रामनगर/बाराबंकी
रिपोर्ट/विवेक कुमार शुक्ला
स्वार्थ मे अन्धे बनकर जो समाज की सेवा से रहते दूर है।उम्मीद कोई नही ऐसै लोगो से गंध निरन्तर सब मजबूर है।
लोकतान्त्रिक परिवेश मे मीडिया की बहुत अहम भूमिका है।जिसे चौथे स्तम्भ की संज्ञा से नवाजा भी गया है। पीड़ितों शोषितो की आवाज उठाने के मामलो मे आये दिन यह देखने को मिलता है,कि शासन प्रशासन यदि गहरी नीद मे सो चुके है तो मीडिया उन्हे भी जगाने पर विवश कर देती है।मीडिया की समाज और देश के प्रति बहुत बड़ी जिम्मेदारी है।यह ऐसा माध्यम है जो आम जनता की आवाज को बुलंद करता है।जो जनता की आवाज को शासन प्रशासन तक पहुँचाने की क्षमता रखता है।यह माध्यम जनता के हर दुःख दर्द का साथी भी माना जाता है।लेकिन धीरे धीरे बदल रहे परिदृश्य मे चौथे स्तंभ भी अब सिक्के की खनक से प्रभावित हो चुका है।बडी़ संख्या मे लोगो ने इसे भी कमाई का जरिया बना रखा है।जिसके चलते ईमानदारी और सच्चाई से समाज के लिये कार्य कर रहे पत्रकारों को भी अब बदनामी सुननी पड़ रही है।जो रिपोर्टर समस्या और सच्चाई पर कार्य कर रहे हैं।उनको छोटा बैनर तथाकथित पत्रकार कहकर ईमानदार पत्रकारो के ऊपर यह कथित दलाल पत्रकार आये दिन जिन लोगो के सामने तंज कसते रहते है।अब यह बात अलग है कि ऐसै लोगो से लोग बात भी करना पसन्द नही करते है। धंधे भी मंदे पड़ चुके है।हांलाकि हर फन के माहिर किसी न किसी तरह विचौलिये की भूमिका मे बने रहना चाहते है।यहा पर सबसे अहम बात तो यह है पहले भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी इन्हे सिर पर बैठाये रहते थे। क्योकि यह चार लोग मिलकर पीडितो शोषितो की आवाजो को दबा ले जाने मे अक्सर सफल हो जाते थे। यह दौर अब थम चुका है।सच्चाई किसी न किसी माध्यम से बाहर आ ही जाती है।जब वह छिपेगी नही तो अधिकारी बक्शीस कैसे दे।ग्रामीण अंचल के तमाम जन प्रति निधि भी ऐसे लोगो से दूरी बनाये हुये।किसी भी राष्ट्रीय अथवा धार्मिक पर्व पर यह किसी भिखारी की तरह समूचे क्षेत्र की परिक्रमा करने को विवश देखे जाते है।क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अब खुलकर जिसके लिये जबाब भी दे देते है।हाल मे ही एक ग्राम प्रधान ने शोषल मीडिया पर पत्रकारो को कुत्ता और भिखारी जैसी संज्ञा दे दी।दूसरे कुछ पत्रकारो के द्वारा नाराजगी जताये जाने पर उन्होने व्यक्ति विशेष पर ढकेल कर माफी मांग ली।खैर यह तो एक बानगी भर है।जन चर्चाओ के मुताबिक चौथे स्तंभ की आड़ में दलाली करने वाले कुछ तहसील रिपोर्टरों की आय का जरिया कम हो गया है।जिससे वह बौखलाकर समस्या और गरीबों की आवाज बुलंद करने वाले पत्रकारों पर अभद्र टिप्पणी करने पर मजबूर है।कुछ दलाल रिपोर्टर तो ग्राम प्रधान से अच्छी रकम ऐठते है।लेकिन जब प्रधान पैसा देने से इनकार करते हैं तो उनके खिलाफ खबर छाप कर वसूली करते हैं।जिसके चलते, कोई ग्राम प्रधान पीठ पीछे गालियां देता हैं तो कोई जलबला कर दलाली करने वाले तहसील रिपोर्टरों को ग्रुप पर भद्दी भद्दी गालियां लिख कर भेज देता है।लेकिन उन गलियों से उन पर कोई असर नहीं पड़ता।इन कुछ तहसील के दलाल रिपोर्टरों की वजह से सभी पत्रकारों की छवि धूमिल हो रही है।लेकिन उनको इसका जरा भी ख्याल नहीं है।अब आगे कोई विशेष बदलाव दिखाई पड़ेगा कि यह सब ऐसै ही चलता रहेगा।यह तो देखने वाली बात होगी मगर इन दलालो की गंध से समूचे क्षेत्र मे आवाज जरुर उठ रही है।