मेरा नाम संतोष कुमारी है। मैं पंजाब के मोहाली में रहती हूं। रोज रात में जब सोती हूं तो लगता है शायद कल का सूरज न देख पाऊं, इसलिए अपनी हर खास चीज को एकबार याद कर लेती हूं। डॉक्टर ने कहा है कि मेरे पास ज्यादा से ज्यादा 6 महीने का वक्त है।
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पहले मैं सुबह चार बजे से रात के दस बजे तक दौड़ती-भागती रहती थी। अब पूरा दिन बिस्तर पर ही बीत जाता है। मुझे मेरा गंजा सिर देखकर बुरा लगता है। खुद को शीशे में नहीं देखती हूं। डर लगता है देखकर। मेरी बीमारी को पति ने भी दिल पर लगा लिया है। वो भी बीमार रहने लगे हैं।
बीते साल जून की बात है। दोपहर में खाना खाकर बैठी थी। अचानक ब्रेस्ट में कुछ महसूस हुआ। बहू बबीता को इस बार में बताया। वो लैब टेक्नीशियन है। उसने फौरन अपने अस्पताल में एक डॉक्टर से बात की। डॉक्टर ने तुरंत टेस्ट के लिए अस्पताल बुलाया। रिपोर्ट आई तो पता चला कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है।

संतोष कुमारी कहती हैं- मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं।
मुल्लांपुर में कैंसर का एक नया अस्पताल खुला है। परिवार ने तय किया कि इलाज वहीं होगा। शुरुआत में मेरी हालत स्थिर थी। कैंसर की पहली स्टेज थी। डॉक्टर ने भी कहा था घबराने वाली बात नहीं है। मुल्लांपुर में मेरे एक टेस्ट की रिपोर्ट 15 दिन में आई। मात्र एक महीने में ही मेरा कैंसर तीसरी स्टेज पर पहुंच गया। अब कैंसर लिवर तक फैल गया। मेरा मन रखने के लिए डॉक्टर मुझे कुछ बताते नहीं हैं, लेकिन मैं जानती हूं कि बहुत कम सांसें बची हैं।
अब जब अपनी जिंदगी के बारे में सोचती हूं तो लगता है कितनी खूबसूरत थी। आंखें बंद करती हूं तो पुरानी बातें रील की तरह मेरे सामने आती हैं। मेरी दो पोतियां हैं। रोज सुबह उन्हें स्कूल के लिए तैयार करती थी। उनके लिए दोपहर का खाना बनाती थी। अपनी बेटियों के घर जाया करती थी।
सबसे ज्यादा अच्छा लगता था जब मैं ब्यास जाकर बाबाजी के डेरे में 20-20 दिन सेवा करती थी। मेरे पति सरकारी नौकरी से रिटायर हुए तो हम दोनों खूब घूमा करते थे। अब कैंसर के बाद तो अपने ही कमरे में चार कदम नहीं चल पाती हूं।
अब कमरे से रसोई तक भी जाती हूं तो सांस चढ़ जाती है। न भूख लगती है न प्यास। अब अकेली नहीं रह सकती हूं। घबराहट होती है। जब सभी आसपास रहते हैं तो मन में एक सुकून रहता है कि कुछ होगा तो ये देख लेंगे। हालांकि ऐसा हो नहीं पाता कि सब दिनभर घर पर ही रहें। सभी के जाने के बाद अगर घर में अकेली रह जाती हूं तो बाहर बैठ जाती हूं। घर के अंदर अकेले दम सा घुटता है। बाहर बैठकर सड़क पर आते-जाते लोगों को देखती रहती हूं। शाम को बेटा बहू ऑफिस से आते हैं तो अंदर आती हूं।
घर आने के बाद वो लोग अपनी-अपनी बातें करते हैं। पहले उनकी बातें सुनती थी। उनके साथ हंसती थी। हर अच्छी खबर पर खुश होती थी और बुरी खबर पर दुख होता था, लेकिन अब फर्क नहीं पड़ता। अब अगर बेटा-बेटी कोई अच्छी खबर भी बताएं तो कोई खुशी नहीं होती। मेरी बहू पहले प्राइवेट नौकरी करती थी। फिर उसकी सरकारी नौकरी लग गई। जब बेटे-बहू ने इस बारे में बताया तो मुझे कोई खुशी नहीं हुई। किसी बुरी खबर से दुख भी नहीं होता। बस पूरी तरह से बुझ गई हूं।

अपनी पोतियों के साथ संतोष कुमारी।
अब सोचती हूं कि जिंदगी में जो करना चाहो कर लेना चाहिए। ज्यादा नहीं सोचना चाहिए। जो खाना है खा लो, जो पहनना है पहन लो, जो करना है कर लो। आज मेरे बच्चे अगर मुझसे बोलते हैं कि हम यहां जा रहे हैं, वहां जा रहे हैं तो मैं उन्हें रोकती नहीं हूं। पहले ऐसा नहीं था।
अब लगता है कि नहीं रोकना चाहिए, जिसे जहां जाना है, जाने दो। पता नहीं कब आना-जाना बंद हो जाए। कब क्या हो जाए। मेरे पास किसी को भी बोलने के लिए कुछ नहीं है।
मेरी उम्र 68 साल की है। पुश्तैनी तौर पर हम लोग हिमाचल प्रदेश के ऊना जिले के रहने वाले हैं। काफी साल पहले हम ऊना की जमीन बेचकर मोहाली आ गए। बच्चे भी यहीं पढ़े-लिखे और सेटल हुए। आज से दस साल पहले मेरे हार्ट का ऑपरेशन हुआ था। दो स्टेंट डले थे। तब मैंने ज्यादा परवाह नहीं की। शायद उस वक्त जवान थी इसलिए। थोड़ा परहेज रखती रही और सब ठीक रहा।
घर के कामकाज किया करती थी। फिर मेरी आंखों का ऑपरेशन हुआ, लेकिन किसी भी बीमारी का मेरे मन और शरीर पर बहुत असर नहीं हुआ था। मैंने बहुत अच्छे से अपने दो बच्चे पाले, फिर बच्चों के बच्चे भी पाल रही थी।
कैंसर के बाद 22 दिन में जिंदगी ऐसी बदली कि हर वक्त पर मेरी आंखों के सामने पूरी जिंदगी एक रील की तरह चलती रहती है। कभी जवान थी। शादी हुई थी। ससुराल में लगभग 30 लोग थे। हम खेतों में जाया करते थे। गाजर-मूली तोड़कर खाते थे। फिर मोहाली आ गए। बच्चों की शादी हुई। रिश्तेदार के यहां शादी-ब्याह में जाती थी। खूब घूमने का शौक रहा, लेकिन अब देखो इंसान क्या से क्या हो जाता है।

संतोष कुमारी की शादी की तस्वीर।
अपने सामने स्वस्थ लोगों को देखती हूं। दौड़ते भागते हुए लोगों को देखती हूं तो सबसे बड़ी दौलत यही लगती है। जब मैं अपनी जिंदगी को पीछे मुड़कर देखती हूं तो लगता है शरीर है, तो सब है। अपना स्वस्थ शरीर, पैसे और परिवार से भी ऊपर है। यही सबसे बड़ी दौलत है। शरीर के साथ ही सब अच्छा लगता है। पता नहीं मेरी सांस कितनी हैं कितनी नहीं, लेकिन दुनिया में एक स्वस्थ शरीर ही सब कुछ है।
अब मौत का नाम सुनकर भी घबराहट होती है। कभी-कभी लगता है कि काश मैं पहले की तरह ठीक हो जाऊं।
ये जज्बात संतोष कुमारी ने भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से साझा किए।
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