मैं सैय्यद हैदर शाह, पहलगाम आतंकी हमले में टूरिस्टों की जान बचाने के दौरान अपनी जान गंवाने वाले आदिल हुसैन का पिता हूं। हमारा परिवार अनंतनाग के हपटनार गांव में रहता है। मेरे 3 बेटे और 3 बेटियां हैं। आदिल सबसे बड़ा बेटा था। वह घुड़सवारी करवाने का काम क
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पहलगाम आतंकी हमले से कुछ दिन पहले की बात है। आदिल अपने दोस्तों के साथ बैठा था। हंसी-मजाक में मोबाइल की छीना-झपटी में उसकी आंख पर मोबाइल लग गया। उसकी आंख में चोट लग गई। साथ ही पिछले तीन दिनों से लगातार बारिश हो रही थी। इसलिए वो घर पर ही आराम कर रहा था।
जिस दिन पहलगाम में हमला हुआ, उस रोज कई दिनों के बाद अच्छी धूप निकली थी। आदिल ने कहा कि आज धूप निकली है, वह काम पर जाएगा। सुबह आठ बजे वह उठा, चाय बिस्किट खाया और काम पर चला गया। सुबह के नाश्ते में हम लोग अक्सर चाय बिस्किट ही खाते हैं। हर दिन वो सुबह 8 से 9 बजे के बीच काम पर जाता था और शाम को 6 से 7 बजे के बीच घर लौटता था।

22 अप्रैल को पहलगाम में आतंकियों ने 26 लोगों की हत्या कर दी थी।
आमतौर पर आदिल एक ही पैंट पहनकर जाता था, लेकिन उस दिन यहां आंगन में खड़ा होकर कहने लगा कि आज मैं एक पैंट पहनकर जाऊंगा और एक साथ लेकर जाऊंगा। मैंने पूछा कि ऐसा क्यों, तो बोला कि एक पैंट कीचड़ में खराब हो जाती है।
उस दिन आदिल के काम पर जाने के बाद हम रोज की तरह अपना काम कर रहे थे। दोपहर दो बजे पता चला कि पहलगाम में गोलियां चली हैं। हालात खराब हैं। हम सभी लोग परेशान हो गए कि आदिल कहां होगा, कैसा होगा।
हमने उसे फोन करने की कोशिश की, लेकिन वह नेटवर्क में नहीं था। हम दोपहर दो बजे से लगातार शाम साढ़े चार बजे तक उसे फोन करते रहे। हम घबराए हुए थे कि कहीं आदिल जख्मी तो नहीं हो गया, उसे गोली तो नहीं लग गई।

आदिल के पिता सैय्यद हैदर शाह, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला से गले लगकर रोते हुए।
शाम सात बजे आदिल का फोन ऑन हुआ, लेकिन किसी ने कॉल रिसीव नहीं की। हम लोग लोकल थाने गए, लेकिन वहां बताया गया कि सब कुछ बंद है। आप लोग वहां नहीं जा सकते। उन्होंने हमें घर भेज दिया।
हम घर लौट आए। पूरी रात कैसे गुजारी बता नहीं सकते। किसी ने कुछ खाया नहीं। सबकी सांसें अटकी हुई थीं। हम पूरी रात उसे फोन करते रहे, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला।
सुबह पता चला कि पहलगाम अस्पताल में कुछ लोगों की लाशें रखी हैं। जख्मी लोग भी वहीं हैं।
मेरा छोटा बेटा और चचेरा भाई अस्पताल पहुंच गए। वे लोग मुझे साथ लेकर नहीं गए। इन लोगों ने अस्पताल में देखा कि आदिल की लाश वहां रखी है। मैं लगातार फोन कर रहा था। छोटे बेटे ने बताया कि आदिल जख्मी है, उसकी टांग में गोली लगी है।
वहां से सभी 26 की 26 लाशें श्रीनगर भेज दी गईं। छोटा बेटा भी श्रीनगर चला गया। तब भी उसने मुझे सच नहीं बताया था। इस तरह रात हो गई। रातभर मैं बेटे को फोन करता रहा। छोटा बेटा मुझसे इतना ही कहता कि भैया को गोली लगी है, वह जख्मी है।
सुबह मैंने नौशाद से कहा कि देखो मुझसे कुछ छुपाओ मत, आदिल मर चुका है। फिर उसने बताया कि अब क्या करना है, खुद को मार लोगे क्या, हिम्मत रखो, खुद को संभालो। श्रीनगर से सुबह 11 बजे आदिल का जनाजा गांव के लिए निकला। वे लोग दोपहर दो बजे गांव आ गए। आदिल को देखते ही मैं कांप गया। मेरे मुंह से बस इतना ही निकला कि अब सब खत्म हो गया।

सैय्यद हैदर शाह कहते हैं- ‘मैं चाहता था कि आदिल पहलगाम न जाकर गांव में ही मजदूरी करके गुजारा करे, लेकिन वो नहीं माना।’
मुझे बताया गया कि आदिल अपना ग्रुप लेकर बैसरन घाटी गया था। तभी अचानक गोलियां चलने लगीं। वो जिस टूरिस्ट परिवार के साथ था, उसको आतंकियों ने निशाना बनाया। एक बेटी अपने पिता के ऊपर लेट गई। आतंकियों से कहने लगी कि पापा को मत मारो।
इसी बीच आदिल भी आतंकियों से भिड़ गया। उसने कहा कि इन बेगुनाहों को मत मारो। उसने आतंकियों से बंदूक छीनने की कोशिश की। इतने में एक ने उसके सीने पर गोली चला दी। आदिल को कुल चार गोलियां लगीं। दो सीने में और एक-एक कंधे और गले में।
मैंने आदिल का सारा जिस्म देखा। उसके हाथ की दो उंगलियां खत्म हो चुकी थीं और उन पर जख्म थे, जो इस बात का सबूत था कि आदिल ने आतंकियों से बंदूक छीनने की कोशिश की थी। उसकी जख्मी लाश देखकर दुख तो बहुत हुआ, लेकिन फख्र भी हुआ। मेरे बेटे ने अपनी जान देकर कई टूरिस्टों की जान बचाई।
आदिल हंसमुख मिजाज का था। जब वह काम पर जाता था, तब भी हंसता रहता था और जब काम से लौटता था, तब भी उसके चेहरे पर मुस्कुराहट होती थी। घर लौटते ही वो ढेर सारी बातें करता था। जैसे- आज वह कहां गया था। कितना कमाया। कहां के टूरिस्ट मिले। वे उससे क्या बातें कर रहे थे।
जिस दिन कोई टूरिस्ट टिप दे देता था, उस दिन तो वह बहुत खुश होता था कि आज थोड़े ज्यादा पैसे कमा लिए।
हम भी उस दिन बहुत खुश होते थे कि आज हमारे घर 100-200 रुपए ज्यादा आए हैं। मैं तो उसका चेहरा देखकर समझ जाता था कि आज इसे मजदूरी के अलावा अच्छी टिप भी मिली है। मैं कभी उस पर गुस्सा हो जाता था, तो वह डर जाता था। बाद में मेरे पांव पड़ जाता था कि आप मेरे पिता हो।

आदिल के अंतिम संस्कार की तस्वीर। इसमें आदिल के परिवार के साथ जम्मू-कश्मीर के सीएम उमर अब्दुल्ला भी शामिल हैं।
वह गलत काम बर्दाश्त नहीं करता था। मैं उससे कभी कुछ गलत करने को बोलता था, तो वह साफ मना कर देता था।
उसे घर के काम करना पसंद नहीं था। जैसे कि मैं कहता था कि जंगल जाकर गाय चराया करो। आसपास ही मजदूरी कर लो। पहलगाम मत जाओ, लेकिन वो मना कर देता था। उसे पैसे कमाकर घर चलाना पसंद था।
आदिल के पास खुद का घोड़ा नहीं था। वह दूसरे का घोड़ा ले जाता था। पहलगाम से बैसरन घाटी के जितने चक्कर लगाता था, उस हिसाब से उसे पैसे मिलते थे। एक चक्कर के 300 रुपए मिलते थे, दो चक्कर के 600 रुपए। किस-किसी दिन कुछ भी नहीं मिलता था।
वह 12वीं तक पढ़ा था। सोचा तो था कि कोई नौकरी मिल जाएगी, पर हम गरीब लोग हैं। किसी बड़े आदमी के साथ हमारा उठना-बैठना नहीं है। बिना जान-पहचान के नौकरी कौन देता, इसलिए 12वीं करते ही आदिल मजदूरी करने लगा।
बड़ा बेटा होने के नाते उस पर ज्यादा जिम्मेदारी थी। घर की रक्षा करता था। भाई-बहनों की मदद करता था। उसकी आदत थी कि जब वह काम पर जाता था, तो बहनों के बच्चों के लिए बिस्किट लाता था और जब काम से आता था तब भी उनके लिए बिस्किट लाता था। बहनों के बच्चों के साथ वह खूब खेलता था।

सैय्यद हैदर शाह अपने परिवार के साथ।
आदिल के जाने के बाद घर में मातम पसरा है। पता नहीं घर-परिवार का गुजारा कैसे होगा। पैसे तो वही कमाकर लाता था। आगे घर का क्या होगा मैं नहीं जानता हूं। अल्लाह मालिक है। बहुत याद आती है उसकी। जब भी उसके बारे में सोचता हूं तो ऐसे लगता है जैसे उस पर बनी फिल्म देख रहा हूं। जिसमें उसके पैदा होने से लेकर अब तक के किस्से हैं।
देश में इस हमले को हिंदू-मुसलमान के नजरिए से देखा जा रहा है। ऐसे लोगों को सोचना चाहिए कि मेरे बेटे आदिल ने खुद अपने सीने पर गोली खाई है और गोली खाते वक्त उसने हिंदू-मुसलमान नहीं सोचा। उसने हर धर्म के लोगों की जान बचाई है। जो लोग हिंदू-मुसलमान कर रहे हैं, वह आदिल की शहादत को याद करें, उसके बाप की तरफ देखें। भाईचारा कायम रखें।
सैय्यद हैदर शाह ने ये सारी बातें भास्कर रिपोर्टर मनीषा भल्ला से शेयर की हैं…
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