‘सीरिया के सबसे खूबसूरत शहर लताकिया और तारतूस वीरान हैं। सड़कों पर लाशें पड़ी हैं। मरने वाले ज्यादातर आम लोग हैं। हर तरफ HTS यानी हयात तहरीर अल-शाम के लड़ाके दिख रहे हैं। मीडिया कवरेज न हो, इसलिए लाशों को बिना शिनाख्त दफन कर रहे हैं। हमारे इलाकों में पा
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लताकिया में रहने वाले अली महमूद अलावी समुदाय से हैं। लताकिया में बीते 6 मार्च से सीरियन फोर्स और अलावी फाइटर्स के बीच जंग चल रही है। लोगों को गोली मारने के वीडियो वायरल हो रहे हैं। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, अब तक एक हजार से ज्यादा लोग मारे गए हैं।
सीरिया पर 53 साल राज करने वाला असद परिवार लताकिया के अल-कर्दाहा गांव से ही था। तख्तापलट के बाद देश छोड़कर भागे राष्ट्रपति बशर अल असद अलावी समुदाय से हैं। उनके राज में लताकिया अलावियों का सबसे मजबूत गढ़ था।

सीरिया के हालात जानने के लिए हमने अली महमूद को मैसेज किया। जवाब में उन्होंने कुछ वॉयस नोट भेजे। कहा कि मैं पहचान उजागर नहीं करना चाहता। यहां अलावी और दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है।
हमने इसी वजह से उनकी पहचान उजागर नहीं की है। अली महमूद बदला हुआ नाम है।
अभी सीरिया में क्या चल रहा है अली महमूद बताते हैं, ‘8 दिसंबर, 2024 को बशर-अल-असद के देश छोड़कर भागने और तख्तापलट के बाद विद्रोही गुट HTS सत्ता में है। तख्तापलट के करीब तीन महीने बाद सीरिया में नई लड़ाई शुरू हो गई है। असद के समर्थक अलावी HTS के लड़ाकों पर हमले कर रहे हैं। जवाब में HTS लड़ाके अलावियों के इलाकों में घुसकर हमले कर रहे हैं।’

असद समर्थकों के हमले के बाद लताकिया में सीरियन फोर्स का मूवमेंट बढ़ गया है। सरकार ने रिजर्व फोर्स यहां भेजी है।
HTS के लड़ाके अब सीरियन आर्मी का हिस्सा हैं। इस जंग का दायरा तारतूस और लताकिया के आसपास ही है। हालांकि, मौतों पर अलग-अलग दावे हैं। सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, मरने वालों की तादाद एक हजार से ज्यादा है।
वहीं, सीरियन नेटवर्क फॉर ह्यूमन राइट्स के मुताबिक, 475 आम लोग मारे गए हैं। इनमें 148 की मौत असद समर्थकों के हमले में हुई है। सिक्योरिटी फोर्स के हमले में 327 नागरिक और असद समर्थक मारे गए हैं।

HTS आर्मी के जवानों पर हमले से शुरू हुई जंग HTS भले सीरिया में सरकार चला रहा हो, लेकिन उसे कुर्दिश और अलावी गुटों से चुनौती मिल रही है। 6 मार्च को HTS आर्मी के जवान लताकिया के जबलाह में असद समर्थकों को हिरासत में लेने पहुंचे थे। तभी उन पर असद समर्थकों ने हमला कर दिया। कई जवानों की मौत हो गई। अगले दिन 7 मार्च से HTS आर्मी ने असद समर्थक अलावियों के इलाके में हमले शुरू कर दिए।
HTS आर्मी के सोर्स बताते हैं, ‘हमारे जवानों पर एंबुश अटैक किया गया। इसके बाद हमने इदलिब, अलेप्पो, होम्स से रिजर्व फोर्स लताकिया और तारतूस भेजी है। जवान हालात काबू करने में लगे हैैं।’

‘बाहर से आई फोर्स गांव लूट रही’ अलावी लीडर अली महमूद कहते हैं, ‘हालात बिगड़ने के बाद से नई सरकार ने तारतूस और लताकिया में बहुत ज्यादा फोर्स लगा दी है। ये फोर्स बाहर से आई है। वे गांव लूट रहे हैं। घरों में घुस रहे हैं और दुकानें लूट रहे हैं। ये सब लॉ एंड ऑर्डर बनाए रखने के नाम पर हो रहा है। तजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान और उइगर से आने वाले इस्लामिक कट्टरपंथी लड़ाके आम लोगों की हत्या कर रहे हैं। वे सीरियाई नहीं हैं, इसलिए उन्हें काबू करना किसी के बस में नहीं है।’
‘तारतूस और लताकिया से पहले की तरह कोई भी बाहर आ-जा नहीं सकता। हमें सिर्फ 2 घंटे मिलते हैं। इतने वक्त में ही हमें जरूरत की चीजें, सब्जी, राशन लेना होता है। उसके बाद फिर कर्फ्यू लग जाता है। शहर की सड़कें सूनी हैं। लोग घरों से बाहर नहीं निकल रहे।’
’72 घंटों से पानी और बिजली की सप्लाई पूरी तरह बंद हैं। लोग डरे हुए हैं। दमिश्क में भी नई सरकार के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि अब लोगों को सिर्फ इसलिए मारा जा रहा है क्योंकि वो अलावी समुदाय से हैं।’

HTS के लड़ाके ये नहीं देखते हैं कि आपके पास हथियार हैं या नहीं। अगर आप अलावी हैं, तो आपको मार दिया जाएगा। आम अलावी हिंसा नहीं चाहते, नई सरकार का समर्थन करते हैं, लेकिन वे भी खौफ में जी रहे हैं।
असद के राज में ताकतवर रहा अलावी समुदाय टारगेट पर अली महमूद आगे बताते हैं, ‘सीरिया में तख्तापलट के बाद HTS सत्ता में आया। नई सरकार ने अलग-अलग मंत्रालयों, नौकरशाही, पुलिस, प्रशासन में बड़े पदों पर बैठे अलावी समुदाय के लोगों को हटाना शुरू किया। मीडिया, एजुकेशन, हेल्थ डिपार्टमेंट में काम करने वाले लोगों को रातों-रात नौकरी से निकाल दिया। कोई वजह भी नहीं बताई।’
‘HTS का एक धड़ा सीरिया में कट्टरपंथी इस्लामिक सोच लागू करना चाहता है। इस वजह से सीरियाई समाज दो धड़ों में बंट रहा है। एक धड़ा कट्टरपंथी सोच के साथ है और दूसरा आजाद ख्याल का है। अब यही लोग निशाने पर हैं।’

सीरिया का सिर्फ 50-60% एरिया ही HTS के कंट्रोल में HTS सीरिया के सबसे बड़े हिस्से पर राज कर रहा है, लेकिन अब भी बहुत से इलाके उसकी पहुंच से बाहर हैं। इदलिब, अलेप्पो, होम्स, हामा, लताकिया, तारतूस और दमिश्क जैसे बड़े सीरियाई शहर पूरी तरह से HTS के कंट्रोल में हैं। शहरों के बाहर गांवों में लोकल गुटों का राज चल रहा है। यहां लोगों को लूटने और पिटाई की खबरें रोजाना आ रही हैं।
उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्दिश लड़ाकों का कंट्रोल है। उन्हें अमेरिका का सपोर्ट हासिल है। पूर्व के कुछ इलाकों में आतंकी संगठन ISIS का कब्जा है। अलग-अलग इलाकों में छोटे-छोटे इस्लामिक गुटों का कब्जा है। साउथ सीरिया में द्रूज आबादी ज्यादा है।

कई द्रूज गांवों ने HTS की सरकार को स्वीकार कर लिया है। कुछ इलाकों में सहमति नहीं बन पाई है। द्रूज समुदाय को साथ लिए बिना दमिश्क पर राज करना आसान नहीं रहा है। द्रूज लड़ाका कौम रही है और सत्ता को चुनौती दे सकती है।

नई सरकार के पास न ताकत, न पैसा एक्सपर्ट मानते हैं कि असद समर्थक नई सरकार के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। साउथ सीरिया में इजराइल का कब्जा है। सीरिया के पास न एयरफोर्स है, न ही एयर डिफेंस सिस्टम। दूसरी तरफ सीरिया के सभी तेल संसाधनों पर कुर्दिश लड़ाकों का कब्जा है। नई सरकार के पास खुद के लिए भी ऑयल रिजर्व नहीं है।
देश की इकोनॉमी गृहयुद्ध शुरू होने के बाद से ही संकट में थी। अब तो हालात और खराब हैं। स्कूल और अस्पताल चलाने के लिए फंड नहीं है। सरकार के पास रेवेन्यू जुटाने के लिए नए जरिए नहीं हैं। राजनीतिक हालात ऐसे नहीं है कि कोई बाहर से सीरिया में निवेश करने के लिए आए।

अब एक्सपर्ट्स की बात HTS के सामने क्या चुनौतियां हैं, हाल में हुई हिंसा क्या असर होगा, क्या ये नए गृह युद्ध की शुरुआत है और भारत पर इसका क्या असर होगा? इस पर हमने मिडिल ईस्ट मामलों के जानकार पूर्व राजदूत अनिल वाधवा और JNU के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में इंटरनेशनल पॉलिटिक्स पढ़ाने वाले डॉ. राजन कुमार से बात की।
पढ़िए अनिल वाधवा क्या कहते हैं…
सवाल: सीरिया में हो रही हिंसा की वजह क्या है? जवाब: सीरिया में जो हो रहा है, उसकी जड़ में अलग-अलग हथियारबंद संगठन हैं। असद के जाने के बाद से उसके समर्थकों का नया गुट बन गया है। अलावी समुदाय फिर से एकजुट होता दिख रहा है। वे सीरिया का कुछ हिस्सा अपने कंट्रोल में ले सकते हैं।
कयास हैं कि रूस अपने सैन्य ठिकाने बचाने के लिए उनकी मदद कर रहा है। तुर्की ने HTS और नई सरकार बनाने में भले अहम भूमिका निभाई हो, लेकिन तुर्किये की दूसरे हथियारबंद संगठनों पर पकड़ नहीं है।

सवाल: HTS का सीरिया के कितने हिस्से पर कंट्रोल है, क्या वो बाकी हिस्सों तक भी पहुंचेगा? जवाब: सीरिया में सबसे ज्यादा प्रभावी कुर्दिश फोर्स है। ये डेर अल सोर और उन इलाकों पर काबिज है, जहां कभी ISIS का कब्जा हुआ करता था। ये पूरा इलाका सीरियाई रेगिस्तान में आता है। अभी की स्थिति देखें तो HTS सीरिया पर 50% से ज्यादा कब्जा नहीं बढ़ा सकता। अगर उसे सीरिया के दूसरे हिस्सों तक पकड़ बनानी है तो बड़ी आर्मी और संसाधन चाहिए होंगे।
सवाल: अगर नया गृह युद्ध शुरू हुआ, तो सीरिया का भविष्य क्या होगा? जवाब: सीरिया और ज्यादा अस्थिरता की तरफ बढ़ता दिख रहा है। कतर, सऊदी अरब, तुर्किये और ईरान के हित सीरिया से जुड़े हैं। रूस भी मिडिल ईस्ट में सीरिया को अपना मानता रहा है। यूरोप अभी यूक्रेन-रूस युद्ध में फंसा है। इसलिए कोई भी देश सीरिया की मदद के लिए खड़ा होने की स्थिति में नहीं है। रूस और यूरोप के अलावा अमेरिका को सीरिया में रुचि दिख रही है। खबरें हैं कि अमेरिका भी सीरिया में बैकडोर डिप्लोमेसी में शामिल है।
सवाल: भारत को क्या करना चाहिए? जवाब: भारत को फिलहाल वेट एंड वॉच की स्थिति में रहना चाहिए। भारत का हित अभी सिर्फ उन ठिकानों पर है, जहां भारतीय कंपनियों ने निवेश किया है।

भारत चाहेगा कि सीरिया में लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव हों और किसी भी गुट का एकतरफा शासन न हो। अभी की परिस्थिति में ऐसा होते नहीं दिख रहा।
अब राजन कुमार की बात
सवाल: सीरिया में शुरू हुई हिंसा के क्या मायने हैं? जवाब: HTS को लेकर भरोसे से नहीं कहा जा सकता कि वो बार-बार हो रही हिंसा पर काबू पा लेगा। अलावी समुदाय के लोगों के पास इन्फॉर्मेशन, इंटेलिजेंस, हथियार और संसाधन सब कुछ हैं। वे नई सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल रहे हैं। सीरिया की हालत करीब-करीब अफगानिस्तान जैसी हो चुकी है।
सवाल: विद्रोह सिर्फ अलावी समुदाय की तरफ से क्यों हैं? जवाब: अलावियों की आबादी करीब 10% है। इस समुदाय के लोगों को लग रहा है कि उनकी जान जाने ही वाली है तो बैठे-बैठे क्यों मरें। अच्छा है कि लड़कर मरें। अलावियों का जीतना नामुमकिन है। अब उन्हें ईरान और हिजबुल्लाह का समर्थन नहीं मिल रहा है।

सवाल: सीरिया के हालात पर बाहरी देशों का कितना असर है? जवाब: सीरिया में तुर्किये सबसे बड़ा किरदार बनकर उभरा है। अरब के दूसरे सुन्नी कट्टरपंथी गुटों को भी वहां आधार मिला है। पश्चिमी देशों का दोगलापन यहीं दिखता है उन्होंने ईरान से दुश्मनी निभाने के लिए बशर को हटाने में मदद की। अब वे आतंकी संगठन को समर्थन देने से नहीं चूक रहे। पश्चिमी देश उनके साथ बैकडोर डिप्लोमेसी कर रहे हैं।
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ये खबर भी पढ़ें 3 घंटे ज्यादा डाउन रहा X, मस्क बोले- साइबर अटैक के पीछे यूक्रेन

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X 10 मार्च को तीन बार डाउन हो गया। इससे दुनियाभर के यूजर्स परेशान होते रहे। X पर मालिकाना हक रखने वाले इलॉन मस्क ने आरोप लगाया कि ये साइबर अटैक है और इसके पीछे यूक्रेन का हाथ है। उन्होंने कहा कि हमें ठीक से नहीं पता कि क्या हुआ था, लेकिन X सिस्टम को ध्वस्त करने के लिए यूक्रेन एरिया से ओरिजिनेट IP एड्रेस से साइबर हमले हुए। पढ़िए पूरी खबर…