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संविधान प्रस्तावना से सोशलिस्ट और सेक्युलर शब्द हटाने की मांग: सुप्रीम कोर्ट ने याचिका लगाने वालों से कहा- क्या आप नहीं चाहते इंडिया सेक्युलर रहे

नई दिल्ली4 मिनट पहले

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इंदिरा गांधी सरकार में 42वें संविधान संशोधन के तहत 1976 में संविधान की प्रस्तावना में 'सोशलिस्ट' और 'सेक्युलर' शब्द शामिल किए गए थे। - Dainik Bhaskar

इंदिरा गांधी सरकार में 42वें संविधान संशोधन के तहत 1976 में संविधान की प्रस्तावना में ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द शामिल किए गए थे।

सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को संविधान की प्रस्तावना से ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई हुई। इस दौरान जस्टिस संजीव खन्ना ने एडवोकेट विष्णु शंकर जैन से पूछा- क्या आप नहीं चाहते हैं कि इंडिया सेक्युलर रहे?

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की बेंच पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, एडवोकेट विष्णु शंकर जैन और अश्विनी उपाध्याय की याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। जैन ने दलील दी-

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42वें संशोधन के जरिए 1976 में संविधान में ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द जोड़े गए। इन बदलावों पर संसद में कभी बहस नहीं हुई। इस वजह से इन्हें संविधान की प्रस्तावना से हटा देना चाहिए।

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इस पर बेंच ने कहा, “इस अदालत ने कई फैसलों में माना है कि सेक्युलरिज्म हमेशा से संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा रही है। अगर संविधान में समानता और बंधुत्व शब्द का इस्तेमाल किया जाए, तो यह स्पष्ट संकेत है कि सेक्युलरिज्म को संविधान की मुख्य विशेषता माना गया है।”

इंदिरा गांधी सरकार में 1976 में 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में ‘सोशलिस्ट’ और ‘सेक्युलर’ शब्द शामिल किए गए थे।

स्वामी के तर्क पर बेंच ने कहा- इस मामले की जांच करेंगे

सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि प्रस्तावना 26 नवंबर, 1949 को की गई एक घोषणा थी, इसलिए बाद में संशोधन के माध्यम से इसमें और शब्द जोड़ना मनमाना था। यह दर्शाना गलत है कि वर्तमान प्रस्तावना के अनुसार, भारतीय लोग 26 नवंबर, 1949 को भारत को एक सोशलिस्ट और सेक्युलर गणराज्य बनाने के लिए सहमत हुए थे। इस पर बेंच ने कहा कि वह इस मामले की जांच करेगी। इस पर 18 नवंबर को अगली सुनवाई होगी।

जस्टिस खन्ना बोले- सोशलिज्म के कई मतलब, पश्चिमी देशों के अर्थ लेना सही नहीं सुनवाई के दौरान जैन ने कहा कि डॉ. बीआर अंबेडकर ने कहा था कि ‘सोशलिस्ट’ शब्द को शामिल करने से व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर अंकुश लगेगा। उन्होंने कहा कि प्रस्तावना को संशोधनों के माध्यम से संशोधित नहीं किया जा सकता।

जस्टिस खन्ना ने कहा कि सोशलिज्म के अलग-अलग अर्थ हैं। पश्चिमी देशों में अपनाए गए अर्थ को नहीं लेना चाहिए। बेंच ने कहा, “सोशलिज्म का अर्थ यह भी हो सकता है कि अवसर की समानता होनी चाहिए और देश की संपत्ति समान रूप से लोगों में बांटी जानी चाहिए।”

याचिका में तर्क- प्रस्तावना को बदला या निरस्त नहीं किया जा सकता 2 सितंबर, 2022 को कोर्ट ने स्वामी की याचिका को अन्य लंबित मामलों के साथ सुनवाई के लिए शामिल किया था। स्वामी ने याचिका में तर्क दिया कि प्रस्तावना को बदला या निरस्त नहीं किया जा सकता है। प्रस्तावना न केवल संविधान की आवश्यक विशेषताओं को दर्शाती है, बल्कि उन मूलभूत शर्तों को भी बताती है जिनके आधार पर इसे एकीकृत समुदाय बनाने के लिए अपनाया गया था।

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