Naradsamvad

[post-views]

MBA Makhanawala Success Story; Shravan Roy | Bihar News | पॉजिटिव स्टोरी- सुपरफूड मखाने से बदली किस्मत: पत्नी ने दिया दो साल का समय, 17 हजार से बिजनेस शुरू कर बनाई करोड़ों की कंपनी


‘2019 की बात है। अडाणी ग्रुप में था। अच्छी जॉब थी। एक रोज मैंने पत्नी से कहा- गांव चलना है। वह चौंकते हुए बोली- लोग गांव से शहर कमाने के लिए आते हैं और आप इतनी अच्छी जॉब छोड़कर गांव जाना चाहते हैं।

.

मैंने उसे समझाते हुए कहा- मुझे दो साल दे दो। जितनी सैलरी पर अभी जॉब कर रहा हूं, इतने ही पैसे कमा सकता हूं। 8 लाख का पैकेज है। दो साल गांव में रहकर मखाना का बिजनेस करेंगे।

यदि बिजनेस चला तो ठीक, नहीं तो वापस शहर आ जाएंगे। हमारी शादी को कुछ ही महीने हुए थे। कहने के बाद पत्नी मान गई। गांव आया, उसके कुछ ही महीने बाद कोविड आ गया।’

हल्की मुस्कुराहट के साथ ‘MBA मखानावाला’ के फाउंडर श्रवण रॉय ये बातें कह रहे हैं। बताते हैं, ‘कोरोना के दौरान मैंने सेविंग्स और लोगों के ताने, दोनों खाए हैं। लोग कहते थे- इतनी अच्छी नौकरी थी। अब घर पर बैठकर खा रहा है।’

ये MBA मखानावाला के फाउंडर श्रवण रॉय हैं। इन्होंने 2019 में जॉब छोड़कर मखाना बेचने के बारे में सोचा था।

ये MBA मखानावाला के फाउंडर श्रवण रॉय हैं। इन्होंने 2019 में जॉब छोड़कर मखाना बेचने के बारे में सोचा था।

मैं बिहार के दरभंगा में हूं। श्रवण की कंपनी अलग-अलग फ्लेवर में मखाना बेस्ड स्नैक्स तैयार करती है। प्रोसेसिंग यूनिट में मखाने पैक किए जा रहे हैं। कुछ पैकेट में आटा भी दिख रहा है।

श्रवण कहते हैं, ‘यह मखाने का आटा है। इससे कुकीज तैयार किया जाता है। हमने फंक्शन में कुल्फी, इडली, डोसा जैसी खाने-पीने की चीजें भी इसी आटे से बनानी शुरू की हैं। लोगों को जब कहता हूं कि यह मखाने के आटे से बना है, तो यकीन नहीं करते।

जो मखाना कभी मिथिला और बिहार तक सीमित था। आज देश-दुनिया में सुपर फूड के तौर पर जाना जा रहा है। इसकी डिमांड इतनी है कि सप्लाई कर पाना मुश्किल है।’

टेस्ट में मखाना कुकीज, दूसरी कुकीज की तरह ही लग रही हैं। श्रवण कहने लगे, ‘इसमें जीरो मैदा है। कोई प्रिजर्वेटिव नहीं है। अभी 22 तरह के प्रोडक्ट बना रहे हैं।’

श्रवण मखाना की पैकेजिंग कर रहे हैं। मार्केट में मखाना 1500 रुपए से 2000 रुपए के बीच बिकता है।

श्रवण मखाना की पैकेजिंग कर रहे हैं। मार्केट में मखाना 1500 रुपए से 2000 रुपए के बीच बिकता है।

श्रवण ने पैकेजिंग यूनिट अपने घर पर ही बना रखी है। कहते हैं, ‘हम लोगों का पुश्तैनी घर यहीं पर है। पापा रेलवे में थे, तो पूरा बचपन रेलवे कॉलोनी में ही बीता। घर में हर कोई सरकारी नौकरी वाला।

2006-07 की बात है। उस वक्त बिहार में ट्रेंड था कि बेटा इंजीनियर बनेगा और बेटी डॉक्टर। 12वीं के बाद IIT की तैयारी करने के लिए पापा ने दिल्ली भेज दिया। दो साल वहां रहा।

IIT का एग्जाम दिया, लेकिन क्वालीफाई नहीं कर पाया। मुझे आज भी याद है- रास्ते में आते हुए ऐसा लग रहा था कि क्या मुंह लेकर घर जाऊंगा। पापा ने पढ़ने के लिए दिल्ली भेजा था और मैं तो एग्जाम ही नहीं निकाल पाया।

मैं किसी काम का नहीं हूं अब। कुछ नहीं कर सकता। यही सब दिमाग में चल रहा था। घर आने के बाद एक साल ड्रॉप लिया, फिर B.Tech एग्रीकल्चर मिला। पढ़ने के लिए तमिलनाडु चला गया।’

ये श्रवण की कॉलेज टाइम की तस्वीर है। इन्होंने तमिलनाडु से फूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की है।

ये श्रवण की कॉलेज टाइम की तस्वीर है। इन्होंने तमिलनाडु से फूड टेक्नोलॉजी की पढ़ाई की है।

मखाना के बारे में कब सोचना शुरू किया?

‘फैमिली में कभी बिजनेस का कल्चर नहीं रहा। यहां पर यदि कोई बिजनेस कर रहा है, मतलब वह कुछ नहीं कर पाया। 2010 की बात है। कॉलेज में एक प्रोजेक्ट था, जिसमें किसी फूड से रिलेटेड मशीन बनानी थी।

मैंने अपने प्रोफेसर को मखाने के बारे में बताया। दक्षिण राज्यों में उस वक्त मखाने का कोई चलन नहीं था। क्लास में सिर्फ 4 बच्चों ने मखाने के बारे में सुना था। मैंने एक पॉपिंग मशीन बनाई।

दरअसल, मखाने के सीड को रोस्ट करने के बाद लकड़ी के पट्टे से पीटकर मखाना निकाला जाता है। यह पूरा काम हाथ से होता है। मैंने इसी के लिए मशीन बनाई थी। इसका वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डाल दिया।

धीरे-धीरे अलग-अलग जगहों से मखाने को लेकर लोगों की कॉल आने लगे। उसके बाद मखाना बेचने के बारे में सोचना शुरू किया।’

श्रवण के साथ उनकी पत्नी रुचि मंडल हैं। रुचि ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।

श्रवण के साथ उनकी पत्नी रुचि मंडल हैं। रुचि ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।

श्रवण के साथ उनकी पत्नी रुचि मंडल भी हैं। वह बिजनेस के फाइनेंस का काम संभालती हैं। श्रवण कहते हैं, ‘जब मुझे लगा कि इतने सारे लोग मखाने के बारे में पूछ रहे हैं, फिर क्यों न मैं मखाने का बिजनेस ही शुरू करूं। इस बीच जयपुर से MBA भी कर चुका था।

2019 में घरवालों को बिना बताए जॉब छोड़कर वापस गांव आ गया। पत्नी ने भी जॉब छोड़ दी थी। मेरे दिमाग में एक बात बहुत पहले से चल रही थी कि कॉर्पोरेट लाइफ में बमुश्किल से दो-चार लोग जान पाते हैं। जबकि बिजनेस में खुद की एक पहचान होती है।

गांव आकर घरवालों को बताया कि जॉब छोड़ दी है। मम्मी-पापा, सभी लोगों का यही कहना था- अब तुम मखाना बेचोगे। ये कौन-सा बिजनेस है। इसी काम के लिए इतना पढ़ाया।

मैं आसपास के गांव में जाकर किसानों से मखाने की खेती, इसके प्रोडक्शन के बारे में समझने लगा। किस्मत देखिए कि इसी बीच कोरोना आ गया। अब घर पर बैठने के अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं था।

जो भी 2-3 लाख रुपए की सेविंग्स थी। यह पैसा हम लोग बिजनेस शुरू करने के लिए लाए थे, सब खत्म हो गया। लोगों ने ताने भी खूब सुनाए। दोस्त कहते थे- देखो तुम जॉब छोड़कर चले गए। घर पर बैठकर खा रहे हो। अभी रहते नौकरी में, तो सैलरी मिलती न।

मैं भी सोचता कि कुछ गलती तो नहीं कर बैठा हूं। कहीं ऐसा न हो कि बिजनेस भी न शुरू कर पाऊं और जॉब भी न रहे। हालांकि मन में एक आस थी।’

मखाना तैयार होने के बाद इसकी सफाई, छंटाई होती है। साइज के मुताबिक इसे अलग-अलग किया जाता है।

मखाना तैयार होने के बाद इसकी सफाई, छंटाई होती है। साइज के मुताबिक इसे अलग-अलग किया जाता है।

श्रवण कुछ फ्लेवर्ड मखाने टेस्ट करने के लिए देते हैं। कहते हैं, ‘कोरोना में लोगों को समझ आया कि हेल्थ कितनी जरूरी है। लोग चाहते थे कि ऐसा क्या पी लें, जिससे बीमार न पड़ें। कोविड जब जाने को हुआ, तब मैंने मखाने के बिजनेस के बारे में सोचना शुरू किया।

कुछ दोस्तों ने मखाने का ऑर्डर दिया था। पहली खेप 17 हजार रुपए की थी। मैं तो फूड टेक्नोलॉजिस्ट हूं। अपनी कंपनी के नाम के पहले भी फूड टेक्नोलॉजिस्ट लगाता हूं। मैंने सोचा- प्लेन मखाने के साथ-साथ फ्लेवर्ड मखाने भी स्नैक्स की तरह बनाए जा सकते हैं।

यूनिट सेट करने के लिए अपने रिश्तेदार से 4 लाख का कर्ज लिया। फिर मैंने ये फैक्ट्री शुरू की। किसानों से मखाने खरीदकर प्रोसेस करने लगा। शुरुआत में सिर्फ मखाने बेचता था। आज मखाना कुकीज, मखाना आटा, मखाना बेस्ड स्नैक्स, 22 तरह के प्रोडक्ट बेचते हैं।’

श्रवण कैटरिंग सर्विस में मखाने के आटे से बने इडली-डोसा जैसे डिशेज सर्व करते हैं।

श्रवण कैटरिंग सर्विस में मखाने के आटे से बने इडली-डोसा जैसे डिशेज सर्व करते हैं।

एक व्यक्ति ई-रिक्शा से मखाने की बोरियां लेने के लिए आया हुआ है।

पूछने पर श्रवण कहते हैं, ‘ये लोकल मार्केट में जा रहा है। ऑनलाइन के अलावा ऑफलाइन भी प्रोडक्ट बेचते हैं। राज्य और राज्य के बाहर होने वाले एग्जीबिशन में भी जाते हैं। इससे क्लाइंट्स जुड़ते चले जाते हैं।

जिस बिजनेस की शुरुआत 17 हजार रुपए से हुई थी। आज डेढ़ करोड़ से ज्यादा का सालाना टर्नओवर कर रहे हैं। दरअसल, मखाना फैट फ्री प्रोडक्ट है। इसमें कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, जिंक, सोडियम पाए जाते हैं।’

ये श्रवण की टीम फोटो है। साथ में उनके बिजनेस पार्टनर भरत रंजन हैं।

ये श्रवण की टीम फोटो है। साथ में उनके बिजनेस पार्टनर भरत रंजन हैं।

मुझे मखाने की खेती के बारे में जानने की उत्सुकता हो रही है। श्रवण कहते हैं, ‘नवंबर से फरवरी के बीच इसकी बुआई होती है। अगस्त-सितंबर तक यह तैयार हो जाता है।

मिथिला क्षेत्र में दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया जैसे 7-8 जिलों में इसे उगाया जाता है। पोखर या गहरे खेत में इसकी बुआई होती है। अब मखाना की ज्यादा डिमांड है, इसलिए खेतों में भी उगाया जाता है।

मखाने की खेती के लिए शर्त ये होती है कि जमीन से एक-डेढ़ फीट तक पानी हमेशा ऊपर और स्थिर रहना चाहिए। मखाने का सीड जब तैयार हो जाता है, तो इसे सुखाया जाता है।

फिर सफाई, छंटाई के बाद इसे भूना जाता है। लकड़ी के पट्टे की मदद से इसे फोड़ा जाता है। पहले तो जैसे मक्के का लावा तैयार होता था, वैसे मखाना तैयार होता है।’



Source link

Loading

अन्य खबरे

गोल्ड एंड सिल्वर

Our Visitors

1618519
Total Visitors
error: Content is protected !!