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शाहजहांपुर में डेढ़ सौ वर्ष पहले आई थी छुक छुक करती रेलगाड़ी

स्पेशल रिपोर्ट-रोचक अग्निहोत्री(शाहजहांपुर)

 

(अवध रुहेलखंड एक्सटेंशन : डा विकास खुराना)

रेल के आने से बहुत पहले ही शाहजहांपुर शहर बस चुका था,यहां तक कि जब रेल आई तब शहर को जिला मुख्यालय बने हुए भी सत्तर साल का लंबा वक्त बीत चुका था, तकनीकि इतिहास बदलती है का सत्य यहां भी चरितार्थ हुआ,रेल के आने से पहले शहर के पास से बहती नदियो और सड़को से यातायात होता था,अजीजगंज, अहमदपुरा,व्यापार के बड़े केंद्र थे,सिर्फ अजीजगंज का घाट ही पालिका की आय का पच्चीस प्रतिशत दे देता था,आज इसकी कल्पना ही की जा सकती है कि रेल की पटरियां जो शहर की उत्तर सीमा बनाती है,अगर न हो तो शहर का वास्तु क्या होगा। बहर हाल यहां की मुख्य लाइन अवध रुहेलखंड रेल का एक्सटेंशन थी,कंपनी 1862 में गठित हुई,इसका मुख्यालय लखनऊ था और मुख्य कार्य वाराणसी से सहारनपुर को जोड़ने वाली लाइन बिछाना,जनपद में लाइन पूर्व से आई और खन्नौत तथा गर्रा को बांधने के लिए लोहे के बड़े ब्रिज तैयार किए गए जिनके पिलर्स की गहराई अस्सी अस्सी फीट तक गहरी है। शाहजहांपुर लाइन 1 अप्रैल 1873 को खोली गई,लाइन पर चलने वाली सबसे पुरानी गाड़ी लखनऊ सहारनपुर पैसेंजर थी जो शायद अब भी चलती है,कोयले वाले इंजन से निकलने वाली आवाज क्षेत्र के सन्नाटे को तोड़ती थी,पहले स्टेशन के नाम पर केवल एक प्लेटफार्म और छोटी कोठरी थी बाद में 1905 के लगभग स्टेशन की इमारत का काम शुरू किया गया और कुछ बड़े कमरे बनाए गए। इस रेल लाइन ने जनपद के इतिहास में बड़ा परिवर्तन किया और जल यातायात पूरी तरह से खत्म हो गया,शीघ्र ही अजीजगंज का अवसान हुआ, शहर के अनेक नौका घाट खत्म हुए,अजीजगंज से ऑक्टूराई हटा ली गई।

Photo Summary: अवध रुहेलखंड रेल के इंजन तथा कंपनी का लखनऊ स्थित मुख्यालय।
डॉ.विकास खुराना
अध्यक्ष,इतिहास विभाग
एसएस कालेज।

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