नहीं की गई। हम स्पष्ट रूप से दावा करते हैं कि न तो मेरी बेटी, न ही पीएस और न ही घरेलू कर्मचारियों को जले हुए नोटों की ये तथाकथित बोरियां दिखाई गईं। मैं अपने इस रुख पर कायम हूं कि जब वे स्टोर रूम में पहुंचे तो वहां कोई भी जली हुई या अन्यथा मुद्रा नहीं दिखी।’

2. किसी कर्मचारी को नकदी नहीं दिखाई: जस्टिस वर्मा लिखते हैं, ‘साइट पर मौजूद किसी भी कर्मचारी को नकदी या मुद्रा के अवशेष नहीं दिखाए गए। मैंने मौजूद कर्मचारियों से अपनी जांच की है, उन्होंने भी कहा कि साइट पर कथित रूप से पाए गए या परिसर से हटाई गई किसी भी मुद्रा को ‘हटाया’ नहीं गया था।’

3. घर के बाहरी कमरे में लगी आग: जस्टिस वर्मा ने लिखा, ‘आग घर के किसी कमरे में नहीं, बल्कि मुख्य आवास से अलग एक बाहरी कमरे में लगी थी। इस कमरे का इस्तेमाल आमतौर पर सभी लोग उपयोग में न आने वाले फर्नीचर, बोतलें, क्रॉकरी, गद्दे, इस्तेमाल किए गए कालीन, पुराने स्पीकर और CPWD सामग्री जैसे सामान रखने के लिए करते थे। यह कमरा खुला हुआ है और मेन गेट के साथ-साथ स्टाफ क्वार्टर के पिछले दरवाजे से भी इसमें दाखिल हो सकते हैं। यह मेरे घर के अंदर का कमरा नहीं है।’

4. खुले कमरे में नकदी रखना बेवकूफी: जस्टिस वर्मा ने दलील दी कि ‘कोई व्यक्ति स्टाफ क्वार्टर के पास एक खुले, आसानी से पहुंच वाले और आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने स्टोर रूम में नकदी क्यों रखेगा, यह तो अविश्वसनीय बात है। यह एक ऐसा कमरा है जो मेरे रहने की जगह से अलग है।’

5. मुझे फंसाने की साजिश: जस्टिस वर्मा का कहना है कि ‘मैं वीडियो देखकर पूरी तरह से हैरान रह गया क्योंकि उसमें कुछ ऐसा दिखाया गया था जो मौके पर नहीं मिला था। यह स्पष्ट रूप से मुझे फंसाने और बदनाम करने की साजिश प्रतीत होती है। यह पूरी घटना हाल ही में हुई घटनाओं के एक क्रम का हिस्सा है, जिसमें दिसंबर 2024 में सोशल मीडिया पर प्रसारित निराधार आरोप शामिल हैं।’

जस्टिस वर्मा ने कहा कि 15 मार्च की शाम को दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रजिस्ट्रार सह सचिव ने अनुरोध किया कि आग वाली साइट पर जाने की इजाजत दी जाए और जिस पर मैंने तुरंत सहमति दे दी। पीपीएस और मेरे पीएस ने जले हुए कमरे का निरीक्षण किया, तो वहां कोई भी मुद्रा नहीं मिली। जले हुए कमरे आज भी उसी अवस्था में हैं।

सवाल-3: तो क्या जस्टिस वर्मा के घर में वाकई नोटों का ढेर नहीं मिला? जवाब: दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने CJI को सौंपी अपनी रिपोर्ट में लिखा, ‘मेरी जांच के मुताबिक प्रथमदृष्टया जिस कमरे में आग लगी। वहां किसी बाहरी का प्रवेश संभव नहीं दिखता। वहां केवल रहने वाले व्यक्ति, नौकर और सीपीडब्ल्यूडी कर्मी ही जा सकते थे। इसलिए मेरी राय है कि मामले की गहराई से जांच हो।’

पुलिस ने हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को दी रिपोर्ट में कहा है ​​कि ​14 मार्च रात 11:45 बजे जस्टिस वर्मा के 30, तुगलक क्रेसेंट बंगले में आग लगने की जानकारी मिली। दो दमकल वाहनों को बुलाया गया।

आग कोठी की चारदिवारी के कोने में स्थित कमरे में लगी। इन्हीं से लगे कमरे में सुरक्षाकर्मी रहते हैं। शॉर्ट सर्किट से लगी आग पर तुरंत काबू पाया गया। आग बुझने के बाद कमरे में अधजले नोट से भरी 4-5 अधजली बोरियां मिलीं।

22 मार्च को इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने इस मामले में प्रस्ताव पारित किया। इसमें लिखा गया कि जस्टिस वर्मा के घर से करीब 15 करोड़ रुपए की नकदी मिली।

22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने 65 सेकेंड का एक वीडियो जारी किया, जिसमें नोटों से भरी बोरियां सुलगती दिख दिख रही हैं।

जांच कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि करीब 3-4 बोरियां जली हुई मिलीं थीं।

जांच कमेटी ने रिपोर्ट में कहा है कि करीब 3-4 बोरियां जली हुई मिलीं थीं।

सवाल-4: ‘नोट नहीं मिले’ या ‘मुझे फंसाने की साजिश’ जैसी दलीलें क्या जस्टिस वर्मा को बचा पाएंगी? जवाब: सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता कहते हैं, ‘दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस वर्मा दूसरे सबसे सीनियर जज हैं और अभी उनकी सेवा में 6 साल बचे हैं। जस्टिस वर्मा के अनुसार 3 महीने पहले भी CBI के पुराने मामले में उनकी छवि खराब करने के लिए सोशल मीडिया में प्रयास हुए थे। हाईकोर्ट के सिटिंग जज के खिलाफ यदि कोई साजिश हुई है तो उसकी जांच और खुलासा जरूर होना चाहिए, लेकिन अगर जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोप सही साबित होते हैं, तो अपने बयानों के दम पर भी उनका बचना मुश्किल है।’

सवाल-5: इस मामले की इंटरनल जांच कर रही समिति के 3 जज कौन हैं? जवाब: 22 मार्च को CJI संजीव खन्ना ने 3 जजों की इंटनरल इन्क्वायरी समिति गठित की। ये जस्टिस वर्मा के घर नकदी मिलने की जांच करेगी और CJI को रिपोर्ट सौंपेगी…

सवाल-6: जस्टिस वर्मा पर भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कैसे की जाएगी? जवाब: हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी जज पर इस तरह के संगीन आरोपों की जांच मुख्यतः 2 चरणों में होती है…

पहला चरण: आरोपों की शुरुआती सच्चाई जानना इसमें शिकायत और जज के जवाब का मूल्यांकन किया जाता है। अगर आरोप सही होते हैं तो यह तय किया जाता है कि क्या इसकी विस्तृत जांच करने की जरूरत है या नहीं। इस दौरान उनसे कामकाज छीना जा सकता है।

जस्टिस वर्मा के केस में दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस ने प्राइमा फेसी जांच कर ली है। उन्होंने CJI को रिपोर्ट सौंपकर कहा कि इस मामले की गहन जांच की जरूरत है।

दूसरा चरण: CJI की निगरानी में विस्तृत इंटरनल जांच CJI की मंजूरी के बाद जांच का दूसरा चरण शुरू होता है। इसकी निगरानी भी CJI करते हैं। जस्टिस वर्मा के केस में जांच अभी दूसरे चरण में है।

विराग गुप्ता ने कहा,

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सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने जस्टिस वर्मा के मोबाइल कॉल और आवास के वाई-फाई और सुरक्षा कर्मियों की डिटेल्स मांगी है। जस्टिस वर्मा से अपने मोबाइल से मैसेज या डेटा डिलीट न करने को कहा गया है। सबूत मानने के लिए नोटों के वीडियो की सत्यता को परखने के लिए फोरेंसिक जांच की जाएगी। डिजिटल साक्ष्यों की कानूनी वैधता के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम और नए बीएनएस कानून में प्रावधान हैं। इसके तहत जांच की जाएगी।

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विराग गुप्ता कहते हैं, ‘सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट के पास इस तरीके के आपराधिक मामलों से निपटने के लिए विशेषज्ञ अधिकारी और तंत्र नहीं हैं। इसलिए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस पुलिस जांच के लिए मंजूरी दे सकते हैं। सिटिंग जजों को आयकर कानून का पालन करना जरूरी है इसलिए आयकर विभाग भी इस मामले की जांच कर सकता है। अगर बाहरी लोगों ने जज के स्टोर रूम में पैसा रखा है तो फिर उसके लिए चीफ जस्टिस सीबीआई और ईडी की जांच की मंजूरी भी दे सकते हैं।’

अगर जांच में जज दोषी पाए जाते हैं, तो CJI उन्हें इस्तीफा देने के लिए कह सकते हैं। अगर जज इस्तीफा देने से इनकार करते हैं, तो CJI सरकार को उनके खिलाफ महाभियोग चलाने की सिफारिश कर सकते हैं।

500 के नोटों से भरी जलती हुई बोरियां।

500 के नोटों से भरी जलती हुई बोरियां।

सवाल-7: अगर जस्टिस वर्मा दोषी पाए गए तो उन्हें क्या सजा मिल सकती है? जवाब: विराग गुप्ता का कहना है, ‘कॉलेजियम की सिफारिश के अनुसार जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद हाईकोर्ट ट्रांसफर करने से मामला और बिगड़ सकता है। जांच में देरी और जज को न्यायिक कार्य में दूर रखने से विवाद बढ़ता रहेगा। जांच समिति की रिपोर्ट अगर जस्टिस वर्मा के खिलाफ आई तो उन्हें इस्तीफा देना पड़ सकता है या फिर कॉलेजियम की सिफारिश के अनुसार राष्ट्रपति जस्टिस वर्मा को हटाने के लिए संसद के जरिए महाभियोग की प्रक्रिया शुरू कर सकते हैं।’

संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है। पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। अगर एक सदन में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है। दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है।

सवाल-8: क्या सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जज के खिलाफ सीधे FIR दर्ज नहीं हो सकती? जवाब: 24 मार्च 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट जज के घर नकदी विवाद से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। इसमें जस्टिस यशवंत वर्मा पर FIR दर्ज कराने की मांग की गई। साथ ही CJI के गठित तीन सदस्यीय जांच कमेटी की वैधता को चुनौती दी गई। याचिका सुप्रीम कोर्ट के वकील मैथ्यूज नेदुम्परा ने दायर की है।

याचिका में तर्क दिया गया कि किसी मौजूदा हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट जज के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 154 के तहत आपराधिक मामला दर्ज करने के लिए भारत के CJI से परामर्श अनिवार्य है।

भारत में हाईकोर्ट के जज के खिलाफ सीधे FIR दायर नहीं की जा सकती। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को उनके पदों पर बने रहने के लिए विशेष संरक्षण दिया गया है। ताकि जज बिना किसी डर या दबाव के काम कर सकें।

जजेस (प्रोटेक्शन) एक्ट 1985 के तहत कोई भी अदालत या पुलिस अपने आप किसी जज के खिलाफ उनके न्यायिक कार्यों से जुड़े मामलों में कोई कार्रवाई शुरू नहीं कर सकती। धारा 3 (1) के मुताबिक, किसी जज के खिलाफ कोई सिविल या आपराधिक मुकदमा शुरू नहीं किया जा सकता है।

FIR के लिए सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की मंजूरी जरूरी होगी। CJI एक लेटर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के पास भेजेंगे। अगर जांच में आरोप गंभीर पाए जाते हैं, तो राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से FIR दर्ज करने की अनुमति मिल जाएगी। इसके बाद ही रिपोर्ट दर्ज हो सकेगी।

रिसर्च सहयोग- अंकुल कुमार

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